सीखने की कोई सीमा नहीं होती, तो भला कोई इंसान सब कुछ आने का दावा कैसे कर सकता है? दरअसल, ज्ञानी होने का दावा करना ही इस बात का प्रमाण है कि उस शख़्स के अंदर अंह का विकास हो चुका है और उसने अपनी सफलता का मार्ग ख़ुद अवरुद्ध कर दिया है. जिस दिन आपके मन में ये विचार आ गया कि अरे मुझे तो सब आता है, समझिए उस दिन से आपके आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो गया.मूर्ख व्यक्ति ख़ुद को बुद्धिमान मानता है, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं को मूर्ख मानता है.
विलियम शेक्सपियर का ये कथन बिल्कुल सत्य है. आपने अपने आसपास भी ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा जो हर विषय पर ये कहने से नहीं चूकते कि अरे ये काम तो कितना आसान है, आपको ये नहीं पता मुझे तो पता है... मगर असलियत में ऐसे लोगों को आता कुछ नहीं है, दूसरों के बीच ख़ुद को बड़ा दिखाने के चक्कर में वो हर बात में हां-हां करते रहते हैं.मगर जो वाक़ई बुद्धिमान होते हैं वो चुपचाप अपना काम करते हैं. वो दस लोगों के बीच अपने ज्ञान का डंका नहीं पीटते. यहां थोथा चना बाजे घना वाली कहावत भी चरितार्थ होती है. यदि आप सच में ज्ञानी है, तो आपका बार-बार ये बताने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, लोग ख़ुद-ब-ख़ुद समझ जाते हैं.
अहंकार है जड़
इंसान के इस रवैये का कारण उसका अहंकार है. दरअसल, अहंकार ही उसे कुछ नहीं आने के बावजूद दूसरों के सामने अपनी कमियां स्वीकार करने से रोकता है. लोग उसे छोटा/मूर्ख न समझने लगे इस डर से वो सच्चाई स्वीकार नहीं कर पाता, मगर ऐसी झूठी ज़िंदगी जीकर वो अपना ही नुक़सान करते हैं और ये बात उन्हें समझ नहीं आती. उस व़क्त तो उन्हें बड़ा मज़ा आता है जब लोग उनके झूठ को सच मानकर उन्हें ज्ञानी समझ लेते हैं, मगर ख़ुद को ज्ञाता बताकर वो नई चीज़ें व नई बातें नहीं सीख पातें. नतीजतन ज़िंदगी की दौड़ में पिछड़ जाते हैं. ऐसे लोगों को अपने झूठ के बल पर नौकरी भले ही मिल जाए, मगर तऱक्क़ी नहीं मिल सकती और देर सबेर उनकी असलियत जग ज़ाहिर हो ही जाती है. आप बैंकिंग फील्ड से हैं, मगर दोस्तों के बीच यदि इंजीनियरिंग, एज्युकेशन, मेडिकल, पॉलिटिकल और इसी तरह की किसी अन्य फील्ड से जुड़ी चर्चा होती है, तो आप हर क्षेत्र के बारे में जानकारी होने का दावा करते हैं, मगर जब उस फील्ड का कोई विशेषज्ञ आपसे उससे संंबंधित कुछ पूछ ले, तो आप बगले झांकने लगते हैं. ऐसे लोग ज़िंदगी में नया सीखने की कोशिश नहीं करतें.
दूसरों को छोटा समझने की भूल
किसी सीनियर को ये बात बिल्कुल बर्दाशत नहीं होती कि उसका जूनियर कलिग उसे कोई सलाह दे या कुछ सिखाने की कोशिश करें. क्योंकि इससे उनके अहं को ठेस पहुंचती है, लेकिन कई बार नए/युवा लोगों के पास नए विचार/आइडिया होते हैं, जो कंपनी/बिज़नेस को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. अतः दूसरों की बात सुन लें. किसी ने सच ही कहा है कि बुद्धिमान व्यक्ति ज़िंदगी भर सीखता रहता है और जो अपने दिमाग़ के दरवाज़े को बंद कर देते हैं, कुछ बताने वाले को भी अपने से छोटा समझने लगते हैं वो बदलते व़क्त के साथ ख़ुद को अपडेट नहीं रख पाते और आख़िरकार एक दिन उनका ज्ञान भी आउटडेटेड हो जाता है, क्योंकि ज्ञान उस नदी की तरह है जो जब तक बहती रहती है उसका पानी स्वच्छ निर्मल रहता है, मगर जब एक जगह रुक जाती है तो उसकी निर्मलता ख़त्म हो जाती है, ठहरे हुए पानी से दुर्गंध आने लगती है. ठीक उसी तरह ज्ञान भी है उसे दिमाग के कोठी में कैद रखने से उसका विकास नहीं हो पाता. ज़िंदगी में हर इंसान से आप कुछ न कुछ सीख सकते हैं, इसलिए ख़ुद को खुली किताब की तरह रखिए.
आत्मविश्लेषण है ज़रूरी
दूसरों को दिखाने या उनकी नज़रों में महान बनने की कोशिश करने की बजाय अपने आपको परखें. आत्मविश्लेषण करें कि आप कितने पानी में हैं? वाक़ई में आपको कितना और क्या आता है? ज़िंदगी में सफल होना चाहते हैं, तो झूठा अभिमान त्याग कर अपने ज्ञान और गुण का विश्लेषण करें, कमियों को स्वीकार करके उसे सुधारने का प्रयत्न करें. साथ ही हमेशा अपने फील्ड और अन्य क्षेत्र से जुड़ा कुछ नया सीखने की कोशिश करते रहें.
कंचन सिंह
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