“दीदी… क्या हुआ?” इसके आगे कुछ न बोल पाई समीरा. अविनाश ग़ुस्से से थरथरा रहे थे, “कितनी घटिया और ओछी सोच है तुम्हारी. मैं उसे बच्चे की तरह प्यार करता हूं…” बात काटते हुए नीरा चिल्लाई, “बच्चे की तरह प्यार करते हो या बच्चा पाने की चाह में प्यार करते हो?” सुनते ही अविनाश और समीरा के होश उड़ गए. समीरा रोते-रोते अपने कमरे में भाग गई. अविनाश ने अपने कानों पर हाथ रख लिए.
आज नीरा का पढ़ाने में मन नहीं लग रहा था. सिरदर्द के कारण दिमाग़ की नसें फटी जा रही थीं. शक का कीड़ा जब मन में घुस जाए, तो वह दिल-दिमाग़ को ऐसे जकड़ लेता है कि इंसान शक और सिर्फ़ शक के मकड़जाल में उलझता ही जाता है.
ऐसा ही कुछ हो रहा था नीरा के साथ. मन की भले न सुनो, मगर आंखों देखी को कैसे झुठलाया जा सकता है. नीरा का मन लाख कहे कि समीरा तेरी छोटी बहन है, तुझ से दस वर्ष छोटी है, उसका दुनिया में तेरे सिवाय कोई नहीं है. मगर आंखें जब उसे अविनाश के साथ चुहल करते, हंसते-बोलते देखतीं, तो तन-बदन में आग लग जाती है. माना समीरा अभी बच्ची है, मगर अविनाश तो समझदार हैं. उन्हें तो जीजा-साली के रिश्ते की नज़ाकत समझते हुए दूरी बनाए रखनी चाहिए.
नीरा ने प्रिंसिपल से छुट्टी ली और घर की ओर चल दी. सिरदर्द तो था ही, मगर सच्ची वजह थी शक का कीड़ा, जो उसके दिमाग़ में कुलबुला रहा था.
अविनाश तीन दिन के टूर के बाद आज सुबह ही आए हैं, समीरा की प्रिपरेशन लीव चल रही है, सारा दिन दोनों अकेले रहेंगे, कहीं कुछ कर बैठे तो? जो बात इतने महीनों से सिर्फ़ शक थी, उसे आज सबूत के रूप में देखने के लिए नीरा उतावली हो रही थी. आज सारा क़िस्सा ख़त्म हो जाएगा. नीरा ने ठान लिया था, आज मैं समीरा को घर से धक्का देने में ज़रा भी हिचकिचाऊंगी नहीं, मैं भूल जाऊंगी कि मेरी मां ने मरते समय नौ वर्ष की मासूम समीरा का हाथ मेरे हाथ में देकर मुझसे वादा लिया था कि मैं मां की तरह इसका पालन-पोषण करूंगी और मैंने किया भी.
मुझे कभी नि:संतान होने का मलाल नहीं हुआ. मैंने उन्नीस साल की उम्र में इसकी मां बनकर दिखाया. मम्मी-पापा के एक्सीडेंट का इस मासूम पर इतना गहरा असर पड़ा था कि यह बुरी तरह सहम गई थी. मैंने और अविनाश ने उसे इस सदमे से उबारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मुझे क्या मालूम था कि यह मुझे ही सदमा देने वाली है.
नीरा ने ऑटोरिक्शा घर से कुछ दूरी पर ही रोक दिया. घर का मुख्यद्वार खुला था. उसे ख़ुशी हुई कि वह बिना आवाज़ किए चुपचाप बेडरूम तक पहुंच जाएगी. उसने धीरे से परदा सरकाया, टीवी पर कोई फिल्म चल रही थी. अविनाश और समीरा एक ही सोफे पर बैठे हंसते-हंसते एक दूसरे पर गिरे जा रहे थे. हाथ में रखे पॉपकॉर्न इधर-उधर बिखरते जा रहे थे. यह दृश्य देखकर नीरा भड़क गई. दिमाग़ इतना गर्म हो गया था कि उसे पता ही नहीं चल रहा था वह समीरा से क्या बोले जा रही है, “बेशरम… मैंने बेटी से बढ़कर तुझे प्यार दिया और तू मेरे ही घर में डाका डाल रही है. निकल जा मेरे घर से…” साथ ही एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया उसके भोले-मासूम चेहरे पर. समीरा हतप्रभ रह गई.
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“दीदी… क्या हुआ?” इसके आगे कुछ न बोल पाई समीरा. अविनाश ग़ुस्से से थरथरा रहे थे, “कितनी घटिया और ओछी सोच है तुम्हारी. मैं उसे बच्चे की तरह प्यार करता हूं…” बात काटते हुए नीरा चिल्लाई, “बच्चे की तरह प्यार करते हो या बच्चा पाने की चाह में प्यार करते हो?” सुनते ही अविनाश और समीरा के होश उड़ गए. समीरा रोते-रोते अपने कमरे में भाग गई. अविनाश ने अपने कानों पर हाथ रख लिए.
नीरा अपनी भड़ास निकालती रही. अविनाश ने एक शब्द भी नहीं कहा. इसके साथ ही तीनों के मध्य संवाद पूर्णतः समाप्त हो गया. सारे घर में कब्रिस्तान सी चुप्पी पसर गई. समीरा प्राय: अपने कमरे में बंद रहती, अविनाश अधिकांश समय घर से बाहर बिताते. नीरा निश्चिंत थी कि उसने अपने घर को बचा लिया है. उसने निश्चय कर लिया था कि अठारह की होते ही समीरा का विवाह करके इस समस्या को जड़ से ही उखाड़ फेंकेगी. लेकिन काल के पिटारे में कितने नाग बंद हैं, वह नहीं जानती थी.
इस बात को लगभग पंद्रह दिन हो गए थे. ग़ुस्से का उफ़ान धीरे-धीरे कम हो रहा था. अविनाश एक हफ़्ते के लिए टूर पर गए थे. समीरा की आज पहली परीक्षा थी. कहीं सोती न रह जाए यह देखने के लिए नीरा समीरा के कमरे में गई, तो समीरा के बिस्तर पर एक लेटर पैड पड़ा देखकर चौंक पड़ी, जिस पर लिखा था, “मैं घर छोड़कर जा रही हूं, मुझे ढूंढ़ने या पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने का कष्ट मत करना.” नीरा के तो जैसे होश उड़ गए. अविनाश को फोन किस मुंह से करती. परीक्षा का समय समाप्त होने पर उसके क़रीबी मित्र को फोन लगाया. बहुत मिन्नत के बाद उसने बताया कि समीरा परीक्षा देने नहीं आई. उसने तो शादी कर ली है एक राजीव नाम के बत्तीस वर्ष के युवक के साथ. उसी ने बताया कि नेट पर उसकी दोस्ती हुई थी उसके साथ.
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सुनकर दुख से अधिक ग़ुस्सा आया नीरा को, “यह नेट और मोबाइल पर चार दिन की खुसर-पुसर वाली बेमेल शादियां कहीं टिकती हैं भला. अपने को स्मार्ट समझ रही है. यह सिला दिया है मेरी परवरिश का. अरे, उसके भले के लिए दो शब्द कह दिए, तो क्या मुंह उठाकर चल देगी और बिना बताए शादी भी कर लेगी.” नीरा के मुंह से आह निकल गई, लेकिन उसने अपने मन को समझा लिया. वह ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करेगी, तो आ जाएगी अपने आप. किसी सहेली के घर छिपी होगी.
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. समीरा तो नहीं लौटी, मगर अविनाश लौटने पर नीरा पर बरस पड़ा. वह समझ नहीं पा रहा था कि इतना सब कुछ होने पर भी नीरा हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठी है. अविनाश ने अपने स्तर पर समीरा को ढूंढ़ने की मुहिम चला दी, लेकिन उसे कोई सुराग न मिला.
इस बात को एक महीना हो गया था. एक रात इंदौर पुलिस स्टेशन से फोन आया कि समीरा ने मुंबई में आत्महत्या करने का प्रयास किया है, आप कूपर हॉस्पिटल, विले पार्ले पहुंचो. ख़बर सुनते ही दोनों के होश उड़ गए और वे अगली फ्लाइट से मुंबई पहुंच गए.
कूपर हॉस्पिटल पहुंच कर पता चला कि समीरा आई.सी.यू. में भर्ती है तथा जीवन-मृत्यु के बीच झूल रही है. तफ़्तीश के लिए आए पुलिसवाले ने राजीव के कच्चे चिट्ठे का जो खुलासा किया, उसे सुन दोनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई.
पुलिसवाले ने बताया, “राजीव फरार है. उसके मुंबई में कई ग़ैरकानूनी धंधे हैं. सट्टा, मैच फिक्सिंग और ड्रग्स का धंधा भी चलाता है. इंटरनेट पर लड़कियों से दोस्ती कर शादी रचाता है. बाद में धंधे में डाल देता है. डांस बार की लड़की से इसका पता निकाला. घर गया, तो वो लड़की… क्या नाम है…. हां समीरा? हां, समीरा बरामद हुई. उसे कुछ नहीं मालूम था. उसको पुलिस स्टेशन चलने को बोला, तो दो मिनट में आती बोल के अंदर गई और ज़हर खा ली, हम ही उसको इधर हॉस्पिटल लाया.”
नीरा फफक-फफक कर रो रही थी और बार-बार अविनाश से माफ़ी मांग रही थी, “अविनाश! मैं तुम दोनों की गुनहगार हूं. न मैं मूर्खतापूर्ण शक करती, न समीरा जल्दबाज़ी में यह बेमेल शादी करती…”
अविनाश आहत स्वर में बोला, “नीरा! मैं समीरा को अपनी बच्ची की तरह प्यार करता था, ताकि उसे पिता की कमी महसूस न हो, पर तुमने तो ग़लत अर्थ ही निकाल लिया. मैं अपने बच्चे का रूप उसमें देख रहा था, वह अपने पिता का रूप मुझमें देखती थी. उम्र में बहुत अधिक अंतर होने की वजह से उसने बड़े सहज रूप से मुझे पिता के स्थान पर रख दिया था. समझने की कोशिश करो, जैसे ही तुमने मुझे उसकी ज़िंदगी से हटाया, उसने अपने से इतनी अधिक उम्र के व्यक्ति से ब्याह रचा लिया. उसके अंदर की तड़प को समझो. वह ‘फादर फिगर’ ढूंढ़ रही थी.
और अचानक जब पुलिस ने खुलासा कर दिया कि वह इतना बड़ा क्रिमिनल है, तो उसे धक्का लगना स्वाभाविक था. उसका विश्वास चकनाचूर हो गया. उसका ख़ुद पर से विश्वास उठ गया. उसे लगा होगा कि जीवन में कुछ बचा ही नहीं है. शायद यही सोच कर उसने जीवन का अंत करने का प्रयास किया होगा.”
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नीरा के तो आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. उसे चुप कराते हुए अविनाश बोला, “देखो, बीती बातों पर रोने का कोई फ़ायदा नहीं है. बाकी सब बातें छोड़ कर पुलिस से इजाज़त लेकर समीरा को घर ले जाने की तैयारी करो. हमें समीरा को एक बार फिर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ करना है और उसमें इतनी हिम्मत पैदा करनी है कि वह आनेवाली मुसीबतों का सामना बहादुरी से कर सके. फ़िक्र मत करो, हम दोनों उसके साथ चट्टान की तरह खड़े हो जाएंगे.” अविनाश के मुंह से यह वाक्य सुनकर नीरा भाव-विह्वल हो गई. पश्चाताप के आंसू आंखों से बहे जा रहे थे. वह समझ गई थी कि अविवेकपूर्ण व्यवहार और सोच रिश्तों में दूरी पैदा कर देते हैं, विशेष रूप से कच्ची उम्र के नाज़ुक दिल बच्चों से.
नीरा-अविनाश को नहीं मालूम था कि समीरा होश में आ चुकी है और उन दोनों की बातें सुन रही है. उन दोनों को अपने पास देख कर जैसे समीरा की मृतप्राय काया में किसी ने जान फूंक दी.
आज उसे महसूस हो रहा था कि अपनों का प्यार कितना बड़ा संबल होता है. ज़िंदगी में सही फ़ैसले कितने ज़रूरी होते हैं. एक ग़लत फ़ैसला ज़िंदगी को नरक बना देता है.
- सुमन ओबेरॉय
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