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कहानी- लेफ्टी (Short Story- Lefty)

दिन-प्रतिदिन सीमा का बायां हाथ सावित्री की आंखों की किरकिरी बनता जा रहा था. कुणाल व छवि अधिकतर सीमा का पक्ष लेते थे. उन दोनों के लिए ये बात दकियानूसी थी. सीमा के लिए ऐसा बर्ताव नया नही था. विवाह से पहले भी अक्सर उसको बाएं हाथ पर टोका जाता था.

उसके पापा ने कार का दरवाज़ा खोलकर उसे बिठा दिया. जैसे ही उन्होने दरवाज़ा बंद किया उसे घुटन महसूस होने लगी. वह आभूषणों से लदी थी. उसने झट से पीछे मुड़कर देखा. उसकी मां, चाची, बुआ, मौसी, मामी की गीली आंखें अब भी उसे निहार रही थी. उसका सब कुछ पीछे छूट रहा था. बचपन, अल्हड़ दिनों की शरारतें, मां की डांट, पापा की झिड़की, स्कूल की सखियां जैसे उसे रोकने का अथक प्रयास कर रहे थे.
सीमा छरछरी काया, गौर वर्ण, लंबी कद वाली युवती थी. आज उसका विवाह हो चुका था. बचपन से पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने की जैसे उसने ज़िद पकड़ रखी थी. उसके एमबीए करते ही अच्छे घर से रिश्ता आ गया था.
कार ने गति पकड़ ली. भावी ज़िंदगी उसके समीप व सामने थी. ससुराल में गीत गाती औरतों ने उसे उतारा. पूर्ण रीति-रिवाज़ों के साथ उसका ग्रहप्रवेश कराया गया. पूरे दिन उसे औरतों ने घेरे रखा. उस दिन उसे ऐसा लगा जैसे सूरज आसमान में डटकर बैठ गया हो.
सीमा का पति कुणाल निजी कार्यालय में जॉब करता था. ससुर श्रीकांतजी टेलीफोन डिपार्टमेंट में सरकारी कर्मचारी थे. सास सावित्री गृहिणी थी, वही ननद छवि कला संकाय में तृतीय वर्ष की छात्रा थी.
अगले दिन सीमा की पहली रसोई थी. सुबह-सुबह सास उसे रसोई से अवगत करा रही थी. उन्होने सीमा को आलू निकालकर देते हुए कहा, "आलू के परांठे व इसी की सब्ज़ी ठीक रहेगी. मीठे में खीर बनाने की हिदायत देकर उसका हाथ बंटाती रही. लगभग एक घंटे तक रसोई महकती रही. तभी कमरे से फुदकती छवि लंबी सांस भरते हुए वहां दाख़िल हुई.
“भाभीजी, ये नाचीज कनीज आपकी सेवा में हाज़िर है हमारे लायक कोई काम हो, तो बेझिझक हुक्म कीजिए.” वह गर्दन झुकाती हुई बोली.
“नहीं दीदी, मैं कर लूंगी.” सीमा ने कहा.
“पहले अपना मोबाइल पटक कर आ, फिर आना यहां.” सास ने छवि से तेज आवाज़ में कहा.
“लगता है महारानीजी का दिमाग़ यहां की आबोहवा में गरम है, पर जहां तक मोबाइल की बात है कयामत भी आ जाए, तो हमें मोबाइल से जुदा नही कर सकती, गुस्ताखी माफ़.” कहती हुई वह तेज कदमों से निकल गई.
फिर सब खाना खाने बैठे. श्रीकांतजी ने सीमा की तारीफ़ में कसीदे पढ़े. कुणाल ने खीर बढ़िया बना बताई. सास रटे रटाये जुमले गाती रही, अच्छा ही है, ठीक बना वगैरह. छवि की तरफ़ से तो खाना लाजवाब था.
अगली सुबह जब सीमा आरती करने लगी, तो सावित्री भी आ पहुंची. पीछे-पीछे कुणाल-छवि भी आ खड़े हुए. सीमा ने दीपक जलाकर आरती की थाल उठाई.
“सीधे हाथ से आरती करना.” सास ने टोका.
आश्चर्य से सीमा ने मुड़कर देखा.
“बाएं से शुभ नही रहता.” सास ने गहरी सांस लेते हुए कहा.
“व्हाट मॉम, शुभ-अशुभ कुछ नही होता. हाथ लेफ्ट हो या राइट, मन में श्रद्धा होनी चाहिए.” छवि मां को समझाते हुए बोली.
सीमा ने कल्पना भी नही की थी कि उसे बाएं हाथ से काम न करने का उलाहना ससुराल में मिलेगा.
“तुझे क्या पता चुप कर.” सावित्री ने उसे झिड़क दिया.
“मम्मी, सीमा पहली बार पूजा कर रही है उसे करने दो.” कुणाल बोला.
“ठीक है.” शायद बेटे के सामने मां बहू को ज़्यादा कुछ बोल नही पाई.
आरती के दौरान सावित्री सीमा के बाएं हाथ को निरंतर देखती रही. उन्हें सीमा का बाएं हाथ से काम करना नही भाया था.
श्रीकांतजी के आदेश पर नए जोड़े के भावी जीवन की ख़ुशहाली के लिए सभी गणेश मंदिर में गए थे. जब सीमा ने पंडितजी से प्रसाद के लिए अपना बायां हाथ आगे बढ़ाया, तो सावित्री तुरंत बोली, "सीधे हाथ में."
कुछ दिनों बाद श्रीकांतजी ने घर की सुख-शांति के लिए सुंदरकांड का पाठ रखवाया. दिनभर ब्राह्मणों ने आद्यात्मिक छटा बिखेरे रखी. सभी भजनों में रम गए. पाठ सम्पन्न होने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराया जाना था. रसोई से निकलकर सीमा उनकों भोजन परोसने लगी. तभी एक ब्राह्मण ने उसे टोका. “बाएं हाथ का प्रयोग मत कीजिए.”
सीमा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उसने ऐसा सुनने की आशा भी नही की थी. सास-ससुर व पति अन्य कार्यों को निपटाने में लगे थे. इतना सुनते ही उनका ध्यान उधर गया. सावित्री ने भागकर सीमा के हाथ से सब्ज़ी का चम्मच छीना और कहने लगी, “बहू, तुम रसोई से पूरियां ले आओ, मैं परोसती हूं.” फिर सभी ब्राह्मणों को भोजन कराया गया.
देर रात जब सावित्री व सीमा रसोई के बचे काम निपटा रही थी, तब सास गर्म लहजे में बोली, “तुमसे कितनी बार कहा है कि आध्यात्मिक कार्यों, मंदिरों व भोजन परोसते वक़्त आदि में दाएं हाथ का प्रयोग करो, मगर तुम्हारे कान में जूं तक नही रेंगती.”
“लेकिन मम्मीजी मुझसे नही हो पाता, मेरा मतलब इसी हाथ की आदत है.” धीमे स्वर में सीमा ने कहा.
“कैसे नही होता थोड़े दिन सीधे हाथ को काम में लोगी, तो आदत बन जाएगी.” कहकर सावित्री पैर पटकते चली गई.
दिन-प्रतिदिन सीमा का बायां हाथ सावित्री की आंखों की किरकिरी बनता जा रहा था. कुणाल व छवि अधिकतर सीमा का पक्ष लेते थे. उन दोनों के लिए ये बात दकियानूसी थी. सीमा के लिए ऐसा बर्ताव नया नही था. विवाह से पहले भी अक्सर उसको बाएं हाथ पर टोका जाता था. तंग आकर सीमा ने एक दोपहर सास से स्पष्ट शब्दों में अपनी पीड़ा व्यक्त कर दी,
"मम्मीजी मुझसे दाएं हाथ से काम नही होता, मैं भूल जाती हूं कि मुझे दाएं हाथ का प्रयोग करना है.”
सावित्री झट से एक कपड़े की पट्टी लेकर आई, “इसका भी इलाज है मेरे पास.” कहती हुई सावित्री उसके बायें हाथ की कोहनी से लेकर हथेली तक बांधने लगी. सीमा तो मानो गाय बन गई थी. फिर सावित्री ने निर्देश दिया, “सुन अब झाडू लगाने, चम्मच पकड़ने, पानी की बालटी उठाने, पोछा मारने व अन्य सभी कार्य सीधे हाथ से करना. और हां कुणाल, छवि व उनके पापा के आने से पहले पट्टी खोल लेना और रोज़ सुबह उनके जाते ही वापस बांध लेना.”
तब सावित्री ने लाल मिर्च व सोगरी उसके दायें हाथ मे पकड़ाई और कहने लगी, “ले मिर्ची कूट, रोज दाएंं हाथ को काम में लेगी, तो आदत बनेगी.”
दूसरे दिन से ही पति, ससुर व ननद के घर से निकलने के साथ ही सीमा अपने हाथ पर पट्टी बांध लेती थी. शाम को उनके आने से पहले उसे खोल लेती थी. अभी तीन-चार दिन भी निकले नही थे कि सीमा का दृढ़ निश्चय जवाब देने लगा. पोछा, झाडू, व चम्मच तो फिर भी वह दाएं हाथ से कर पा रही थी, मगर दिक्क़त बालटी उठाने में आई. दो कदम उठाकर फिर रखनी पड़ती. सावित्री सीमा को आंगन में बैठी देखती रहती. उस पर अपना नियंत्रण रखने पर नाज करती.
एक दिन सावित्री ने सीमा के आगे कच्चे आम से भरी परात रखकर उन्हें दाएं हाथ से काटने का आदेश दिया. सीमा चुपचाप काटने लगी.
उस दिन छवि कॉलेज से जल्दी लौट आई. यहां-वहां सीमा को ढूंढ़ते हुए वह छत पर चली आई, “अच्छा तो रानी साहिबा यहां है, कनीज ने पूरा महल छान मारा.” छवि ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा. इतना सुनते ही सीमा ने बाएं हाथ की पट्टी जल्दी से हटाकर छुपा दी.
“दीदी आज आप जल्दी आ गई.”
“हा भाभी एग्ज़ाम आने वाले है, तो प्रिप्ररेशन के लिए आज से छुट्टी दे दी, अरे वाह कैरी मलिका ने हमारा दिल ख़ुश कर दिया.”
तभी सावित्री आ गई, ”तू इंटरवेल में ही आ गई?”
“वॉट मॉम, कॉलेज में इंटरवेल नही होता, बताया तो था.” छवि बोली.
“हां, हां, ठीक है, जाकर दो कप चाय बना ला.” सावित्री ने हुक्म दिया.
“घर आते ही काम.” अनमने मन से छवि जाने लगी.
उधर कैरियां काटते हुए सीमा की उंगली पर चाकू जा लगा, "आह..!” वह चीखी.
“क्या हुआ भाभी? अरे खून! मैं फ़र्स्टएड बॉक्स लाती हूं.” फिर छवि ने घाव साफ़ करके बैंडेड लगा दी.
उस दिन छवि को चाय बनाने का ठेका दिया गया, जिसे उसने बख़ूबी निभाया.
रात में कुणाल ने सीमा का घाव देखकर पूछ लिया, “कहीं तुम मां के कहने पर दाएं हाथ से तो काम नही कर रही थी?”
“नही ये क्या बोल रहे है आप? मेरी लापरवाही की वजह से कट लग गया.” बड़ी कुशलता से सीमा झूठ बोल गई.


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“लेकिन मम्मी तुम्हें बार-बार दाएं हाथ से काम करने को टोकती रहती हैं, तो मुझे लगा कहीं…”
“आपको लगा कि उनकी वजह से ये हुआ.” सीमा बीच में ही कुणाल की बात काटते हुए बोली.
कुणाल ने हां में गर्दन हिलाई.
“पूरे दिन के बाद तो कुछ समय मिल पाता है हमें और आप है कि उसे यूं ही गवा दे रहे है.” बात बदलते सीमा बोली.
“अच्छा तो चलो कुछ देर छत पर चलते है.” कहते हुए कुणाल ने सीमा का हाथ पकड़ा और खींच ले गया छत पर. फिर डेढ़ घंटे तक दोनों अपनी ही बातों में खोए रहे.
तभी छवि उनके कमरे का दरवाज़ा खुला देख सीधे ऊपर आ पहुंची. वहां दोनों को बातों में डूबा देखा, तो ज़ोर से खंखार कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
“अच्छा तो दो हंसों का जोड़ा यहां विराजमान है.” उसने व्यंग्य किया.
दोनों उसे देखते ही भौचक्के रह गए.
“मगर हंसों के जोड़े को अब सभा स्थगित करनी पड़ेगी, कबाब में हड्डी जो आ चुकी है.” अब मज़ाक की बारी कुणाल की थी.
छवि के तेवर बदले, “मुझे हड्डी कहा भईया…” बोलते हुए कुणाल पर झपटी.
बचकर भागता हुआ कुणाल सीढ़ियां लांघकर कमरे में घुस गया. ऊपर ननद-भाभी की हंसी हवा में तैर रही थी.
अगले दिन छवि बालकनी में पढ़ाई कर रही थी. सीमा रसोई में व्यस्त थी. सावित्री खाना खा रही थी. अचानक रपटने की तेज आवाज़ से सीमा दौड़कर आई. छवि सीढ़ियों से गिरी पड़ी दर्द से कराह रही थी. सावित्री ने आकर देखा, तो ऐसा लगा मानो उनको सांप सूंघ गया था. सीमा ने छवि को उठाकर तुरंत बेड पर लिटाया.
“मम्मीजी मैं दीदी को अस्पताल ले जा रही हूं.” कहते हुए सीमा छवि की स्कूटी पर उसे अस्पताल ले गई.
एक घंटे बाद जब सीमा लौटी, तो छवि के दाएं हाथ में प्लास्टर बंधा था. वह मां से लिपट गई. “मॉम, आई एम फाइन.”
“क्या फाइन, मुंडी ऊपर करके मत चला कर.” सावित्री ने झूठा ग़ुस्सा किया.
श्रीकांतजी जब ऑफिस से लौटे, तो सावित्री ने उन्हे सारी बात बताई. वे छवि के पास बैठ गए.
“चोट को ठीक होने में तीन-चार हफ़्ते लगेंगे, अब एग्ज़ाम कैसे देगी?” उन्होने प्रश्न किया.
“मैं भी पूरे रास्ते बस इसी उलझन में था पापा.” कुणाल दफ़्तर से लौट आया था. कुर्सी लेकर वहीं बैठ गया.
“पांच दिन ही बचे है पापा.” छवि ने बताया.
“नेहा को बुला लेते है. उसके ट्वेल्थ के एग्ज़ाम भी हो चुके है. इसी बहाने कुछ दिन यहां रह लेगी. तू गीता मौसी से बात करके दोनों को परसों यहां बुला ले." श्रीकांतजी ने सुझाव दिया.
“अरे हां पापा, ये ठीक रहेगा.” बोलते हुए कुणाल ने फोन घुमा दिया.
परीक्षा वाले दिन नेहा और छवि घर से निकल ही रहे थे कि नेहा का चश्मा हाथ से गिर पड़ा, जिसने टूटकर ही दम लिया. नेहा बर्फ़ की तरह जम गई. छवि को ऐसा लगा जैसे वह ज़मीन में धंसती जा रही थी. सीमा ने स्थिति का जायज़ा लेकर तुरंत छवि की परीक्षा देने का निर्णय लिया. वह अपनी प्यारी ननद को किसी मुसीबत में फंसे रहना कैसे देख सकती थी. सीमा छवि की हस्त लेखक बनकर परीक्षा देने लगी.
लगभग सवा महीने छवि के इम्तिहान चले. उसने मां का सीमा के प्रति इन दिनों रवैया देख लिया था, पर वह चुप रही. मगर जब मां ने उस दिन सीमा को हाथ पर पट्टी बांधने को कहा, तो उसका सब्र टूट गया और वह मां पर बरस पड़ी.


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“बस मॉम, बहुत हो गया… क्यों भाभी को परेशान करती रहती हैं आप? क्या बाएं हाथ से काम करना कोई अपराध है..? जब से भईया का विवाह हुआ है, आप भाभी को काम करने पर टोकती ही आ रही हो… पहले बाएं हाथ से पूजा मत करो, प्रसाद सीधे हाथ में लो, बाएं हाथ से भोजन मत परोसो… इन सब बातों से कुछ नही होता मॉम."
“तू नही समझती ये शुभ-अपशगुन की बातें.” सावित्री ने बात को दबाना चाहा.
“अच्छा मैं नही समझती, तो मॉम एक बात बताओ… भाभी बचपन से पूजा करती आ रही है, तब उनसे भगवान तो कभी नाराज़ नही हुए… जब भाभी रुपए बाएं हाथ में पकड़ती हैं, तो वो पैसे में नही बदले.. भाभी सुबह पापा को बाएं हाथ से अख़बार पकड़ाती है, मगर सारी ख़बरें तो बुरी नही हुई… घर का खाना भाभी के हाथ का बना खाने से हममें से कोई भी बीमार नही हुआ… स्कूटी की कंपनी ने कभी बाईं ओर एक्सीलेटर नही बनाया, फिर भी भाभी ने वो चलाना सीखी… और सबसे बड़ी बात मेरे हाथ में फ्रैक्चर होने पर बाएं हाथ से कार्य करने वाली ने ही मेरी परीक्षा दी मॉम, नही तो मेरे तीन साल ख़राब ही हो चुके थे… तो फिर आख़िर क्यूं आप भाभी को दाएं हाथ से काम करने को कहती हो… इससे फ़र्क़ नही पड़ता मॉम. ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे हम दाएं हाथ से काम करते है.
मेरी तीनों फ्रेंड्स गायत्री, मीनाक्षी, रेणू भी तो लेफ्टी है मॉम, वो तो कभी बाएं हाथ पर पट्टी नही बांधती और न जाने कितने लोग लेफ्टी हैं. क्या वे भी दाएं हाथ से कार्य करने का अभ्यास करते है, बोलो मॉम.”
आज तक सावित्री अपनी बेटी को बच्ची समझकर उसकी बातों पर ध्यान नही देती थी, मगर आज उसके मुंह से इतनी समझदारी भरी बातें सुनकर उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो गया था.
सीमा निःशब्द सी सास के आंसू पोछने लगी. सावित्री का मन पंख के समान हल्का हो गया. उन्होंने सीमा के हाथ पर बंधी पट्टी को एक क्षण में खोलकर वही रखे डस्टबिन के हवाले कर दिया. ये देखकर छवि और सीमा के चेहरे पर मुस्कान तैर गई.

प्रीतम सिंह

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Photo Courtesy: Freepik

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