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कहानी- अमेरिकन डायमंड (Short Story- American Diamond)

Hindi Short Story
अकेले में उसने सौम्या से कह ही दिया, “तू सचमुच बड़ी क़िस्मतवाली है. बस, ये समझ ले तेरे हाथ असली हीरा लगा है और मैं? मुझे मिला अमेरिकन डायमंड. जो न सोसाइटी में पहना जा सकता है, न ही उसकी कोई क़ीमत ही होती है. हां, अपने पास भी हीरा होने की झूठी तसल्ली की जा सकती है.”
रात आधी से अधिक बीत चुकी थी, पर अलका की आंखों से जाने क्यों नींद गायब थी. तरह-तरह के विचारों ने उसके मन को कितना अशांत कर दिया था. वो सोते हुए रोहित के बालों में हौले-हौले बड़े प्यार-से यूं उंगलियां फिराने लगी, जैसे उसे अपना प्यार सदियों बाद मिला हो. आज उसे पुराने दिन याद आने लगे. अलका और सौम्या अच्छी सहेलियां थीं. नितांत विपरीत स्वभाव के बावजूद उनकी मित्रता सबके लिए आश्‍चर्य का विषय था. उन्मुक्त विचारों और खुले मन की सौम्या को न तो पार्टियों में जाने में कोई ऐतराज़ होता, न डेटिंग में कोई संकोच. तभी तो बिंदास और महफ़िलों की शान सौम्या के कितने ही लड़के दीवाने थे. वहीं फैशन व पार्टियों से दूर, अंतर्मुखी साहित्यानुरागी अलका क्लास में न दिख रही हो, तो लाइब्रेरी में ही मिलती. लड़कों से तो वो दूर ही रहती. “तू कहां इक्कीसवीं सदी में पैदा हो गई. तुझे तो घोड़ी पर सवार हो कोई राजकुमार ब्याहकर ले जाएगा.” कहकर हंसती हुई सौम्या जब छेड़ने लगती, तो बेचारी अलका शरमा ही जाती. “और तुम? तुम कैसे करोगी शादी? राजुकमार आएगा या तुम ही भगा ले जाओगी किसी राजकुमार को?” एक दिन वो पूछ ही बैठी सौम्या से. “न बाबा. अब तो ज़माना नहीं रहा कि स्टैच्यू की तरह फोटो खिंचाई, लड़की दिखाई और विदा हो गए किसी अजनबी के साथ. न कोई उमंग-तरंग, न रोमांस, न रोमांच.” सौम्या दो पल रुककर बोली, “मैं नहीं चाहती कि मम्मी-पापा के ढूंढ़े किसी भी लड़के से शादी कर लूं. मैं तो ऐसे लड़के से शादी करूंगी, जो मुझे जाने-समझे.” सौम्या के पिता फौजी अफसर होते हुए भी पार्टियों के कम शौक़ीन थे, तो उसकी मां को अत्याधुनिक जीवनशैली पसंद थी. उसके पिता सौम्या के बड़े होने की दुहाई देते हुए मां को समझाते, तो मां सौम्या को दक़ियानूसी और पुराने ख़्याल का बनाने का आरोप लगातीं. हारकर पिता ने इकलौती बेटी को हॉस्टल भेज दिया. वहीं अलका को पारंपरिक विवाह से तो कोई समस्या थी नहीं, पर रोमांटिक टीवी सीरियल्स व फिल्में देखकर उसने कुछ सपने ज़रूर देखे थे. पति के साथ रोज़ घूमना-फिरना, कभी बाहर खाना, तो कभी मॉल में शॉपिंग, घरेलू काम भी मिल-जुलकर करना. उसके मन में पति की अलग-सी रोमांटिक छवि थी. अलका के घरवालों को रोहित पसंद आ गया, वहीं वो भी रोहित और उसके घरवालों को पसंद आ गई. रोहित का छोटा-सा परिवार था, एक छोटी बहन और माता-पिता, जो भोपाल में रहते थे. दिल्ली में किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में काम करनेवाला रोहित अकेले ही रहता था. शादी के कुछ दिन बाद वो रोहित के साथ दिल्ली आ गई. शुरुआती दिन तो अच्छे बीते, पर कुछ दिन बाद अलका को रोहित से शिकायतें होने लगीं कि वो बाकी लोगों की तरह क्यों नहीं है. कैसे-कैसे ख़्वाब थे उसके, फिल्म्स और टीवी सीरियल्स देखकर कैसी कल्पनाएं की थीं उसने, पर ख़्वाब ख़्वाब ही रह गए. वैसे रोहित में न कोई बुरी आदत थी, न कोई कमी, बस वो सरल-सा था, जो दिखावटी जीवन नहीं जी पाता था. उस दिन कनाट प्लेस घूमते हुए अलका की निगाह एक स्मार्ट जोड़े पर पड़ी. वो तो लड़के को ही देखती रह गई. इतना स्मार्ट कि मॉडल्स तक फीके पड़ जाएं. उसकी निगाहें तो जैसे लड़के से हट ही नहीं रही थीं कि सहसा अपना नाम सुनकर चौंक उठी. “सौम्या” वो लगभग चीख पड़ी और लपककर दोनों ऐसे गले मिलीं जैसे बिछड़े हुए सदियां बीत गई हों. “सौम्या! माई गॉड! कितना बदल गई है तू. मैं तो पहचान ही नहीं पाई तुझे.” “मैं क्या बदल गई, सब इनका कमाल है. माय डार्लिंग हबी.” एक अदा से कहते हुए सौम्या ने उसी स्मार्ट लड़के की ओर इशारा किया, “हेलो, माइसेल्फ मोहित.” अलका की तो जैसे सांस ही रुक-सी गई. आपस में औपचारिक परिचय के बाद सौम्या ने उन लोगों को अपने घर डिनर के लिए आमंत्रित किया. सौम्या के घर पहुंचकर अलका उसका महंगे व विदेशी चीज़ों से सजा शानदार घर देखती ही रह गई. दोनों सहेलियां बेडरूम में आ गईं. “सौम्या, जानती है आज तुझे देखकर मुझे कितनी ईर्ष्या हो रही है? तू तो पहले ही इतनी सुंदर और स्मार्ट थी, अब और कितना निखर गई है. कौन कहेगा कि तू शादीशुदा है और ये मोहित कहां से आ टपका? कहां गए तेरे वो सब दीवाने?” अलका एक सांस में बोलती गई. “अलका, याद है अपने कॉलेज में मनीषा थी न, उसी का कज़िन है मोहित. हम एक पार्टी में मिले. फिर दो-चार मुलाक़ातों में हम समझ गए कि वी आर मेड फॉर ईच अदर. जिसे मैं अपने सपनों में ढूंढ़ती थी, वो मोहित ही था. यहीं फैशन फोटोग्राफर है. उसने तो मेरा प्रोफाइल ही बदल दिया. अपनी तो ऐश हो रही है और तू सुना.” अलका चुप. उसे लगा उसके पास सुनाने के लिए जैसे कुछ है ही नहीं. किसी तरह मन को नियंत्रित कर उसने कह दिया, “ठीक ही है. अपनी ज़िंदगी भी कट ही रही है.” डिनर में तो जैसे मोहित का सम्मोहन पूरा ही हो गया. बात करने का ऐसा तरीक़ा कि सामनेवाला प्रभावित हुए बिना रह नहीं सकता. आवाज़ में एक कशिश और मुस्कुराहट. तौबा-तौबा. उस पर गहरी आंखों का जादू. ऐसा लगता कि दिल के अंदर तक सब पढ़ लेंगी. अलका ने तो दुबारा मोहित की आंखों से आंखें मिलाई ही नहीं. अकेले में उसने सौम्या से कह ही दिया, “तू सचमुच बड़ी क़िस्मतवाली है. बस, ये समझ ले तेरे हाथ असली हीरा लगा है और मैं? मुझे मिला अमेरिकन डायमंड. जो न सोसाइटी में पहना जा सकता है, न ही उसकी कोई क़ीमत ही होती है. हां, अपने पास भी हीरा होने की झूठी तसल्ली की जा सकती है.” उसके बाद से जाने क्यों अलका से अनचाहे रोहित की उपेक्षा-सी होने लगी. ऐसा नहीं था कि वो जान-बूझकर ऐसा करती. उसका अवचेतन मन जाने कैसे-कैसे काम कराने लगा. कभी शाम को रोहित के आने पर उसका सिर ऐसा दर्द कर रहा होता कि वो चाय तक बनाने की स्थिति में न होती, तो कभी रोहित की पसंद-नापसंद भूलकर भोजन बना बैठती. लेकिन रोहित कभी नाराज़ न होता, बल्कि परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठा ही लेता. सौम्या के अलावा यहां उसका था ही कौन, इसलिए वो जब-तब उससे मिलने अकेले ही चली जाती. आज अलका ने पाया कि सौम्या कुछ गुमसुम-सी थी. “क्या हुआ सौम्या? सब ठीक तो है?” “हां ठीक है.” सौम्या ने सहज दिखने का प्रयास तो किया, पर असफल रही. “नहीं सौम्या, तू कुछ तो छुपा रही है. तेरी आंखें कह रही हैं कि कोई न कोई बात ज़रूर है.” “क्या बताऊं अलका? मैं तो जैसे सब हार गई. कुछ दिनों से मुझे मोहित के रंग-ढंग बदले नज़र आ रहे थे, पर मैंने सोचा मेरी नज़र का धोखा होगा, लेकिन धोखा तो कुछ और ही निकला. उसके कई औरतों से संबंध हैं और उस पर तारीफ़ ये कि पूछने पर जनाब ने बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया जैसे कुछ हुआ ही न हो. जब मैंने ज़्यादा ऐतराज़ जताया, तो कहने लगे कि मैंने तुम्हें मॉडर्न समझा था, पर तुम्हारी भी वही आउटडेटेड सोच निकली. शादी का मतलब ग़ुलामी नहीं होता कि हर बात के लिए परमिशन लेनी पड़े. उसके अनुसार पति-पत्नी के रिश्ते में स्पेस तो होना ही चाहिए और जब तक हम दोनों एक-दूसरे की पर्सनल और प्राइवेट लाइफ में दख़ल नहीं देंगे, हमारा रिश्ता बरक़रार रहेगा. वरना...” कहते-कहते उसकी आवाज़ भर्रा गई और आंखें भीग गईं. अलका तो स्तब्ध रह गई. झूठी तसल्ली देने में भी ख़ुद को असफल समझकर, वो बिल्कुल चुप-सी रही. कुछ ही देर में सौम्या संभल गई और बोली, “तूने एक दिन अमेरिकन डायमंड और असली हीरे की बात की थी. याद है न? तू बहुत भोली है अलका, पर मैंने दुनिया देखी है. अब मैं जान सकी कि हक़ीक़त में वो ही अपना होता है, जो तुमको अपना समझे, तुम्हारी क़द्र करे. कभी मेरे कितने बॉयफ्रेंड्स थे और दूसरी लड़कियों से उनके रिलेशंस से मुझे कुछ भी फील नहीं होता था, लेकिन आज? आज मोहित के संबंधों के बारे में पता चलते ही मुझे ज़िंदगी ही व्यर्थ-सी लगने लगी. सच कहूं, तो मैं अब समझ पाई कि विवाह के बाद पति-पत्नी का एक-दूसरे पर कितना अधिकार हो जाता है और अंतर्मन कितना पज़ेसिव, कितना ईर्ष्यालु हो उठता है.” अलका तो बस सौम्या का मुंह ही देखती रह गई. “अलका, ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं. जब तक हम इनमें बंधते नहीं, तब तक इनके बारे में हमारी समझ अधूरी ही रहती है. इन पुरुषों की फ़ितरत हम स्त्रियों से एकदम अलग होती है. पत्नी के अलावा अन्यत्र संबंध का तो इनको बहाना चाहिए. शायद इससे इन्हें आत्मिक संतुष्टि मिलती है या इनका अहं, इनका पुरुषत्व गर्व अनुभव करता है. रही बात हीरे की, तो असली हीरा वो ही होता है, जो अपनी पत्नी की क़द्र कर सके, उसे अपना और अपने को उसका समझ सके, जिसके लिए ज़िंदगी ख़ुद से शुरू होकर पत्नी तक हो, बस. मैं लड़कों के बारे में तुझसे अधिक जानती हूं, इसलिए दावे के साथ कह सकती हूं कि रोहित जैसे लोग कम ही होते हैं. जैसा भी हो, तेरा रोहित तेरा तो है. बस, थोड़ा उसे समझकर तो देख. रोहित के सरल व्यक्तित्व की सादगी पर कुर्बान होने का दिल करता है.” अलका तो हैरान रह गई. उसे यूं लगा कि वो आज तक रोहित की क़द्र ही नहीं कर सकी और उसकी उपेक्षा के लिए उसका मन अपने को ही दोषी मान रहा था. उसकी आंखों के सामने अपना और रोहित का व्यवहार घूमने लगा. क्या कमी थी उसके रोहित में? बस, वो दिखावटी जीवन ही तो नहीं जी पाता था? अपराधबोध का भाव उसे अपने आपसे आंख चुराने पर मजबूर कर रहा था और वो तुरंत घर लौटने को बेचैन हो उठी थी. रात में जब अकेलापन मिला, तब उसका मन न जाने कहां-कहां भटकने लगा था. अब तक की सारी बातें सोचते-सोचते और रोहित के बालों में उंगलियां फिराते-फिराते कब उसकी आंखों से आंसू बहकर उसके अंतर्मन को धोकर पवित्र कर गए और नींद भी आ गई, उसे पता ही नहीं चला. लेकिन सोते में भी उसका अंतर्मन सोच रहा था कि इस अंधेरी रात के बाद एक नया सवेरा होनेवाला है.
ANOOP SRIVASTAVA        अनूप श्रीवास्तव
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