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काव्य- सबको मिले हैं दुख यहां… (Kavay- Sabko Mile Hain Dukh Yahan…)

बहुत बेचैनियों भरी हैं ये सुकून की राहें

रास्तों में ही उलझ रहा हूं‌ धागों की तरह

समझो ज़रा मेरी भी इन लाचारियों को

भीग रहा हूं बरसात में काग़ज़ की तरह

अभी कितने और बाकी हैं ये तेरे इम्तिहान

जीत के भी रोया हूं खाली खंडहर की तरह

न रोको मुझे आज कहने दो हाल-ए-दिल

गया तो न लौटूंगा बीते बचपन की तरह

सुनो तमाशा न बनाना मेरी मजबूरियों का तुम

सबको मिले हैं दुख ज़रूरी सवालों की तरह

जैसे उमस भरी धूप को है बारिशों का इंतज़ार

बरसना है तुमको भी किसी बादल की तरह

यूं तो मेरी अभी उम्मीद बहुत बाकी हैं 'उससे'

पर अच्छा लगता है सावन 'सावन' की तरह...

- नमिता गुप्ता 'मनसी'

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Photo Courtesy: Freepik

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