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कहानी- बेड़ियां सोच की (Short Story- Bediyaan Soch Ki)

“ये सब क्या चल रहा है इनके यहां.” यश ने प्रॉपर्टी एजेंट से पूछा, जो ख़ुद भी सिंगापोरियन चाइनीज़ था.
“नॉट गुड, इस तरह की पूजा ज़्यादातर आत्माओं से कम्युनिकेट करने के लिए की जाती हैं.”
यश और स्वाति की आंखें मिलीं, दोनों की आंखों में हैरतमिश्रित बेचारगी तैर रही थी.

“ये जगह तो स्वर्ग-सी सुंदर है. इतनी सुंदर जगह का तो मुझे कभी सपना भी नहीं आया.” टैक्सी में बैठकर चांगी एयरपोर्ट से जुरोंग की तरफ़ जाती नवविवाहिता स्वाति ने अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए यश से कहा.
“ये तो है, इसीलिए तो फ्लाइट में इतनी सारी लाल चूड़ेवालियां अपने पतियों के साथ दिख रही थीं. नॉर्थ इंडिया का पसंदीदा हनीमून डेस्टिनेशन बन गया है सिंगापुर.” यश का इशारा फ्लाइट में साथ यात्रा करनेवाले नवविवाहित जोड़ों की तरफ़ था.
“ओह यश! आई एम सो लकी कि तुम यहां काम करते हो और यहां के स्थायी नागरिक बन चुके हो. मुझे तो क़िस्मत ने हमेशा के लिए इस ख़ूबसूरत हनीमून डेस्टिनेशन में भेज दिया.” स्वाति का रोम-रोम पुलकित हो रहा था.
यश ने उसे कुछ इस अंदाज़ से देखा जैसे कह रहा हो कि तुम नहीं जानती कि जन्नत की हक़ीक़त क्या है, पर प्रत्यक्ष में उसने कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह उसके उत्साह को कम नहीं करना चाहता था.
“इस जगह को देखकर ऐसा जान पड़ता है, जैसे प्लास्टिक के बड़े-बड़े बगीचों के बीच में गगनचुंबी इमारतों के मॉडल्स रख दिए गए हों. पूरा का पूरा देश ही किसी फिल्मी सेट-सा प्रतीत होता है. जिधर नज़र जाती है, वह जगह तस्वीर उतारने के लायक़ लगती है.” स्वाति घर से बाहर निकलते ही उमंग-उत्साह के साथ चहकने लगती. कभी वह सेल्फी लेती, तो कभी किसी अच्छी-सी जगह पर खड़ी होकर यश से अपनी तस्वीर निकालने को कहती.
यश भी उसे ज़िंदगी के पूरे मज़े लेने दे रहा था. नवविवाहित जोड़े को इसी तरह स्वप्ननगरी में विचरण करते-करते कब साल बीत गया पता ही न चला. फिर एक दिन यश के मम्मी-डैडी का फोन आया कि वह जल्दी ही उनसे मिलने सिंगापुर आएंगे. ख़बर सुनकर स्वाति ख़ुश हो गई, “मैं तो मम्मी-डैडी को सैंटोसा आइलैंड लेकर जाऊंगी, बर्ड पार्क घुमाऊंगी… और हां, वो जगह तो ज़रूर घुमाने ले जाऊंगी, जहां नेताजी ने आज़ाद हिंद फौज बनाई थी.”
“घुमाने तो उन्हें बाद में ले जाना, पहले उनके रहने का इंतज़ाम तो कर लो. जल्दी से जल्दी हमें दूसरा फ्लैट लेना पड़ेगा. हमारे इस एक बेडरूमवाले फ्लैट में मम्मी-डैडी हमारे साथ कैसे रहेंगे?”
“ओह हां, ये तो मैंने सोचा ही नहीं.” स्वाति जैसे नींद से जागी.
“नहीं सोचा, तो अब सोचना शुरू कर दो. मेरे पास तो ज़्यादा वक़्त नहीं है. तुम कल से ही रियल इस्टेट की वेबसाइट्स पर जाकर अपने हिसाब से किराए का फ्लैट देखना शुरू कर दो.”
जब स्वाति ने रियल इस्टेट वेबसाइट्स को ढूंढ़ना शुरू किया, तो हैरान रह गई, क्योंकि कई किराए के लिए उपलब्ध घरों के विज्ञापनों पर साफ़ लिखा था कि नॉट फॉर इंडियन्स. जब महीनों की खोज के बाद भी कोई मकान मन को न भाया, तो स्वाति ने यश पर ख़ुद का फ्लैट ख़रीदने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.
“एक न एक दिन तो हमें अपना फ्लैट ख़रीदना ही है, तो क्यों न  बार-बार किराए का घर ढूढ़ने का झंझट अभी से ख़त्म कर दें और अपना ही फ्लैट ख़रीद लें.”
यश को स्वाति की बात मानने में ही समझदारी लगी और किराए के फ्लैट की तलाश अब फ्लैट ख़रीदने की मुहिम में बदल गई. क़िस्मत से बुकिट बटोकफ एरिया में एक कंडोमिनियम जल्दी ही पसंद आ गया. अगले दो महीनों में ख़रीद से संबंधित सभी औपचारिकताएं भी पूरी हो गईं. सिंगापोरियन्स से स्टेटस स्टैंडर्ड के तीसरे मानक को पाने के बाद स्वाति फूली नहीं समा रही थी. कैश, कार और कंडोमिनियम ये ही तीन मानक हैं सिंगापोरियन्स के ख़ुशहाल लाइफस्टाइल के.

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जब यश और स्वाति फाइनल सेटलमेंट के बाद प्रॉपर्टी एजेंट के साथ फ्लैट पर चाबी लेने पहुंचे, तो देखा कि अगले फ्लैट में रहनेवाले अधेड़ चाइनीज़ कपल्स के यहां कुछ अलग तरह का पूजा-पाठ चल रहा था और गृहस्वामी अपने ड्रॉइंगरूम में बने मंदिर के आगे कुछ मंत्र जपता हुआ अपनी पीठ में एक मोटी-सी रस्सी मार रहा था और गृहस्वामिनी एक अजीब-सा सिल्क का गाउन और स्कार्फ पहनकर सिंहासननुमा कुर्सी पर विराजमान थी. वो अपने मुंह से कुछ अजीब-सी आवाज़ें निकाल रही थी. एक और कोई जोड़ा हाथ में बड़ी-बड़ी थालियां, जिनमें कुछ खाद्य पदार्थ और नकली करेंसी थी, लेकर खड़े थे.
“ये सब क्या चल रहा है इनके यहां.” यश ने प्रॉपर्टी एजेंट से पूछा, जो ख़ुद भी सिंगापोरियन चाइनीज़ था.
“नॉट गुड, इस तरह की पूजा ज़्यादातर आत्माओं से कम्युनिकेट करने के लिए की जाती हैं.”
यश और स्वाति की आंखें मिलीं, दोनों की आंखों में हैरतमिश्रित बेचारगी तैर रही थी. अब तक की सारी जमा-पूंजी लगाने और बैंक से अच्छी-ख़ासी रक़म फाइनेंस कराने के बाद में जैसे-तैसे तो ये फ्लैट ख़रीदा गया और शुरुआत हो रही है, तो इस ख़बर के साथ कि अगले फ्लैट में आत्माओं से कम्युनिकेट करनेवाले लोग रहते हैं. लेकिन अब क्या हो सकता था. यश के मम्मी-डैडी के आने का समय क़रीब आता जा रहा था.
फॉल्टी सामान होता, तो रसीद दिखाकर दुकान से पैसे वापस ले आते, पर इस घर का क्या करें, जिसे क़रीब तीन महीने तक सिंगापुर के कोने-कोने में लगभग सौ फ्लैट्स देखने के बाद ख़रीदा गया था. जब से इसे फाइनल किया था, तब से इससे दिल से भी जुड़ गए थे. टॉप क्लास फर्नीचर शोरूम्स में घंटों घूम-घूमकर फ्लैट के इंटीरियर के साथ मैच करनेवाले फर्नीचर्स भी पेशगी देकर फाइनल कर दिए गए थे. उस दिन फ्लैट की चाबी लेकर जाते समय दोनों ख़ामोश थे. नए घर में प्रवेश की ख़ुशी थोड़ी कम हो गई थी.
“मैं जानता हूं स्वाति कि तुम्हारे मन में इस वक़्त क्या चल रहा है.” आख़िरकार यश ने चुप्पी तोड़ी.
“कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा है यश. इतने शौक़ से घर लिया और पहुंचने के पहले ही पड़ोस में अजीब चीज़ें देखने को मिल रही हैं.”
“ऐसा कौन-सा आसमान फट गया है स्वाति? वो लोग अपने घर में अपने तरी़के से पूजा कर रहे थे, जैसे हम अपने घर में अपने तरी़के से करते हैं. कोई अपने घर में क्या कर रहा है, इससे हमारा कोई सरोकार नहीं होना चाहिए. वो लोग अपने फ्लैट में रहेंगे और हम लोग अपने में.”
“मगर अपने प्रॉपर्टी एजेंट ने तो उनकी पूजा का कुछ और ही स्पष्टीकरण दिया था. वह भी तो लोकल चाइनीज़ है, उसे इन सब क्रिया-कलापों का अर्थ पता ही होगा. किराए का घर होता, तो भी कोई बात न थी, पर अपने इस आशियाने में तो मैंने और तुमने उम्र बिताने के ख़्वाब देखे हैं.”
“इसके बारे में अधिक सोचने से कोई फ़ायदा नहीं होनेवाला. अब 15 दिन बाद तो हमें अपने इस आशियाने में शिफ्ट होना ही है. पूर्वाग्रह के साथ शुरुआत करोगी, तो कभी ख़ुश नहीं रह पाओगी.”
स्वाति ने सोचा- ‘यश ठीक ही कह रहा है. अपेक्षाकृत ठीक होगा कि वह पूरे उमंग-उत्साह के साथ नए घर में प्रवेश करे. वह सब कुछ भूलकर गृहप्रवेश की तैयारी में लग गई.
एक फ्लोर पर आठ घर बने हुए थे. चार फ्लैट एक तरफ़ और चार उसके दूसरी तरफ़. मगर ये क्या सामनेवाले फ्लैट में रहनेवाली चाइनीज़ बुढ़िया और उसका अविवाहित बेटा यश और स्वाति को देखते ही अपने फ्लैट का दरवाज़ा बंद कर लेते थे. आख़िरी कोने के फ्लैट में रहनेवाले मलेशियन परिवार में पति-पत्नी और तीन टीनएजर बेटियां थीं. मां-बेटी तो
कभी-कभार ग़लती से मुस्कुराकर नए पड़ोसी से ‘हेलो-हाय’ कर लिया करती थीं. लेकिन उस मलेशियन आदमी को तो यश और स्वाति के साथ लिफ्ट में आना-जाना भी पसंद न था. उन्हें लिफ्ट में जाता देखकर वह अपना रास्ता बदलकर दूसरी तरफ़ से सीढ़ियों से जाता-आता था.
जब उनके साइड में रहनेवालों का यह हाल था, तो दूसरी तरफ़ रहनेवालों की तरफ़ देखने की तो यश और स्वाति हिम्मत ही कैसे जुटाते? हां, उनकी तरफ़ के लोगों में उन्हें देखकर कोई वाक़ई ख़ुश होता था, तो वे थे ये अजीब-सी पूजा करनेवाले अधेड़ चाइनीज़ कपल्स- लिमपेंग आंटी और जोसुआ अंकल.
सिंगापुर के फ्लैट्स में मुख्यद्वार पर दो दरवाज़े लगे होते हैं. एक लकड़ी का, जिसे अधिकांश लोग स़िर्फ रात के समय ही बंद करते हैं और दूसरा लोहे की जालीवाला. स्वाति भी दिन के समय दूसरों की तरह स़िर्फ लोहे की जालीवाले दरवाज़े को ही बंद रखती और लकड़ीवाला दरवाज़ा पूरे दिन खुला रहता. ऐसा करने से एक तो कॉरिडोर में आते-जाते लोगों को देखकर अकेलेपन का एहसास न होता, दूसरा खुली हवा के आर-पार का आनंद भी मिलता था. लिमपेंग आंटी और जोसुआ अंकल जब भी कॉरिडोर से गुज़रते, तो दो पल रुककर उसका हालचाल ज़रूर पूछते. साथ ही यश और स्वाति से यह कहना भी नहीं भूलते कि वे यहां परदेस में अपने आपको अकेला न समझें और कोई भी ज़रूरत होने पर उन्हें ज़रूर बताएं.


लिमपेंग आंटी और जोसुआ अंकल बौद्ध धर्म मानने के साथ-साथ शुद्ध शाकाहारी थे. जब लिमपेंग आंटी को पता चला कि यश और स्वाति भी वेजीटेरियन हैं, तो वह अक्सर ही कुछ न कुछ चाइनीज़ वेजीटेरियन फूड बनाकर दे जातीं. चाइनीज़ बहुलवाले देश में वेजीटेरियन पड़ोसी मिलना यश और स्वाति के लिए भी बड़े ही सौभाग्य की बात थी, पर स्वाति की सोच पर तो पूर्वाग्रह की बेड़ियां पड़ चुकी थीं.

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जैसे ही लिमपेंग आंटी ताज़ा, ख़ुशबूदार भोजन स्वाति को पकड़ाकर जातीं, वैसे ही स्वाति पूरा खाना फेंक देती. उसे लगता कि अगर वह लिमपेंग आंटी के घर के भोजन को खाएगी, तो किसी टोने-टोटके का शिकार हो जाएगी. यह सिलसिला पूरे दो साल तक चला और आगे भी चलता रहता अगर परिस्थितियों ने स्वाति को उसकी क्रूरता का बोध न कराया होता.
स्वाति की प्रेग्नेंसी का तीसरा महीना चल रहा था कि उसे चिकन पॉक्स हो गया. डॉक्टर ने पूरी बॉडी पर लोशन लगाने को दिए. तीसरे दिन चिकन पॉक्स के कारण तेज़ बुख़ार भी हो गया. यश का प्रोजेक्ट लाइव जा रहा था, उसे स्वाति की देखभाल के लिए छुट्टियां मिलने की कोई गुंजाइश न थी, बल्कि ऐसे समय में उसका स्वाति से थोड़ा दूर रहना ही ठीक था. अब स्वाति क्या करे और कहां जाए… किससे मदद के लिए गुहार करे?
यश इंडियन रेस्टोरेंट से फोन द्वारा खाने की होम डिलीवरी करा लेता और स्वाति के लिए एक प्लेट उसके कमरे के दरवाज़े पर रखकर चला जाता था. उस शाम जब यश ऑफिस से लौटकर आ रहा था, तो लिफ्ट में उसकी मुलाक़ात लिमपेंग आंटी से हो गई.
“क्या बात है यश, मैंने तीन-चार दिन से स्वाति को नहीं देखा. वो इंडिया चली गई है क्या?” लिमपेंग आंटी की आंखों में बेचैनी थी.
यश से सारी घटना का ब्यौरा मिलते ही वह बिना देरी किए स्वाति की सेवा में हाज़िर हो गईं.
“जब तक स्वाति ठीक नहीं हो जाती, मैं उसके साथ तुम्हारे ही घर में रहूंगी यश.”
“मगर आंटी अगर उसके साथ रहने से आपको भी चिकन पॉक्स हो गया तो…?”
“तो क्या… अगर उसकी जगह मेरी बेटी इन्हीं हालात से गुज़र रही होती, तो क्या मैं उसको छूत के डर के कारण उसके हाल पर छोड़ देती? दूसरी बात कई वर्ष पूर्व मुझे चिकन पॉक्स हो चुका है, अत: अब इसके दोबारा होने की संभावना कम ही है.”
लिमपेंग आंटी की आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ न थी. वह और जोसुआ अंकल किसी ग्रॉसरी शॉप में डेली बेसिस पर काम करते थे. लेकिन वे बिना अपनी जीविका की परवाह किए स्वाति की ख़िदमत में लग गईं. स्वाति को शरीर पर हो रहे चिकन पॉक्स के लाल दानों से असहनीय पीड़ा हो रही थी. एक रात दर्द से कराहती हुई वह बाथरूम के लिए उठी, तो अंधेरे में साइड टेबल से टकराकर गिर गई.
कहां है वो… अर्धचेतन अवस्था में भी स्वाति को तीव्र वेदना की अनुभूति हो रही थी और फिर सब कुछ शून्य. फिर कुछ पल का शोर… और उसके चेहरे के आस-पास तैरते कुछ अजनबी, तो कुछ परिचित चेहरे.
जब चेतना वापस आई, तो ख़ुद को एक अस्पताल में पाया. पेट के निचले हिस्से में असहनीय पीड़ा का एहसास होने पर उसने अपना दायां हाथ उधर सहलाने के लिए उठाने की कोशिश की… मगर ये क्या सीधे हाथ की कलाई से तो एक टयूब जुड़ी हुई थी. स्वाति ने जब अपने बाएं हाथ से पेट को छुआ, तो एक खालीपन के एहसास से भरी सिहरन उसके समस्त शरीर को ठंडा कर गई. वह अप्रिय की आशंका से कंपकपा रही थी… पलकों के बांध को तोड़ता हुआ उसका रुदन हिचकियों के बीच करुण विलाप में परिवर्तित हो गया. वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी.
अचानक उसे अपने सिर पर स्नेहमयी स्पर्श महसूस हुआ और वह फफककर रोते हुए बोली, “यश प्लीज़, कह दो कि जो मैं सोच रही हूं, वह सच नहीं है.”
“स्वाति, मैं यश नहीं लिमपेंग हूं… यश यहां से थोड़ी देर पहले ही गया है. वह जाना तो नहीं चाहता था, पर मैंने ही उसे ज़बर्दस्ती घर भेज दिया. आख़िर रातभर का जगा हुआ था, कुछ देर सो लेगा, तो तुम्हारी भी देखभाल अच्छे-से कर पाएगा.”
स्वाति ने गर्दन को घुमाकर देखा, तो पाया कि बेड के साइडवाली कुर्सी पर लिमपेंग आंटी बैठी थीं. नींद न पूरी होने से उनकी आंखें लाल और थकान से शरीर का पोर-पोर मुरझा रहा था. ऐसा लग रहा था कि रातभर जगने के बाद अभी कुछ मिनट पहले ही उनकी आंख लगी थी, पर स्वाति के रोने से वे घबराकर उठ गई थीं.
“मैं यहां क्यों हूं आंटी?”
“मैं कुछ नहीं बता सकती… अभी तुम्हें आराम की सख़्त ज़रूरत है.”

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लिमपेंग आंटी ने अपनी हथेलियों से स्वाति के आंसू पोंछते हुए कहा.
तब तक नर्स राउंड पर आ गई और उसने स्वाति का ब्लडप्रेशर और बुख़ार चेक करने के बाद उसे कुछ दवाइयां खाने को दीं. दवाइयों के असर और संताप से निढाल स्वाति फिर से सो गई. उसको दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी, पर उसके पहले एक काउंसलिंग सेशन अटेंड करना था. यश ने भी उसके साथ सेशन जॉइन किया.
जब वो दोनों काउंसलिंग के लिए रुके हुए थे, तो लिमपेंग आंटी टैक्सी लेकर यह कहते हुए घर चली गईं कि चलकर तुम लोगों के खाने-पीने का इंतज़ाम करती हूं, स्वाति को तो अभी लंबे समय तक परहेज़ी खाने पर ही रहना होगा. रेस्टोरेंट का खाना उसकी सेहत के लिए ठीक न होगा.
जब यश कार से स्वाति को घर ले जा रहा था, तो उसने स्वाति से कहा, “अगर उस रात आंटी न होतीं, तो न जाने क्या होता… तुम्हारी चीख की आवाज़ से जब आंटी उठीं, तो तुम्हें होश न था, तुम्हें हैवी ब्लीडिंग हो रही थी… तुम्हें अस्पताल में लाने के बाद जब अल्ट्रासाउंड किया गया, तो भ्रूण में कुछ असामान्यता पाई गई और भी कई कॉम्प्लीकेशन थे, इसलिए तुरंत ही तुम्हारा ऑपरेशन करना पड़ा. स्वाति सच में अगर लिमपेंग आंटी न होतीं, तो मैं अकेला इन हालात से कैसे निपटता.”
कुछ रिश्ते अर्थहीन होते हैं और कुछ के अर्थ इतने गूढ़ होते हैं कि उन्हें औसत समझ का व्यक्ति नहीं समझ सकता. अपने आपको बहुत ज़्यादा बुद्धिजीवी और आधुनिक समझनेवाली स्वाति आज ख़ुद पर शर्मिंदा थी. वह स्तब्ध थी कि अपने शोध के लिए जूनियर साइंटिस्ट का अवॉर्ड जीतनेवाली वह असल में कितनी संकीर्ण मानसिकता की थी. किसी ने किसी के बारे में कुछ कहा और उसने बिना किसी तार्किक आधार के उस पर यकीन करके अपनी सोच की बेड़ियों पर एक बड़ा-सा ताला और लगा दिया.
हैरानी की बात थी कि वह काग़ज़ का एक टुकड़ा बर्बाद नहीं करती थी. पर्यावरण संरक्षक की वकालत करते हुए बिजली-पानी, खाना बर्बाद करनेवालों को हज़ारों दलीलें दे डालती थी. फिर कैसे दो साल तक किसी के प्यार के मसालों से महकते भोजन को वहमों की शिकार होकर कूड़े में फेंकती रही?
वे घर पहुंच चुके थे. स्वाति के कमज़ोर शरीर को ऊर्जा की ज़रूरत थी. भूख से उसका हाल बेहाल था. वो अभी कपड़े बदलकर फ्रेश भी न हो पाई थी कि लिमपेंग आंटी हाज़िर हो गईं. एक ट्रे में दो बड़े बाउल में वेजीटेबल सूप के साथ. स्वाति को तेज़ भूख लगी थी, वो दोनों बाउल के सूप तुरंत पी गई.
“लिमपेंग आंटी मेरी आंटी हैं यश. वो ये सूप अपनी बेटी यानी कि मेरे लिए लाई थीं. तुम फोन करके अपने लिए बाहर से खाना ऑर्डर कर लो.” स्वाति ने टिश्यू से अपना मुंह पोंछा और आंटी के गले लग गई. स्नेह के बल से सोच पर पड़ी बेड़ियां टूट चुकी थीं.

रीता कौशल

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