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कहानी- आने से उसके आए बहार… (Short Story- Aane Se Uske Aaye Bahar…)

“रमन का फोन आया था. रैंबों के मां-बाप का अता-पता पूछ रहे थे?”
“क्या?” पावनी बुरी तरह चौंक गई. वह तो सोच रही थी कि अब मसला सुलझ गया.
“मैंने कहा कि मेरी मौसीजी के फीमेल डॉगी का बच्चा है. मां तो साधारण है. पिता का पता नहीं.” बात पूरी होते-होते रवीना अपनी हंसी न रोक पाई. पावनी भी हंसने लगी.
दोनों सहेलियां बहुत दिनों बाद दिल खोल कर खिलखिला रही थीं.
“पता है, रमन हिदायत भी दे रहे थे कि मौसीजी को अपनी फीमेल डॉग ऐसे खुली नहीं छोड़नी चाहिए.”
“हे भगवान, मतलब कि बंधन यहां भी फीमेल पर ही. मेल डॉग छुट्टा घूमता रहे, कोई बात नहीं.” पावनी हंसी रोकते हुए किसी तरह बोली.

पावनी और रवीना सुबह की सैर पर थीं. बचपन की दोनों सहेलियां गप्पे मारती हुई निर्जन सड़क पर चली जा रहीं थीं. वे गप्पों में इतनी मशगूल थीं कि उन्हें हल्की बूंदा-बांदी से भी कोई फर्क़ नहीं पड़ रहा था. पावनी कह रही थी, “यार आजकल घर में पिता-पुत्र का द्वंद छिड़ा है.”
“वो क्यों?” रवीना ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की.
“शुभम कहता है, वो आएगा… लेकिन रमन को उससे सख्त नफ़रत है.” पावनी रटा रटाया सा बोली चली जा रही थी.
रवीना ने बीच में टोका, “पर वो कौन… यह भी बताएगी कि नहीं.”
“मैंने कितनी बार कहा रमन से, आने दो बच्चे की ख़ुशी के लिए… आख़िर कितना रहेगा हमारे पास. दसवीं में आ गया है, पर इन पतियों का तो भगवान ही मालिक है. हर वक़्त हिटलरी हुक्म सुना देते हैं.” पावनी के चेहरे पर इस समय युद्ध करनेवाले भाव थे. इसी तिलमिलाहट में उसकी चाल तेज हो गई थी.
“ओफ्फो! तू भी कोई कम नहीं. जब लड़ना होता है, तो भीगी बिल्ली बन जाती है. सारी हेकड़ी मेरे सामने ही दिखाती है. अब इतनी तेज क्यों चल रही है. रमन तो दो दिन से टूर पर गए हैं.”
“अरे हां…” पावनी पलभर थम गई.


“क्या करूं? शुभम की ज़िद है कि उसे एक पपी पालना है और रमन को तो कुत्तों से सख्त नफ़रत है.”
“यह कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं.”
“रमन को हर बात पर अपनी चलाने की आदत है. शुभम कितना अकेलापन महसूस करता है. बचपन में अपने लिए भाई-बहन की ज़िद करता था. हमेशा पूछता था, "मम्मी, मेरे सभी दोस्तों के भाई-बहन हैं. मेरा कोई भाई-बहन क्यों नहीं है?" सच कहती हूं रवीना कितना दिल दुखता था मेरा, पर रमन को तो एक ही बच्चा चाहिए था. किसी तरह भी तैयार नहीं हुए. अब शुभम बहुत दिनों से एक पपी पालने की ज़िद कर रहा है. यह कोई बड़ी भारी ज़िद है क्या, तू ही बता..?” पावनी ने रुक कर अपनी निगाहें रवीना के चेहरे पर टिका दी.
“समस्या इतनी बड़ी भी नहीं है, जिसके लिए तू इतनी परेशान हो रही है.”
“तेरे लिए नहीं, मुझे पूछ, घर में रोने-पीटने जैसा माहौल रहता है हर वक़्त… इतनी टेंशन तो सीमा पर भी नहीं होती होगी कि दोनों तरफ़ बंदे अपने ही हों.”
रवीना की हंसी छूट गई. उसे हंसता देख पावनी उसे रोष से घूरने लगी.
“मैं तेरी मुश्किल समझ रही हूं. किशोर उम्र के बच्चे अपनी ज़िद मनवाने के लिए किस कदर परेशान कर देते हैं और पति तो इस ग्रह का प्राणी होता ही नहीं. वह एक तरह से पृथ्वी पर एलियन है.”
“यार ये पति एलियन पहले से ही होते हैं या बाद में बन जाते हैं.” पावनी झुंझलाकर बोली.
“अरे नहीं भई, पहले वे भी अपने मम्मी-पापा के ज़िद्दी लाडले बच्चे होते हैं. शादी होते ही एलियन बन जाते हैं.” रवीना के पति विश्लेषण पर पावनी की बेसाख्ता हंसी छूट गई.


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दोनों की मुक्त खिलखिलाहट के बीच एक मासूम सा क्रंदन गूंजा. पहले तो दोनों ने अनसुना कर दिया, लेकिन क्रंदन इतना करुण था कि दोनों सहेलियां उसके श्रोत को ढूंढ़ने के लिए मजबूर हो गईं. वे धीरे-धीरे आवाज़ की दिशा में सड़क के किनारे की तरफ़ बढ़ने लगीं.
“अरे, यह देख पावनी, लगता है आज तेरी फ़रियाद पूरी होने का दिन है.”
“क्या है…?” कहकर पावनी रवीना के पास पहुंची तो देखा, कुत्ते का एक छोटा सा पिल्ला कूड़ेदान की ओट में छिपा भीग कर रो रहा था.
“अरे यह तो बहुत छोटा है. किस ह्रदयहीन ने इसे यहां छोड़ दिया, बारिश में भीगने के लिए.”
“दरअसल, यह भीग नहीं रहा. भीगने का लुत्फ उठा रहा है और गाने गा रहा है.” रवीना ने वस्तुस्थिति समझाई.
“चुप कर, हर समय मज़ाक के मूड में रहती है. एक तो घर में भी पिल्ले की टेंशन… ऊपर से यह दर्दनाक दृश्य.” पावनी ने रवीना को डपटा.
“दर्दनाक दृश्य? ओह, तो तू इसे हंसते-खेलते दृश्य में बदल सकती है.” रवीना बोली.
“नहीं, बिल्कुल नहीं…” पावनी, रवीना का मंतव्य समझ कर पीछे हट गई. यह सड़क का कुत्ता. .रमन जो थोड़ा बहुत मानेंगे भी तो इसका इतिहास, भूगोल सुन-देखकर मुझे और शुभम को भी सड़क पर खड़ा कर देंगे.”
“अरे तो तुझे हरिशचंद्र बनने को कौन कह रहा है.-कह देना किसी फ्रेंड के घर से लाई है.” रवीना ने राह सुझाई.
“तू तो ऐसा कह रही है जैसे यह बड़ा होगा ही नहीं…बड़ा होने पर इसकी सड़कीली लुक बाहर आ जाएगी.” पावनी ने अपना शक ज़ाहिर किया.
“गांव बसा नहीं, लुटेरे पहले आ गए…” रवीना ने मुहावरा छोड़ा.
“यह मुहावरा बिल्कुल भी मैच नहीं कर रहा…” पावनी स्नेह व लालच से पिल्ले को निहार रही थी। उसकी आंखों के सामने शुभम का अकेलापन कौंध रहा था. पपी के लिए उसकी ज़िद आजकल उसका सिरदर्द बनी हुई है. रवीना जानती है, एक बेजुबान पेट कैसे अकेले बच्चे को इमोशनल सपोर्ट दे सकता है, लेकिन यह बात रमन को समझानी मुश्किल थी. वह अपनी सोच में गुम थी कि रवीना ने राह सुझाई, “तू मुहावरे को छोड़. जब तक यह बड़ा होगा, तब तक तो घर में रच बस जाएगा…फिर रमन कुछ नहीं कर पाएंगे.”
“बात तो तू ठीक कह रही है, पर यह इतना भीगा हुआ और गंदा है कि उठा कर कैसे ले जाएं..?”
“छाते के अंदर रख कर…” रवीना ने छाता आगे किया और पिल्ले को उसके अंदर रख कर ढक दिया, “यह आईडिया सही रहेगा पावनी. सड़क के कुत्ते के साथ तुम्हें भी अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. एंटी-रेबीज इंजेक्शन लगा देना और खाना दे देना. बस, पल जाएगा बेचारा गरीब.” रवीना ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा, “इसके नखरे भी नहीं उठाने पड़ेंगे, इसलिए रमन को भी अधिक ऐतराज नहीं होगा.” पिल्ले को लेकर दोनों घर की तरफ़ चल दी.
रवीना का घर पहले पड़ता था और पावनी का बाद में. दुविधा व दुश्चिंता में घिरी पावनी घर पहुंच गई. घर जाकर पावनी ने गंदे पिल्ले को गर्म पानी से नहलाया, दूध पीने को दिया और हीटर ऑन कर दिया. भूखा पिल्ला चपर-चपर दूध पीने लगा. पेट भर गया, बाल भी सूख गए.
शुभम अभी स्कूल से नहीं आया था, लेकिन नन्हा पिल्ला अपनी बाल सुलभ चपलता पर उतर आया था. कभी पर्दे से खेलने लगता, तो कभी शुभम के जूतों के अंदर घुसने की कोशिश करता. कुछ नहीं तो कमरे में रखी फुटबॉल को लुढ़काने लगता. कभी पावनी की गोद में चढ़ जाता. आश्चर्यचकित पावनी को उससे हर पल स्नेह हो रहा था.
2 बजे शुभम स्कूल से आया. जैसे ही वह घर में घुसा, पपी को देखते ही ख़ुशी से उछल पड़ा.
“मम्मी ये कहां से आया. कब आया, कहां से लाईं?” उसने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.
“वह सब बाद में बताऊंगी…” पावनी स्नेहसिक्त निगाहों से शुभम के प्रसन्न चेहरे को देख रही थी. एक साधारण सा पपी भी अकेले बच्चे के लिए कितना मायने रखता है.
“यह मेरे साथ ख़ूब खेलेगा. लव यू मम्मी. मैं इसे अपने कमरे में सुलाऊंगा. मैं इसके सारे काम करूंगा. आप बिल्कुल भी चिंता मत करना.” शुभम उसके गाल पर प्यार कर पपी को उठा अपने गाल से सटाता हुआ बोला, “लेकिन पापा इसे रखने तो देंगे न….” पावनी एकाएक चौंक गई. पपी के साथ की प्रसन्नता भरी व्यस्तता में यह बात तो वह भूल ही गई थी। उसे फ़िलहाल कोई उत्तर नहीं सूझा.
अभी रमन के आने में दो दिन बाकी थे. शुभम भी सब भूल कर पपी के साथ व्यस्त हो गया.
“मम्मी इसका नाम क्या रखें?”
“तू बता…क्या रखेगा?”

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“मेरे एक दोस्त के डोबरमैन का नाम ‘रैंबो‘ है… इसका नाम रैंबो रख देते हैं.” इतने पिद्दी से पपी का नाम रैंबो सोच कर पावनी के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई.
अगले दो दिन बहुत व्यस्त और मज़ेदार बीते. शुभम को इतना ख़ुश व भरा-पूरा सा उसने कभी महसूस नहीं किया था. रवीना का फोन आया, “अरे यार कहां व्यस्त है. दो दिन से सैर पर भी नहीं…”
“रैंबो को घर पर अकेले छोड़ कर कैसे आऊं…” पावनी ने अपनी मजबूरी जताई.
“ये रैंबो कौन..?” रवीना ने चकरा कर पूछा.
“अरे तूने ही तो रैंबो को घर लाने के लिए कहा था.” पावनी ऐसे बोली, जैसे रवीना को सब कुछ पता होना चाहिए था.
“अरे, वह पिद्दी मरियल सा कुत्ता रैंबो कब से बना…” रवीना हंसते हुए बोली.
पावनी को बुरा लगा, “अब वह रैंबो है…” गंभीरता उसके स्वर में छलक रही थी.
“दो दिन में बात यहां तक आ पहुंच गई… वो मुझसे भी प्रिय हो गया.”
“हां, हो गया… अब टेंशन यह है कि कल रात रमन पहुंचनेवाले हैं.” पावनी बोली.
“हां, तो क्या हुआ… तू बहुत बहादुर है, मुझे मालूम है. यह मोर्चा भी तू पार कर जाएगी.” रवीना ने उसे उकसाया.
“तू भी न मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा देती है.आख़िर उस भयंकर तूफ़ान का सामना तो मुझे ही करना है, जो कल आनेवाला है.”
“कुछ नहीं होगा. तूने वह कहावत नहीं सुनी, हिम्मते मर्दा मददे खुदा…" रवीना ने उसे फिर हिम्मत दिलाई.
दूसरे दिन रविवार था. रात तक रमन आनेवाले थे. शुभम रैंबो से ऐसे खेल रहा था जैसे आख़िररी बार खेल रहा हो. बेचैन-सी इधर-उधर घूमती पावनी रमन के आने के लिए जरा भी उत्साहित नहीं थी. रैंबो कोई निर्जीव चीज़ तो था नहीं कि कहीं छुपा दें या फिर कूड़ेदान में फेंक दें.
आख़िर शाम आ गई और बीत भी गई. रात 9 बजे फ्लाइट लैंड कर जाती है. वह रैंबो के लिए दूध ले आई, “शुभम, इसे जल्दी से दूध पिला और छत की तरफ़ जानेवाली सीढ़ियों के नीचे गत्ते के डिब्बे में सुला कर दरवाज़ा बंद कर दे.”
“लेकिन मम्मी सुबह क्या होगा?”
“सुबह की सुबह देखेंगे, वरना तो आते ही महाभारत कथा आरंभ हो जाएगी.”
रैंबो कोई आदमी का बच्चा थोड़े ही न था, जो किसी सांसारिक नियम से बंधा था. रैंबो तो आजकल के बच्चों की ही तरह निशाचर था. आख़िर नई पीढ़ी का जो था. दिनभर अलसाया रहता और रात होते ही एक्टिव हो जाता. दूध पीकर तो वह और भी फूर्तीला हो कुलांचे भर रहा था. तभी फोन की घंटी बज गई. रमन का फोन था. 15-20 मिनट में पहुंचने ही वाले थे.
पावनी ने रैंबो को ज़ोर से डांटकर, एक थप्पड़ लगा दिया. वह कूं कूं… करता शुभम की गोद में बैठ गया. शुभम का दिल टूट गया. सोने के लिए बचपन में उसे भी एक थप्पड़ पड़ जाता था कभी-कभी. उसने एक छोटा तौलिया गत्ते के डिब्बे में बिछा कर उसे रख दिया. मजबूरी में रैंबो लटक गया और 5-10 मिनट में सो भी गया. शुभम ने डिब्बा सीढ़ी के नीचे रख कर दरवाज़ा बंद कर दिया. पावनी ने चैन की सांस ली. तभी डोरबेल बज गई.
दरवाज़ा खोलते हुए पावनी आज कुछ ज़्यादा ही मुस्कुरा रही थी. रमन ख़ुश हो गए.
“वाह! क्या बात है. लगता है इस बार बहुत मिस किया मुझे.” कहते हुए रमन अंदर आ गए.
“हमेशा ही करती हूं.” पावनी ने स्वर में मिश्री घोली.
“लेकिन आज घर की फ़िज़ा कुछ बदली-बदली-सी नज़र आ रही है.” रमन इधर-उधर देखते हुए बोले.
शुभम जल्दी से अपने कमरे में जा कर पढ़ाई में उलझ गया और पावनी किचन में चली गई. रमन हक्के-बक्के रह गए. रमन नहा-धोकर, चेंज करके आए, तो पावनी और शुभम डाइनिंग टेबल पर बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे.
“आज आते ही खाना लगा दिया. क्या बात है?”
“कोई बात नहीं. आप थक गए होंगे. खाना खाकर सो जाते हैं.” पावनी हड़बड़ाकर बोली.
“अच्छा? ठीक है जैसा तुम चाहो.” रमन ने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट पावनी पर फेंकी. पावनी ने नज़रें इधर-उधर कर दी.
जब तक खाना खाकर तीनों कमरे में नहीं आ गए, पावनी की सांसें अटकी ही रही, लेकिन अलसुबह शोरगुल ने पावनी की नींद खुल गई. उसने बगल में सोए रमन पर नज़र डाली, लेकिन यह क्या, रमन तो अपनी जगह से गायब थे. ओह! फिर तो लगता है, अभी तक विश्व में जितने भी भयंकर तूफ़ान आए हैं, उनमें से सबसे बड़ा वाला उनके घर आ गया, ‘रवीना की बच्ची, यह सब तेरी पढ़ाई पट्टी है. तूने ही लालच दिया था मुझे…'
वह हिम्मत कर कमरे से बाहर आई. बाहर का दृश्य देख कर उसके होश उड़ गए. रमन दोनों हाथ कमर पर रखे, प्रश्नवाचक नज़रों से सीढ़ीवाले बंद दरवाज़े को घूर रहे थे. शुभम अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ा बेबसी से कभी पापा और कभी बंद दरवाज़े को देख रहा था. जिसके पीछे रैंबों ने तूफ़ान मचा रखा था. वह दरवाज़े के नीचे अपने पंजे मार-मार कर लगातार रो रहा था, जिससे काफ़ी सुरीला संगीत पैदा हो रहा था.
“यह तो किसी पिल्ले की आवाज़ है… क्या छत का दरवाज़ा खुला रह गया था.” वे परिस्थितियों का सही आकलन करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. बाहर की आवाज़ सुन कर तो रैंबो ने गज़ब की उछल-कूद मचानी शुरू कर दी थी. आख़िर शुभम से न रहा गया.
“क्या पापा… इतना नन्हा बच्चा छत में कैसे चढ़ जाएगा.” कहते हुए उसने दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही रैंबों कूं कूं… का शोर मचा कर शुभम के पैरों को चाटने लगा. पावनी जल्दी से किचन में दूध लेने खिसक गई, लेकिन रमन की आंखें कपाल तक चढ़ गई.
“कोई मुझे बताएगा… यह पिल्ला कहां से आया..?” अब रमन को कुछ-कुछ वस्तुस्थिति का सही ज्ञान होने लगा था. तब तक पावनी दूध रैंबो के आगे रख चुपचाप सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गई. भूखा रैंबो दूध पीता बहुत ही प्यारा लग रहा था, पर एलियन का दिल भी कहीं पिघलता है.


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“मैंने कुछ पूछा है तुम दोनों से. कहां से आया यह?” रमन एकाएक चिल्लाकर बोले.
“रवीना लाई. शुभम बहुत दिनों से ज़िद कर रहा था इसलिए.” पावनी के मुंह से झोंक में निकल गया.
“कहां से लाई. उसे पता है न कि मैं कुत्ते बिल्कुल भी पसंद नहीं करता.”
“लेकिन शुभम को बहुत पसंद है और मुझे भी. घर में सिर्फ़ आप ही नहीं रहते.” पावनी को रवीना की बात याद आ गई थी तभी हिम्मत करके बोल गई.
“ये कुत्ते सिर्फ़ खेलने, प्यार करने के लिए ही नहीं होते. गंदा भी करते हैं. इन्हें ट्रेंड भी करना पड़ता है. घुमाने भी ले जाना पड़ता है. मैं इसे घर में ज़रा भी बरदाश्त नहीं कर सकता.” रमन ने नफ़रत से रैंबो को देखा.
“हम दोनों मिल-जुलकर कर लेंगे.” पावनी और शुभम एक साथ बोले.
“बिल्कुल नहीं. कान खोलकर सुन लो तुम दोनों. आज जब मैं ऑफिस से लौंटूं, तो मुझे यह पिल्ला घर में नज़र नहीं आना चाहिए.” हिटलरी हुक्म सुना रमन अबाउट टर्न हो गए.
“पिल्ला नहीं रैंबो है यह.” शुभम बोला, लेकिन तब तक बाथरूम का दरवाज़ा एक धमाके के साथ बंद हो चुका था.
“अब..?” शुभम ने ग़मगीन आंखों से उसकी तरफ़ देखा, “मैं इसको स्कूल बैग में डाल कर अपने साथ ले जाऊंगा. किसी पर भरोसा नहीं रहा मुझे.” शुभम ने भी अपने कमरे का दरवाज़ा धड़ाम से बंद कर दिया.
पावनी ने बारी-बारी दोनों दरवाज़ों को शक की नज़र से निहारा और किचन में चली गई. घर में तूफ़ान के आने से पहले का मरघट- सा सन्नाटा छा गया था. उसके बाद जो कुछ हुआ इशारों में हुआ. शुभम स्कूल चला गया और रमन ऑफिस.
लेकिन रात को सब फिर एक-दूसरे के सामने थे और रैंबो बदस्तूर कुलांचे भर रहा था. आज वह रमन के पैरों से खेलने की कोशिश में लगा था. शायद उसे भी दुनियादारी समझ आ गई थी कि कौन-सी सरकार सत्ता में है. रमन ने उसे पैरों से परे फेंक दिया.
“यह अभी तक यहीं हैं. ठीक है मैं ही इसे अभी रवीना को वापस कर आता हूं.” रमन अपनी जगह से उठे. पापा का इरादा भांप शुभम ने रैंबों के साथ अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया. रमन पावनी को घूरते रह गए.
अब रोज़ यही होने लगा. रैंबो ने भी रमन को अपने ख़िलाफ़ देख विद्रोह का मोर्चा खोल दिया था. रमन रैंबों को बाहर करने के लिए रोज़ नई-नई तरकीब लड़ाते और रैंबो कभी उनकी चप्पल के ऊपर पॉटी कर देता, कभी कारपेट पर सू सू. कभी उनके मोजे कुतर देता, तो कभी एक जूता गायब कर देता. पावनी को रैंबों और रमन के बीच शांति स्थापित करनी मुश्किल हो रही थी. माहौल गरमाता देख शुभम रैंबो के साथ अपने कमरे में बंद हो जाता. ऐसे ही सी-सॉ खेलते दिन बीत रहे थे. कभी एक का पलड़ा भारी होता, तो कभी दूसरे का.


बड़े से बड़ा तूफ़ान भी आख़िर मंद पड़ जाता है. विद्रोह की ताक़त कमज़ोर पड़ने लगती है. रमन अब गाहे-बगाहे रैंबो को अपने पैरों के साथ खेलने देते. अपना एक चप्पल-जूता गायब होने पर ढूंढ़ने को कहते. लेकिन जब वह उनके जूते-चप्पल को टॉयलेट समझ लेता, तब बीच-बचाव करना मुश्किल हो जाता. लेकिन पावनी और शुभम फिर भी राहत महसूस कर रहे थे, क्योंकि रैंबो को वापस करने की बात वह अब धीरे से कहते. दोनों ने सोचा, चलो ख़तरा टल गया.
लेकिन एक दिन शाम को रवीना दनदनाती हुई आई और पावनी पर फट पड़ी, “यार तेरी मुझे फंसाने की आदत कब जाएगी. कॉलेज लाइफ से यही कर रही है, फ्रेंड का नाम लेने के लिए क्या मैं ही रह गई थी.”
“अब क्या किया मैंने?” पावनी आश्चर्य से बोली.
“रमन का फोन आया था. रैंबों के मां-बाप का अता-पता पूछ रहे थे?”
“क्या?” पावनी बुरी तरह चौंक गई. वह तो सोच रही थी कि अब मसला सुलझ गया.
“मैंने कहा कि मेरी मौसीजी के फीमेल डॉगी का बच्चा है. मां तो साधारण है. पिता का पता नहीं.” बात पूरी होते-होते रवीना अपनी हंसी न रोक पाई. पावनी भी हंसने लगी.
दोनों सहेलियां बहुत दिनों बाद दिल खोल कर खिलखिला रही थीं.
“पता है, रमन हिदायत भी दे रहे थे कि मौसीजी को अपनी फीमेल डॉग ऐसे खुली नहीं छोड़नी चाहिए.”
“हे भगवान, मतलब कि बंधन यहां भी फीमेल पर ही. मेल डॉग छुट्टा घूमता रहे, कोई बात नहीं.” पावनी हंसी रोकते हुए किसी तरह बोली.
“अरे क्या बात कही.” रवीना ने पावनी से हाई फाइव किया.
“लेकिन इतना बड़ा झूठ आख़िर कब तक छिपाएंगे. मैं तो सोच रही थी कि रमन अब भूल गए होंगे, पर तेरी बातों ने तो मुझे उलझा दिया.”
“मैं भी यही सोच रही हूं पावनी. सच बता दे, फिर रमन का जो भी फ़ैसला हो.”
“मैं रैंबो को कहीं नहीं जाने दूंगा.” उनकी बातें अंदर से सुनता शुभम अपने कमरे से बाहर आ गया. साथ ही उछलता-कूदता रैंबो भी. आजकल देखभाल से वह गोलू-मोलू सा हो रहा था. रवीना ने झुक कर उसे गोद में उठा लिया, “यह तो बहुत प्यारा हो गया. रमन का दिल फिर भी नहीं पिघल रहा. यार सही में पति इस पृथ्वी पर एलियन ही होते हैं.”
“हां, और अब यह एलियन सच जानकर किसी भी तरह रैंबो को घर में नहीं रहने देंगे. जब से यह आया था, घर में जैसे बहार आ गई थी.” पावनी बेहद मायूसी से बोली. सुनकर शुभम की आंखें आंसुओं से भर गईं.


तभी रैंबो रवीना के हाथ से फिसल कर दरवाज़े की तरफ़ भाग गया. दरवाज़े पर रमन खड़े बहुत देर से उनकी बातें सुन रहे थे. अब कोई राज़, राज़ न रहा था. पावनी और रवीना सन्न खड़ी रह गई. शुभम रैंबो को उठाकर चेहरे पर अवज्ञा के भाव लिए अपने कमरे में चला गया. जिसे तीनों ने पढ़ लिया.
रमन को देखकर हमेशा मज़ाक के मूड में रहनेवाली रवीना आज बिना दुआ-सलाम किए, चुपचाप बाहर निकलकर वापस चली गई. रमन को बहुत अखरा. पलभर ठिठक कर वे बेडरूम में जाकर कपड़े बदल फ्रेश होकर आ गए. पावनी ने चाय-नाश्ता टेबल पर रखा और अपनी चाय उठाकर जाने लगी, तो रमन ने उसका हाथ पकड़ कर वापस बिठा लिया.
“क्या बात है..?” रवीना झुंझलाकर बोली.
“मेरी बात तो सुनो…”
“अब क्या सुनना है… तुम्हारा घर… तुम्हारा फ़ैसला… तुम जो चाहे करो.”
“तुम समझती क्यों नहीं… पिल्ला पालना कोई खिलौना रखना नहीं है… शुभम तो नादान है, पर तुम तो समझदार हो.”
“हां मैं तो तब भी समझदार थी, जब तुमने शुभम को बिना कारण अकेला रखा. अकेले बच्चे को साथ के लिए मैंने दुखी होते देखा है. उसके अनगिनत सवालों के जवाब दिए हैं मैंने. तुमसे तब भी एक अच्छा पपी पालने के लिए कहा, लेकिन तुम कभी नहीं माने. उतनी ही बार अपने अंदर छटपटाहट महसूस की है मैंने. इतने दिनों से हम सब तुम्हारी डर से झूठ बोल रहे है. आख़िर क्यों? ऐसा क्या मांग लिया शुभम ने और ऐसा क्या गुनाह कर दिया मैंने. कितना ख़ुश है अकेला बच्चा उस नादान से पपी के साथ. आख़िर, सभी को अपना प्यार लुटाने के लिए कोई तो चाहिए. पपी के साथ वह जिस तरह से भागता-दौड़ता है, प्यार करता है… क्या इस उम्र का बच्चा माता-पिता के साथ कर सकता है. पर तुम्हें क्या.;घर तुम्हारा है. फ़ैसले तुम्हारे हैं. मैं और शुभम तो तुम्हारे घर में रह रहे हैं न…” बोलते-बोलते पावनी की आवाज़ भर्रा गई. रमन हतप्रभ देखते रह गए.
तभी बाहर से रवीना की आवाज़ सुनाई दी. छलछलाई आंखें लिए पावनी बाहर चली गई. बाहर रवीना, पावनी से कह रही थी, “रैंबो को दे दे पावनी. मैं उसके लिए किसी से बात कर आई हूं, वो लेने को तैयार हैं.”
पावनी रैंबो को उठाकर ले आई. पीछे-पीछे रुआंसा सा शुभम भी. तभी रमन भी बाहर आ गए. पावनी ने रैंबो को रवीना की गोद में दिया, वह फिर से फिसल कर रमन की तरफ़ भाग गया. इस बार रमन ने उसे गोद में उठा लिया.
“तू अब कहीं नहीं जाएगा रैंबो. मैं पृथ्वी पर एलियन बिल्कुल नहीं कहलाना चाहता.” कहकर रमन रवीना की तरफ़ देख कर शरारत से मुस्कुराए. फिर पावनी के कधों के इर्दगिर्द अपनी बांहें फैलाते हुए बोले, “मुझे माफ़ कर दो पावनी, इस नज़रिए व इतनी गहराई से मैंने कभी सोचा ही नहीं. और हां, अब कभी मत कहना कि यह घर तुम्हारा नहीं. यह घर भी तुम्हारा और इसके फ़ैसले भी तुम्हारे."
सुनहली धूप चटक गई एकाएक पावनी के चेहरे पर. ख़ुशी से गमकता शुभम मम्मी-पापा व रैंबो से एक साथ लिपट गया.
“हुर्रे… ये हुई न बात… एक फोटो तो बनती है… इस हैप्पी फैमिली की.” रवीना ने अपना मोबाइल निकाला और एक फोटो खींच दी. आज वास्तव में रैंबो के आने से घर में बहार आ गई थी.

Sudha Jugran
सुधा जुगरान

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