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गीत- मेरी नज़रों के सामने से नहीं हटता… (Poetry- Meri Nazaron Ke Samne Se Nahi Hatta…) 

तुम्हारे चेहरे की लाली
मुस्कुराहट
हंसी और आंखों की चमक
मेरे दिल में
कुछ इस तरह क़ैद है कि
तमाम कोशिश के बाद भी
तुम्हारा चेहरा
मेरी नज़रों के सामने से
नहीं हटता..

तुम्हारे हल्के कदमों की आहट
बात करते वक़्त
हंसी की खिलखिलाहट
और वह तुम्हारा बादामी कुर्ता
तमाम कोशिश के बाद भी
मेरी नज़रों के सामने से
नहीं हटता..

मेरा ख़ुद की निगाह में अपने
ग़लत होने पर भी
मुझे ग़लत न समझने का 
तुम्हारा नज़रिया ,
मेरी बहकी हुई नज़रों को
अपने बदन पर मुस्कुरा कर
सह लेने का तुम्हारा एहसास
और वो चेहरा लाल होते ही
नज़रों का झुका लेना
तमाम कोशिश के बाद भी
मेरी नज़रों के सामने से
नहीं हटता..

कभी-कभी वो तुम्हारा
गुलाबी लिपिस्टिक लगाना
कभी भीड़ भरी महफ़िल में
मेरे क़रीब खड़े हो जाना
कभी नज़रों ही नज़रों में
बिना कुछ कहे
मेरे लिए बहुत कुछ कह जाना
कभी मेरे लिखे हुए पर
वह हल्के से तुम्हारा
ताली बजाना
कुछ कहूं तो सुनते हुए
मेरी नज़रों से नज़रें मिलाए रखना
तमाम कोशिश के बाद भी
मेरी नज़रों के सामने से
नहीं हटाता..

तुम्हारा वो जीने से ऊपर चढ़ना
और नीचे की सीढ़ी से
मेरे आवाज़ देने पर रुक जाना
और फिर
अपनी ख़ूबसूरत गर्दन को झुक कर
रेलिंग को पकड़े हुए
मुझे इज़हारे मोहब्बत का मौक़ा देना
और उस मौक़े पर
मेरा कुछ न बोल पाना
तमाम कोशिश के बाद भी
मेरी नज़रों के सामने से
नहीं हटता..

- शिखर प्रयाग

Poetry


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Photo Courtesy: Freepik

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