आसान नहीं होता, रिश्तों के समीकरणों को समझना. हमेशा अंदर एक उथल-पुथल मची रहती है और खुद को ही दोष देते हुए बस अपने अंदर कमियां ढूंढ़ते रहते हैं. खालीपन और निराशा को ही जीवन का एकमात्र पर्याय मान खुद पर ही जुल्म करते रहते हैं. पर जीना छोड़ देना तो जीते जी खुद को मारने जैसा होता है. अगर हम अपना ख़्याल नहीं रखेंगे, तो ज़िंदगी बोझ बन जाएगी और हमारे ही बच्चे जब हमारा बोझ उठाने को तैयार नहीं तो सोचिए क्या होगा तब हमारा वंदना जी. जीने के लिए खुद ही फूल चुनने होंगे. मैं तो इसीलिए मस्त रहता हूं और खुश रहता हू्ं.
"आपके पापा भाग गए.” फोन पर जैसे ही पराग ने यह सुना, छनाक से उसके हाथ में पकड़ा पानी का गिलास नीचे जा गिरा.
“क्या मतलब? आप कहना क्या चाहते हैं, पापा कहां भाग गए? और यह कोई उम्र थोड़े ही उनकी भागने की.” एक ही सांस में वह सारे सवाल पूछ गया. वह बिल्कुल हतप्रभ था. हैरानी के सारे बुलबुले फट-फट कर उसके सामने फूटने लगे. उसे लगा कोई मज़ाक कर रहा है उसके साथ. हद होती है मज़ाक करने की भी.
“आपके पापा का नाम ही श्रीकांत पांडे है न? आप पराग पांडे बोल रहे हैं?”
फोन पर जो व्यक्ति था, उसे पराग की प्रतिक्रिया सुन लगा कि कहीं रॉन्ग नंबर तो नहीं मिल गया है.
“हां-हां, मैं पराग ही बोल रहा हूं, पर आप कौन हैं और किस तरह की बात कर रहे हैं? पापा को क्या हुआ है? वह ठीक तो हैं ना?” पराग को अब चिंता होने लगी थी.
“मैं देहरादून से विश्राम ओल्ड एज होम का मैनेजर मनोज वर्मा बोल रहा हू्ं. आज सुबह आपके पापा भाग गए ओल्ड एज होम से.”
“भागने से आपका आशय क्या है? वह कहां भागेंगे? अब हो सकता है यहां घर आ रहे हों. थोड़े मनमौजी प्रकृति के हैं, इसलिए आपको बिना बताए दिल्ली आने के लिए निकल गए होंगे. उनके यहां आते ही मैं आपको सूचित कर दूंगा.” पराग अब थोड़ा सहज हो गया था, बल्कि उसे हंसी आ रही थी. पापा की हरकतें थीं ही ऐसी. अपनी मर्जी से वह मां के मरने के बाद ओल्ड एज होम में रहने चले गए थे. अभी भी अच्छे खासे फिट थे और अपनी ज़िंदादिली की वजह से सबके मन में जगह बना लेते थे. पेंशन भी मिलती थी, इसलिए उन्हें पैसों की भी कोई तंगी नहीं थी. पराग तो चाहता ही नहीं था कि वह ओल्ड एज होम में जाकर रहें, पर वह किसी की सुनते ही कहां थे. वह और उसकी पत्नी रमा को उनके जाने से बहुत दिक्कत भी होने लगी थी. बच्चों को संभालने के लिए मेड थी, पर पापा घर पर होते, तो वे बेफिक्र रहते कि कोई तो घर पर है मेड पर नज़र रखने को. लेकिन अपनी शर्तों पर जीने वाले पापा ने तय किया कि वह कैसे जीना चाहते हैं. पराग बहुत जोर-ज़बरदस्ती नहीं कर सकता था, क्योंकि सारी प्रॉपर्टी उन्हीं के नाम थी और वैसे भी पापा जो ठान लेते थे, वह करके ही रहते.
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“नहीं-नहीं, वह अकेले नहीं भागे हैं, इसी ओल्ड एज होम में रहने वाली मिसेज़ वंदना जोशी को साथ लेकर भागे हैं. भागने का मतलब ही होता है किसी के साथ भागना, आप समझ रहे हैं ना मैं जो कहना चाहता हूं.” वर्मा के स्वर में हिचकिचाहट थी. 65 साल का बुजुर्ग एक साठ साल की स्त्री को लेकर भाग गया. बात तो अजीब थी ही, साथ ही शर्मिंदगी की भी थी.
“यह क्या बोल रहे हैं आप? कुछ तो सोच समझकर बोलें. पापा भला क्यों किसी स्त्री को अपने साथ भगाकर ले जाएंगे.” पराग की आवाज़ में कठोरता थी. फोन पर उसे इतने तेज़ स्वर में बात करते देख रमा भी उसके पास आकर खड़ी हो गई थी. उसे देख पराग ने फोन को स्पीकर पर डाल दिया.
“मिसेज़ जोशी भी सुबह से दिखाई नहीं दी रही हैं.”
“और आपने मान लिया कि पापा उन्हें अपने साथ भगाकर ले गए हैं. हद करते हैं वर्मा जी. हो सकता है मिसेज़ जोशी कहीं बाहर गई हों या जो भी हुआ हो उनके साथ, पर आप क्यों ऐसा जोड़-तोड़ कर रहे हैं.” पराग झल्ला उठा था.
“असल में काफी दिनों से उनके चर्चे यहां हो रहे थे. दोनों अक्सर साथ-साथ वक्त बिताया करते थे. यहां तक कहा जा रहा था कि उन्हें एक-दूसरे का साथ इतना अच्छा लगता है कि उनका बस चले, तो वे एक ही कमरे में रहने लगें. उन दोनों के बीच एक इंटीमेंसी हो गई थी शायद, इसीलिए वे भाग गए हों. वैसे भी श्रीकांत जी लीक से हटकर काम करते हैं. उनके जैसा जवान और मस्त बुजुर्ग कोई हमारे ओल्ड एज होम में इससे पहले आया ही नहीं था. सच तो यह है कि उन्होंने नए-नए तौर-तरीके लागू कर हमारे नियमों की धज्जियां ही उड़ा दी हैं. 80 साल के वृद्ध तक उनकी सोहबत में बिगड़ने लगे हैं. मिसेज़ जोशी डाइवोर्सी हैं और प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुई हैं. उनका बेटा विदेश में रहता है, इसलिए वह अकेलेपन से बचने के लिए यहां आकर रहने लगी थीं. अब मैं उनके बेटे को क्या जवाब दूंगा?” वर्मा थोड़ा घबराया हुआ प्रतीत हुआ. उसे अपनी संस्था का नाम खराब हो जाने की ज्यादा चिंता हो रही थी.
“उनके बेटे को तो बाद में जवाब देना, पहले मुझे बताएं कि अगर ऐसा कुछ पापा और मिसेज़ जोशी के बीच चल रहा था, तो आपने उसकी सूचना मुझे पहले क्यों नहीं दी? मैं पापा से कांटेक्ट करने की कोशिश करता हू्ं.”
फोन बंद होते ही रमा बोली, “तुम्हारे पापा जो ना करें वह कम है. अब यह क्या सूझी है उन्हें इस उम्र में. एक स्त्री को लेकर भाग गए. छीः छीः कितनी शर्म की बात है. लोग क्या कहेंगे. मैं अपने मायके वालों को क्या बताऊंगी. ही इज़ इम्पॉसिबल. बूढ़े हो गए हैं, पर जवानी का जोश बरक़रार है.”
“मुझे तो डर है कि पापा कहीं उस मिसेज़ जोशी से शादी न कर लें. प्रॉपर्टी में फिर उसका भी हिस्सा हो जाएगा. और क्या पता यह जानने के बाद कि पापा के पास बहुत संपत्ति है, उसी ने उन्हें फंसा लिया हो.”
“यह मत भूलो पराग कि वह खुद प्रिंसिपल रह चुकी हैं, इसलिए फाइनेंशियली वह भी स्ट्रॉन्ग होंगी. यहां बात पैसों की नहीं है, बात तुम्हारे पापा के फितूर की है. बेचारी मिसेज़ जोशी, वह नाहक सवालों के घेरे में आ जाएंगी. समाज तो औरत को ही दोष देता है. तुम पापा को फोन मिलाते रहो, कभी तो मिलेगा. न जाने भागे भी कहां हैं.” रमा के अंदर का कसैलापन उसके चेहरे पर भी आ गया था.
“देहरादून से टैक्सी लेकर निकले श्रीकांत पांडे और मिसेज़ जोशी रास्ते में नाश्ता करने के लिए एक ढाबे पर रुके.
“आगे कुछ सोचा है या ऐसे ही मुझे भगा लाए हैं.” मिसेज़ जोशी ने थोड़े शरारती अंदाज़ में कचौड़ी का टुकड़ा मुंह में डालते हुए पूछा.
“ज्यादा प्लानिंग नहीं करनी चाहिए, ज़िंदगी में जब भी जैसे पल आएं, उन्हें जीना चाहिए. कुछ सोचा तो खास नहीं है, पर यकीन मानिए आपको तकलीफ नहीं होने दूंगा. आपका साथ मैं नहीं खो सकता. पत्नी के गुजर के जाने के बाद आप ही हैं, जिनके साथ मैं अपनी हर बात शेयर करते हुए सहज महसूस करता हू्ं. आई थिंक आई नॉट ओनली लाइक यू, बट लव यू ओल्सो. हंसिएगा नहीं, प्यार की कोई उम्र नहीं होती. वैसे भी किसी के साथ किसी भी उम्र में अच्छा लग सकता है, मेरी इस बात से तो आप भी सहमत होंगी.” कॉफी का सिप लेते हुए श्रीकांत ने मिसेज़ जोशी की आंखों में झांकते हुए कहा.
वंदना जोशी के गाल आरक्त हो गए. एक सिहरन-सी शरीर में फैल गई. श्रीकांत का चेहरा और शरीर अभी भी कसा हुआ था. एकदम टिप-टॉप रहने वाले श्रीकांत इस समय लाल टी-शर्ट और जींस में बहुत ही स्मार्ट लग रहे थे. उनके गोरे हाथों पर नजर गई तो उनके अच्छे से तराशे हुए नाखूनों को देख वंदना को रश्क हो आया. उनसे मुलाकात और अपनेपन की लहर चलने के बाद से उन्होंने फिर से अपने पर ध्यान देना शुरू किया था, वरना बहुत लापरवाह हो गई थीं वह अपने प्रति. नाखूनों पर से नेलपॉलिश उखड़ती रहती थी और चेहरे पर भी थोड़ा रूखापन आ गया था. बालों पर
कितने-कितने दिन कलर नहीं करती थीं. बिना प्रेस किए ही कपड़े पहन लेती थीं. साड़ी पहनना तो जैसे छोड़ ही दिया था, वरना उनके साड़ियों के कलेक्शन की कॉलेज में हमेशा चर्चा होती थी. श्रीकांत से परिचय होने के बाद उनके ही नहीं, ओल्ड एज होम के कितने ही स्त्री-पुरुषों के जीवन में बदलाव आ गया था. उन दोनों के बीच एक सेतू इसलिए बना, क्योंकि दोनों ही पढ़ने का शौक रखते थे और फिल्मों से लेकर राजनीति और सामाजिक विसंगतियों से जुड़ी बातों पर वाद-विवाद ही नहीं, विश्लेषण करने में सक्षम थे. जब वे बात करते, तो बाकी लोग उन्हें मंत्रमुग्ध से सुनते रहते थे.
बागवानी का शौक भी उनके बीच का कॉमन फैक्टर था और कभी-कभी दोनों बैडमिंटन भी खेला करते थे. उन्होंने अपने कुर्ते की सिलवटें बेवजह ठीक कीं. वह सांवली ज़रूर थीं, पर उनके नैन-नक्श की तारीफ सभी किया करते थे. शादी के बहुत सालों तक जब तक उनके पति के दूसरी स्त्री से संबंध नहीं बने थे, उनकी सुंदरता पर शेर सुना दिया करते थे. तलाक के बाद वह बिखर गई थीं. हर तरह से सक्षम होने के बावजूद उन्हें यह बात खलती रहती थी कि आख़िर उनमें क्या कमी थी, जो पति ने दूसरी स्त्री के लिए उन्हें छोड़ दिया. बेटे ने उन्हें अपने साथ विदेश ले जाने से मना कर दिया था, क्योंकि उसकी फिरंगी बीवी इंडियन सास को बर्दाश्त करने को तैयार न थी, इसीलिए अपनी कोठी के एक पोर्शन को किराए पर देकर वह ओल्ड एज होम में रहने यह सोचकर आई थीं कि शायद कुछ चेंज हो जाए और अपने हमउम्र लोगों के बीच वक्त काटने से वह अपने दुख से बाहर निकल आएं. हालांकि उनका तलाक हुए सात साल हो गए थे, फिर भी वह अपनी यादों को तकिए पर रख जब भी लेटतीं, आंसू निकल ही जाते थे.
“आसान नहीं होता, रिश्तों के समीकरणों को समझना. हमेशा अंदर एक उथल-पुथल मची रहती है और खुद को ही दोष देते हुए बस अपने अंदर कमियां ढूंढ़ते रहते हैं. खालीपन और निराशा को ही जीवन का एकमात्र पर्याय मान खुद पर ही जुल्म करते रहते हैं. पर जीना छोड़ देना तो जीते जी खुद को मारने जैसा होता है. अगर हम अपना ख़्याल नहीं रखेंगे, तो ज़िंदगी बोझ बन जाएगी और हमारे ही बच्चे जब हमारा बोझ उठाने को तैयार नहीं तो सोचिए क्या होगा तब हमारा वंदना जी. जीने के लिए खुद ही फूल चुनने होंगे, वरना कांटे तो हर पगडंडी पर बिखरे मिलेंगे. मैं तो इसीलिए मस्त रहता हूं और खुश रहता हू्ं.”
श्रीकांत की बातों से जैसे वंदना अपनी पीड़ा के दलदल से बाहर निकल आई थीं. ठीक ही तो है. डिप्रेशन में या अपने प्रति लापरवाह रहने से सिर्फ बीमारियां ही घेरेंगी. तभी से वह खिलखिलाकर हंसने लगी थीं. और जब श्रीकांत ने कहा कि वह उनके साथ आगे की ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हैं तो वह उनके साथ निकल पड़ी थीं.
“चकराता में मेरी बहुत पुरानी फ्रेंड रहती हैं, उन्हीं के घर थोड़े दिन रहेंगे, फिर अपना बसेरा बना लेंगे. कुछ समय लगेगा सब कुछ व्यवस्थित होने में.” मिसेज़ जोशी ने श्रीकांत का हाथ यह सुन हल्का-सा दबा दिया था, मानो आश्वस्त कर रही हों कि सब ठीक है.
“आपका बेटा न जाने कैसे रिएक्ट करे.”
“वह तो बस इसी बात से परेशान होगा कि कहीं आप मेरी प्रॉपर्टी न हड़प लें.” श्रीकांत जोर से हंसे.
“फिर तो उसे कह दो कि मेरी प्रॉपर्टी में भी अब उसे हिस्सा मिल जाएगा. करोड़ों की है मेरी कोठी. वह निश्चिंत रहे.” मिसेज़ जोशी ठहाका मार कर हंसीं, तो टैक्सी वाला हैरानी से पीछे मुड़कर देखने लगा.
“लोग क्या कहेंगे श्रीकांत.” वंदना की आंखों में शरारत थी.
“यही कि बुड्ढे पर आशिकी चढ़ी है और बुढ़िया का दिमाग खराब हो गया है.”
“खबरदार मुझे जो बूढ़ी कहा और माशाअल्लाह आप तो अभी बहुत जवान हैं.”
सारे रास्ते हैरान-परेशान टैक्सी वाले ने जब चकराता नामक जगह पर एक घर के आगे टैक्सी रोकी, तो वह अपने को रोक नहीं पाया. “तो साहब जी आप दोनों शादी करेंगे अब?”
“हम दोनों साथ रहेंगे, बस अभी तो यही सोचा है. बंधन और रिश्तों को मोहर लगाने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है एक-दूसरे का संग-साथ. प्यार और सम्मान देते हुए ज़िंदगी गुज़ारना क्या काफी नहीं है? क्यों ठीक है ना वंदना?”
वंदना कुछ कहतीं, उससे पहले ही श्रीकांत की दोस्त शालिनी ने उनका स्वागत करते हुए कहा,“वेलकम माई ओल्ड बडी.”
उनके पीछे खड़े व्यक्ति को देख वंदना भौंचक्की रह गईं.
“मीट माई हस्बैंड…”शालिनी ने जैसे ही कहा, वंदना को लगा कि जैसे उनका पूरा सर्वांग जड़ हो गया है.
श्रीकांत ने वंदना के चेहरे पर छाई वेदना और पसीने की बूंदों को देख कसकर उनका हाथ थाम लिया. वह समझ गए थे कि वह व्यक्ति वंदना का पूर्व पति है.
“मीट माई फ्रेंड, कंपैनियन एंड वुड बी वाइफ…” श्रीकांत मुस्कराए. उन्हें देख वंदना को लगा कि चारों तरफ केवल फूलों की चादर बिछी हुई है. अपने भीतर उग आई उदासी को उन्होंने झटका.
“एंड आई फील दैट आई आई एम ऑन टॉप ऑफ द वर्ल्ड वेन यू आर विद मी.”
“हमेशा तुम्हारे साथ वंदना. अंदर आएं शालिनी कि यहीं खड़े रखोगी.” श्रीकांत ने शालिनी के कंधों को थपथपाया.
शालिनी के पति को अनदेखा कर वंदना श्रीकांत के साथ घर में प्रवेश कर गईं.
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