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पहला अफेयर: एक गुलाबी सुगंध… (Pahla Affair: Ek Gulabi Sugandh)

केमिस्ट्री का नीरस लेक्चर सुनते हुए नींद से आंखें बोझिल होने लगी थीं. मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठा हथेली पर गाल टिकाए आंखें खोले हुए सो रहा था. तभी पीछे के दरवाज़े से बायोलॉजी के छात्र-छात्राएं क्लास में आए और खाली पड़ी बैंचेज़ पर बैठ गए.

मेरी बगल में एक गुलाबी रंग लहराया और सांसों में ताज़ा गुलाबों की सुगंध भर गई. मैं एकदम से सचेत होकर बैठ गया एक अच्छे विद्यार्थी की तरह. गणित और बायोलॉजी के छात्रों की केमिस्ट्री की कक्षाएं और प्रैक्टिकल साथ में ही होते थे. गुलाब की सुगंध को सांसों में भरते हुए मैंने कनखियों से उसकी ओर देखा, वह कोई अजनबी लड़की थी. आज से पहले उसे कभी नहीं देखा था, शायद कोई नया एडमिशन है. असमंजस की स्थिति में थोड़ी देर वह बोर्ड को देखती रही, फिर मुझसे पूछने लगी कि कौन-सा चैप्टर पढ़ा रहे हैं.

"तीसरी यूनिट दूसरा चैप्टर, मैग्नीशियम के बारे में पढ़ा रहे हैं…" बताते हुए मैंने क्षण भर को उसकी ओर देखा, हमारी आंखें टकराई. गुलाबी सूट में वह खुद एक प्यारा-सा गुलाब लग रही थी. गुलाबी दुपट्टे की आभा में दमकता गोरा रंग, माथे पर छोटी-सी गुलाबी बिंदी… जाने क्यों मुझे ओस में भीगे नर्म गुलाब का ख्याल आ गया. अचानक ही मेरी नींद उड़ गई और मेरा सारा वजूद उसके सानिध्य की ओर केंद्रित हो गया. पहले नींद के कारण पढ़ने में मन नहीं लग रहा था, अब आंखें तो बोर्ड की तरफ थी, मगर ध्यान पूरा उसकी ओर था.

क्लास खत्म हुई तो मैं देर तक उस दरवाज़े को देखता रहा जहां से वह बाहर गई थी. कॉलेज से घर जाते हुए आंखें गलियारों, सीढ़ियों, ग्राउंड सब जगह उसे खोजती रही, लेकिन वह दिखी ही नहीं. बस एक भीनी-सी सुगंध सांसों में ज़रूर महक रही थी.

दूसरे दिन कॉलेज जाते हुए ना जाने क्यों हाथ अपने आप सबसे फेवरेट शर्ट की ओर बढ़ गए. बाल संवारने में भी रोज़ से अधिक समय लगा. मैं दस मिनट पहले ही कॉलेज पहुंचकर सीढ़ियों के पास खड़ा हो गया. पांच-सात मिनट बाद ही वह आती हुई दिखी. हल्के वॉयलेट रंग के सूट में मेरी बगल से होते हुए वह सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाने लगी. मैं भी उसके पीछे जाने लगा. गुलाब की सुगंध ने मेरी सांसों को महका दिया.

उसकी क्लास के एक छात्र से पता चला उसके पिता आईएएस अधिकारी हैं और वह आठ दिन पहले ही ट्रांसफर होकर आई है, नाम है जूही. दिन यूं ही बीतते रहे. एक दिन उसकी सहेली नहीं आई थी. वह मेरी बगल वाली डेस्क पर थी. हम सबको अलग-अलग कॉन्सेंट्रेशन और सॉल्यूशन मिला था, जिसे हमें सॉल्ट में मिलाकर न्यूट्रल करना था. मैंने देखा उसे सॉल्ट की मात्रा का कैलकुलेशन करना नहीं आ रहा था. मैंने उसकी कॉपी में सॉल्यूशन का कॉन्सेंट्रेशन देखा और एक चिट पर सॉल्ट की मात्रा का कैलकुलेशन करके चुपचाप उसके डेस्क पर रख दिया. उसका प्रेक्टिकल बहुत अच्छा रहा, उसने मुस्कुरा कर मुझे थैंक्स कहा. कितनी मीठी थी उसकी मुस्कान. उसके बाद से मुझे देखकर उसके होंठों पर हमेशा मुस्कान आ जाती.

उस साल सेकंड ईयर की परीक्षा के बाद गर्मी की छुट्टियां बड़ी जानलेवा लगी. हमेशा एक डर मन पर हावी रहता कि कहीं ऐसा ना हो कि उसके पिता का दोबारा ट्रांसफर हो जाए और वह आए ही ना. लेकिन जब कॉलेज खुलने पर उसे सीढ़ियों के पास खड़े होकर मुझे देखते ही मुस्कुराते हुए देखा तो दिल गुलाब-सा खिल उठा.

इस खुशबू में भीगते हुए फाइनल भी हो गया. मैंने गणित विषय छोड़कर उसके कारण केमिस्ट्री ले लिया और उसी कॉलेज में केमिस्ट्री का असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया.

आज भी लैब में सॉल्ट्स की गंध के बीच पिछले 20 वर्षों से एक ताज़ा गुलाबी खुशबू से मन महकता रहता है. कॉलेज आते हुए रोज़ वह साथ आती है. वह बॉटनी पढ़ाती है. मैं आज भी क्लासरूम, गलियारों और सीढ़ियों के पास इस खुशबू में भीगता रहता हूं. बस फर्क इतना ही है कि अब वह गुलाबी सुगंध मेरा जीवन और घर भी महका रही है.

  • विनीता राहुरीकर

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