उसकी सांसों की गति रोकनेवाले आप कौन होते हैं? इस तरह का काम करके जमा किया गया पैसा मुझे नहीं चाहिए. अब मुझे पता चला कि आप मुझे क्लिनिक आने से क्यों रोक रहे थे. मुझे संक्रमण न लग जाए, यह बात कहने के पीछे आप का प्यार नहीं स्वार्थ था. मेरा वह भ्रम आज टूट गया.
"डॉक्टर साहब, आप मुझे अपने क्लिनिक पर ले जाने से क्यों मना कर रहे हैं?" अपने डाक्टर पति जगदीश सक्सेना को टाई पहनाते हुए इशानी ने थोड़ा प्यार जताते हुए कहा. अभी दो महीने पहले ही तो इशानी का डॉ. जगदीश सक्सेना के साथ ब्याह हुआ था. शादी के बाद रीति-रिवाज़ और स्विट्जरलैंड में हनीमून, इसमें दो महीने कब बीत गए, इशानी को पता ही नहीं चला.
सगाई के बाद एक बार इशानी कुछ समय के लिए डॉ. जगदीश की क्लिनिक पर गई थी, पर उससे इशानी को संतोष नही था. उसके पतिदेव किस तरह काम करते हैं, यह देखने-जानने की उसकी बहुत इच्छा थी. वह सोचती थी कि उनके बैठने की जगह कंफर्टेबल होनी चाहिए. वह उनके घंटों काम करने के दौरान उनकी चीज़ों का ख़्याल रखे. वह हेल्दी रहें, इसके लिए हेल्दी फूड बना कर ख़ुद अपने हाथों से खिलाए. इस तरह के छोटे-बड़े सपने हर नववधू की तरह इशानी की आंखों में भी थे.
उसके मन में अपने पति के लिए अथाह प्यार था. इसीलिए वह पति से मीठी फरियाद कर रही थी. पर जगदीश ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर प्यार से कहा, "प्लीज़ इशानी, कभी क्लीनिक चलने की ज़िद मत करना. शादी की वजह से काफ़ी दिनों तक छुट्टी पर रहा. तुम तो जानती ही हो कि इतने दिनों तक क्लीनिक ट्रेनी डॉक्टर के भरोसे रहा. पहले तो मुझे पेंडिंग काम निपटाने हैं. उसके बाद तुम्हारी पसंद के अनुसार क्लिनिक का रिनोवेशन भी करवाना है. तब तुम्हें ज़रूर क्लिनिक ले चलूंगा. पर तब तक क्लिनिक चलने की ज़िद मत करना. वैसे भी मैं अभी बिज़ी रहूंगा. तुम वहां चल कर अकेली ऊब जाओगी. इसलिए तुम अभी घर में ही रहो. वैसे भी अभी शहर में वायरल बहुत फैला है. मैं नहीं चाहता कि क्लिनिक आ कर कहीं तुम उसके लपेटे में आ जाओ. तुम घर में रहो और सेफ रहो. चलो मेरा मोबाइल दो और मैं फटाफट क्लिनिक के लिए निकलूं."
"तुम भी वायरल से बचना." इशानी ने चिंतित स्वर में कहा.
एकाकी जीवन में इशानी जैसी प्यार करनेवाली पत्नी पा कर ख़ुश डॉ. जगदीश सक्सेना अपनी स्विफ्ट डिजायर लेकर क्लिनिक के लिए निकल पड़े. पति के जाने के बाद इशानी सोच रही थी कि शादी और हनीमून का ख़र्च के बाद इतने बड़े क्लिनिक के रिनोवेशन का ख़र्च की व्यवस्था कहां से होगी? रात को उसने यह बात पति से कही, तो डॉक्टर साहब ने कहा, "सब हो जाएगा डार्लिंग. थोड़े ज़्यादा ऑपरेशन करने पड़ेंगे बस. तुम यह सब छोड़ो, यह बताओ कि यह डायमंड रिंग किस उंगली में पहनाऊं?"
"डायमंड रिंग?"
"हम शॉपिंग करने गए थे, तो अच्छी लग गई थी, इसलिए ले आया."
इशानी ने प्यार से अपना सिर पति के सीने पर रख दिया. उसका सवाल हवा में उड़ गया और उस सीधी-सादी लड़की को भी अपने सवाल का ख़्याल न रहा.
इशानी इस बात को भूल गई. समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था. छह महीने बाद एक दिन डॉ. जगदीश ने इशानी को रीनोवेशन के बारे में अपनी टीम से चर्चा करने के लिए अस्पताल में बुलाया. जगदीश क्लिनिक चला गया, तो अपनी शंका को दूर करने के लिए इशानी ने प्रेग्नेंसी चेक करने के लिए मेडिकल किट का उपयोग किया. उसमें आई पाॅजिटिव रिपोर्ट को बताने के लिए इशानी ख़ुशी-ख़ुशी घर से निकली. वह अस्पताल पहुंची, तो जगदीश ऑपरेशन में व्यस्त था. वह लगभग दो घंटे तक पति की राह देखती बैठी रही. ऑपरेशन थिएटर के बाहर पड़ी बेंच पर बैठे-बैठे वह देखती रही कि 25 से 30 मिनट के अंतर पर युवतियां अंदर जातीं और ऑपरेशन करा कर बाहर आ जातीं. ऑपरेशन किस चीज़ का हो रहा था, यह इशानी की समझ में नहीं आ रहा था.
इशानी के ठीक सामनेवाली बेंच पर सास-बहू की एक जोड़ी बैठी थी. घबराई और हाल-बेहाल बहू सास से गिड़गिड़ा रही थी कि वह उसके गर्भ में पल रही बच्ची की हत्या न कराए. सास ने आंख दिखाकर उसे चुप करा दिया था.
तब तक उस औरत का नंबर आ गया, तो नर्स उसका हाथ पकड़ कर ऑपरेशन थिएटर के अंदर ले गई. क़रीब आधे घंटे बाद वह अर्ध बेहोशी की हालत में भी रोते हुए स्ट्रेचर पर बाहर आई. थोड़ी देर में डॉ. जगदीश बाहर आए. उन्होंने इशानी के बारे में पूछा, अस्पताल तलाश लिया, पर इशानी उन्हें कहीं नहीं मिली. इशानी का फोन भी स्विच ऑफ था.
जगदीश ने होशियारी के साथ अपनी ससुराल फोन करके पता कर लिया कि इशानी वहां तो नहीं है. दो-तीन ऑपरेशन और थे, डॉ. जगदीश उन्हें निपटा कर घर आए. घल पर ताला लगा था. अपनी चाभी से उन्होंने दरवाज़ा खोला. अंदर घुसते ही विशाल ड्रॉइंगरूम में सामने ही तिपाई पर कांच के पेपरवेट के नीचे एक चिट्ठी दबा कर रखी थी. जगदीश ने जल्दी से उठा कर उसे पढ़ना शुरू किया.
प्रिय लिख सकूं, अब यह संभव नहीं है, इसलिए मात्र जगदीश.
आज क्लिनिक में आकर मैंने देखा कि सफ़ेद एप्रिन का आवरण ओढ़कर आप किस तरह का काला काम कर रहे हैं. आपका केवल नाम ही जगदीश है, आप बिल्कुल जगत के ईश नहीं हैं, क्योंकि आप किसी जीव की गर्भ में ही हत्या कर देते हैं. आप को ऐसा करने का हक़ किसने दिया? उस अजन्मे जीव का अपराध क्या है? मात्र यही कि वह लड़का नहीं, लड़की है? उसकी सांसों की गति रोकनेवाले आप कौन होते हैं? इस तरह का काम करके जमा किया गया पैसा मुझे नहीं चाहिए. अब मुझे पता चला कि आप मुझे क्लिनिक आने से क्यों रोक रहे थे. मुझे संक्रमण न लग जाए, यह बात कहने के पीछे आप का प्यार नहीं स्वार्थ था. मेरा वह भ्रम आज टूट गया.
हां, एक बात तो कहना मैं भूल ही गई. मेरे भी पेट में आपका अंश आ गया है. रीनोवेशन की चर्चा के साथ यह समाचार मैं तुम्हे रू-ब-रू देने और तुम्हारे चेहरे पर आनेवाली अवर्णनीय ख़ुशी देखने वहां आई थी, पर मुझे पता नहीं था कि जिसे मैं अपना सर्वस्व मानती थी, मेरा वह पति इस तरह का काम करता है. आप में और एक हत्यारे में आख़िर अंतर ही क्या है? वहां बिताए दो-ढ़ाई घंटे मेरी ज़िंदगी के सब से ख़राब घंटे थे. मुझे तुम्हारे गहनों, महंगे कपड़ों या इस विशाल कोठी का जरा भी मोह नहीं है. मैं यह सब छोड़ कर जा रही हूं. मुझे खोजने की कोशिश भी मत करना.
मेरे पेट में अगर लड़की हुई तो? उसकी भी आप इसी तरह हत्या कर दो तो? इसलिए मैं अपने अंश को ले कर ऐसी जगह जा रही हूं, जहां उस पर आप जैसे हत्यारे की परछाई तक न पड़े.
गुडबाय फॉर एवर…
आठ महीने से रास्ते पर भटकते हुए अब सही रास्ते पल आनेवाली इशानी.
उस चिट्ठी को पढ़कर डॉ. जगदीश फफक-फफक कर रोने लगे. इशानी द्वारा उतार कर टेबल पर रखे गए गहनों की चमक जगदीश के मुंह पर कालिख पोत रही थी.
- वीरेंद्र बहादुर सिंह
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