पहला अफेयर: तुम्हारा प्यार मिला… (Pahla Affair: Tumhara Pyar Mila)
पहले प्यार (FirstLove) का एहसास होता है बेहद ख़ास, अपने फर्स्ट अफेयर (Affair) की अनुभूति को जगाने के लिए पढ़ें रोमांस से भरपूर पहला अफेयर
मेरी वफ़ा का सिला मुझको शानदार मिला… गीत की यह लाइन मेरी ज़िंदगी की हक़ीक़त है. आज हमारी प्रीत 45 बरस की हो गई. आज भी तुम्हारे होंठों पर वह क़ातिल मुस्कान है, जो मुझ पर जादू कर गई थी. आज तुम मौन हो, कितने दिनों से तुमने मुझे ‘मन्ना’ कहकर नहीं पुकारा. पहले जब तुम पुकारते मन्ना… तो मिठास घुल जाती वातावरण में. कहनेवाले सच ही कहते हैं कि हाथ में जिसका नाम होता है, उसे ऊपरवाला मिलवा ही देता है. हम भी कुछ यूं ही मिले थे.
सांची हमारे परिवार की पसंदीदा जगह थी. जब भी मन करता मम्मी-पापा और हम दोनों बहनें सांची चले जाते. उन दिनों लड़कियां कार तो चलाती थीं, पर मोटरसाइकिल चलानेवाली लड़कियां बस दीदी और मैं ही थीं. जब हम निकलते, तब उसकी निगाह हम पर होती. दीदी तो न केवल मोटरसाइकिल चलातीं, बल्कि उसको सुधारने में भी माहिर थीं.
बारिश की झड़ी लगी थी. कॉलेज में छुट्टी का माहौल था. मन उकता रहा था. दीदी ने कहा, “चल सांची तक घूमकर आते हैं.” मैंने भी हामी भर दी. पापा की कार पर सवार होकर हम दोनों बहनें चल पड़ीं. रास्ते में एक जगह भीड़ जमा थी. कोई दुर्घटना घटी थी. हम दोनों भी पहुंचे. एक महिला अचेत पड़ी थी और घायल लड़का मदद की गुहार लगा रहा था. फ़ौरन दीदी और मैंने उस अचेत महिला और युवक को गाड़ी में बैठाया और अस्पताल भागे.
महिला और युवक दोनों अचेत थे. हमने पापा को भी ख़बर करवा दी. पुलिस भी आई. उनकी शिनाख्त हो गई. अगले दिन जब हम लोग हालचाल जानने पहुंचे, तो युवक होश में आ चुका था. “हैलो, मैं मनोज शास्त्री, भोपाल में प्रोफेसर हूं.” दीदी और मैंने औपचारिक बातचीत की, फिर लौट आए. यूं मिलने-मिलाने के दौरान मनोज बड़े भले-भले से लगे. एकदम सहज, मुस्कान क़ातिलाना थी, मगर दीदी तो मनोज की फैन हो गईं. आख़िर दोनों ही साइंसवाले थे और मैं इतिहास की स्टूडेंट.
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एक दिन मनोज की मम्मी घर आईं और उन्होंने रिश्ते की बात की. “अपने दोनों बेटों के लिए आपकी दोनों बेटियों का हाथ मांगती हूं.” झटपट सब तय हुआ और फिर जल्द शादी हो गई. बस, हम एक बार ही मिले थे और वो भी कुछ ही पलों के लिए. ससुराल में जब पहली बार हम मिले, तो इन्होंने कहा, “मैं तुम्हें मन्ना ही कहा करूंगा, मेरी मन्ना…” सच, उस दिन के बाद से हर दिन, हर पल तुमने अपनी मन्ना के मन को टूटने न दिया. प्यार का यह एहसास कितना अनमोल था. साल-दर-साल हमारी भूमिकाएं बदलीं, पर तुम्हारा प्यार कभी कम न हुआ. वो बढ़ा, बढ़ता चला गया, बच्चों को भी उनकी मुहब्बत की मंज़िल दिलवाने में तुमने कोई कसर बाकी न रखी.
हमारे बहू और दामाद दोनों अलग-अलग धर्मों के हैं, पर इस कदर वो हम में घुल-मिल गए हैं कि धर्म कहीं पीछे छूट गया है. आज जब मैं लड़खड़ा रही हूं, तो बच्चे मेरा संबल हैं और उनके भीतर छुपा तुम्हारा प्यार!
दो महीने बीत चुके हैं. मुझे अपने प्यार पर यक़ीन है और देखो, आज जब मैं तुम्हारे बाल बना रही थी, तो तुमने हौले से कहा, “मन्ना!” तुम्हारे होंठों को हिलते देखा मैंने. एक दिन तुम होश में आओगे… इस एक्सीडेंट ने तुम्हें भले ही कोमा तक पहुंचा दिया, पर मेरा प्यार तुम्हें मुझ तक वापस पहुंचाएगा… मेरे मन्ना.
– राजेश्वरी शुक्ला
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