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पहला अफेयर- इंतज़ार रहेगा… (Love Story- Intezar Rahega…)

"मैं खीर को और खीर देने वाले को हमेशा याद रखूंगी. मुझे खीर और आप बहुत पसंद हो. बहुत प्यार करती हूं आपको. मैं तो अपना बोल दी, आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा..." कहते हुए नम आंखों से मैंने अपना फोन नंबर उन्हें दे दिया. लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. ये पता था कि वो भी मुझसे उतना ही प्यार करते हैं. उनकी आंखें भी उदास थीं.

मौसम ने अंगड़ाई ली तेज़ हवा के झोंकों के साथ-साथ बारिश की नन्हीं-नन्हीं बूंदें धरा पर गिरकर मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू से वातावरण को सुगंधित कर रही थी. मौसम के अचानक बदले हुए मिज़ाज को देखकर हमारे पतिदेव और बच्चों ने गरम-गरम आलू परांठे और चावल की खीर बनाने को कहा. अच्छा मौसम ऊपर से छुट्टी का दिन डबल आनंद आएगा खाने का. मैं भी झट से रसोई में जाकर खाना बनाने लगी. खीर से उठने वाली मिठास की ख़ुशबू संग-संग मैं भी अपने पहले प्यार की ख़ुशबू में खो गई. क्योंकि उसे खीर बहुत पसंद था और मुझे भी.

बात उन दिनों की है जब मैं अपनी उम्र के सोलहवें वसंत में विचरण कर रही थी. दिल दिमाग़ दोनों एक दूसरे के बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं. दिल कहता की ख़ुद को हमेशा दर्पण में देखूं और दिमाग़ कहता कि ज़रा पढ़ाई पर ध्यान दे लूं. दिल दिमाग़ दोनों के आपसी सामंजस्य को लेकर मैं मधुरिमा अपने जीवन में आगे बढ़ रही थी. हमारे जीवन के इस डोर के तालमेल में हमारी मां का भी बहुत बड़ा योगदान है. वह हमेशा एक अच्छे दोस्त की तरह मेरा ख़्याल रखती और सही-ग़लत का बड़े प्यार से दिशा निर्देश करती रहती थी.

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दसवीं की परीक्षा का परिणाम आ गया था. फर्स्ट क्लास से पास की थी, वो भी बहुत ही अच्छे नंबर से. सभी बहुत ख़ुश नज़र आ रहे थे, ख़ासकर मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी मां. घर में मेरे आगे की पढ़ाई को लेकर चर्चे ज़ोर-शोर से हो रही थी. अंततः मेरा नामांकन ग्यारहवीं में पास के कॉलेज में हो गया. हमेशा चहकने वाली मैं कॉलेज के पहले दिन डरी-सहमी चुपचाप सी थी. तभी हमारे सीनियर रणधीर जी हमें टोकते हुए, "क्या बात है मधुरिमा इतना परेशान क्यों हो? तुम तो काफ़ी टैलेंटेड हो और टैलेंटेड स्टूडेंट का ऐसे चुपचाप रहना मुझे अच्छा नहीं लगता."

मैं अपना चेहरा उठा कर एक झलक उनको देखी. सांवले रंग में गज़ब की पर्सनैलिटी. क्या गजब की आंखें... मैं थोड़ा सकपका सी गई उनको देखकर. तुरंत अपनी नज़रें नीची कर ली. पुनः उन्होंने कहा, "डरो नहीं बिंदास रहो, मन लगाकर पढ़ो. कहीं कोई दिक़्क़त हो हम सीनियर से पूछ सकती हो. वैसे भी ग्यारहवीं और बारहवीं के स्टूडेंट काफ़ी घुल-मिलकर यहां रहते हैं. और सबसे मज़ेदार बात हम लोग लंच भी एक जगह बैठकर करते हैं." अचानक से मेरा चुलबुलापन जग गया और मैं तेज़ आवाज़ में बोली, "वाह ये तो बहुत मज़े की बात है."

"जाओ और अपने कॉलेज के पहले दिन को एंजॉय करो." मैं सिर हिलाते हुए अपने क्लास की ओर चली गई... लेकिन पहले ही वार्तालाप में दिलो-दिमाग़ दोनों ही रणधीर जी की आंखों में छोड़ आई.

अपने क्लास पहुंच गई. मेधावी छात्र के लिस्ट में मेरा नाम ऊपर होने की वजह से सर ने ज़ोरदार तालियों से मेरा शानदार स्वागत के साथ परिचय करवाया. मेरा मन अंदर ही अंदर ख़ुशी से झूम रहा था, लेकिन निगाहें लंच का इंतज़ार कर रही थीं. जल्दी से लंच हो और अपने सीनियर से मिलूं.

दिल ने कहा सीनियर सब या फिर रणधीर जी, ख़ुद के सवाल जबाव से ही मेरी आंखें शर्मा सी गईं. दिल ने दिमाग़ से सवाल किया पहली मुलाक़ात में ही ये क्या हो गया...

लंच हुआ. लंच में फिर से मुलाक़ात हुई. उन्होंने पूछा, "कैसा रहा पहला क्लास."

मैं बोली, "बढ़िया."

"चलो लंच करते हैं."

पता नहीं क्यों उनके पीछे चल दी. उन्होंने चावल की खीर दी खाने को. मैं बोली, "ये मेरा फेवरेट है."

"अच्छा... रोज़ तुम्हारे लिए खीर बना कर लाऊंगा."

मैं सवाल कि आपने बनाया.

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"हां मैंने बनाया..."

मैंने फिर सवाल किया, "क्यों घर में कोई और बनाने वाला नहीं है क्या?"

"मैं यहां रूम लेकर रहता हूं और पढ़ाई करता हूं."

"अच्छा... वाकई बहुत अच्छी खीर है."

यह सिलसिला चलता रहा. पहले प्यार की ख़ुशबू मेरे ही दिल में नहीं उनके दिल में भी घर कर गई थी. समय अपने रफ़्तार से बीतता गया और आज कॉलेज का लास्ट दिन था उनका.

उन्होंने खीर बनाकर लाई थी मेरे लिए. मैं बोली, "मैं खीर को और खीर देने वाले को हमेशा याद रखूंगी. मुझे खीर और आप बहुत पसंद हो. बहुत प्यार करती हूं आपको. मैं तो अपना बोल दी आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा..." कहते हुए नम आंखों से मैंने अपना फोन नंबर उन्हें दे दिया.

लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. ये पता था कि वो भी मुझसे उतना ही प्यार करते हैं. उनकी आंखें भी उदास थीं.

उन्होंने कहा, "हमारे जवाब का इंतज़ार करना."

मैंने सिर्फ़ इतना कहा, "इंतज़ार रहेगा..."

आज तक उनका फोन नहीं आया. मेरी भी ज़िंदगी बदल गई. मैं पत्नी बनी, मां भी बनी. लेकिन जब भी खीर बनाती हूं खीर के मिठास के साथ-साथ अपने पहले प्यार की मिठास की ख़ुशबू को भी महसूस करने लगती हूं.

- डॉ. कुमारी रिचा

Photo Courtesy: Freepik

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