Close

कहानी- दहलीज़: अंदर बाहर (Short Story- Dahleez: Andar Bahar)

अपनी मां की तरह ही वह भी बहुत अकेली दिखाई देती. उसके चेहरे पर अजीब सी गम्भीरता थी. वह मां के पास चुपचाप बैठी रहती या पुल के जंगलों को पकड़े नीचे आ-जा रही रेलगाड़ियों को देखती रहती.

उसे नज़र देखने पर हैरानी होती थी. साफ़-सुधरी और सुन्दर स्त्री थी वह. लगभग पैंतीस की उम्र थी और कमज़ोर शरीर था. वस्त्रों में ऐसी सफ़ाई और सलीक़ा कि राह चलता व्यक्ति देखकर सोचने से न रहता कि अच्छी-भली है, कोई काम क्यों नहीं करती? मांग क्यों रही है?

उस पुल पर अन्य भिखारिनों को लोग पैसे दे जाते, पर उसे शायद ही कोई पैसा देता. वह सुबह से शाम तक वहां बैठी रहती. अगर कभी किसी व्यक्ति को पैसे देने का ख़्याल आता भी, तो वह झिझकता कि कहीं भिखारिन न हुई, तो पैसे देने पर बुरा मान जाएंगी.
एक बार कोई व्यक्ति उसके सामने दस पैसे का सिक्का डाल गया. स्त्री ने पहले तो उसकी ओर ध्यान न दिया, फिर जब उस पर नज़र पड़ी, तो उसे उठाकर देर तक देखती रही. फिर वह हंसने लगी और कुछ देर के बाद उसे दूर फेंक दिया.
वह पागल थी.
वह अकेली नहीं थी. साथ में उसकी ढाई वर्ष की बेटी थी बिल्कुल उसी जैसे नयन नक्शोंवाली. उसने सुन्दर फ्रॉक पहना था. रोज़ फ्रॉक बदला हुआ होता. उसके बाल संवारे हुए होते और चोटी में फूल लगा होता.
अपनी मां की तरह ही वह भी बहुत अकेली दिखाई देती. उसके चेहरे पर अजीब सी गम्भीरता थी. वह मां के पास चुपचाप बैठी रहती या पुल के जंगलों को पकड़े नीचे आ-जा रही रेलगाड़ियों को देखती रहती.

यह भी पढ़ें: आज़ाद भारत की आधी आबादी का सच (Women’s Place In Indian Society Today)


वह कुछ समय‌ पहले एक गांव में रहती थी. उन दिनों वह पागल नहीं थी. उसी गांव में वह सहेलियों के साथ बचपन में खेली, जवान हुई और ब्याही गई. ब्याह के बाद भी दो वर्ष बहुत सुखपूर्ण बीते. यद्यपि घर में कलह-क्लेश था, सास और ननदों की कड़वी बातें भी थीं, पर ख़ुशियां भी थीं. एक बहुत बड़ी ख़ुशी की आशा में वह दिन गिन रही थी. बस, एक हंसता-खेलता बच्चा गोद में आ जाए, फिर और क्या चाहिए. पर वह आशा निराशा‌ में बदलती गई. दो वर्ष और बीत गए, बहुतेरे यत्न करने पर भी उसकी कोख हरी न हुई, तो उसे अन्धकार दिखाई देने लगा. घर का वातावरण बदलने लगा. पति के रवैये में परिवर्तन आने लगा.
उन्हीं दिनों घर में अचानक दो मौतें हुई, तो कहा गया कि मृतकों पर उसी की मनहूस छाया पड़ी थी. फिर अगले महीने गांव में तीन मौत हुईं, तो उन व्यक्तियों पर भी उसी की मनहूस छाया बताई गई.
फिर तो वह जैसे हमेशा के लिए उस जंजाल में फंस गई. जब उसका पति दूसरी शादी करके उसकी सौत ले आया. बहुत तीखे स्वभाव की थी वह, चालाक और मक्कार.
उसे घर वीरान लगने लगा. एक भयानक जंगल, जिसमें उसे डरावनी आवाज़ें सुनाई देतीं. वे आवाज़ें रात के समय और भी डरावनी बन जाती. वह चीखती हुई नीद में से उठ बैठती, कांपते हुए हाथों से दीया जलाती और भौंचकी सी बनी सोचने लगती कि वह जंगल कहां गया और जानवरों की वे भयानक आवाज़ें कहां गई, जो अभी-अभी सुनाई दे रही थीं. कुछ देर के बाद वह दीया बुझाकर सो जाती, तो फिर वही जंगल देखती, वही चीखें सुनती और अन्त में स्वयं भी चीखें मारने लगती.
एक रात वह इसी प्रकार चीखती हुई उठी और घर से निकल गई.
लोगों ने कहा, उसे भूत पकड़ लिया है. वह आसपास के गांवों में घूमने लगी. एक बार एक स्त्री को उसमें देवी दर्शन हुए. उसने उसके सामने धूप जलाई और उसे खीर-पूरियां खिलाई. तब कुछ और स्त्रियों को भी उसमें देवी दिखाई देने लगी. फिर तो आसपास के गांवों में मशहूर हो गया कि उसमें देवी माता ने अवतार धारण किया है. अब उसकी चीखे बन्द हो गई थीं. वह हल्का-हल्का मुस्कुराती रहती. अब उसे न खाने-पीने की कमी थी, न पहनने की कमी थी. वह जिस गांव में भी जाती, उसका आदर-सत्कार होता. फिर उसके बारे में मशहूर हो गया कि जिस पर भी उसकी कृपादृष्टि हो जाए, वह वह दूध-पूत जो भी चाहे पा सकता है
वह एक नई दुनिया में जीने लगी थी, जो बच्चों की दुनिया थी. अपनी कल्पना में वह उन बच्चों से बातें करती, उन्हें खिलाती और लोरियां गा कर सुलाती. लोग सोचते वह फ़रिश्तों से बातें किया करती है. बच्चों की उस दुनिया में वह इस दुनिया को भूल गई थी, जिसमें वह भटक रही थी. अब उसके सारे दुख-क्लेश मिट गए थे. उस दुनिया में न जहरीली सौत थी, न विमुख पति था, न भयानक जंगल जैसा घर था.
तीन वर्ष तक वह इसी हालत में गांवों में घूमती रही. फिर एक बार वह ऐसी गायब हुई कि उसे किसी ने न देखा. उसकी श्रद्धालु स्त्रियों ने बहुत खोज की, पर उसका कहीं पता न लगा.
उन दिनों उसे अपने अन्दर एक बच्चा साकार हो रहा महसूस हुआ था और उसे डर था कि उसे कोई छीन न ले. सो वह उन गांवों से दूर चली गई थी. कुछ ही महीनों में उसकी कोख भर गई थी. वह अपने बढ़े हुए पेट पर हाथ फेरती और मुस्कुराती आख़िर उसने एक बेटी को जन्म दिया. वह बच्चों की उसी दुनिया में बेटी के साथ दिन बिताने लगी, उस का पालन-पोषण करने लगी, तब एक स्टेशन के पुल पर उसके दिन बीतने लगे.
बेटी बड़ी होती गई. उसके संसार में मां के अतिरिक्त रेलगाड़ियां थीं, इन्जनों की चीखें थीं, उलझी हुई रेलें थीं, और लाल, हरी, पीली बत्तियां थीं. वह पुल के जंगले में से उस संसार को देखती रहती. कभी कोई इन्जन चौख मारता हुआ नीचे से गुज़रता, तो वह भी ख़ुशी में चीख मारती, तालियां बजाती और इन्जन के उठते हुए धुएं को दोनों हाथों से पकड़ने का यत्न करती.

यह भी पढ़ें: ख़ुद अपना ही सम्मान क्यों नहीं करतीं महिलाएं (Women Should Respect Herself)


एक अलग दुनिया थी बेटी की, एक अलग दुनिया थी मां की. वह बहुत ख़ुश थी. अब यद्यपि वे पहले वाले दिन नहीं थे, जब उसे गांवों में खाने-पहनने की कमी नहीं थी, पर अपने कई अभावों में रहकर भी ख़ुश दिखाई देती थी. उसका शरीर कमज़ोर पड़ता जा रहा था. वह ज़्यादा ख़र्च बेटी के खाने-पहनने पर ही करती. वह स्वयं कम खाती, कभी भूखी भी रह लेती. उसकी पूंजी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही थी. उसे डर था कि जब हाथ में एक भी पैसा न रहा, तो वह क्या करेगी.
एक दिन वह बैठी-बैठी अपनी दुनिया में खोई हुई थी और उसकी बेटी पुल के जंगले को पकड़े लाइनों की ओर देख रही थी. सामने से धुआं छोड़ती हुई मेल गाड़ी आ रही थी. इन्जन चीख पर चीख मार रहा था. फिर जब इन्जन धुंआ छोड़ता हुआ पुल के नीचे से गुज़रा, तो वह फिर ज़ोर से चीखा. उसी समय एक और हृदय बेधी चीख सुनकर वह अपनी बेटी की ओर लपकी. बेटी वहां नहीं थी. गाड़ी पुल के नीचे से गुज़र चुकी थी. स्त्री ने आंखें फाड़ कर नीचे लाइनों की ओर देखा, तो उसकी चीख निकल गई. लाइनों में उसकी बेटी गिरी पड़ी थी और उसके फटे हुए सिर में से लगातार खून बह रहा था. उस के गिर्द लोग जमा थे. वह पागलों की तरह चीखी और पुल से नीचे छलांग लगाने के लिए चली, तो लोगों ने उसे पकड़ लिया.
आख़िर वह अस्पताल में अपनी मरी हुई बेटी को एकटक देख रही थी. उसकी आंखों में ऐसा भाव था, जैसे वह समझ न पा रही हो कि वह यहां क्यों आई है और यह मरी हुई लड़की कौन है?
वह उठी और अस्पताल में से निकल कर चल दी. लोग हैरान थे कि वह बेटी को छोड़कर ऐसे चली गई थी, जैसे उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं था. उन्होंने समझा कि वह पागल हो गई है.
पर उस समय उसे होश आ चुका था. वह जब पुल पर ज़ोर से चीखी थी, तभी उसे होश आ गया था और वह पागल नहीं रही थी.
अब वह अपने पति के घर जा रही थी और सोच रही थी, पता नहीं, मैं घर से क्या चीज़ लेने निकली थी. काफ़ी देर हो गई है, अब वापस चलना चाहिए.
उसके कदम और तेज़ हो गए.

- सुखबीर

यह भी पढ़ें: महिलाएं जानें अपने अधिकार (Every Woman Should Know These Rights)

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article