अब रात के साढ़े-आठ बज चुके थे आसमान पर बादलों की ओट से चांद झांकने लग गया था. अर्घ्य देकर नेहा, नवीन के हाथों से अपना व्रत तोड़ अपने मोबाइल से नवीन के साथ तरह-तरह की तस्वीरें ले रही थी. मुझे पता था यह सारी तस्वीरें वे दोनों अपनी-अपनी सोशल साइट्स पर पोस्ट कर, अपने प्रेम का ठिंठोरा सारी दुनिया में पिटेगें.
आज करवाचौथ का दिन था. हर चौथ की तरह आज भी सबकी छतों पर ख़ूब रौनक़ थी. ऐसे समय में मुझे नवीन के पापा की बहुत याद आ रही थी. उन्हें गुज़रे चार साल हो गए थे. ऐसे मौक़ों पर मेरा मन उनकी याद में न चाहकर भी उदास हो ही जाता. उनकी कही बातें मेरे कानों में अनायस ही गूंजने लगतीं, 'सरला! तुम्हारे करवा चौथ के व्रत करने से मेरी उम्र बढ़े या न बढ़े मगर हमारे बीच का प्रेम हमेशा बढ़ता रहेगा.' वाकई में मेरे और नवीन के पापा के बीच अथाह प्रेम था. मैं अनमनी सी उन्हें याद कर ही रही थी कि बेटे नवीन ने मुझसे पूछा, "मां! हवन सामाग्री कहां रखी है?"
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"मंदिर के नीचे दाईं तरफ़ देखो मिल जाएगी." मैंने दौड़-दौड़कर मेरी बहू नेहा के साथ चौथ पूजा की तैयारियां कर रहे नवीन को बताया. नया दमकता कुर्ता-पज़ामा पहनकर वह पूरी तरह चौथ की पूजा के लिए तैयार था. बहू नेहा भी सुर्ख लाल साड़ी के साथ सोलह श्रृंगार किए किसी देवी सी लग रही थी. आज सुबह से शाम तक मैं चौथ की प्रति उन दोनों का उत्साह देख रही थी.
अब रात के साढ़े-आठ बज चुके थे आसमान पर बादलों की ओट से चांद झांकने लग गया था. अर्घ्य देकर नेहा, नवीन के हाथों से अपना व्रत तोड़ अपने मोबाइल से नवीन के साथ तरह-तरह की तस्वीरें ले रही थी. मुझे पता था यह सारी तस्वीरें वे दोनों अपनी-अपनी सोशल साइट्स पर पोस्ट कर, अपने प्रेम का ठिंठोरा सारी दुनिया में पिटेगें. वैसे भी आजकल लोगों ने प्रेम को प्रदर्शन का ही विषय बना लिया है. उसी परिपाटी पर नेहा और नवीन भी थे.
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कुछ देर बाद वे दोनों मेरे पास मेरे चरण स्पर्श कर मेरा आशीष लेने को आए, तो मैंने अपने दोनों पैर पीछे की तरफ़ खींच लिए. वे दोनों अचंभे से मुझे देखते हुए बोले, "मां! हमसे कोई ग़लती हो गई क्या? आप हमसे नाराज़ हैं क्या?" उनके सवाल का जबाव देने को मैंने अपना मौन तोड़ते हुए कहा, "मैं! नाराज़ नहीं हूं, लेकिन तुम दोनों को मैं तब ही अपने पैर स्पर्श कराकर आशीष दूगी, जब तुम दोनों मेरे सामने एक साथ एक संकल्प लोगे."
"कैसा संकल्प मां!" नवीन ने पूछा, तो मैं आगे बोली, "मैं अक्सर देखती हूं कि तुम दोनों के बीच आजकल ख़ूब तनातनी रहती है. तुम दोनों ही ऑफिस और घर के कामों को लेकर आपस में झगड़ते रहते हो. वैसे तो तुम पति-पत्नी के बीच मुझे नहीं बोलना चाहिए, पर जब तुम दोनों आज चौथ के दिन एक-दूसरे पर इतना प्रेम बरसा रहे हो, तो मुझे तुम दोनों की वह रोज़ लड़ने वाली सूरतें बरबस याद आ रही हैं."
वे दोनों एकदम चुप होकर शायद अपनी कल वाली लंबी बहस को याद करने लगे.
तभी मैं आगे बोली, "असल में आज का व्रत केवल सजाने-संवारने और फोटो खींचकर सोशल साइट्स पर अपलोड करने के लिए ही नहीं है. आज का व्रत संकल्प का व्रत है. आज पति-पत्नी को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे आज की तरह ही रोज़ प्रेम से रहेगें."
कुछ देर शांत रहने के बाद नेहा बोली, "माँ! आप सच कह रही हैं. आजकल लोगों ने दांपत्य जीवन को तनावपूर्ण ही बना लिया है. हम लोग दिखावे के चक्कर में प्रेम को अनुभव करना भूल ही जाते हैं. अब हम दोनों यह संकल्प लेते हैं कि हम आज की तरह ही रोज़ प्यार से रहेगें और प्यार का दिखावा न करके प्यार को वाकई में महसूस करेंगे."
मेरे बेटे ने भी अपनी पत्नी नेहा की बात का समर्थन किया.
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जब उन दोनों ने मेरी बात सुनकर अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए आपस में रोज़ प्रेम से रहने का संकल्प लिया, तो मैंने भी अपने पैर आगे बढाते हुए उन दोनों के सिर पर अपने आशीष भरे हाथों को रखते हुए दिल से कह दिया कि 'जोड़ी सलामत रहे.'
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