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पहला अफेयर: वो ख़त जो कभी न गया (Pahla Affair: Wo Khat Jo Kabhi Na Gaya)

कल अलमारी साफ करते-करते रुचिका फाइल्स भी ठीक करने में लग गई. जब से बेटे उत्सव का एडमिशन इंदौर में हुआ है, रुचिका के पास करने के लिए जैसे कोई काम ही नहीं बचा. पीयूष तो महीने में बीस दिन वैसे ही टूर पर रहते थे. फाइलों में कई कागज बेमतलब पड़े रहते हैं, तो क्यों न कागजों का कुछ बोझ हल्का किया जाए. यही सोचकर रुचिका फाइलें निकालकर बैठ गई. उन्हीं फाइलों में उसके सर्टिफिकेट और डिगरियों की फाइल भी थी.

कॉलेज के दिन याद आ गए. मास्टर डिग्री अभी मिली ही नहीं था कि शादी पक्की हो गई. नौकरी न करने की बात पहले ही हो चुकी थी तो फाइल खोलने की कभी नौबत ही नहीं आई. बेकार सामान की तरह अलमारी के एक कोने में पडी रहती थी. मगर आज रुचिका ने देखा तो उसे खोलकर देखने का मोह न त्याग सकी. अभी तीन चार पन्ने ही पलटे थे कि एक लिफाफा नीचे गिरा. उठाकर देखा तो पुरानी यादों के भंवर में डूबती चली गई…

शांतनु, हां यही नाम, प्यार से सभी उसे शान कहते थे. उससे सीनीयर था. कॉलेज की हर लड़की जैसे उसकी दीवानी थी. उसका चार्म ही ऐसा था.

रुचिका के घरवाले काफ़ी पुराने विचारों और जातपात को मानने वाले थे. यही वजह थी कि रुचिका प्यार-मुहब्बत जैसी बातों के बारे में कभी नहीं सोचती थी. कॉलेज जाकर आगे पढ़ने की प्रमिशन मिलना ही उसके लिए वरदान था. शादी से पहले घूमने के नाम पर बस एक बार कॉलेज की तरफ से यूथ फेस्टिवल के लिए दूसरे शहर जाना हुआ, जिसमें शान के साथ वो ग्रुप डांस में थी.

तैयारी करते वक्त दोनों एक-दूसरे के थोड़ा करीब आ गए थे, लेकिन बात आगे न बढ़ सकी. शान से उसकी कई बार बात हुई, मगर शायद वो प्यार में नादान थी या घर वालों का डर, दिल की बात दिल में रह गई.

एक रात ऐसे ही मन का गुब्बार निकालने के लिए रंगीन कागज पर प्रेम पत्र लिखा और लिफाफे में बंद करके सर्टिफिकेट वाली फाइल में छुपा दिया. पहले प्यार के अंकुर तो फूट चुके थे, मगर रस्मों-रिवाजों में कहीं दब गए और वो अरेंज मैरिज करके पीयूष की दुल्हन बन मुंबई आ गई.

आज ये खत देखकर एक तरफ जहां उसके होश उड़ गए, तो वहीं दूसरी ओर पहले और शायद एक तरफा प्यार की यादें भी ताजा हो गई. समंदर घर से पास ही था… जगजीत सिंह की गजल ‘तेरी खुशबू भरे खत’ के यादों के भंवर के साथ उस ख़त को भी लहरों में बहा दिया जो कभी मंज़िल तक न पहुंचा. 

  • विमला गुगलानी

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