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लघुकथा- घूंघट (Short Story- Ghunghat)

देखने में वह महिला अधेड़ उम्र से थोड़ा ज़्यादा ही लग रही थी. उसे देख मुझे ख़्याल आया कि घूंघट की ओट तो छोड़ो, शायद इस उम्र में कुदरती आंखों से भी कम दिखना आम बात होगी.

मैं टैक्सी में बैठी अपने गंतव्य की ओर जा रही थी. दूर सड़क के किनारे एक महिला अपने एक हाथ में दूध की बरनी लटकाए हुए और दूसरे हाथ से बार-बार अपने घूंघट को खींच रही थी. शायद सड़क पार करने का इंतज़ार कर रही थी.

देखने में वह महिला अधेड़ उम्र से थोड़ा ज़्यादा ही लग रही थी. उसे देख मुझे ख़्याल आया कि घूंघट की ओट तो छोड़ो, शायद इस उम्र में कुदरती आंखों से भी कम दिखना आम बात होगी.

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उसी उधेड़बुन में टैक्सी उसे पीछे छोड़ आगे निकल गई और मैं अपने काम में व्यस्त हो गई. अगले दिन अख़बार में एक कोने में छपी ख़बर ने मुझे झकझोर दिया. ख़बर थी-

तेज रफ़्तार ट्रक ने अधेड़ महिला को कुचला, अज्ञात चालक के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़...

मुझे बार-बार सड़क किनारे घूंघट में खड़ी महिला का ध्यान आ रहा था.

- कंचन चौहान

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Photo Courtesy: Freepik

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