बनारस की तंग गलियों के बीच एक गली स़फेद रोशनी से नहाई हुई थी. एक पुराना कोठीनुमा मकान दुल्हन की तरह सजा हुआ था. हर कोई अपने में मस्त था. पंडितजी पूजा की तैयारी में मग्न थे, बच्चे खेल रहे थे, सजी-धजी महिलाएं आपस में एक-दूसरे को अपने गहने और साड़ी दिखाने में मशगूल थीं. तभी एक सुंदर-सी रौबदार महिला वहां पहुंची और चिंता जताते हुए बच्चों से बोली, “अरे! तुम लोगों ने शेखर को बुलाया कि नहीं... भागकर जाओ और जल्दी से शेखर को बुलाकर लाओ, मुहूर्त निकला जा रहा है.”
तभी एक सुन्दर युवक पीला कुर्ता-स़फेद पायजामा पहने हुए आंगन में पहुंचा. “मां, आपका शेखर हाज़िर है,” कहते हुए उसने मां के गले में बांहें डाल दीं. मां ने बड़े प्यार से शेखर को देखा और बोलीं, “कितना सुंदर लग रहा है मेरा बेटा, इसे काला टीका लगा दो, नहीं तो किसी की बुरी नज़र लग जाएगी.”
आज शेखर की शिखा के साथ शादी है. बड़ी धूम-धाम से दोनों का विवाह संपन्न हुआ. शिखा की सास तो शिखा जैसी सुंदर और सुशील बहू पाकर धन्य हो गईं और शेखर का हाल तो ऐसा था कि उसे शिखा को प्यार करने के लिए चौबीस घंटे कम पड़ रहे थे. उसे लगता कि शिखा बस सारा टाइम उसके पास ही बैठी रहे. शिखा को ये सब देखकर लगता जैसे सारा जहां उसके आंचल में सिमट आया है. शिखा और शेखर के दिन-रात प्यार की सरगोशियों में गुज़रने लगे. एक हफ्ता कैसे बीता पता ही नहीं चला.
कुछ ही दिन बाद शिखा के भाई और पिताजी शिखा को लेने आए तो शेखर का मन शिखा को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था. शेखर बेचैन होकर शिखा से बोला, “यार, मैं तो तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. तुम कुछ ऐसा जुगाड़ करो कि हम एक साथ तुम्हारे मायके जाएं और तुम मेरे साथ ही लौट आओ.” शिखा का हाल भी शेखर जैसा ही था, वो भी शेखर से दूर नहीं रहना चाहती थी.
अगले दिन शिखा ने हिचकिचाते हुए मां से कहा, “मां, वो दरअसल... मुझे कुछ ज़रूरी काम है... इसलिए मैं सोच रही थी कि मैं शेखर के साथ मायके जाऊं और दो-तीन दिन वहां रहकर उनके साथ ही वापस आ जाऊं.” मां बहू के मन की बात समझ रही थीं इसलिए मुस्कुराते हुए बोलीं, “अच्छा ठीक है, मैं तुम्हारे पिताजी से बात कर लेती हूं.”
फिर मां ने शिखा के पिताजी से कहा, “दरअसल, कल हमारे यहां पूजा है इसलिए पूजा के बाद शिखा को लेकर शेखर इलाहाबाद पहुंच जाएगा. उधर दो-तीन दिन रहकर संगम स्नान भी कर लेंगे और वहां से साथ वापस भी आ जाएंगे.” शिखा के पिताजी ने हामी भरते हुए कहा, “ठीक है, शेखर भी आएंगे तो हम सबको अच्छा लगेगा.”
शिखा के पिताजी उसी दिन शाम की गाड़ी से वापस चले गए. दूसरे दिन शिखा और शेखर को निकलना था. शेखर अपनी नई कार से ससुराल जाना चाहता था, पर मां का मन नहीं था, फिर भी बेटे की ख़ुशी के लिए उन्होंने हां कर दी. शादी के बाद दोनों पहली बार इस तरह जा रहे थे. लाल रंग की साड़ी और ढेर सारे गहनों से सजी शिखा बहुत प्यारी लग रही थी. रास्ते में शेखर उसे बार-बार देख रहा था. दोनों अपनी मस्ती में दुनिया से बेखबर चले जा रहे थे. तभी सामने से एक अनियंत्रित ट्रक तेज़ी से आया, जब तक वो दोनों कुछ समझ पाते एक तेज़ आवाज़ के साथ सब कुछ शांत हो गया. आंख खुली तो दोनों ने ख़ुद को हॉस्पिटल में पाया. शिखा पट्टियों से बंधी लेटी हुई थी. पास में परिवार के सभी लोग थे. मां बोलीं, “ईश्वर की कृपा है कि इतने भयानक हादसे के बाद भी तुम दोनों बच गए.”
शिखा के पैर में फ्रैक्चर हो गया था इसलिए तीन महीने वो बिस्तर पर रही. इस दौरान शेखर और मां ने उसकी बहुत सेवा की. उसके बाद सब सामान्य हो गया.
शादी के तीन साल बाद भी जब शिखा की तरफ़ से कोई ख़ुशख़बरी नहीं मिली, तो मां कुछ अधीर-सी होने लगीं. मां के कहने पर दोनों डॉक्टर से मिले और उन्हें बहुत सारे मेडिकल टेस्ट कराने पड़े. सारी रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने कहा, “लगता है शिखा को कभी गहरी चोट लगी थी जिसकी वजह से वो अब मां नहीं बन सकती.” डॉक्टर की बात सुनते ही दोनों जैसे जड़ हो गए. डॉक्टर ने दोनों की मनःस्थिति को समझते हुए कहा, “परेशान क्यों होते हो? आज मेडिकल साइंस इतना आगे बढ़ गया है कि कोई भी स्त्री मां बनने का सुख ले सकती है. आपको ऐसी कई सरोगेट मदर मिल जाएगी, जो आपके बच्चे के लिए अपनी कोख किराये पर दे देगी.”
डॉक्टर की बात सुन एक उम्मीद लिए शेखर घर वापस आया और सबसे इस बारे में बात की. बाकी लोग तो राज़ी थे, लेकिन मां को इस बात से सख़्त ऐतराज़ था. मां ने ग़ुस्से में कहा, “साइंस ने तो आज मां और ममता दोनों को बेच दिया है. अरे, वह हमारे वंश का थोड़े ही कहलायेगा! उसमें किसका ख़ून होगा, किसके संस्कार आएंगे... मां ने एक सांस में कई प्रश्न पूछ डाले. साथ ही ये ऐलान कर दिया कि हमारे घर में यह सब ग़लत काम नहीं होगा. मां के ़फैसले ने उन दोनों की उम्मीद पर पानी फेर दिया. दोनों अब बहुत उदास रहने लगे थे. शेखर अब शराब पीने लगा था, ऑफिस से घर देर से आने लगा था. शिखा से शेखर की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी.
फिर एक दिन डॉक्टर का फोन आया. उन्होंने बताया कि वो एक ज़रूरतमंद औरत को जानते हैं, जो उन्हें अपनी कोख किराए पर दे सकती है. डॉक्टर के फोन से मानो दोनों को नई ज़िंदगी मिल गई. शेखर थोड़ा हिचकिचा रहे थे, लेकिन शिखा ने ़फैसला कर लिया था कि वो मातृत्व के इस सुख को हासिल करके रहेगी. काफ़ी विचार-विमर्श के बाद दोनों ने ये तय कर लिया कि वे अगले दिन सुबह डॉक्टर के क्लिनिक जाएंगे और उस औरत से मिलेंगे.
दूसरे दिन जब दोनों क्लिनिक पहुंचे तो डॉक्टर ने उनका परिचय सीमा से कराया. 29-30 साल की वह युवती भले घर की लग रही थी.
“शिखा, ये है सीमा, जो आपके बच्चे के लिए सरोगेट मदर बनने को तैयार है और...” डॉक्टर की बात बीच में ही काटते हुए शिखा बोली, “डॉक्टर, मैं इनसे अकेले में बात करना चाहती हूं.”
“ज़रूर... ज़रूर... आप दोनों बातें कीजिए, तब तक मैं शेखर से भी बात कर लेता हूं.”
सीमा के पास बैठते ही शिखा ने उससे एक साथ कई सवाल पूछ डाले, “सीमा, आपके घर में कौन-कौन लोग हैं, आपके बच्चे कितने हैं, आपको क्या आवश्यकता पड़ी जो आपने यह ़फैसला किया..?” सिर झुकाए बैठी सीमा ने बुदबुदाते हुए कहा, “मेरे घर में पति और एक दस वर्ष का प्यारा-सा बेटा है. मेरे पति एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, मगर कंपनी घाटे में जाने के कारण कर्मचारियों की छटनी कर दी गई, जिसमें हमारे उनका भी नाम आ गया. छोटी नौकरी और जिम्मेवारी ज़्यादा होने के कारण हमारे पास कुछ भी जमा पूंजी नहीं है. नया कारोबार तथा नया जीवन चलाने के लिए पैसा तो चाहिए ही. बेटे की पढ़ाई भी मुश्किल में आ गई है. मैं डॉक्टर साहब के घर के पास ही रहती हूं. इनसे हमारे दुख छिपे नहीं हैं. इन्होंने ही आपके बारे में बताया और मुझे व मेरे पति को बहुत समझाया. शुरू में तो वो इसके ख़िलाफ़ थे, पर डॉक्टर साहब ने बताया कि अपना बच्चा पैदा करना और सरोगेसी से पैदा करने में बहुत फर्क़ है. मुझे लैब में तैयार भ्रूण को अपने गर्भ में डालना होगा और उसे पालना होगा. इस दौरान कोई ग़ैर मर्द मुझे छुएगा भी नहीं. इसमें केवल मुझे शारीरिक तकलीफ़ होगी और बदले में 2 लाख रुपये मिलेंगे, जिससे हम नया काम शुरू कर सकेंगे. स़िर्फ 9-10 महीनों में हमारा जीवन दुबारा पटरी पर आ जाएगा.” शिखा चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी. लाचार दोनों ही थे, एक ग़रीबी के कारण और दूसरी मां न बन पाने के कारण. वो दोनों ही एक-दूसरे का सहारा बन सकती थीं. शिखा को सीमा पसंद आ गई. उसके बाद पेपर वर्क की सारी प्रक्रिया शुरू हो गई.
शिखा बहुत ख़ुश थी. रात में काफ़ी देर तक शिखा और शेखर बातें करते रहे, लेकिन मां बहुत नाराज़ थीं. आज तो उन्होंने खाना तक नहीं खाया था.
उधर सीमा भी अपने बेटे को नाना-नानी के पास छोड़कर आई. साथ ही उसने बेटे को कई हिदायतें भी दे डालीं कि यहां रहकर किसी को परेशान मत करना, मैं कुछ दिनों में वापस आ जाऊंगी. बेटे को तो समझा दिया, मगर ख़ुद पनीली आंखें लेकर बाहर आ गई.
तय समय पर सब हॉस्पिटल पहुंच गए. वहां पर सीमा की पूरी जांच हुई. उसके बाद शिखा-शेखर के भ्रूण को सीमा के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया गया. इसके बाद सब शहर छोड़कर हिल स्टेशन चले गए. इस दौरान शिखा इसी कोशिश में रहती कि सीमा ख़ुश और उनके परिवेश में रहे. शिखा ने उसके कमरे में शेखर के बचपन की खूब सारी फोटो टांग दी, लेकिन जब भी सीमा के पास उसके बेटे और पति का फोन आता तो वो उदास हो जाती. उसे ये नौ महीने काटना बहुत मुश्किल लग रहा था.
शुरू में उसके पति मिलने आते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भी आना कम कर दिया. सीमा वर्तमान से ज़्यादा भविष्य के रिश्तों पर चिंतित रहने लगी थी. इसी चिंता में उसने पति को फोन लगाया तो जवाब मिला, “अब मैं मिलने नहीं आऊंगा, तुम अपना किराये का मकान खाली करके ख़ुद ही आ जाना. अब तो मैं तुम्हारा हाथ भी नहीं पकड़ सकता, दम घुटता है वहां मेरा.” सीमा का पक्ष सुने बिना ही उसके पति ने फोन काट दिया. सीमा की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी, मगर जब गर्भ के अंदर से चार महीने के शिशु ने हरक़त शुरू कर दी तो सीमा के मन में मकान मालिक की बजाय मां के भाव जागने लगे. वो उसकी हरक़तों पर ध्यान देने लगी, उसे बच्चे पर प्यार आने लगा, अपने पेट पर दोनों हाथ रखकर वो घंटों उससे बातें करती रहती. एक दिन तो उसने फोन करके पति को भी बताया कि यह तो अपने बच्चे जैसा शैतान है. बहुत हाथ-पैर चलाता है. “पर यह उसका भाई या बहन नहीं है.” पति ने उसे हक़ीकत के धरातल पर ला पटका. पति की बात सुनकर सीमा उदास हो गई. सच ही तो कहा उसके पति ने, ये उसका नहीं, शिखा का बच्चा है.
इसी तरह आठ महीने पूरे हुए और नौवां महीना लगते ही डॉक्टर ने ऑपरेशन कर दिया. सीमा ने प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया. उसे गोद में लेकर शिखा बोली, “शेखर, ये रही हमारी अपनी बेटी, बिल्कुल तुम पर गई है. इन नौ महीनों में सीमा भूल गई थी कि ये उसका बच्चा नहीं है. उन दोनों को ऐसी बातें करते हुए देख सीमा को कतई अच्छा नहीं लग रहा था.
तभी डॉक्टर आकर बोले, चलिए, इन्हें आराम करने दीजिए. शिखा और शेखर बच्ची को लेकर बाहर चले गए. उन्हें जाते देख सीमा बोली, “मुझे दूध तो पिला लेने दो.” सीमा को अधीर होते देख डॉक्टर बोले, “सीमा, अब उस पर तुम्हारा अधिकार नहीं है.”
सीमा के दुख को उसके सिवाय और कोई नहीं समझ पा रहा था. हारकर उसने अपने मन को समझाया कि जो बच्चा उसका था ही नहीं उसके लिए उदास होकर क्या होगा, फिर भी आंसुओं की धार आंखों से बहती रही.
दूसरे दिन शेखर आया और जो रकम पहले से तय थी उससे ज़्यादा रकम देते हुए बोला, “सीमा, जो ख़ुशी तुमने दी है उसकी तुलना इन पैसों से नहीं की जा सकती, पर तुम्हारा परिवार इन पैसों से दुबारा नई ज़िंदगी शुरू कर सकेगा. तुम्हारे इस ़फैसले ने दो परिवारों को ख़ुशी दी है या कहूं कि पूर्णता दी है. मैं और शिखा मरते दम तक तुम्हारा एहसान नहीं भूलेंगे, पर एक विनती है कि अब तुम कभी हमारे परिवार के सामने मत आना. आज से हमारे रास्ते अलग-अलग हैं. आज हम बच्ची को लेकर वापस जा रहे हैं. तुम जब तक पूरी तरह ठीक न हो जाओ तब तक यहीं रहना. मैंने डॉक्टर का सारा ख़र्च दे दिया है.” सीमा से विदा लेकर दोनों अपने शहर बनारस पहुंच गए.
बेटी को लेकर जैसे ही दोनों घर पहुंचे मां का पारा सातवें आसमान पर था. शेखर ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, पर मां उनकी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थीं. मां अपने आप में ही बड़बड़ाए जा रही थीं, “एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा, बेटी वो भी किराये की, बेटा होता तो एक बार मैं दिल पर पत्थर रखकर बच्चे को अपना भी लेती, मगर ये तो लड़की है.” शिखा जो ख़ामोशी से यह सब सुन रही थी एक दम बरस पड़ी, “मां, इसे आप अपनी पोती मानें या ना मानें मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता, लेकिन ये मेरी और शेखर की ज़िंदगी है.” मां ने ग़ुस्से से शिखा को घूरा और वहां से चली गई.
घर के सभी सदस्यों ने बच्ची को पूरे मन से अपना लिया, लेकिन मां अपनी ज़िद्द पर अड़ी रहीं. शिखा और शेखर ने मां को समझाने की लाख कोशिश की, लेकिन उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया. गोद में उठाना, पुचकारना तो दूर, बच्ची के रोने पर भी वो कभी उसके पास तक नहीं फटकती थीं. घर का ऐसा माहौल देखकर थक-हारकर उन दोनों ने घर से दूर रहने का ़फैसला कर लिया. शेखर ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करा लिया और बच्ची को साथ लेकर वे घर से चले गए.
समय बीतता गया और देखते ही देखते उनकी बेटी शिवानी सात वर्ष की हो गई, मगर इन सात वर्षों में वो कभी बनारस नहीं गई. शेखर एक-दो बार बनारस गया, पर मां की बेरुखी देखकर उल्टे पांव लौट आया. इतनी दूरियों के बाद भी मां का दिल नहीं पसीजा. न मां ने कभी शिवानी का हाल पूछा और न ही शिखा का.
पर व़क्त को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. अचानक पता चला कि मां को कैंसर है. बनारस में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, इसलिए ज़िद्द करके शेखर मां को अपने पास ले आया. बीमारी ने मां को काफ़ी बदल दिया था. अब उनमें पहले जैसा रौब और ग़ुस्सा नहीं था.
मां को लेकर शेखर जैसे ही घर पहुंचा तो शिखा उनसे लिपटकर रोने लगी. शिखा को रोते देख मां की भी आंखें भर आईं. आंसुओं से जो पुराना विष दोनों के अन्दर था वह बह गया और एक बार फिर उनका पुराना रिश्ता जीवंत हो उठा. शेखर ने माहौल को हल्का बनाने के लिए हंसते हुए कहा, “आप लोगों का राम-भरत मिलाप ख़त्म हो गया हो, तो मुझ ग़रीब को एक कप चाय मिलेगी?”
“अभी लाती हूं.” कहकर शिखा चाय बनाने चली गई.
तभी पापा-पापा करती शिवानी कमरे में पहुंची. उसे देखकर सब लोग हंसते-हंसते लोट पोट हो गए. शिवानी के पूरे चेहरे पर पेंट लगा हुआ था, वो दांतों से ब्रश को पकड़े हुए थी और उसके दोनों हाथ भी रंग से सराबोर थे. शिवानी को देखकर आज मां को ग़ुस्सा नहीं, बल्कि प्यार आ रहा था. मां को शिवानी में शेखर का बचपन दिखाई दे रहा था. शिवानी को गोद में उठाते हुए मां बोलीं, “ये तो बिल्कुल शेखर जैसी है. शेखर को भी पेंटिंग का बहुत शौक़ था, वो भी बचपन में ऐसे ही पेंट से रंगा होता था.”
शिवानी को भी दादी का साथ बहुत भाता, वो हर पल दादी-दादी करती उनके आगे-पीछे दौड़ती रहती. इस दौरान अच्छे अस्पताल में मां का इलाज होता रहा और धीरे-धीरे उनकी सेहत सुधरने लगी. दवा का असर और शिवानी का प्यार मां को जल्दी ठीक करने लगे थे.
मां और शिवानी को एकसाथ देखकर दोनों बहुत ख़ुश होते. फिर वो दिन भी आ गया जब मां को वापस बनारस जाना था, वहां उनके बिना सब अस्त-व्यस्त हो गया था. मां को जहां एक तरफ़ वापस जाने की ख़ुशी थी, वहीं शिवानी से बिछड़ने का भी दुख था.
लौटते समय मां ने उन दोनों को बुलाकर कहा, “बेटा, मैं तुम दोनों से माफ़ी मांगना चाहती हूं और उस औरत का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं, जिसने हमारी शिवानी को जन्म दिया. मैं ग़लत थी. न तो किराये की कोख होती है और न ही किराये की बेटी. बेटी हो या बेटा, वो बस अपने माता-पिता की संतान होती है. जन्म लेने की प्रक्रिया चाहे कुछ भी हो, महत्वपूर्ण यह है कि तुम दोनों को संतान का सुख मिला. फिर हमारे ग्रंथों में भी तो अन्य साधनों से संतान सुख प्राप्त करने का वर्णन है. फिर आज के समय में सरोगेट से संतान पाना कैसे ग़लत हो सकता है. इससे दो परिवारों को ख़ुशी मिलती है. ये किराये की बेटी कैसे हो सकती है. यह तो शिवानी है- शेखर की बेटी, अपने शेखर की अपनी बेटी.
नीतू मुकुल