कभी चिट्ठियां जीवन का सबसे ज़रूरी साहित्य हुआ करती थीं, जो व्यक्ति के मन को हूबहू अपने दर्पण में उतार देती थीं. बिल्कुल वैसी ही एक चिट्ठी वर्षों बाद रोहित के घर आई थी, जिसे पढ़ते हुए रोहित की आंखें आंसू से और मन ख़ुशी से भरा जा रहा था. दरअसल, चिट्ठियां होती ही इतनी भावुक हैं और फिर यह तो एक बहन की चिट्ठी थी, जिस पर लिखा था- 'प्रिय भाई! हर बार राखी पर तुम्हारे पास आती हूं, जो नहीं आ पाती, तो लिफ़ाफ़े में राखी रखकर ही भेज देती हूं, लेकिन अबकि राखी के साथ एक लंबी चिट्ठी भेजने का भी मन हुआ.
टिंग टोंग... दरवाज़े की घंटी बजी, तो रिया ने पोस्टमैन से लिफ़ाफ़ा लेकर उस लिफ़ाफ़े को खोलते हुए अंदर कमरे की ओर आवाज़ देते हुए कहा, "पापा! चिट्ठी आई है."
"चिट्ठी..! ईमेल के ज़माने में चिट्ठी!" आश्चर्य से रोहित ने अपने अख़बार को समेटते हुए कहा.
"अरे! रिया बेटा तू भी न, अंदर लेकर आ! बैंक से कोई ज़रूरी काग़ज़ वग़ैरह आया होगा. उसी को तुम चिट्ठी समझ रही होगी. जानती भी हो कि चिट्ठी क्या होती है? लाओ मुझे दो लिफ़ाफ़ा."
"पापा! चिट्ठी ही है, बुआ के यहां से आई है."
"बुआ के यहां से!.. मतलब सीमा की चिट्ठी. ओह! मैं तो भूल ही गया, रक्षाबंधन आनेवाला हैं, इसीलिए मेरे लिए तेरी बुआ की राखी आई होगी." रोहित ने उत्सुकता से बहन की राखी लिफ़ाफ़े से निकालीं, तो राखी और रोली के साथ एक तह किया हुआ काग़ज़ भी निकल पड़ा. रोहित ने उस काग़ज़ की तह खोलते हुए कहा, "यह तो सच्ची में चिट्ठी है, मेरी बहन की चिट्ठी."
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कभी चिट्ठियां जीवन का सबसे ज़रूरी साहित्य हुआ करती थीं, जो व्यक्ति के मन को हूबहू अपने दर्पण में उतार देती थीं. बिल्कुल वैसी ही एक चिट्ठी वर्षों बाद रोहित के घर आई थी, जिसे पढ़ते हुए रोहित की आंखें आंसू से और मन ख़ुशी से भरा जा रहा था. दरअसल, चिट्ठियां होती ही इतनी भावुक हैं और फिर यह तो एक बहन की चिट्ठी थी, जिस पर लिखा था- 'प्रिय भाई! हर बार राखी पर तुम्हारे पास आती हूं, जो नहीं आ पाती, तो लिफ़ाफ़े में राखी रखकर ही भेज देती हूं, लेकिन अबकि राखी के साथ एक लंबी चिट्ठी भेजने का भी मन हुआ.
मुझे लगता है चिट्ठियां भावों को समेटने की सबसे बड़ी ताक़त रखतीं हैं. अब तुम से मिलकर कभी भी पूरी बातें नहीं कर पाती, आज संवादों के कितने सारे और कितने सरल माध्यम हो गए, पर फिर भी कहां साफ़गोई से मन की बात हो पाती हैं. इसीलिए आज तुमसे चिट्ठी के ज़रिए ढेरों बातें कर रही हूं.
भाई! तुम्हारी बहुत याद आती है, तुम्हारे साथ बिताए बचपन के दिन, लड़ाई-झगड़े सब बहुत याद आते हैं. अब अपने-अपने जीवन में हम इतने व्यस्त हो गए कि उन बीते दिनों को याद करके उनकी बातें भी नहीं कर पाते. तुम्हें याद है जब तुम इलाहाबाद में पढ़ते थे, तब मैं तुम्हें गांव से लंबे-लंबे पत्र लिखकर भेजती थी, तुम वे सारे पत्र कितने सहेजकर रखते थे.
मुझे पता है बिल्कुल वैसे ही यह चिट्ठी भी तुम सहेजकर रख लोगे, जैसे हमारे माता-पिता वर्षों पुरानी चिट्ठियों को सहेज कर रख लेते थे.
ऐसी ही ढेरों बातें सीमा ने उस चिट्ठी में लिख भेजी थीं. एक लंबी भावात्मक चिट्ठी पढ़कर रोहित ने अपनी बहन के साथ बिताया हर पल याद करते हुए उस चिट्ठी को सलीके से ज़रूरी काग़ज़ों के बीच में रख दिया. सच है चिट्ठियों में मन का इतिहास समेटने की ताक़त होती है.
घरों की साफ़-सफ़ाई में या किसी ज़रूरी चीज़ की तलाश में जब-जब पुरानी चिट्ठियां हाथ लगती हैं, मानो फिर से पढ़ने वाले के साथ पुनः एक संबंध स्थापित कर लेती हैं. वे फिर से वह बिता कल याद दिलाती हैं, चिट्ठियां लिखी जानी चाहिए, आने वाली पीढ़ी के लिए, मन के भाव उड़ेलने के लिए.
टिंग-टोंग... कुछ दिनों बाद सीमा के घर भी किसी ने दस्तक दी, तो उसके बेटे शिव ने दरवाज़ा खोलकर सामने वाले से एक लिफ़ाफ़ा लिया, तभी रसोई से सीमा ने पूछा, "कौन था बेटा?"
शिव मज़ाकिया अंदाज़ में बोला, "मॉम! ईमेल के ज़माने में चिट्ठी आई है."
"चिट्ठी आई है!.. किसकी चिट्ठी आई है?" सीमा ने पूछा, तो शिव ने उसके हाथों में एक भावना से भरा काग़ज़ पकड़ाते हुए कहा, "मामा की चिट्ठी आई है."
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