Close

कहानी- क्या पाया? (Short Story- Kya Paya?)

रेल फिर लंबी सीटी के साथ चल दी थी. इस बार सुदीप दीप्ति के चेहरे के अज्ञात दर्द को स्पष्ट पढ़ रहा था. रेल में दीप्ति सोच रही थी और यह फ़ैसला नहीं कर पा रही थी कि इस लंबे त्याग और सुदीप से बिछोह के बाद उसने और सुदीप ने क्या पाया?

"फिर कब आना होगा?"
"जैसे ही दो-तीन दिन की छुट्टियां आएंगी, मैं आ जाऊंगी."
"देखो, इसी तरह आते-जाते एक लंबा समय गुज़र गया." "सो तो है, परंतु अपने परिवार के लिए इतना त्याग तो हमें करना ही पड़ेगा."
"मैं सोचता हूं कि अब तुम नौकरी छोड़ दो, और यहीं रहो."
"कैसी बात करते हो सुदीप? हमें अभी तो पैसों की ज़्यादा ज़रूरत है, संदीप का मुंबई में इंजीनियरिंग में एडमीशन होने वाला है. अब इसकी पढ़ाई का खर्चा कम तो होगा नहीं. सच कहती हूं सुदीप, जैसे ही इसकी नौकरी लगेगी, मैं नौकरी छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे पास आ जाऊंगी."
सुदीप ने दीप्ति का हाथ अपने हाथ में ले लिया था. दीप्ति की आंखें गीली थीं. तभी एक लंबी सीटी के साथ रेल चल दी थी. सुदीप देर तक हाथ हिलाता रहा था, जब तक कि दीप्ति और रेल उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गए.
दीप्ति को स्टेशन छोड़कर घर आने के बाद सुदीप थोड़ा सुस्ताने के लिए पलंग पर लेट गया. पास ही एलबम पड़ा था. जिसे दीसि ने पुरानी यादों को ताजा करने के लिए निकलवाया था. लेकिन इतने थोड़े समय के लिए आने के कारण दीप्ति को पचास काम निकल आते हैं, इसलिए वह एलबम देख नहीं पाई थी. आख़िर सुदीप ही उसके पन्ने पलटने लगा.
शादी के पहले से ही दीप्ति दून में एक स्कूल में अध्यापिका थी और सुदीप हरीद्वार में एक कंपनी में ड्राफ्ट्समैन था, जिसके प्रोजेक्ट पर्वतीय इलाके में चल रहे थे.


यह भी पढ़ें: 40 बातें जो हैप्पी-हेल्दी रिलेशनशिप के लिए ज़रूरी हैं (40 Tips for maintaining a happy and healthy relationship)

एक बार सुदीप अपने प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए दून गया था. वह एक ऊंची पहाड़ी पर चढ़कर डिज़ाइन कर रहा था, तभी उसका पैर फिसल गया था और वह और उसकी डिज़ाइन दोनों लुढ़कते हुए नीचे आ गए थे. उसे देखकर दीप्ति पहले तो ख़ूब हंसी, लेकिन बाद में उसने आगे बढ़कर सुदीप को थाम भी लिया था, वरना वह और नीचे तक लुढ़कता. वहीं सुदीप और दीप्ति की आंखें चार हुई थीं. सुदीप ने इधर-उधर देखा और जल्दी-जल्दी अपने कपड़े झाड़ते हुए दीप्ति को 'थैंक्यू' बोला.
पहली मुलाक़ात में ही वह दीप्ति का दीवाना हो गया था. अब वह रोज़ ही शाम को दीप्ति के स्कूल के सामने देवदास सा खड़ा हो जाता. पहले पहल तो दीप्ति को वह चिपकू लगा, लेकिन थोड़े ही दिनों में दीप्ति को महसूस होने लगा कि सुदीप के बिना उसके जीवन में कहीं रिक्तता है, अधूरापन है.
एक दिन दीप्ति दून से स्कूल के काम से दिल्ली आ रही थी. गाड़ी बहुत लेट थी. वह परेशान सी कभी बस स्टैंड, तो कभी रेल्वे स्टेशन के चक्कर काट रही थी, तभी सुदीप ने जीप रोकते हुए कहा था, "सच में दीप्तिजी, आप जब परेशान होती हैं, तब बहुत अच्छी लगती हैं. अरे कभी इस सेवक को भी तो सेवा का मौका दिया करें. चलिए जल्दी से बैठिए, मुझे भी दिल्ली ही जाना है." दीप्ति का दिल एक बार तो जोर से धड़क उठा था कि अकेले और अनजाने आदमी के साथ जाना, क्या उचित होगा? लेकिन फिर दिल ने कहा, अरे! ये अकेला, अनजाना कहां है, जिसे मन-ही-मन अपना लिया हो, उसके साथ सफ़र करने में डर कैसा? और दीप्ति, सुदीप की बगल में बैठ गई थी. हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी और रह-रह कर दीप्ति के बालों की लटें सुदीप के चेहरे से टकरा जाती थीं. पूरा सफ़र ख़ामोशी में ही बीता.
दोनों के दिलों की धड़कनें, पहले मिलन का पैग़ाम कह रही थीं. ऐसा लग रहा था, दिल तो सब कह-सुन रहा था, पर शब्द जुबां पर नहीं आ रहे थे. दीप्ति अपने गंतव्य स्थान पर उतर गई थी और सुदीप अपने काम में लग गया था. एक हफ़्ते के काम के बाद सुदीप वापिस दून आया था, वहां दीप्ति उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दून का प्रोजेक्ट पूरा होने पर सुदीप को वापस हरिद्वार आना था, इसलिए उसने दीप्ति से मुलाक़ात कर अपने मन की बात उसके सामने रख ही दी.
एक माह के लंबे इंतज़ार के बाद दीप्ति की भी सहमति उसे प्राप्त हो गई थी. सुदीप और दीप्ति के बीच यह समझौता हुआ था कि जब दीप्ति की नौकरी उनके लिए परेशानी का कारण बनेगी, तब दीप्ति नौकरी छोड़ देगी, क्योंकि न तो दीप्ति हरिद्वार आ सकती थी और न ही सुदीप दून में रह सकता था. शादी के बाद दोनों ने १५ दिन की छुट्टी ली थी और मसूरी हनीमून के लिए गए थे. हंसते-गाते समय कैसे गुज़र गया, मालूम ही नहीं पड़ा. अब दीप्ति दून में रहती और सुदीप हरिद्वार में.
एक बार सुदीप ने जब दीप्ति से नौकरी छोड़ने का ज़िक्र किया, तब दीप्ति ने कहा, "देखिए, अभी हम दो ही हैं, लेकिन आगे हमारा परिवार बढ़ेगा, हमारी ज़िम्मेदारियां बढ़ेंगी और हमें पैसों की ज़रूरत पड़ेगी, आजकल वैसे ही नौकरियां मिलती नहीं हैं, इसलिए नौकरी छोड़ने की बजाय कभी मैं तो कभी तुम मिलने के लिए आते-जाते रहा करेंगे." सुदीप को दीप्ति की बातों में दम लगा था और उसने दीप्ति को नौकरी करते रहने की अनुमति दे दी थी. इस बीच दीप्ति गर्भवती हो गई, और उनके बीच संदीप आ गया था. हम दो हमारा एक बस- इसके बाद दीप्ति ने ऑपरेशन करवा लिया था.


यह भी पढ़ें: ना बनाएं कोविड सिंड्रोम रिश्ते, ना करें ये गलतियां, रखें इन बातों का ख़याल (Covid syndrome relationship: How much have relationships evolved in the pandemic, Mistakes to avoid in relationships)

बच्चा क्रेच में पलने-बढ़ने लगा था. दीप्ति को दून में स्कूल का क्वार्टर मिला था. इसी तरह आपसी सामंजस्य पर उनकी गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. सुदीप ने बढ़ती आर्थिक तंगी के कारण अब दीप्ति से नौकरी छोड़ने का आग्रह करना कम कर दिया था. समय अबाध गति से गुज़र रहा था और इस तरह २३ साल गुज़र गए थे.
"साब, आज ऑफिस कू नहीं जाने का क्या? सच में साब आपने और बाई साब ने अपने परिवार के लिए बहुत किया." कमलाबाई की आवाज़ से सुदीप की तन्द्रा टूट गई. वह जल्दी से तैयार होकर ऑफ़िस निकल गया. सुदीप के मन-मस्तिष्क में दीप्ति की एक ही बात घूम रही थी कि संदीप की नौकरी लगते ही वह भी नौकरी छोड़ देगी और हमेशा-हमेशा के लिए सुदीप के पास आकर रहेगी.
अपनी पढाई और नौकरी के दौरान ही संदीप ने अपनी पसंद की लड़की ढूंढ़ ली थी. उसकी शादी करके दीप्ति और सुदीप निश्चिंत से हो गए थे. दीप्ति चार दिन की छुट्टियों में हरिद्वार आई हुई थी. दोपहर का समय था, वह अपने कमरे से निकलकर बाहर आ रही थी, तभी संदीप के कमरे से आती आवाज़ ने उसके पैर बांध दिए थे. संदीप कह रहा था, "पल्लवी! मां ने हम लोगों के लिए बहुत किया है, मां और पापा ने इस घर को बनाने के लिए, हमें पढ़ाने के लिए जीवनभर समझौता किया. मां दून में रहीं और पापा यहां, अब मैं चाहता हूं कि मां यहीं रहे, हम सबके बीच और पापा के पास."
तभी उसे पल्लवी की आवाज़ सुनाई दी थी, "संदीप, तुम भी कैसी बातें करते हो? मां मिन्स सास, ओह नो. संदीप, मैं तो यह सोच भी नहीं सकती. वो यहां रहेंगी, तो ये मत करो, वो मत करो, ऐसे रहो, सुबह जल्दी उठो, नो संदीप मैं तो सोचकर ही परेशान हो जाती हूं. वो सीता की भी तो कैकई सास थी ना, कितना परेशान कर दिया था उसे? मां तो आती-जाती ही अच्छी है." और इसी के साथ उसे संदीप और पल्लवी के हंसने की आवाज़ सुनाई दी थी. उसमें आगे कुछ सुनने की शक्ति नहीं रह गई थी, इसलिए वह वापिस अपने कमरे में जाकर तकिए पर सिर रखकर काफ़ी देर तक रोती रही थी.
शाम को सब एक साथ नाश्ता करने बैठे थे, तभी सुदीप ने कहा, "दीप्ति, तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गई और अपने वादे के अनुसार अब तुम नौकरी छोड़कर यहीं रहो, हम सबके साथ."
दीप्ति शांत थी, उसने अपने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा, "सुदीप, तुम कहोगे कि मैं दून जाने के बहाने बनाती जा रही हूं, लेकिन यह सच है कि मुझे और तुम्हें नौकरी और पैसों की अब ज़्यादा ज़रूरत है. हमने अब तक की कमाई तो संदीप की पढ़ाई, शादी और मकान बनाने पर ख़र्च दी है. ना मेरे पास कुछ पैसा है, ना तुम्हारे पास. लेकिन हमें बुढ़ापा भी तो गुज़ारना है, जब हाथ-पैर थक जाएंगे, उस समय के लिए भी तो दो पैसे हमारे पास होने चाहिए ना."


यह भी पढ़ें: जानें 9 तरह की मॉम के बारे में, आप इनमें से किस टाइप की मॉम हैं?(Know About 9 Types Of Moms, Which Of These Are You?)

सुदीप, दीप्ति की पहेली को समझ नहीं पा रहा था, लेकिन संदीप और उसकी पत्नी पल्लवी ऐसा प्रदर्शित कर रहे थे, मानो वे ही मां के सबसे बड़े शुभचिंतक हैं.
शाम की ट्रेन से दीप्ति वापिस जा रही थी, सुदीप उसे छोड़ने आया था. इस बार दीप्ति ख़ुद ही बोली थी, “अब आपके और मेरे रिटायरमेंट के दो-तीन साल ही तो और बचे हैं. मैं सोचती हूं, जैसे २५ साल गुज़र गए, वैसे ये भी गुज़र जाएंगे. इसके बाद हम दून में ही किराए का मकान लेकर साथ रहेंगे. बच्चों को उनकी ज़िंदगी उनके अनुसार ही गुज़ारने दो."
रेल फिर लंबी सीटी के साथ चल दी थी. इस बार सुदीप दीप्ति के चेहरे के अज्ञात दर्द को स्पष्ट पढ़ रहा था. रेल में दीप्ति सोच रही थी और यह फ़ैसला नहीं कर पा रही थी कि इस लंबे त्याग और सुदीप से बिछोह के बाद उसने और सुदीप ने क्या पाया?

- संतोष श्रीवास्तव

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article