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कहानी- बरेली वाले प्यार में… (Short Story- Bareilly Wale Pyar Mein…)

वह बिल्कुल वैसी की वैसी थी, जैसा मैंने उसे अपने ख़्यालों में रखा था. शायद सच ही कहते हैं लोग कि प्रेमिकाएं कभी बूढ़ी नहीं होतीं या यह भी तो कहा जा सकता है कि प्रेमी की नज़रें उन्हें कभी बूढ़ा होने ही नहीं देतीं.

पूर्ति वैभव खरे

उसके तन पर लाल साड़ी थी, सांवले चेहरे पर खुले बालों की लटें मनचाहे तरी़के से खेल रही थीं, उसकी बड़ी-बड़ी गहरी आंखें आज भी बिल्कुल वैसी ही थीं. मैंने आज उसके पसंदीदा रंग की नीली शर्ट पहन रखी थी. मुझे तो नीला पहनना ही था, उसने जो मेरा पसंदीदा लाल रंग पहन रखा था.
आज सालों बाद हम उसी जगह मिले थे, जहां हम कभी मिल नहीं सके थे. हां, मगर इस जगह पर मिलने की हमने प्लॉनिग ख़ूब बनाई थी. मेरी आंखों पर चश्मा था, उसकी आंखों में काजल था. मेरे सिर पर स़फेद बालों की अनगिनत कतारें थीं और उसके बाल अब भी वैसे ही लंबे, काले व घने थे. वह बिल्कुल वैसी की वैसी थी, जैसा मैंने उसे अपने ख़्यालों में रखा था. शायद सच ही कहते हैं लोग कि प्रेमिकाएं कभी बूढ़ी नहीं होतीं या यह भी तो कहा जा सकता है कि प्रेमी की नज़रें उन्हें कभी बूढ़ा होने ही नहीं देतीं.
हम दोनों के होंठों पर ख़ामोशी थी और दिल में कई बातें. हमें मिलना नहीं चाहिए था, लेकिन हम फिर भी मिले. यह वही सपनोंवाली जगह थी, जिस जगह मिलने के हम दोनों ने कभी सपने देखे थे. शहर से लगभग बीस किलोमीटर दूर बना ’कुंजन वन’.
कुंजन वन शुरूआत से शहर के प्रेमी-प्रेमिकाओं का मिलन स्थल रहा है. और आज हम गुज़रे ज़माने के प्रेमी जोड़े भी वहीं थे. कुछ जोड़े पेड़ के नीचे थे, तो कुछ पेड़ के पीछे. कुछ एक-दूसरे की बांहों में झूल रहे थे, तो कुछ एक-दूसरे के साथ घूम रहे थे.
मगर हम कुंजन वन के फूड कॉर्नर में बैठे अपनी चाय का इंतज़ार कर रहे थे.
“बच्चों के साथ रहती हो?” मैंने मोहिनी से पहला सवाल किया.
“नहीं! बच्चे नहीं, बच्चा! स़िर्फ एक ही बच्चा है मेरा. वह भी फ़िलहाल अमेरिका की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहा है.”
“ओह! और शेखर वह कैसा है? तुमने उसे कुछ बताया तो नहीं, तुम्हारे यहां आने के बारे में.”
“क्यों? क्यों न बताती? कोई चोरी थोड़ी करने आई हूं, सब बताकर आई हूं. मैंने शेखर से बोल दिया कि मैं अपने कॉलेज के दोस्त से मिलने जा रही हूं.”
“हां, मगर वह दोस्त पुरुष है या स्त्री, यह नहीं बताया.”
“क्यों! तुम प्रिया से बोलकर नहीं आए क्या?”
“नहीं! मुझसे जुड़ा हर शख़्स तुम्हें जानता है, आख़िर बचपन का प्यार जो है हमारा.”
“मेरी भाभी अक्सर तुम्हारा नाम लेकर आज भी मुझे छेड़ती हैं.”
“प्रिया भी बहुत कुछ जानती है तुम्हारे बारे में, इसलिए उसे तुमसे मिलने की बात नहीं बता सका. आख़िरकार वह पत्नी है मेरी. तुम भूल गई होगी, पर एक ज़माने में बरेली के झुमकों की तरह हमारे क़िस्से भी ख़ूब मशहूर थे इस बरेली शहर में.”
मोहिनी कुछ झिझकी और आंखों को झुकाती हुई बोली, “मुझे लगता है कि हमें अब चलना चाहिए.”
“सॉरी.. सॉरी.. सॉरी… तुम तो बुरा मान गईं. मैं अब कोई ऐसी बात नहीं करूंगा, जो तुम्हें चुभे.”
“ठीक है.”
“और सुनाओ, क्या कर रही हो आजकल?”
“एक स्कूल में प्रिंसिपल हूं. ज़िंदगी में व्यस्त हूं, मस्त हूं और क्या? अभी गर्मी की छुट्टियां हैं, तो सोचा कुछ दिनों यहां बरेली में आकर रह लूं. शेखर को भी कुछ दिन बरेली घूमा दूं. वह भी अपने बिज़नेस में बहुत बिजी रहते हैं. बस यही सोचकर यहां कुछ दिन मायके के सुख लेने आ गई. अब मेरी ही सुनते रहोगे या ख़ुद भी कुछ कहोगे?”

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“मैं क्या कहूं. सब तो तुम मेरी फेसबुक प्रोफाइल पर देख चुकी होगी. बस, नोएडा में रहता हूं. नौकरी से रिटायर होकर बीवी के साथ विदेश की यात्रा करना चाहता हूं, दोनों बेटियां अपने मन की नौकरी मेें सेट हो गई हैं. एक का ब्याह हो गया और दूसरी बेटी अगले साल ब्याह रचा लेगी. मैं भी मूड फ्रेश करने के लिए कुछ दिनों के लिए बरेली आया हूं. यहां आकर बड़ा सकून मिलता है. ख़ैर, अब हम अपने बारे में बात करें?”
“मतलब? अब तक हम क्या कर रहे थे? अभी भी तो हम अपने बारे में ही बात कर रहे थे न दीपक!”
“फिर से कहो.” मैंने टेबल पर हाथ टिकाकर उसकी तरफ़ देखते हुए कहा.
मोहिनी, “क्या फिर से कहो?”
“दीपक! मेरा नाम, तुम्हारी ज़ुबान से सुनने को तरस गया था. कहती रहो..
बार-बार कहो दीपक.. दीपक… दीपक…”
“तुम, पागल हो. एक तो तुमने ज़िद करके मुझे यहां बुलाया और अब इस उम्र में ऐसी छिछोरी हरक़तें कर रहे हो. मैं जा रही हूं. यहां स़िर्फ अपने पुराने दोस्त से मिलने आई थी, पुराने प्रेमी से नहीं.”


“क्या कहा! फिर से कहो, पुराना प्रेमी… कितना अच्छा लगा मुझे यह सुनकर, मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता मोहिनी!”
“तो मत करो. भूल हो गई मुझसे जो तुमसे मिलने आ गई.” यह कहती हुई मोहिनी एग्ज़िट की तरफ़ चल दी.
और मैं तभी घुटनों के बल बैठ के उसे रोकता हुआ बोला, “चली जाओगी? फिर कभी लौटकर न आने को चली जाओगी.
जाओ सब तुम्हारी मर्ज़ी है. हमारा प्यार कभी मुक़म्मल न हो सका. हम एक जाति के नहीं थे. तुमने अलग होने को कहा और मैं तुमसे अलग हो गया. हम चाहते तो हिम्मत दिखा सकते थे, पर तुमने घर-परिवार का वास्ता देकर रोक लिया था. आज जो इतनी मुश्किल से घड़ी-दो घड़ी को मिली हो, इसमें भी रूठकर जा रही हो. तुम्हें शायद नहीं पता कि तुम स़िर्फ मेरी प्रेमिका ही नहीं थीं, बल्कि तुम मेरी दोस्त थीं, तुम मेरी मार्गदर्शक थीं, तुम मेरी जान थीं मोहिनी! आज मैं तुमसे मिलकर स़िर्फ पुराने दिनों को याद करना चाहता था. तुम्हारी ज़िंदगी को पढ़ना चाहता था. क्या तुम अपनी पुरानी सहेलियों से अब नहीं मिलतीं? तो मुझसे मिलने में तुम्हें कैसी झिझक है? अच्छे दोस्त की तरह हम क्यों नहीं मिल सकते? बस कुछ पल मेरे पास बैठकर बातें कर लो, फिर चली जाना हमेशा के लिए.”
मोहिनी भी कहां जाना चाहती थी. वह भी बातों का पुलिंदा लेकर आई थी. हम दोनों ने टेबल पर रखी चाय वैसी की वैसी छोड़ दी और हम नदी के किनारे जाकर बैठ गए. हम एक-एक गुज़रे कल के पन्ने को आज की किताब में जोड़ते रहे.
“काश! हम आज के दौर में जन्मे होते. अब तो दूसरी जाति में शादी करना कोई बड़ी बात नहीं है. हां! कुछ मुश्किलें तो अब भी हैं, पर पहले से आसान है.” अब मोहिनी ख़ुद वही बातें करने लगी थी, जिनको करने के लिए उसने मुझे रोक रखा था.
“हां, उस समय अगर हम शादी कर लेते, तो न जाने क्या बवाल होता?” मैंने भी उसकी बात का समर्थन किया.
“ख़ैर, जो हुआ सो हुआ. अब तुम अपने जीवन में ख़ुश हो, यही मेरे लिए बहुत है.” मैंने पॉपकॉर्न का पैकेट उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा.
हमारे पास अनगिनत बातें थीं, पर समय एकदम गिनती का, बस कुछ मिनटों का. इतनी-सी देर में उसने हमारे न जाने कितने क़िस्से सुना डाले. और मैंने हमारी न जाने कितनी ही कहानियां समेट लीं.
गार्ड की सीटी ने हमें बताया कि अब कुंजन वन बंद होने का समय हो गया है. हम दोनों ने एक-दूसरे को अलविदा कहा. हमें पता था कि यह हमारी आख़िरी मुलाक़ात है. यह हिम्मत दो बिछड़े हुए पुराने प्रेमी जोड़े कभी नहीं दिखा पाते, जो हम दिखा चुके थे. हमें ख़ुद पर यक़ीन नहीं था कि हम बड़े-बड़े बच्चों के मां-बाप होकर उम्र की इस दहलीज़ पर आकर फिर से मिले हैं.
मोहिनी अपने घर को चल दी. मैं दो पल को वहीं ठहरा, पर जब पूरा कुंजन वन खाली हो गया, तब मुझे भी वहां से जाना पड़ा. रास्ते भर उसे सोचता रहा. कभी मुस्कुराता, तो कभी शर्माता. बिल्कुल एक नए आशिक़ जैसा हाल था मेरा.
मगर लड़कियों का हाल लड़कों जैसा नहीं होता, फिर चाहे वे उम्र के किसी भी पड़ाव में क्यों न हों. मोहिनी भी आज डरी हुई थी. वह पूरे रास्ते यही सोच रही थी कि कहीं किसी ने उसे देख तो न लिया होगा? मैं घर जाकर मीठी नींद में सो गया और वह घर जाकर कठघरे में खड़ी हो गई.
“कहां गई थीं?” भाई ने सख़्त आवाज़ में पूछा.
मोहिनी, “एक सहेली से मिलने.”
भाई, ”कौन-सी सहेली?”
मोहिनी बिना कोई जवाब दिए अंदर चली गई और उसके साथ ढेर सारे सवाल भी अंदर चले गए.
“शादी के पहले तुमने कोई कम नाक नहीं कटाई हमारी, जो इस उम्र में आकर फिर से शुरू हो गईं. मेरा दोस्त कुंजन वन का मैनेजर है. उसने ही तुम्हें और तुम्हारे उस आशिक़ दीपक को पहचान लिया. उसने तुम दोनों की तस्वीरें निकाल कर मुझे भेजीं. शेखर ने भी उन तस्वीरों को देख लिया. वह बहुत ग़ुस्से में है. अब तुम ही उससे बात करो.
अच्छी-ख़ासी ख़ुशहाल ज़िंदगी में आग लगा ली तुमने.”
कुछ देर बाद शेखर आया और बिना कुछ बोले तलाक़ के काग़ज़ मोहिनी के मुंह पर दे मारे.
मुंह पर काग़ज़ पड़ते ही मेरी नींद टूटी और ये क्या? यह तो मैं था, मोहिनी नहीं और वह अख़बार था, तलाक़ के काग़ज़ नहीं, जो प्रिया ने मेरे देर तक सोने के कारण ग़ुस्से में मुझे मारे थे. मतलब मोहिनी का मुझसे मिलना सच नहीं था, वह तो एक सपना था.

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मैं हड़बड़ी में उठा. मैसेंजर पर उसे भेजे गए मैसेज और व्हाट्सएप पर की गई चैटिंग को डिलीट करने लगा, जिस पर मैंने उससे मिलने के लिए उसकी मर्ज़ी जाननी चाही थी. उसका स्टेटस देखकर मुझे पता चल गया था कि वह बरेली में है, इसलिए उससे मिलने का मोह मेरे अंदर जाग गया था. मेरे मन में उसके लिए अब कोई ऐसी-वैसी भावना नहीं थी. मैं तो बस एक पुराने बिछड़े हुए अपने किसी अज़ीज दोस्त की तरह उससे मिलना चाहता था. पर आज के सपने ने मुझे बुरी तरह डरा दिया था.
उन सारे मैसेज को मैं दिल से और इनबॉक्स से बिल्कुल वैसे ही डिलीट कर रहा था जैसे एक दिन उसने मेरे ख़त जलाए थे. और शायद वो भी यही कर रही थी इस बरेली वाले प्यार में.

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