रेस्टोरेंट के पुराने मालिक यानी अपने पिता की तस्वीर को ग्राहक द्वारा भावपूर्ण अंदाज़ में निहारते देख विनोद के चेहरे के भाव बदल गए और वह भावुक हो उठा.
पास खड़े वेटर को जाने का इशारा करते हुए वह ग्राहक के साथवाली कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, "पापा के जाने के बाद काफ़ी कुछ बदल गया. ये रेस्टोरेंट भी और आपकी खोए वाली लस्सी भी."
"सुनो, ये आदमी इतनी देर से क्यों बैठा है. उसका ऑर्डर जल्दी पूरा करो."
रेस्टोरेंट मालिक विनोद केसरवानी ने अनमने भाव से उस अधेड़ उम्र के आदमी की ओर इशारा किया, जो काफ़ी देर से कुर्सी पर बैठा इधर से उधर ताक रहा था.
"सर, दो बार पूछ चुका हूं, पर हर बार रुकने का इशारा कर देता है."
"लगता है टाइम पास कर रहा है. देखो उसके पास बैग है. अटैची और बैगवालों का ऑर्डर जल्दी पहुंचाओ और चलता करो." विनोद ने कहा तो वेटर सिर हिलाकर चला गया.
स्टेशन रोड पर रेस्टोरेंट होने के कारण अक्सर ऐसे ग्राहक आ जाते हैं, जो यात्री होते हैं. समय व्यतीत करने के लिए एक कप चाय के सहारे लंबा समय बिता देते हैं.
यह भी वैसा ही ग्राहक लगता था, जो कभी मेन्यू कार्ड खंगालता, तो कभी पास खड़े वेटर से कुछ पूछता. ऐसे लोगों से निपटना काम पर आए उस नए वेटर के लिए मुश्किल लग रहा था, सो विनोद स्वयं ही उस ग्राहक की टेबल की ओर बढ़े और सभ्यता से पूछा, "क्या चाहिए सर?"
"जी, लस्सी पीनी थी, पर इसमें वो नहीं है, जो मुझे चाहिए…" ग्राहक ने मेन्यू कार्ड उठाकर कहा.
मैंगो लस्सी, चॉकलेट लस्सी, पान लस्सी, स्ट्राबेरी लस्सी और वेनिला लस्सी. इतनी वेरायटी होने के बाद भी ग्राहक का यह कहना कि उसकी मनचाही लस्सी देने में रेस्टोरेंट सक्षम नहीं है यह विनोद को कुछ नागवार गुज़रा.
"जब मैं छोटा था, तब अपने मामा के साथ यहां आया करता था. तब अंकल यह कहकर लस्सी देते कि इसमें खोए की मिठाई पड़ी है. ऊपर मोटी मलाई की परत होती थी. मैं चाट-चाट कर पूरा कुल्हड़ साफ़ कर देता था." काउंटर के साथ वाली दीवार पर हार चढ़ी तस्वीर की ओर ताकते हुए वह ग्राहक बोला.
यह भी पढ़ें: दूसरों का भला करें (Do Good Things For Others)
रेस्टोरेंट के पुराने मालिक यानी अपने पिता की तस्वीर को ग्राहक द्वारा भावपूर्ण अंदाज़ में निहारते देख विनोद के चेहरे के भाव बदल गए और वह भावुक हो उठा.
पास खड़े वेटर को जाने का इशारा करते हुए वह ग्राहक के साथवाली कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, "पापा के जाने के बाद काफ़ी कुछ बदल गया. ये रेस्टोरेंट भी और आपकी खोए वाली लस्सी भी."
"जी, बदलाव तो अंकल के समय से ही आ गया था. जब बहुत छोटा था, तब रेहड़ीनुमा दुकान थी. शायद तख्त हुआ करता था, जिस पर बैठकर मथानी से लस्सी बिलोई जाती थी. फिर बारह-चौदह साल की उम्र हुई, तब कुर्सी-मेज जुट गई. टीन शेड पड़कर बकायदा दुकान हो गई. लस्सी भी मिक्सी से बनाई जाने लगी थी, पर स्वाद नहीं बदला… लस्सी का."
अतीत में डूब चले उस ग्राहक को देख विनोद गला खंखार कर बोला, "आप कुछ देर बैठिए, अभी घर से आपकी खोए वाली लस्सी बनवाकर मंगवाता हूं. वैसा स्वाद तो शायद न मिले फिर भी…”
“अरे नहीं, इतनी भी तकलीफ़ नहीं दूंगा.” वह संकोच से घिर उठा, "ननिहालवाला घर जब से बिका यहां आना नहीं हुआ. आज चालीस साल बाद आना हुआ, तो मन किया सहला आऊं अतीत के वो पल जो समय की धारा में कहीं पीछे छूट गए. बीता समय वापस नहीं आता, तो बीता स्वाद आज में क्यों खोजू." वह हंसा और हाथ जोड़ कर बोला, "आप पानवाली लस्सी मंगवा दें."
यह भी पढ़ें: प्रेरक प्रसंग- बात जो दिल को छू गई… (Inspirational Story- Baat Jo Dil Ko Chhoo Gayi…)
"अरे! पर आप…" ग्राहक ने विनोद की बात आधे में ही काट दी.
"खोए वाली मलाईदार लस्सी पीने आया था. हो सकता है वैसी ही आपके घर से बन कर भी आ जाए, पर डरता हूं कही तब भी अतृप्त रह गया तो… रहने दीजिए वह स्वाद स्मृतियों में…"
उसकी दुविधा समझ विनोद मुस्कुरा पड़ा.
वह ग्राहक देर तक पानवाली लस्सी का लुत्फ़ उठाता रहा और विनोद उसकी मौजूदगी का…
चलते समय उस ग्राहक ने पेमेंट के लिए अपना मोबाइल निकाला, तो विनोद ने कहा, "रहने दीजिए…"
यह भी पढ़ें: जीवन में ऐसे भरें ख़ुशियों के रंग (Fill Your Life With Happiness In The Best Way)
पर तब तक उसने मुस्कुराते हुए मोबाइल गूगल ऐप से सामने रखे क्यू आर कोड को स्कैन करके पेमेंट कर दिया… फिर एक बार दीवार पर लगी हार चढ़ी तस्वीर पर भावभीनी दृष्टि डाल कर चला गया…
विनोद को ऐसा लगा मानो वह ग्राहक अतीत जी कर नहीं गया, अपितु उसे उसकी जड़ों से जोड़ गया हो.
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik