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कहानी- धरातल से आसमां (Short Story- Dharatal Se Aasman)

मानसी को झटका सा लगा. उसका सपना था अपने पैरों पर खड़े होने का, अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का, किन्तु क्या मानसी अब आम भुक्तभोगी नारियों की तरह घुटनभरी ज़िंदगी जीने पर मजबूर हो जाएगी? नहीं-नहीं कदापि नहीं. उसे धरातल से आसमां की ओर बढ़ना ही होगा और ये कदम उसके स्वयं के होंगे.

समस्त श्रोतागण मानसी अस्थाना का नाम सुनते ही शांत बैठ गए थे. शहर के प्रसिद्ध भवन इण्डियन एसोसिएशन मेडिकल हॉल में वाद-विवाद प्रतियोगिता थी. विषय था 'नारी बदलते परिपेक्ष्य में.' श्रोतागण मानसी के चांद जैसे मुखड़े को टकटकी लगा कर देख से थे और उसके शब्दों के मंत्रजाल में स्वयं भी मंत्रमुग्ध हो गए थे.
मानसी ने बोलना प्रारम्भ किया, "समस्त श्रोतागण, सर्वप्रथम आप इस तथ्य को भूल जाएं कि एक नारी ही नारी पर व्याख्यान दे रही है. कृपया, आप उसके स्वस्य एवं संतुलित रूप को देखने का प्रयास करें. जब हम इतिहास उठाकर देखते हैं, तो ज्ञात होता कि वैदिक काल में अपाला, गार्गी एवं मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियां हुई हैं, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता से न केवल तत्कालीन समाज को प्रभावित किया, अपितु ग्रन्थों के निर्माण में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
सतयुग, द्वापर, त्रेता में जहां नारी का देवत्व रूप प्रधान रहा, वहीं दूसरी ओर उसके शक्ति-परीक्षण का भी युग रहा. उसके पश्चात नारी की गरिमा में ह्रास प्रारम्भ हुआ. सोलहवी एवं सत्रहवीं शताब्दी में नारी-दुर्दशा का वह युग आया, जब नारी मात्र वासना का आधार रह गई. इस कारण जन्म हुआ पर्दा प्रथा का. अंग्रेज़ों के शासन काल में नारी पद-दलित ही रही. किन्तु कुछ नारियों ने अपनी वीरता का अभूतपूर्व परिचय दिया. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है. भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् नारी जागरण का नया युग प्रारम्भ हुआ.
नारी जागी. नारी-जागरण का नवीन अध्याय प्रारम्भ हुआ. फिर तो नारी बढ़ती ही गई प्रत्येक क्षेत्र में, राजनीतिज्ञों के रूप में, प्रशासकों के रूप में. एक शब्द में कहें, तो कह सकते हैं युग प्रवर्तक के रूप में. अब नारी पुरुष की इच्छा की ग़ुलाम नहीं है. उसका एक अलग अस्तित्व है. उसकी एक अलग पहचान है. लेकिन कुछ रुढ़ीपंथी ऐसे भी हैं, जो नारी का पद-दलित रूप ही रखना चाहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि नारी यदि पद-दलित है, तो पुरुषों को सुविधाएं ही सुविधाएं हैं. लेकिन नारी आज सचेत हो गई है. वह घर की चारदीवारी तो तोड़कर आगे बढ़ रही है. वस्तुत: यदि कहें नारी आज धरातल से आसमां तक पहुंच रही है, तो ग़लत न होगा."
दूसरा प्रतियोगी था दिनकर पाण्डेय. समस्त श्रोताओं का अभिवादन कर उसने बोलना प्रारम्भ किया, "सज्जनों, जैसा आप जानते ही हैं कि नारी स्वतंत्रता के नाम पर नारियों के द्वारा जिस स्वतंत्रता को अपनाया जा रहा है, क्या वह उचित है? इसी स्वतंत्रता के नाम उसने पुरुषों को प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया है. आज वह क्लब ज्वाइन करती है, किटी पार्टी ज्वाइन करती है, आज उसे फैशन के लिए नई साड़ियां, नए सूट चाहिए. घर में काम के लिए नौकर चाहिए, बच्चों को पालने के लिए आया चाहिए. पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करते हुए क्लबों में गैर मर्दों के साथ नृत्य करते हुए देख क्या हम यह सोचने पर बाध्य नहीं होते हैं कि स्वतंत्रता के नाम पर नारी अपनी संस्कृति को भूल रही है.
आज उसके द्वारा जिस स्वतंत्रता को अपनाया जा रहा है, उसे तुरन्त ही रोका जाना चाहिए अन्यथा स्वतंत्रता के नाम पर हमारे देश की नारियां विवाह जैसे पवित्र बन्धन को तलाक़ में परिवर्तित कर देंगी एवं देश की गरिमा को मिट्टी में मिला देंगी. अन्त में इतना ही कहना चाहता हूं कि नारी स्वतंत्रता को इतना न बढ़ाया जाए कि नारी नारी ही ना रहे, पुरुष बन जाए."


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इण्डियन ऐसोसिएशन हॉल तालियों से गूंज उठा. कुछ श्रोतागण मानसी के व्याख्यान से प्रभावित थे तो कुछ दिनकर पाण्डेय की प्रशंसा कर रहे थे. वाद-विवाद प्रतियोगिता का निर्णय हुआ. मानसी को प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया एवं दिनकर पाण्डेय को द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ.
रात्रि के आठ बज रहे थे. सड़कों पर सन्नाटा छाने लगा था. "शीघ्रता से मोपेड बढ़ाओ मानसी, देर हो रही है." मधुलिका ने कुछ खिझते हुए कहा. सिविल लाइन एरिया को पार करते हुए मधुलिका ने मानसी से कहा "जल्दी करो मानसी, तुम्हें मालूम है यहां नितिन के बड़े भाई रहते हैं. यदि उन्होंने देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी."
"डरती क्यों हो मधुलिका दीदी, कह देना काम से गए थे." "अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है, इसलिए लंबे-चौड़े भाषण और बड़ी-बड़ी बातें करती हो. अभी तो आसमान में उड़ रही हो. शादी होने दो, धरातल पर आ जाओगी मानसी." "दीदी, शादी के पश्चात् यदि मैं कभी धरातल पर आई भी तो पुनः खुले आसमान में पंख फैलाने की कोशिश करूंगी." कहकर मानसी हंस दी.
"दीदी, गेट पर वार्डन दीदी खड़ी हैं, क्या बहाना बताएं." "कहां से आ रही हो मधुलिका."
"सॉरी दीदी, आज देर हो गई."
"कोई बात नहीं, जल्दी जाओ मेस बंद होनेवाला है." गुडनाइट कहकर दोनों तेज़ कदमों से अंदर आ गईं. "मानसी, आज मेरा कितना समय बेकार गया. कल मैडम पूछेंगी, तो क्या उत्तर दूंगी?"
"दीदी कल आप पूरा काम कर लेना. कल मैं आपको बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करूंगी. आपको जीजाजी की बहुत याद आती है न इसलिए आप दिन-रात रिसर्च का काम करती रहती हो. क्या हसबेंड इतने प्यारे होते हैं दीदी?" मधुलिका को उसकी मासूमियत पर हंसी आ गई.
"रात्रि बहुत हो गयी है, सो जाओ मानसी." मधुलिका ने प्यार भरे शब्दों में कहा.
सुबह छात्रावास में कुछ अधिक ही शोर हो रहा था. मानसी का फोटो दैनिक समाचार पत्र में छपा था. रश्मि चिल्लाती हुई आई.
"देख मानसी, तेरा फ़ोटो."
"थोबड़ा बुरा नहीं आया रश्मि." कहकर दोनों हंसने लगीं, "मानसी अस्थाना" रामू तेजी से आवाज़ लगा रहा था. "कौन होगा मधुलिका दीदी? इस समय? मैं अभी आई. तब तक ज़रा आप देख लीजिए."
मानसी से मिलने कौन आया है मधुलिका ने चारों ओर निगाह दौड़ाई.
"जी मैं हूं, अमित खन्ना." आगन्तुक ने कुछ हिचकिचाते हुए उत्तर दिया.
"मैं सह सम्पादक हूं, आपके शहर के प्रसिद्ध समाचार पत्र का. मैं मानसी से मिलना चाहता हूं, कल उनका व्याख्यान मेरे दिल और दिमाग़ को छू गया."
"आप बैठिए, मैं अभी बुलाती हूं, लेकिन इतना ध्यान रखिए, मानसी लड़कों से छह इंच की दूरी रखती है." कहकर मधुलिका ने मानसी को भेजा, "कहिए, क्या काम है आपको?" मानसी ने कड़कती आवाज़ में पूछा.
"जी मैं आपसे मिलने आया था. कल आपका व्याख्यान बहुत अच्छा लगा, बहुत अच्छा बोलती हैं आप."
"जी धन्यवाद, और कुछ कहना है आपको?"
"जी नहीं"
"तो मैं चलती हूं. पता नहीं कहां-कहां से लोग चले आते हैं." बड़बड़ाती हुई मानसी अंदर चली गई.
रात्रि के दस बजे वार्डन ने आवाज़ लगाई, "मानसी, तुम्हारी मां आई हैं." मानसी दौड़ती हुई मां के गले से लिपट गई, "मम्मी, फोन क्यों नही किया. मैं स्टेशन आ जाती."

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"सोचा तू बेकार ही परेशान होती. फिर ट्रेन का क्या भरोसा? आज ही देखो, छह घंटे लेट हो गई. अच्छा चल जल्दी से मेरे लिए चाय बना." आराम करने के पश्चात् मां ने मानसी से विवाह की चर्चा शुरू कर दी.
"तेरी दीदी का पत्र आया है, तू ख़ुद ही पढ़ ले. लड़का बहुत अच्छा है, डॉक्टर है. इसी वर्ष एम. डी. किया है. बेटी, जब तू अपनी दीदी के यहां गई थी, तब उन लोगों ने तुझे किसी पार्टी में देखा था. इतने की अच्छे लड़के का ऑफ़र फिर कभी नहीं आएगा बेटे. अब आगे पढ़ने की ज़िद छोड़कर हां कह दो. पापा तो तेरे हैं नहीं, मेरे बुढ़ापे का ख़्याल कर." इतना कहकर मानसी की मां फफक-फफक कर रो पड़ी.
"मम्मी, आप परेशान न हों. मानसी को मैं समझाऊंगी." मधुलिका ने स्थिति को संभालते हुए कहा. फिर मधुलिका ने मानसी को समझाना शुरू किया, "मानसी, मैं यह नहीं कहती कि बिना सोचे-समझे विवाह के लिए हां कह दो. यदि लड़के के विचार तुम्हें अच्छे लगें, वह सही सोच का हो और तुम्हारे जीवन को दिशा दे सके, तो विवाह के लिए हां कर दो. पापा तुम्हारे हैं नहीं और मम्मी हार्ट पेशेन्ट हैं. सर्विस तुम कर नहीं रही हो. कल को मम्मी को कुछ हो गया, तो क्या ज़िंदगीभर इसी हॉस्टल में सड़ने का विचार है?"
मानसी जाने के लिए तैयार हो गई. स्टेशन पर ही उसके दीदी-जीजाजी लेने के लिए आ गए थे. दूसरे दिन ही मानसी को देखने का प्रोग्राम बन गया था. चांद जैसे मुखड़े को किसी आभूषण की क्या आवश्यकता? गोरे रंग पर मानसी ने मयूरी रंग की साड़ी पहन रखी थी. छोटी नीली बिंदी और खुले बाल. ऐसा लग रहा था कि चांद को काले बादलों ने ढंक लिया है. मानसी को देखकर दीपंकर स्वयं इतना मुग्ध हो गया कि टकटकी लगाकर देखता रह गया.
लम्बे-चौड़े व्याख्यान देने वाली मानसी, प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता जीतनेवाली मानसी दीपंकर को देखकर ऐसी मुग्ध हुई कि कुछ पूछ ही न सकी.
पांच फुट ११ इंच का गौरवर्णीय बेहद आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक दीपंकर मानसी की सुन्दरता में खो सा गया था.
"वुड यू लाइक मी टु एक्सेप्ट मी एज योर लाइफ पार्टनर." मानसी सुनकर मुस्कुरा दी. जब दीपंकर की मां ने मानसी को अंगूठी पहनाने को कहा तो मानसी की मां की आंखों से आंसुओं अविरल धारा बहने लगी थी. सगाई की रस्म पूरी होने के पश्चात् एक माह के अंदर ही मानसी और दीपंकर परिणय सूत्र में बंध गए थे.
कहां मां का छोटा सा घर और कहां डॉ. दीपंकर का विशाल बंगला. विवाह के चार रोज़ पश्चात् ही जब दीपंकर ने लंदन का टिकट मंगवाया, तो मानसी चौंक ही गई थी. "हनीमून मनाने लंदन!"
"यस माई डार्लिंग." कहते हुए दीपंकर ने मानसी को आलिंगनबद्ध कर लिया, तो मानसी के गालों की लालिमा और भी बढ़ गई थी.
समय पंख लगाकर उड़ रहा था. असीम वैभव-सम्पन्नता और विशाल नौकर समुदाय के होते हुए मानसी बैठे-बैठे बोर होने लगी थी. एक दिन सुबह वह दीपंकर से कहने लगी, "अपनी क्लीनिक में मुझे भी ले जाया करिए, आपको भी मदद मिलेगी और मेरी बोरियत भी कम हो जाएगी."
"सोशोलॉजी से एम.ए. करनेवाली मेरी बीवी डॉ. दीपंकर की मदद करेगी. जिसे मेडिकल की एबीसीडी न आती हो वह मदद करेगी." ज़ोर से ठहाका लगाकर दीपंकर क्लीनिक चले गए. रात्रि को ख़ुश मूड में देखकर बोले, "घर क्या तुम्हें काटने को दौड़ता है, जो सर्विस और काम की रट लगाए रहती हो. खाली वक़्त में घूमने निकल जाया करो मानसी." मानसी चुप हो गई.

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कुछ समय पश्चात् मानसी ने प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया, नाम रखा वैशाली. एक दिन वैशाली को लेकर वह लौट रही थी कि सोचा दीपंकर को सरप्राइज़ दिया जाए. उसने ड्राइवर से क्लीनिक पर गाड़ी ले जाने के लिए कहा. डॉ. दीपंकर की गाड़ी देखकर किसी भी कर्मचारी ने अंदर जाने से मना नहीं किया. वह सीधी दीपंकर के कमरे में घुसी.
डॉ. दीपंकर किसी नर्स के कंधे पर हाथ रखे हुए बेख़बर किसी पेशेन्ट के बारे में बात कर रहे थे. नर्स आंखों में आंखें डाले इतनी बेख़बर थी कि दोनों में से कोई भी मानसी को आते न देख सका. पुरुष की वृत्ति कितनी चंचल होती है. इतनी सुन्दर शिक्षित पत्नी के होते हुए डॉ. दीपंकर ने उस नर्स में क्या देखा, जो प्यार की पेंगे बढ़ा रहे थे. मानसी तमतमा गई थी. डॉ. दीपंकर हड़बड़ा गए.
"अरे मानसी, तुम अचानक कैसे आ गईं? कोई काम था तो मुझे फोन कर देतीं." मानसी बिना कुछ कहे वहां से चली आई.
रात्रि को बिस्तर पर क़रीब होते हुए भी मानसी दीपंकर के क़रीब नहीं थी. दीपंकर ने पास आते हुए कहा, "क्या बात है मानसी, इतनी सीरियस क्यों हो?" मानसी कहने लगी, "घर में तो बहुत प्यार दिखाते हैं और क्लीनिक में नर्स की आंखों में आंखें डालकर ऐसे बात कर रहे थे जैसे…" "जैसे, जैसे क्या, तुम्हारा दिमाग़ तो नही ख़राब हो गया. कितनी नैरो माइन्डेड हो! शादी क्या कर ली तुमसे, दिमाग़ ख़राब हो गया तुम्हारा. तुम्हारे जैसी हज़ारों चक्कर लगाती थीं. मेरे आगे-पीछे. कान खोलकर सुन लो, तुम्हें मेरी ज़िंदगी में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है." इतना कहकर एक तरफ़ मुंह कर डॉ. दीपंकर खरटि भरने लगे. विचारों के खुले आसमान में उड़नेवाली मानसी आज सचमुच ही धरातल पर आ गई थी.
आज उसे मधुलिका दीदी के शब्द याद आ रहे थे  "अभी शादी नहीं हुई बच्चू, हवा में उड़ती रहती हो. शादी हो जाने दो मानसी, धरातल पर आ जाओगी, धरातल पर."
रातभर मानसी सो नहीं सकी थी. उसके मस्तिष्क में हज़ारों विचार गूंज रहे थे. दीपंकर का कहा हुआ एक-एक शब्द उसके कानों से टकरा रहा था.
"शादी क्या कर ली तुमसे दिमाग़ ख़राब हो गया तुम्हारा. तुम्हारे जैसी हज़ारों मेरे आगे-पीछे चक्कर लगाती रहती थीं. एक बात कान खोलकर सुन लो तुम्हें मेरी ज़िंदगी में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है." अपनी ग़लती न मानकर अपने अहं, अपने पैसे का गर्व दीपंकर की ज़िंदगी का मूल तत्व बन गया है.
मानसी को झटका सा लगा. उसका सपना था अपने पैरों पर खड़े होने का, अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का, किन्तु क्या मानसी अब आम भुक्तभोगी नारियों की तरह घुटनभरी ज़िंदगी जीने पर मजबूर हो जाएगी? नहीं-नहीं कदापि नहीं. उसे धरातल से आसमां की ओर बढ़ना ही होगा और ये कदम उसके स्वयं के होंगे.
अगले दिन सूर्य की स्वर्णिम रश्मियां मानसी के मानस-पटल को छू रही थीं. मानसी उठी, तैयार हुई. बच्ची को दो घंटे आया को संभालने का निर्देश दिया. सुबह अचानक घर से बाहर जाते देख दीपंकर चौंके, "कहां जा रही हो?"
"युनिवर्सिटी." इतना कह कर वह तेज कदमों से निकल पड़ी. अगली उड़ान एम. फिल की ओर. एक बार फिर उसके कदम धरातल से आसमां की ओर बढ़ने जा रहे थे.

- डॉ. श्रीमती प्रमिला बृजेश

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