कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर होने का मॉनसून आया, तो कई ऐसे भगवान अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी के मामले में भी आत्मनिर्भर बना गए. उनके प्राइवेट हॉस्पिटल में आज हर साइज़ की किडनी उपलब्ध है (ऐसा काम सिर्फ़ भाग्य विधाता ही कर सकता है, क्योंकि भगवान अभी किडनी ट्रांस्प्लांट नहीं करता).
मजार पर बैठकर लोगों को चुड़ैल, खबीस, भूत-प्रेत से मुक्त करानेवाले सिद्ध बंंगाली बाबा जिन्नात शाह भी काफ़ी सफल भाग्य विधाता हैं.
अब आप कहेंगे कि दोनों एक ही महाशक्ति के दो चेहरे हैं. कभी थे, पर अब ऐसा नहीं है. मुझे भी जो कुछ स्कूल में पढ़ाया गया था, उसके मुताबिक़ पहले भगवान ही भाग्य विधाता हुआ करते थे. कलियुग आने से पहले तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, किंतु कलिकाल आते ही ईश्वर, अल्ला तेरो नाम पर सवाल उठने लगे. भगवान को चुनौती देनेवाले ऐसे कई भाग्य विधाताओं ने अलग-अलग स्थानों पर अवतार ले लिया था. भगवान को बेरोज़गार करनेवाले कई महकमें भाग्य विधाताओं ने ख़ुद संभाल लिया. कुछ काम तो ऐसे हैं, जहां भाग्य विधाता ने भगवान को भी ओवरटेक कर रखा है. ऐसे कई मंत्रालय, जो पहले भगवान के हाथ में थे. अब भाग्य विधाता ने हथिया लिए हैं. (सारे कारनामों को ख़ुद अंजाम देनेवाले के बावजूद भाग्य विधाता सारा क्रेडिट भगवान को देता है)
रोटी-रोजी भले ईश्वर के हाथ में हो, लेकिन सरकारी टेंडर भाग्य विधाता के हाथ में है. टेंडर का न्यूनतम रेट अपने चहेते ठेकेदार को बताकर मुनाफ़े में अपना हिस्सा तय करना भाग्य विधाता की पहचान है. ये काम इतनी गोपनीयता से सम्पन्न होता है कि बाकी ठेकेदार छाती पीटकर लौट जाते हैं. भाग्य विधाता की इसी कार्यकुशलता पर एक कहावत ने जन्म लिया- देवो न जाने कुतो मनुष्य: (यहां पर टेंडर न पानेवाले ठेकेदारों को मनुष्य कहा गया है). कलियुग में इस कहावत की किडनी निकाल ली गई और कहावत में टेंडर की जगह 'त्रिया चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम' कर दिया गया. तब से भाग्य विधाता और ठेकेदार के षड्यंत्र का खामियाजा महिलाएं भुगत रही हैं.
भगवान का काफ़ी काम भाग्य विधाता संभाल चुके हैं. डॉक्टर भी उसी भाग्य विधाता की श्रेणी में आते हैं. इनके चमत्कारी कामों के कारण कुछ चारण इनको भगवान भी कहते हैं. (ये अलग बात है कि कुछ 'ज़मीनी भगवान' युवा महिला मरीज़ को 'पकवान' और गरीब पेशेंट को 'नाशवान' समझते हैं!) जब से ऐसे डॉक्टरों को भगवान कहा जाने लगा, तभी से मरीज़ों के पेट में कैंची, ब्लेड, ग्लव्स और तौलिया छूटने लगा है. इनके (कु) कर्मो से मरीज़ों से ज़्यादा ऊपरवाला दुखी है.
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कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर होने का मॉनसून आया, तो कई ऐसे भगवान अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी के मामले में भी आत्मनिर्भर बना गए. उनके प्राइवेट हॉस्पिटल में आज हर साइज़ की किडनी उपल्ब्ध है (ऐसा काम सिर्फ़ भाग्यविधाता ही कर सकता है, क्योंकि भगवान अभी किडनी ट्रांस्प्लांट नहीं करता).
मजार पर बैठकर लोगों को चुड़ैल, खबीस, भूत-प्रेत से मुक्त करानेवाले सिद्ध बंंगाली बाबा जिन्नात शाह भी काफ़ी सफल भाग्यविधाता हैं.
वन वे इश्क़ के केस में नींद गंवाए लौंडे को भी सौ पर्सेंट कामयाबी की ताबीज़ देकर ऊपरवाले को भी सदमें में डाल देते हैं ! (अलबत्ता ऐसे केस में लोबान का ख़र्चा ज़्यादा आता है) बाबा जिन्नात शाह जिस मजार पर बैठकर अल्लाह को चुनौती देते रहते हैं, उन "शदीद बाबा" का नामकरण भी उन्होंने ही किया है ! जैसे-जैसे बाबा जिन्नात शाह का पोर्टफोलियो बड़ा हो रहा है, नीली छतरीवाले की मोनोपोली कम हो रही है. अब तो बाबा बेऔलाद महिलाओं को औलाद प्रोवाइड कराने की ताबीज़ भी देने लगे हैं (इस चमत्कारी ताबीज़ के लिए आस्थावान महिला को बाबा के हुजरे में अकेले आना पड़ता है) धंधे में चक्रवाती फ़ायदा देख कर बाबा जिन्नात शाह अब फ्रेंचाइजी देने की सोच रहे हैं.
भगवान के देखते-देखते कई भाग्य विधाता ठेला लगाते-लगाते अपना मॉल खोल बैठे. हमारे पांचू सेठ को ही लीजिए, चालीस साल पहले सायकल पर गांव-गांव फेरी लगाकर मसाला बेचा करते थे. आज पांचू लाला से पांचू सेठ हो चुके हैं. मसाले में अपने पालतू घोड़े की लीद मिलाते-मिलाते एक दिन मसाले की फैक्ट्री डाल ली. पहले वो ईश्वर पर भरोसा करते थे, आज काफ़ी लोग उन्हे ही ईश्वर मान बैठे हैं. भाग्य विधाता होते ही पांचू सेठ ने नारी मुक्ति आश्रम खोल लिया. पांचू सेठ परित्यक्ता युवतियों के दुर्भाग्य का सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हैं, "भगवान नहीं चाहते कि तुम्हारा उद्धार हो, लेकिन मैं हूं न! और जब हम हैं, तो क्या ग़म है!"
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भाग्य विधाता कभी भी अपनी उपलब्धियों का क्रेडिट ख़ुद नहीं लेता. वो सारा क्रेडिट ईश्वर को देते हुए कहता है, "शराब की एजेंसी का होलसेल लाइसेंस मिल गया, सब ईश्वर की कृपा है. मैंने कोई मजार, दरगाह, तीर्थ स्थान छोड़ा नहीं, जहां चढ़ावा न भेजा हो, क्योंकि ना जानें किस भेष में बाबा मिल जाएं भगवान! पूरे प्रदेश में दारू की सप्लाई का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है. परसों से सात दिन तक अखंड भंडारा चलेगा. मान गया, प्रभु के घर देर है अंधेर नहीं है. पहले दवा कंपनी की एजेंसी लेने के लिए दौड़ रहा था, नहीं मिली. जानते हो क्यों? क्योंकि भगवान को पता था कि दवा के मुक़ाबले दारू में ज़्यादा प्रॉफिट है. बस, प्रभु का इशारा समझ में आते ही मैं अंधकार से प्रकाश की ओर आ गया."
सबको सन्मति दे भगवान!
- सुलतान भारती
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