होम लोन उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है, जिनके पास घर खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं. ऐसे में बैंक अपने कस्टमर की ज़रूरत को पूरा करने के लिए उन्हें होम लोन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं. लेकिन होम लोन देने के एवज में बैंक कस्टमर से कुछ चार्जेज़ वसूल करते हैं. बेहतर होगा कि होम लोन लेने से पहले आप भी इन चार्जेज़ के बार में जान लें.
अधिकतर लोगों को अपने सपनों का घर खरीदने के लिए होम लोन की ज़रूरत होती है. होम लोन की आवश्यकता को कस्टमर बैंकों, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के जरिए पूरा कर सकते हैं. ये सभी वित्तीय संस्थान होम लोन देने के साथ ही कस्टमर से कुछ रक़म चार्ज करते हैं. लेकिन बहुत से कस्टमर ऐसे होते हैं, जिन्हें इन चार्जेस के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं होती है. तो चलिए जानते हैं इन चार्जेस के बारे में, जो बैंक और अन्य वित्तीय कंपनियां होम लोन देते समय कस्टमर से वसूल करती हैं.
एप्लीकेशन फी
जो भी बैंक कस्टमर को लोन देता है, वो अपने कस्टमर से एप्लीकेशन फी चार्ज करता है. यह फी लोन एप्लीकेशन का मूल्यांकन करने के लिए वसूल की जाती है. बैंक इस बात का आकलन करता है कि लोन एप्लीकेशन में आगे के प्रोसेस के लिए ज़रूरी डॉक्युमेंट्स पूरी जानकारी के साथ हैं या नहीं. इन ज़रूरी डॉक्युमेंट्स में कोई जानकारी अधूरी तो नहीं है.
लोन प्रोसेसिंग फी
इसके तहत बैंक लोन लेनेवाले कस्टमर का केवाईसी वेरिफिकेशन, वित्तीय स्थिति, रोज़गार/व्यवसाय, घर और ऑफिस के एड्रेस के वेरिफिकेशन के लिए शुल्क वसूलते हैं. लोन प्रोसेसिंग फी को लोन ओरिजिनेशन फी भी कहते हैं. बैंक इस चार्ज को लोन लेने वाले कस्टमर से वसूल करता है. इस फी का भुगतान एक बार किया जाता है. कुछ बैंक लोन की जितनी रकम होती है, उसका 2% चार्ज करते हैं, तो कुछ बैंक प्रोसेसिंग फी के तौर पर एक तय रकम चार्ज करते हैं.
टेक्नीकल इवैल्यूएशन फी (तकनीकी मूल्यांकन शुल्क)
कस्टमर जिस प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए होम लोन लेता है, उसकी मार्केट वैल्यू जानने के लिए बैंक टेक्नीकल एक्सपर्ट्स (तकनीकी विशेषज्ञों) को नियुक्त करते हैं. ये एक्सपर्ट्स कई तरह से प्रॉपर्टी का मूल्यांकन करते हैं. इस प्रोसेस पर लगने वाले शुल्क को टेक्नीकल इवैल्यूएशन फी (तकनीकी मूल्यांकन शुल्क) कहते हैं. कुछ बैंक ऐसे हैं. जो टेक्नीकल इवैल्यूएशन फी को अलग से चार्ज करते हैं और कुछ बैंक अपनी इच्छानुसार प्रोसेसिंग फी में शामिल करके इस शुल्क को वसूल करते हैं.
लीगल फी (क़ानूनी शुल्क)
होम लोन देने से पहले सभी बैंक प्रॉपर्टी की अच्छी तरह से जांच करते हैं कि उस प्रॉपर्टी पर कोई क़ानूनी विवाद तो नहीं है. ये सब जांच करने के लिए बैंक क़ानूनी विशेषज्ञों को नियुक्त करते हैं, जो क़ानूनी पहलुओं से प्रॉपर्टी की जांच करते हैं, जैसे- टाइटल डीड, संपत्ति का स्वामित्व आदि. ये सब प्रक्रिया पूरी करने के लिए बैंक लोन लेनेवाले व्यक्ति से क़ानूनी शुल्क वसूलता है, जिसे लीगल चार्जेज़ कहते हैं.
फ्रैंकिंग चार्ज
होम लोन की मंजूरी दिलाने में फ्रैंकिंग चार्ज का बड़ा महत्व है. यह एक ऐसा प्रोसेस है, जिसमें होम लोन के एग्रीमेंट पर मशीन के जरिए मुहर लगाई जाती है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कस्टमर ने ज़रूरी स्टैंप चार्ज का भुगतान कर दिया है. होम लोन के एग्रीमेंट पर किया जानेवाला फ्रैंकिंग प्रोसेस सरकार द्वारा ऑथोराइज़ बैंकों और एजेंसियों के द्वारा किया जाता है और ये फ्रैंकिंग चार्ज होम लोन की राशि का केवल 0.1% होता है. जानकारी के लिए बता दें कि यह फ्रैंकिंग चार्ज देश के कुछ राज्यों (महाराष्ट्र और कर्नाटक) में ही लागू है. इसलिए कस्टमर होम लोन लेते समय पहले ही अपने बैंक से फ्रैंकिंग चार्ज के भुगतान के बारे में पूछ लें.
रेगुलेटरी चार्ज (वैधानिक शुल्क)
रेगुलेटरी चार्ज वे चार्ज होते हैं, जो कस्टमर द्वारा होम लोन लेने की प्रक्रिया में क़ानूनी/वैधानिक निकायों (स्टेट्यूटरी बॉडीज) की ओर से कलेक्ट किए जाते हैं. यह चार्ज स्टैम्प ड्यूटी और जीएसटी के रूप में होता है, जो कस्टमर द्वारा कलेक्ट किया जाता है और फिर सरकार को इसका पेमेंट किया जाता है.
इंश्योरेंस प्रीमियम
कुछ बैंक कस्टमर की प्रॉपर्टी को हानि (जैसे- आग) से बचाने के लिए फायर इंश्योरेंस या होम/हाउस बीमा लेने को कहते हैं. यह बीमा लोन प्रोटेक्शन लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी (लोन सुरक्षा जीवन बीमा पॉलिसी) के तौर पर होता है, ताकि अगर भविष्य में किसी तरह की अनहोनी हो जाती है, तो कस्टमर के क़ानूनी उत्तराधिकारियों को बकाया ऋण (आउटस्टैंडिंग लोन) के बारे में परेशान न होना पड़े. यदि कस्टमर होम लोन लेते समय ही इंश्योरेंस पॉलिसी ले लेता है, तो उसे इंश्योरेंस पॉलिसी की रकम का भुगतान करना होगा.
नोटरी चार्ज
यदि कस्टमर प्रवासी भारतीय (एनआरआई) हैं और होम लोन लेने की सोच रहा है, तो उसको कुछ एक्स्ट्रा पेपरवर्क करना पड़ सकता है. ऐसे स्थिति में कस्टमर को अपने केवाईसी डॉक्युमेंट्स और पावर ऑफ अटॉर्नी को इंडियन एम्बेसी या विदेश में उपलब्ध लोकल नोटरी द्वारा नोटरीकृत करना होगा और इसके लिए कस्टमर को कुछ फीस देनी होगी.
प्री-ईएमआई चार्ज
होम लोन मिलने के बाद अगर कस्टमर को घर का पजेशन मिलने में देरी होती है, तो बैंक कस्टमर से सिंपल इंट्रेस्ट चार्ज करता है, जिसे प्री-ईएमआई चार्ज कहते हैं. यह चार्ज बैंक तब तक कस्टमर से वसूल करता है, जब तक कि कस्टमर को घर का कब्जा नहीं मिल जाता है. उसके बाद फिर ईएमआई का भुगतान शुरू होता है.
रेवोलुएशन फी (पुनर्मूल्यांकन शुल्क)
होम लोन के आवेदन की मंजूरी सीमित अवधि के लिए होती है. यदि कस्टमर का लोन मंजूर हो गया है और वह कई महीनों तक लोन का भुगतान नहीं करता है, तो बैंक कस्टमर की लोन एप्लीकेशन का रेवोलुएशन (पुनर्मूल्यांकन) करता है और इसके लिए बैंक कस्टमर से जो चार्ज वसूल करता है, उसे रेवोलुएशन फी (पुनर्मूल्यांकन शुल्क) कहते हैं.
एडजुडिकेशन फी
अगर कोई एनआरआई कस्टमर होम लोन लेने का प्रोसेस शुरू करता है और उसके पास पॉवर ऑफ अटॉर्नी है, तो कस्टमर को पॉवर ऑफ अटॉर्नी भारत में नोटरीकृत करने की आवश्यकता है और इसके लिए कस्टमर को कुछ राशि का भुगतान करना होगा, जिसे एडजुडिकेशन फी कहते हैं.
- पूनम नागेंद्र शर्मा