हाथियों को यूं निश्चिंत होकर ले जाते व्यक्ति से राहगीर ने पूछा, “न तो ये हाथी जंज़ीर से बंधे हैं, न ही पिंजरे में बंद हैं. बड़ी सरलता से वह रस्सी तोड़ भाग सकते हैं और फिर भी वह कैसे चुपचाप तुम्हारे पीछे चले आ रहे हैं? वे भागने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे?”
एक राहगीर जंगल से होकर कहीं जा रहा था. उसने देखा कि हाथियों का एक झुंड अपने मालिक के पीछे-पीछे आराम से चला जा रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि उनके पैरों में लोहे की मोटी जंज़ीर न होकर उन सब के अगले पैरों में एक सामान्य सी रस्सी बंधी हुई थी, जिनका दूसरा सिरा महावत के हाथ में था.
हाथियों को यूं निश्चिंत होकर ले जाते व्यक्ति से राहगीर ने पूछा, “न तो ये हाथी जंज़ीर से बंधे हैं, न ही पिंजरे में बंद हैं. बड़ी सरलता से वह रस्सी तोड़ भाग सकते हैं और फिर भी वह कैसे चुपचाप तुम्हारे पीछे चले आ रहे हैं? वे भागने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे?”
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मालिक ने इसका रहस्य यूं बताया, “जब यह हाथी बहुत छोटे थे, तब से हम इन्हें ऐसी ही किसी रस्सी से बांधते आ रहे हैं. तब इन्होंने इसे तोड़ने का उपक्रम भी किया होगा, परन्तु उस समय यह वास्तव मे इस रस्सी को तोड़ने के नाकाबिल थे. धीरे-धीरे वह बड़े हो गए, पर उनके मन में अभी भी यही विश्वास है कि यह रस्सी तोड़ना इनके बस में नहीं. अतः वह प्रयास ही नहीं करते.”
ऐसे बलवान हाथी जो बड़ी सरलता से अपने बंधन तोड़ स्वतंत्र हो सकते थे, एक झूठे विश्वास पर बंदी बने हुए थे. वह सोचते थे कि इस बंधन से बाहर आना उनके वश में है ही नहीं और इसी सोच वश वह प्रयत्न ही नहीं कर रहे.
इन हाथियों की भांति ही हम भी अनेक बार झूठे विश्वास से नहीं बंधे रहते? एक बार असफल होने पर यह मान बैठते हैं कि ‘यह तो हमारे बस की बात ही नही.’
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याद रखें, ज़िंदगी के संघर्ष ही तो हमें मज़बूत बनाते हैं.
असफलताएं हमें परिपक्व करती हैं, हमें बहुत कुछ नया सिखा जाती हैं.
अतः प्रयत्न करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए.
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