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कहानी- किसान के दोस्त (Short Story- Kisan Ke Dost)

नीम चुपचाप खड़ा था. किसान की बात सुन उसने अपनी शाखाओं को ज़ोर से हिलाया. ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहना चाह रहा हो, किन्तु किसान ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. नीम ने अपनी शाखाओं को दोबारा हिलाया.
इस बार छोटे बेटे ने नीम की ओर देखा फिर बोला, ‘‘पिताजी, सुना है नीम की लकड़ी में कभी कीड़े नहीं लगते.’’
‘‘हां बेटा.’’
‘‘तो आप नीम की लकड़ी से चौखट क्यूं नहीं बनवा लेते?’’ छोटे बेटे ने राय दी.

एक था किसान. उसके घर के पीछे काफ़ी ज़मीन थी. उस पर पीपल, नीम, आम और जामुन के चार पेड़ लगे थे. किसान के बच्चे आम के पेड़ से मीठे-मीठे आम खाते. उसकी डालों पर झूला झूलते. जामुन के पेड़ पर भी बड़े-बड़े जामुन लगते. बच्चे रोज़ जामुन भी खाते.
खेलते-कूदते बच्चे जब थक जाते, तो पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर लेट जाते. पीपल की ठंडी छांव में उन्हें नींद आ जाती.
उन चारों में पीपल का पेड़ सबसे पुराना था, इसलिए वह अपने आपको सबका मुखिया मानता था. उसेे आम और जामुन के पेड़ तो अच्छे लगते, लेकिन नीम का पेड़ उसे फूटी आंखों नहीं सुहाता था.
एक दिन हवा के झोंके से नीम की कुछ सूखी पत्तियां उड़ कर पीपल के पेड़ के नीचे आ गईं. यह देख उसने ग़ुस्से से नीम को डपटा, "तुझसे कितनी बार कहा कि अपनी गंदगी मेरी तरफ़ मत फेंका कर, लेकिन तुझ पर कोई असर ही नहीं पड़ता."
‘‘गंदगी! कैसी गंदगी?’’ नीम ने इधर-उधर देखते हुए पूछा. उसे पीपल के ग़ुस्से का कारण समझ में नहीं आया.
‘‘यह देख, तूने अपनी पीली-पीली सूखी पत्तियां मेरी तरफ़ फेंक दी है." पीपल ने मुंह बनाया.
‘‘दादा, इतना ग़ुस्सा क्यों हो रहे हैं? सूखी पत्तियां तो सभी की टूट कर इधर-उधर जाती रहती हैं. आपकी भी." नीम ने शांत स्वर में समझाया.
‘‘तू मुझसे अपनी बराबरी करता है? कहां मैं चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाला दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वृक्ष और कहां तू कडवा और कसैला." पीपल हत्थे से उखड़ गया.
नीम को बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह बात आगे नहीं बढ़ाना चाहता था, इसलिए शांत स्वर में बोला, ‘‘दादा, सारे वृक्ष एक जैसे होते हैं. हममें अच्छे-बुरे, छोटे-बड़े का भेद नहीं होना चाहिए."

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यह सुन आम का पेड़ भड़क उठा, ‘‘ऐ कड़वे नीम, सारे वृक्ष एक जैसे नहीं होते. कहां मेरे फल अमृत जैसे मीठे-मीठे और तेरे कड़वे ज़हर जैसे? कोई ग़लती से भी खा ले, तो थू-थू करता घूमे."
आम की बात सुन नीम को बहुत दुख हुआ. उसने आशा भरी दृष्टि से जामुन की ओर देखा. उसके फलों में हल्का सा खट्टापन होता है, इसलिए उसे विश्वास था कि वह उसका साथ ज़रूर देगा.
‘‘ऐ, मेरी तरफ़ मत घूर. मेरे फल भी बहुत ज़ाएकेदार होते हैं. तभी सब लोग उसे स्वाद ले लेकर खाते हैं और तेरे कड़वे फलों को तो जानवर भी नहीं पूछते, इसलिए तेरी-मेरी कोई बराबरी नहीं हो सकती." जामुन ने भी उसे डपट दिया.
नीम की आंखें डबडबा आईं. कुछ सोच कर उसने कहा, ‘‘आप सब लोग मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं, लेकिन मेरी भी कुछ उपयोगिता है."
‘‘तेरी कैसी उपयोगिता? बता मैं भी तो सुनूं." पीपल ने हंसते हुए ताना मारा.
‘‘जब भी किसी चीज़ में कीड़ें लग जाते हैं, तब उसमें मेरा ही तेल डाला जाता है." नीम ने बताया.
‘‘कोई ऐसा काम ही क्यूं करे, जो उसमें कीड़ें पड़ें. हम लोगों की तरह साफ़-सुथरा रहो, तो कभी कीड़ें पड़ेंगे ही नहीं." पीपल ने नीम की उपयोगिता को हवा में उड़ा दिया.
‘‘नहीं दादा, इसकी बात में दम है. ज़रा ध्यान से सोचिए." आम की मुद्रा अचानक ही गंभीर हो गई.
यह देख नीम को बहुत राहत मिली. उसे लगा कि आम उसका महत्व समझ गया है. तभी पीपल ने आम के ऊपर आंखें तरेरी, ‘‘मैं ध्यान से क्यों सोचूं? इसकी बात में कोई दम नहीं है.’’
‘‘दादा, ऐसा मत कहिए. ये बेचारा हममें सबसे छोटा है. हमें इसकी बातों पर ध्यान देना चाहिए." आम ने समझाया.
आम का साथ पा नीम को बहुत राहत मिली. तभी जामुन ने आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘दादा, आम सही कह रहा है. ध्यान से सोचेगें तो आप भी समझ जाएंगे कि आम आदमी के लिए भले इसकी कोई उपयोगिता नहीं है, लेकिन यह कीड़ें-मकोड़ों वालों का साथी है."
‘‘तभी इसके फलों का नाम निमकौड़ी रखा गया है. नीम और कीड़ें को मिला कर निमकौड़ी." आम ने ठहाका लगाया, तो पीपल और जामुन के ठहाके उसके ठहाकों में शामिल हो गए.
नीम समझ गया कि इन सबसे बहस करने से कोई फ़ायदा नहीं. इसलिए वह चुप हो गया, लेकिन पीपल, आम और जामुन ने इसे उसकी कमज़ोरी समझा. वे जब भी मौका पाते नीम का मज़ाक उड़ाते रहते. इससे नीम बहुत दुखी रहने लगा था.
कुछ दिनों बाद किसान ने एक कमरा बनवाया. उसमें काफ़ी पैसा ख़र्च हो गया. उसके पास दरवाज़े और खिड़कियों की चौखट और पल्ले बनवाने के लिए पैसे नहीं बचे थे. एक दिन वह पीपल के नीचे उदास बैठा था.
किसान का बड़ा बेटा उसकी उदासी का कारण जानता था. उसने कहा, ‘‘पिताजी, अपने घर में इतने पेड़ लगे हैं. आप इनसे लकड़ी क्यों नहीं ले लेते?’’
‘‘इनसे लकड़ी नहीं ली जा सकती." किसान ने कहा.
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि पीपल से छाया और शुद्ध हवा तो बहुत मिलती है, लेकिन इसकी लकड़ी किसी काम की नहीं. आम की लकड़ी भी ईंधन जलाने के लिए तो अच्छी होती है, लेकिन उसकी लकड़ी के पटरे मज़बूत नहीं होते. थोड़े ही दिनों में उनमें कीड़े भी लग जाते हैं." किसान ने बताया.
‘‘अपने पास जामुन का भी तो पेड़ है. इसकी पतली-पतली शाखाओं को पकड़ कर हम लोग झूलते रहते हैं, लेकिन वे कभी नहीं टूटतीं. मुझे लगता है कि इसकी लकड़ी बहुत मज़बूत होगी. आप इसके दरवाज़े और चौखट बनवा लीजिए." छोटे बेटे ने राय दी.
‘‘बेटे, जामुन की लकड़ी में बहुत लचक होती है, इसीलिए झूला झूलने पर इसकी पतली शाखाएं भी नहीं टूटतीं. लेकिन उसका यही गुण बहुत बड़ा अवगुण भी हैं." किसान ने सांस भरते हुए कहा.
‘‘वह कैसे?’’ छोटे बेटे ने अपनी पलकें झपकाईं.
‘‘जामुन की लकड़ी इतनी मुलायम होती है कि उसके चौखट बन ही नहीं सकते. अगर बना भी दिए जाएं, तो वो दरवाज़ों के पल्लों का भार नहीं सह पाएंगे. अगर उसके पटरों से पल्ले बनवा लिए जाएं, तो वह भी कुछ दिनों में सूख कर टेढे-मेढ़े हो जाएंगे." किसान ने बताया फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अगर किसी तरह चौखट की लकड़ी का इंतजाम हो जाता, तो मैं पल्लों की लकड़ी ख़रीदने के लिए थोड़ा-बहुत इंतजाम कर सकता हूं."
नीम चुपचाप खड़ा था. किसान की बात सुन उसने अपनी शाखाओं को ज़ोर से हिलाया. ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहना चाह रहा हो, किन्तु किसान ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. नीम ने अपनी शाखाओं को दोबारा हिलाया.
इस बार छोटे बेटे ने नीम की ओर देखा फिर बोला, ‘‘पिताजी, सुना है नीम की लकड़ी में कभी कीड़े नहीं लगते."
‘‘हां बेटा."
‘‘तो आप नीम की लकड़ी से चौखट क्यूं नहीं बनवा लेते?’’ छोटे बेटे ने राय दी.
‘‘अरे हां, यह तो मैंने सोचा हीं नहीं था. गांव में कुछ लोगों ने नीम के चौखट बनवाए थे, वे बीसों साल से वैसे के ही वैसे हैं." किसान का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा.

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उसने उठ कर नीम की शाखाओं को गौर से देख फिर उसके तने को चूमते हुए बोला, ‘‘शाबाश, दोस्त तुमने मेरी समस्या हल कर दी. अब मेरा घर पूरा बन जाएगा."
किसान के दोनों बेटों ने भी नीम के तने को प्यार से थपथपाया, फिर वहां से जाने लगे. अचानक छोटा बेटा चौंक कर रूक गया और पीपल की जड़ की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘पिताजी, यह देखिए क्या है?’’
‘‘अरे, इसकी जड़ों में तो कीड़े लग गए. अब यह पीपल जल्दी ही सूख जाएगा." बड़े बेटे ने दुख भरे स्वर में कहा.
‘‘चिंता मत करो. हमारा यह बेहतरीन दोस्त पीपल को भी ठीक कर देगा." किसान ने एक बार फिर नीम के तने को थपथपाया, फिर बोला, ‘‘इसकी थोड़ी सी पत्तियां और फल लिए चलो. मैं आज ही उनका तेल बना कर पीपल की जड़ में डाल देता हूं. देखना वो जादू की तरह इसे ठीक कर देगा."
किसान और उसके बेटों ने नीम के पेड़ से थोड़ी पत्तियां और फल लिए फिर ख़ुशी-ख़ुशी घर के भीतर चले गए.
उनके जाने के बाद नीम ने पीपल की ओर देखा. वह आंखें झुकाए हुए खड़ा था. आम और जामुन भी नीम से आंखें चुरा रहे थे. किसी में भी उसकी ओर देखने का साहस न था.
यह देख नीम ने समझाया, ‘‘आप लोग इस तरह उदास मत होइए. हम सभी की कोई न कोई उपयोगिता है."
‘‘जिस किसान ने हम सबको पाल-पोस कर बड़ा किया हम उसके काम न आ सके. हमारी सारी उपयोगिता बेकार है." आम ने उदास स्वर में कहा.
‘‘तुम्हारा सबसे ज़्यादा मज़ाक तो मैं उड़ाता था और अब मेरी जान तुम्हारी दया पर निर्भर है. तुम चाहो तो मुझे ठीक कर दो और चाहो तो सूख जाने दो." पीपल के चेहरे पर पाश्चाताप के चिह्न उभर आए. उसकी आंखें भर आई थीं.
यह सुन नीम ने तीनों के चेहरे की ओर ध्यान से देखा फिर स्नेह भरे स्वर में बोला, ‘‘आप लोग मन छोटा ना करें. हम सब किसान के सच्चे दोस्त हैं और हम सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता है. अगर आम अपनी लकड़ी न दे, तो किसान के घर खाना बनना मुश्किल हो जाए. अगर पीपल की ठंडी-ठंडी छांव न हो, तो यहां की ज़मीन तपती हुई भट्टी बन जाए और जामुन भाई आपका तो कहना ही क्या. आप तो गुणों की खान हैं. आपके फलों से किसान के परिवार के सभी लोगों का हाजमा ठीक रहता है. तभी वे पेट भर खाना खाते हैं फिर डट कर खेतों में मेहनत करते हैं."
यह सुन तीनों ख़ुश हो गए. पीपल ने कहा, ‘‘इसका मतलब तुम हमसे नाराज़ नहीं हो?’’
‘‘बिल्कुल नहीं." नीम ने सिर हिलाया फिर बोला, ‘‘मैं तो पहले ही कहता था कि हम सब भाई-भाई हैं. हममें छोटे-बड़े या अच्छे-बुरे का भेद नहीं होना चाहिए. हमें आपस में मिल कर रहना चाहिए."
उस दिन से सभी वृक्षों में दोस्ती हो गई, जो आज तक कायम है. तभी कोई वृक्ष किसी दूसरे वृक्ष को कभी कोई नुक़सान नहीं पहुंचाता.

Sanjiv Jaiswal Sanjay
संजीव जायसवाल ‘संजय’



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Photo Courtesy: Freepik


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