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मन्ना डे की पुण्यतिथि: कुश्ती भी लड़ा करते थे मन्ना डे (Remembering singing legend: Manna Dey’s passion was wrestling)

Manna-de-241013 (1)मन्ना डे अब इस जहां में नहीं हैं, मगर करोड़ों दिलों में बसे हैं अपनी मखमली आवाज और गाने के अनोखे अंदाज की बदौलत. शास्त्रीय गायन में पारंगत मन्ना डे अपनी गायन शैली से शब्दों के पीछे छिपे भाव को ख़ूबसूरती से सामने ले आते थे. मोहम्मद रफ़ी और महेंद्र कपूर सहित उस समय के कई मशहूर गायक उनके ज़बरदस्त प्रशंसक थे. उनका वास्तविक नाम प्रबोध चंद्र डे था. प्यार से उन्हें 'मन्ना दा' भी पुकारा जाता था. मन्ना दा का जन्म कोलकाता में 1 मई, 1919 को हुआ था. उनकी मां का नाम महामाया और पिता का नाम पूर्णचंद्र डे था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा इंदु बाबुरपुर पाठशाला से की और उसके बाद विद्यासागर कॉलेज से स्नातक किया. वह कुश्ती और मुक्केबाजी की प्रतियोगिताओं में भी खूब भाग लेते थे. उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, मगर उन्हें अदालत नहीं, अदावत पसंद थी. इस सुप्रसिद्ध गायक ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा कृष्ण चंद्र डे से ली थी. एक बार जब उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा साथ में रियाज़ कर रहे थे, तभी बगल के कमरे में बालक मन्ना भी गा रहे थे. बादल खान ने कृष्ण चंद्र डे से पूछा कि यह कौन गा रहा है, तो उन्होंने मन्ना डे को बुलाया. वह उनकी प्रतिभा पहचान चुके थे और तभी से मन्ना अपने चाचा से संगीत की तालीम लेने लगे. उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण उस्ताद दबीर खान, उस्ताद अमन अली खान और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से लिया था. मन्ना डे 1940 के दशक में संगीत के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने के लिए अपने चाचा के साथ मुंबई आ गए. वहां उन्होंने बतौर सहायक संगीत निर्देशक पहले अपने चाचा के साथ, फिर सचिन देव वर्मन के साथ काम किया. पार्श्व गायक के रूप में मन्ना ने पहली बार फिल्म तमन्ना (1942) के लिए सुरैया के साथ गाना गाया. हालांकि उससे पहले वह फिल्म राम राज्य में समूहगान में शामिल हुए थे. इस फिल्म के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यही एकमात्र फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखी थी. पहली बार सोलो गायक के रूप में उन्हें संगीतकार शंकर राव व्यास ने राम राज्य (1943) फिल्म का गीत गई तू गई सीता सती... गाने का मौका दिया. उन्होंने ओ प्रेम दीवानी संभल के चलना... (कादंबरी-1944), ऐ दुनिया जरा... (कमला -1946)', हाय ये है... (जंगल का जानवर- 1951),' प्यार हुआ इकरार हुआ... (श्री 420-1955), ये रात भीगी भीगी... (चोरी-चोरी-1956) जैसे कई गीत गाए, लेकिन 1961 में आई फिल्म काबुली वाला के गीत ऐ मेरे प्यारे वतन... ने मन्ना डे को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया. मन्ना डे शास्त्रीय संगीत पर आधारित कठिन गीत गाने के शौक़ीन थे. पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई..., सुर ना सजे क्या गाऊ मैं... और तू प्यार का सागर है... तेरी इक बूंद के प्यासे हम... जैसे गीतों को उन्होंने बड़ी सहजता से गाया. मन्ना डे शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे, मगर किशोर कुमार को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान ज़्यादा नहीं था. जब फिल्म पड़ोसन (1968) के गीत एक चतुर नार बड़ी होशियार... की रिकॉर्डिंग हो रही थी, तो निर्माता महमूद ने कहा कि राजेंद्र कृष्ण ने जैसा यह गीत लिखा है, उसी तरह हल्के-फुल्के तरीके से गाना है, लेकिन मन्ना डे नहीं माने, उन्होंने इसे अपने ही अंदाज़ में गाया. जब किशोर कुमार ने मुखड़ा गाया तो मन्ना डे को वह पसंद नहीं आया था. जैसे-तैसे इस गाने की रिकॉर्डिंग की गई. प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने मन्ना डे से प्रभावित होकर अपनी अमर रचना मधुशाला को गाकर सुनाने का उन्हें मौका दिया था. उनकी गायकी से सजी आखिरी हिंदी फिल्म उमर थी. मन्ना डे की शादी 18 दिसंबर, 1953 को केरल की सुलोचना कुमारन से हुई थी. उनकी दो बेटियां शुरोमा और सुमिता हैं. उनकी पत्नी का 2012 में कैंसर से निधन हो गया था. फिल्म मेरे हुजूर (1969), बांग्ला फिल्म निशि पद्मा (1971) और मेरा नाम जोकर (1970) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. मोहम्मद रफी ने एक बार उनके बारे में कहा था, "आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं." मन्ना डे ने बांग्ला में अपनी आत्मकथा जीवोनेर जलासाघोरे लिखी थी. भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पद्मश्री, 2005 में पद्मभूषण से सम्मानित किया. साल 2004 में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की. संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. 24 अक्टूबर, 2013 की सुबह 4.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. मन्ना दा सदा के लिए हमसे ओझल हो गए. शास्त्रीय संगीत को कर्णप्रिय बनाने में मन्ना डे का कोई सानी नहीं था. अपने गीतों की बदौलत वह अमर हो गए. उनके गीत सदियों तक गूंजते रहेंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन्हें सुनते रहेंगे.

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