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कहानी- दृष्टिकोण (Short Story- Drishtikon)

सदा खिलखिलाती, मुस्कुराती उपासना अब तनाव में रहने लगी थी. बात-बात में झुंझला जाती कभी संजय पर, कभी बच्चों पर तो कभी अपनी कामवाली बाई पर. और यदि भूले से भी कभी संजय या उसका कोई अपना किसी दूसरी महिला की तारीफ़ कर देता, तो वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगती और मन ही मन कुढ़ जाती.

किटी पार्टी से लौटते ही उपासना अपने कमरे में आकर आईने के सामने खड़ी हो गई और स्वयं को बड़े गौर से देखने लगी. हर पार्टी को एंजॉय करने वाली ख़ुशमिज़ाज और अपनी ख़ूबसूरती का जलवा बिखेरने वाली, दो जवान होते बच्चों की मां उपासना, आज काफ़ी दुखी व निराश थी. कुछ महीनों से उसे ऐसा लगने लगा था कि उम्र बढ़ने के साथ अब उसकी सुंदरता भी कम होने लगी है और यही वजह थी कि अब वह अपने पति संजय के साथ भी उखड़ी-उखड़ी-सी रहने लगी थी. उसके व्यवहार में आए इस परिवर्तन से संजय भी हैरान और परेशान था.
आदमकद शीशे में स्वयं को निहारती उपासना को अपने लंबे घने काले बालों से कुछेक सफ़ेद बाल झांकते नज़र आ रहे थे, चेहरे की चमक भी थोड़ी फीकी लग रही थी, आंखों के नीचे एक-दो लकीरें दिखाई दे रही थी, चेहरे पर फाइन लाइन भी साफ़ नज़र आ रहे थे, जो झुर्रियों की निशानी व बढ़ती उम्र का संकेत है. वज़न भी उम्र के साथ थोड़ा बढ़ गया था. हल्का-सा पेट भी बाहर आ गया था. बुढ़ापा को अपनी ओर कदम बढ़ाता देख उपासना डर गई और उसके भीतर एक ही क्षण में क‌ई नकारात्मक विचार दस्तक देने लगे. तभी उपासना का मोबाइल बजा, वह चौंक ग‌ई और नहीं चाहते हुए भी उसने फोन उठा लिया. फोन उसकी सहेली बरखा का था. उपासना के फोन उठाते ही बरखा बोली, "अरे उपसाना तुम पार्टी के बीच में ही किसी से बिना कुछ कहे क्यों चली गई. तुम्हें पता है तुम्हारे जाने के बाद अनोखी ने इतना बढ़िया कैट वॉक किया. हम सब तो उसे देखते ही रह ग‌ए. तुम्हें होना चाहिए था, तुम्हें बहुत मज़ा आता."

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बरखा से इतना सुनते ही उपासना ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया और फोन स्विच ऑफ कर एक ओर रख दिया. जब से अनोखी ने किटी ज्वॉइन किया है उपासना को वह अपनी प्रतिद्वंद्वी लगने लगी है. वैसे उपासना और अनोखी के उम्र में कोई बहुत ज़्यादा अंतर नहीं है, बल्कि अनोखी उपासना से दो साल बड़ी ही है. लेकिन उसके बावजूद ना जाने अनोखी में ऐसा क्या है कि वह इतनी आकर्षक लगती है और सभी उसकी तारीफ़ करते भी नहीं थकते. जबकि दिखने में उपासना उससे ज़्यादा ख़ूबसूरत लगती है. मेकअप स्किल भी उपासना का अनोखी से बेहतर है. इन्हीं सब बातों के भंवर जाल में उपासना फंसती जा रही थी.
शाम को जब संजय दफ्तर से घर लौटा और उपासना को यूं उदास बैठा देखकर बोला, "उपासना आज तो तुम्हारी किटी थी!.. तुम नहीं गई क्या?"
संजय का बस इतना कहना था कि उपासना के मन का डर क्रोध में बदल गया और वह संजय पर बरस पड़ी. उपासना का यह रूप देख संजय आवाक रह गया. सदा खिलखिलाती, मुस्कुराती उपासना अब तनाव में रहने लगी थी. बात-बात में झुंझला जाती कभी संजय पर, कभी बच्चों पर तो कभी अपनी कामवाली बाई पर. और यदि भूले से भी कभी संजय या उसका कोई अपना किसी दूसरी महिला की तारीफ़ कर देता, तो वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगती और मन ही मन कुढ़ जाती.
उपासना अपने बढ़ते उम्र व उनके निशानियों को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही थी और उन्हें छिपाने के लिए भरसक प्रयत्न में लगी रहती. तरह-तरह के घरेलू उपाय, सौंदर्य प्रसाधन व ब्यूटीपार्लर के चक्कर भी काटने लगी. उपासना का यह बर्ताव संजय को विचलित कर रहा था, परन्तु वह उपासना को समझाने में असमर्थ था.
दिन अपनी ही गति से चल रहा था और उपासना हर बीतते हुए दिन के साथ तनाव में घिरती जा रही थी. तभी एक दिन उसकी कॉलेज की सहेली इन्दु का फोन आया और उसने कहा अगले रविवार उनके कॉलेज का रियूनियन पार्टी है, जिसमें उनकी कक्षा के ज़्यादातर लोग शरीक हो रहे हैं और उसे भी ज़रूर आना है. उस वक़्त उपासना अपनी अभिन्न सखी को मना नहीं करना चाहती थी, इसलिए वह पार्टी में आने की बात मान गई. परन्तु मन ही मन उसने तय कर लिया था कि वह रियूनियन पार्टी में नहीं जाएगी. वैसे उपासना को भी अपने सभी पुराने मित्रों से मिलने की तीव्र इच्छा थी, परंतु उसे इस बात का भय था यदि किसी ने उसके रिंकल्स या बढ़े हुए वज़न पर तंज कस दिया तो क्या होगा..? सब के सामने उसकी बेइज्ज़ती हो जाएगी.
जब संजय और बच्चों को उपासना के रियूनियन के बारे में पता चला, तो सब ने मिलकर उपासना को रियूनियन में जाने के लिए मना लिया. उपासना भी पति और बच्चों की ज़िद के आगे झुक गई और रियूनियन पार्टी में जाने के लिए राज़ी हो गई. पार्टी में जाना उपासना के लिए किसी जंग से कम नहीं था. उसने पार्टी में जाने से पूर्व अपने बाल रंग लिए, फेशियल करवा लिया. जिस दिन रियूनियन पार्टी थी उस दिन उपासना ने अपनी सबसे ख़ूबसूरत साड़ी पहन कर, पूरे मेकअप के साथ पार्टी में पहुंची. असल में उपासना अपने कॉलेज के दिनों की तरह ही दिखना चाहती थी.
उपासना जब पार्टी में पहुंची, तो उसने देखा उसके सभी मित्र बदले हुए दिखाई दे रहे हैं, कोई पहले से ज़्यादा मोटा हो गया है, तो किसी के आंखों में मोटा चश्मा चढ़ गया है. किसी के बाल कम हो ग‌ए है. जब उसने राहुल को देखा तो वह हैरान ही रह गई, जो कॉलेज के दिनों में हीरो हुआ करता था, वो तो पूरी तरह से गंजा दिखाई दे रहा है, लेकिन ये सभी मस्ती में झूम रहे हैं. तभी उपासना की नज़र इन्दु पर पड़ी और इन्दु ने भी उसे देखते ही अपनी ओर आने का इशारा किया और वह इन्दु के पास चली गई. उसने देखा इन्दु ने ना तो अपनी उम्र छिपाने के लिए कोई मेकअप किया है और ना ही बाल काले किए हैं. यह देख उपासना, इन्दु से बोली, "तुम इस तरह बिना मेकअप के पार्टी में कैसे आ ग‌ई..! क्या तुम्हें अपनी बढ़ती उम्र और उनकी निशानियों से कोई फर्क़ नहीं पड़ता?"
यह सुन इन्दु मुस्कुराती हुई बोली, "बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि मेरा मानना है यदि कोई बाल डाई करना चाहता है, तो अवश्य करे, लेकिन अपनी ख़ुशी के लिए ना कि अपनी उम्र छुपाने के लिए. उम्र बढ़ रही है, तो क्या हुआ एक छोटे बच्चे की तरह बिंदास जिएं, योगा करें, वॉकिंग करें स्वस्थ रहने के लिए, ना कि इस सोच के साथ कि ऐसा करने से उम्र थम जाएगी.‌ रिंकल्स दिखते हैं, तो क्या हुआ दिखें, लेकिन इसलिए हंसना ना छोड़े. खुलकर हंसे, क्योंकि बढ़ती उम्र में चेहरे पर रिंकल्स भी सुंदर ही दिखते हैं."


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बढ़ती उम्र के प्रति इन्दु का दृष्टिकोण देख उपासना को लगा उसे भी अपना नज़रिया बदलने की ज़रूरत है. पार्टी से लौट कर उपासना आज काफ़ी महीनों बाद स्वयं को तनावमुक्त महसूस कर रही थी और उसे इस तरह तनावरहित देख कर संजय और बच्चे भी प्रसन्न थे.
दूसरे दिन उपासना की किटी पार्टी थी, जहां वो बहुत ही ख़ूबसूरती से तैयार हो कर पहुंची, लेकिन आज उपासना उम्र छिपाने के लिए नहीं, स्वयं के लिए तैयार हुई थी और ना ही आज उसे अनोखी अपनी प्रतिद्वंद्वी लग रही थी.

प्रेमलता यदु

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Photo Courtesy: Freepik

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