निधि ने नीलेश की तरफ़ देखा. वह जानती थी कि नीलेश रोहन से और उससे कितना प्यार करता है और यह डर उसके अतीत की परछाई है. ठीक ऐसा ही डर उसके मन में भी तो है, जिसमें पिता की अचानक हुई मृत्यु के बाद अपनी मां का संघर्ष है और यही डर उसे अपने पैरों पर खड़ा रहने के लिए प्रेरित करता है. आख़िर संतुलन कैसे बनाया जाए.
"हेलो निधि! निधि… आज तुम रोहन को स्कूल से ले आना प्लीज़. मुझे अचानक किसी ज़रूरी मीटिंग में जाना है. पता नहीं ये स्कूल वाले वार्षिकोत्सव की तैयारी स्कूल के निर्धारित समय के बाद क्यों रखते हैं. स्कूल की बस तो समय से निकल जाती है और मुझे दफ़्तर छोड़कर उसे लेने जाना पड़ता है, लेकिन आज तो मैं बिल्कुल नहीं निकल सकता. निधि, आज किसी भी तरह तुम चली जाओ. मैं जानता हूं, तुम्हारा दफ़्तर, स्कूल से काफ़ी दूर है, लेकिन मेरा भी किसी हाल में निकल पाना संभव नहीं. मुझे बहुत परेशानी हो जाएगी.”
“क्या नीलेश… मैं रोहन के स्कूल से कितनी दूर हूं. मैं वक़्त पर नहीं पहुंच पाऊंगी और तुम मुझे अभी बता रहे हो? नीलेश रोहन मात्र 6 साल का बच्चा है. यदि हम दोनों में से कोई वक़्त पर नहीं पहुंचा तो वह घबरा जाएगा. तुम किसी भी तरह स्कूल पहुंच जाओ. मैं अभी निकलूंगी भी तो स्कूल पहुंचने में 2 घंटे लग जाएंगे और छुट्टी 1 घंटे में होने वाली है.”
नीलेश को निधि पर बहुत क्रोध आया. यह सच था कि रोहन का स्कूल नीलेश के दफ़्तर के नज़दीक था, परंतु प्रतिदिन दफ़्तर से यूं निकल जाना उसके लिए भी आसान नहीं था. नीलेश को सच में बहुत ज़रूरी काम था. निधि की इस बात से वह बहुत क्रोधित हो गया.
“निधि, मैं कोई बहाना नहीं बना रहा हूं. सच में एक ज़रूरी काम आन पड़ा है. निधि, तुम तो रोहन की मां हो ना, क्या तुम्हारा उसके प्रति कोई कर्त्तव्य नहीं है? अभी वह कितना छोटा है, उसे तुम्हारी अधिक ज़रूरत है. कितनी बार मैंने तुम्हें कहा है कि अभी हमारी प्राथमिकता रोहन है. मेरी इतनी आय तो है ही कि हम तीनों आराम से रह सकें, लेकिन ये नौकरी का भूत तुम्हारे सिर से कौन हटाए. सुबह 8 बजे जाती हो तो रात को 8 बजे आती हो. पता है, रोहन तुम्हें कितना मिस करता है? ख़ैर… मैं तुम्हें ये सारी बातें क्यों समझा रहा हूं. तुम्हारे लिए तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं से पहले कोई नहीं. तुम आराम से दफ़्तर में ध्यान लगाकर काम करो ताकि कोई सहकर्मी तुमसे आगे न निकल जाए. मैं रोहन को लेकर आ जाऊंगा.”
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ऐसा कहकर नीलेश ने फोन पटक दिया. निधि के हृदय में क्रोध, दुख, आत्मग्लानि और पछतावे की मिश्रित भावनाएं उथल-पुथल मचाने लगीं. निधि को लगा जैसे फोन पटककर नीलेश ने उसे ज़ोर का तमाचा मारा हो जिसकी गूंज ने उसके तन-मन को झकझोर कर रख दिया था. रोहन को छोड़कर जाना उसके लिए भी आसान नहीं था. हर मां की तमन्ना होती है कि वह अपने बच्चे के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताए, उसकी बातें सुने, उसे अपनी बातें सुनाए. नीलेश ने कितनी आसानी से उसके मातृत्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया, आख़िर रात-दिन की कड़ी परिश्रम के बाद भी क्या पाया उसने? किसके लिए वह इतनी परिश्रम करती है? भगवान न करे, कहीं रोहन के साथ वही घटना घट जाए जिसने कभी उसके बचपन को तबाह कर दिया था तब क्या करेगी वह? कैसे करेगी अपने बच्चे का पालन-पोषण?
और यह बात दिमाग़ में आते ही उसे अपने अतीत की वह भयानक घटना याद आ गई. उसी भयानक दृश्य का हृदयविदारक चित्रण उसके मानस पटल पर दिखने लगा.
कितनी ख़ुश थी वह जब पापा ने उसकी दसवीं सालगिरह पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया था. निधि और उसकी मां ने जमकर ठंडे कपड़े बैग में भर लिए थे. चहकती हुई वह अपने दोस्तों को बता रही थी कि उसके पापा उससे कितना प्यार करते हैं, पर पिता का साया अधिक समय तक उसके सिर पर नहीं रहा. हाईवे पर उनकी गाड़ी का ट्रक से एक्सिडेंट हो गया जिसमें निधि के माता-पिता बुरी तरह ज़ख्मी हो गए. निधि चूंकि पीछे बैठी थी इसलिए उसे ज़्यादा चोट नहीं आई.
खून से लथपथ अपने माता-पिता के शरीर की तस्वीर उसे आज भी सहमा गई. आनन-फानन में उन सबको हॉस्पिटल ले जाया गया. कुछ ही समय बाद निधि के रिश्तेदार भी वहां पहुंच गए, परंतु अधिक खून बह जाने के कारण निधि के पिता ने सदैव के लिए अपनी आंखें मूंद लीं. जिस वक़्त पिताजी ने आंखें मूंदी निधि उनके समीप ही बैठी थी. यह क्या हो गया उसके साथ? ज़ख्मी मां और मृत पिता, निधि ज़ोरों से चीखी थी और ठीक ऐसी ही चीख आज भी निकल पड़ी, जब सालों बाद नीलेश के कर्कश बोल और उसके मातृत्व पर की गई तीखी टिप्पणी से ही घटना फिर उसकी आंखों के सामने घूमने लगी.
निधि की चीख के साथ ही दफ़्तर के कर्मचारी निधि की तरफ दौड़े. निधि को कुर्सी पर बैठाकर उसे ठंडा पानी पिलाया. बॉस ने निधि की मित्र और सहकर्मी अंजली को उसे घर छोड़ने को कहा. अंजली ने अपनी गाड़ी से निधि को घर पहुंचाया. पूरे रास्ते निधि यही सोचती रही कि कैसे उसके पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां का संघर्ष शुरू हुआ. ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो वो थीं नहीं, अतः उनमें आत्मविश्वास की कमी थी. हालांकि वो बहुत स्वाभिमानी स्त्री थीं. कुछ दिन तक तो वे निधि के ताऊ जी के घर रुके, परंतु जल्दी ही निधि की मां यह समझ गई कि अब उनका जीवन इतना आसान नहीं. वह किसी की दया की पात्र और बोझ बनकर नहीं रहना चाहती थीं. निधि के नानाजी और नानी मां की मदद से जल्द ही उन्होंने अपना टिफिन का व्यवसाय शुरू किया. अलग घर लिया, परंतु यह सब इतना आसान नहीं था. कई बार उसने अपनी मां को हिम्मत हारते भी देखा था, परंतु फिर वह अपनी फूल-सी बच्ची निधि को देखकर फिर से हौसला बना लेती और इसी अनहोनी का डर निधि के मन में घर करता गया. उसे पता था कि नीलेश रोहन से कितना स्नेह रखते हैं और उनका यह कहना कि रोहन मेरी प्राथमिकता है वह भी ग़लत नहीं है, पर वो नीलेश को कैसे समझाए कि यदि भगवान न करे उसे कभी कुछ हो गया और वो अपने पैरों पर खड़ी नहीं रही तब रोहन और उसका क्या होगा? यदि वह नौकरी छोड़ देगी, तो वही असुरक्षा की भावना फिर उसे चैन से जीने नहीं देगी.
किसी अनहोनी की परिस्थिति में यदि नियमित आय नहीं हो, तब इंसान कितना असुरक्षित महसूस करता है. साथ ही उसकी मां की कही बातें उसे बार-बार याद आती हैं, “निधि बेटा, सदैव अपने पैरों पर खड़ी रहना इससे तुम में आत्मविश्वास पैदा होगा, तुम सुरक्षित महसूस करोगी.”
निधि अभी गहरी सोच में डूबी थी कि तभी अंजली ने उसे जगाया, “निधि, तुम्हारा घर आ गया है. क्या तुम यहां से ख़ुद चली जाओगी या मैं अंदर तक छोड़ दूं?” निधि की तंद्रा भंग हुई तो उसने कहा, “धन्यवाद अंजली, मैं यहां से ख़ुद चली जाऊंगी.”
“तुम ठीक तो हो ना निधि? आज तुम बहुत परेशान लग रही हो, इसलिए मैंने तुमसे कुछ पूछा नहीं. कभी-कभी इंसान को ख़ुद से बातें करने का दिल करता है. मैं तुमसे कल बात करती हूं, अभी तुम आराम करो. दफ़्तर की कोई चिंता मत करना. मैं अब निकलती हूं.”
निधि ने उसे बाय किया और लिफ्ट का बटन दबाया. निधि का फ्लैट दसवीं मंजिल पर था. निधि ने दरवाज़े से नीलेश और रोहन के हंसने की आवाज़ सुनी. उसने अपनी चाबी से दरवाज़ा खोला. रोहन उसे देखते ही आकर लिपट गया. नीलेश ने उसे आश्चर्य से देखा, लेकिन कुछ पूछा नहीं. रोहन ने कहा, “आज मम्मी और पापा इतनी जल्दी घर पर, आज तो मज़ा आ जाएगा. मम्मी-पापा आप ऐसे ही जल्दी घर आया करो ना, आप लोग कितना लेट आते हैं और मम्मी आप तो पापा से भी लेट आती हैं. मैं आपको कितना मिस करता हूं.”
निधि ने नीलेश की तरफ़ देखा और फिर रोहन से कहा, “बेटा, मेरी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए आज अंजली आंटी ने मुझे गाड़ी से नीचे तक छोड़ दिया. मैं थोड़ा आराम करती हूं, फिर मैं आपसे अच्छे से बात करूंगी.” नीलेश ने निधि को थका-सा देखा तो उसे यह भांपने में देर नहीं लगी कि निधि की भावनाओं को उसकी कठोर बातों से बहुत गहरी चोट पहुंची है. वह अपनी कही बात पर पछताने लगा. निधि से वह बहुत प्रेम करता था, परंतु निधि का रोहन को छोड़कर नौकरी करना उसे कतई पसंद नहीं था और आए दिन इसी बात पर दोनों में कहासुनी होती ही रहती थी. परंतु आज निधि को यूं दुखी देखकर उससे रहा नहीं गया. उसने अपने दफ़्तर फोन लगाकर यह सूचित कर दिया कि वह आज नहीं आ सकता.
फिर वह 2 कप गरम चाय लेकर निधि के पास गया. उसने देखा कि निधि की आंखों से अविरल अश्रुधारा बही जा रही है. यह देख नीलेश ने महसूस किया कि उसने आज बहुत ज़्यादा कह दिया, शायद क्रोध में कुछ ऐसी बातें भी कह दीं जो उसे नहीं कहनी चाहिए थी. परंतु मुंह से निकले शब्द क्या कभी वापस आ सके हैं. नीलेश ने निधि का हाथ अपने हाथों में लिया तो निधि फूट-फूटकर रो पड़ी. नीलेश ने उससे कहा, “मुझे माफ़ कर देना निधि, आज मैं तुमसे बहुत कुछ कह गया. पता नहीं मुझे कभी-कभी क्या हो जाता है. सच मानो, तुम्हारा दिल दुखाकर मैं भी कभी ख़ुश नहीं रह सकता, परंतु रोहन को लेकर मैं थोड़ा संवेदनशील हो जाता हूं. निधि, तुम्हें पता है मेरी मम्मी भी मुझे दादी के पास छोड़कर नौकरी पर जाती थीं. जहां तक मेरे बचपन की यादें जाती हैं मैं केवल अपनी दादी को ही पाता हूं. मां-पापा के पास मेरे लिए कभी समय नहीं रहा. तरस जाता था मैं उनके साथ के लिए, बहुत रोता था, तब दादी ने मुझे सहारा दिया, परंतु जल्द ही वह साया भी मेरे सिर से उठ गया. उस वक़्त मैं मात्र 10 वर्ष का था. मैं दादी की मौत के बाद बिल्कुल अकेला पड़ गया. इस वजह से एक छत के नीचे रहते हुए भी मैं मां-पापा से दूर होता चला गया. जब बड़ा हुआ तो उन्होंने यह दूरी मिटाने की बहुत कोशिश की, लेकिन यह कभी हो नहीं पाया. और फिर एक दिन ट्रेन एक्सिडेंट में दोनों चल बसे. निधि, जिस अकेलेपन से मैं गुज़रा हूं, मैं नहीं चाहता मेरे बेटे के साथ भी वही हो. मेरे पास तो फिर भी मेरी दादी थीं, लेकिन रोहन के न तो दादा-दादी हैं और न ही नाना-नानी. बस, यही डर मुझ पर इतना हावी हो गया कि मैं तुमसे इतना कुछ कह गया. निधि, मैं तुम्हारी नौकरी के खिलाफ़ कतई नहीं हूं, परंतु मुझे रोहन की चिंता है. मैं अपनी नौकरी छोड़ देता यदि तुम्हारी इतनी आय होती कि हमारा घर आराम से चल पाये, साथ ही हम नए मकान की किश्तें भी दे पाएं. ऐसा नहीं है, इसीलिए मैं तुमसे नौकरी छोड़ने के लिए कह रहा हूं.”
निधि ने नीलेश की तरफ़ देखा. वह जानती थी कि नीलेश रोहन से और उससे कितना प्यार करता है और यह डर उसके अतीत की परछाई है. ठीक ऐसा ही डर उसके मन में भी तो है, जिसमें पिता की अचानक हुई मृत्यु के बाद अपनी मां का संघर्ष है और यही डर उसे अपने पैरों पर खड़ा रहने के लिए प्रेरित करता है. आख़िर संतुलन कैसे बनाया जाए. उसने नीलेश से आज अपने मन की सारी बातें बताई. नीलेश और निधि ने एक-दूसरे से इस विषय पर विस्तार से चर्चा की, फिर दोनों एक निष्कर्ष पर पहुंचे. बच्चे की सही ढंग से परवरिश भी उतनी ही ज़रूरी थी जितनी निधि और नीलेश का अपने-अपने पैरों पर खड़े रहना, अपने वर्तमान के साथ भविष्य को सुरक्षित करना.
फिर निधि ने कम वेतन पर घर के नज़दीक ही नौकरी कर ली. अब वेतन कम था, परंतु परिवार के साथ वक़्त बिताने का उसके पास समय अधिक था. अब निधि 6 बजे तक घर आ जाती और सुबह भी लेट से दफ़्तर जाती, तब तक रोहन स्कूल जा चुका होता. नीलेश भी सवेरे उठकर निधि के साथ टहलने जाता, फिर दोनों साथ चाय पीते और मिलजुल कर खाना बनाते. नीलेश निधि की पूरी मदद करता. इस तरह वे दोनों एक-दूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताने लगे. रोहन अब बहुत ख़ुश रहने लगा. तीनों शनिवार और रविवार की शाम रोहन को लेकर कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. नीलेश और निधि ने अपनी समस्या का समाधान खुलकर एक-दूसरे से बात करके निकाल लिया. एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझा. सही मायने में एक-दूसरे के पूरक बने. जहां रिश्तों में दरार आने ही वाली थी वहीं दोनों ने आपसी सूझबूझ से अपने रिश्ते को और मज़बूत बना दिया.
- पल्लवी राघव
Photo Courtesy: Freepik
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