Close

कहानी- मन का गठबंधन (Short Story- Maan Ka Gathbandhan)

अविका माता-पिता के बहुत समझाने पर मान तो गई शादी के लिए, लेकिन उसका मन भीतर से एकदम बुझ गया. विवाह के लिए देखे गए सारे सपने चूर हो गए. न मेहंदी, संगीत, रिश्तेदार, शॉपिंग, ना कोई रस्म. कोर्ट में एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिए बस.

आज आख़िरी पेपर ख़त्म होने के बाद अविका अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज के बगीचे में पलाश के पेड़ की छांव में आकर हरी दूब पर बैठ गई.
“विश्‍वास नहीं हो रहा यार कि आज आख़िरकार आज़ाद हो ही गए. अब घर जाकर पढ़ाई करने का कोई टेंशन नहीं है.” सुरभि ने हरी दूब पर पांव पसारते हुए कहा.
“हां दो साल से किताबों से सिर उठाने की ़फुर्सत ही नहीं मिली थी. आज अजीब सा लग रहा है कि घर जाकर पढ़ना नहीं पड़ेगा.” अविका ने कहा.
“मैं तो अब छह महीने तक आराम करूंगी. सालों हो गए पढ़ाई करते हुए. छह महीने बाद सोचूंगी आगे क्या करना है.” लीना बोली.
“कौन आराम करने दे रहा है तुझे. तेरे राहुल जनाब तो सेहरा बांध कर तैयार खड़े हैं. किताबों की पढ़ाई छोड़ अब आगे प्रेम की पढ़ाई में लग जा. वह देख काली घोड़ी पर तेरा गोरा सैंया खड़ा है.” सुरभि ने लीना को छेड़ा.
लीना के गोरे गाल लाल हो गए. सचमुच कॉलेज के गेट के बाहर अपनी काली मोटरसाइकिल पर राहुल खड़ा था.
“अच्छा मैं चलती हू्ं.” कहती हुई लीना दोनों से विदा लेकर चली गई.


अविका देख रही थी प्रेम के एहसास से दीप्त उसका खिला-खिला चेहरा, रूमानी आभा से जगमगाती मुस्कान. कितना प्यारा एहसास होता है इश्क़ भी. अविका का दिल धड़क उठा. काश उसे भी कोई ऐसा साथी मिल जाए, जिसके साथ ये कुंवारे रूमानी पल वह जी पाए. शाम चार बजे तक वह और सुरभि बातें करते रहे, फिर घर जाने के लिए विदा लेकर उठ गई.
आज उनकी स्नातकोत्तर की आख़िरी परीक्षा थी वह भी माइक्रोबायोलॉजी में. दो साल से माइक्रोस्कोप, प्रैक्टिकल, नोट्स, प्रैक्टिकल फाइल, माइक्रो ऑर्गेनिज़्म के कल्चर में उलझे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. आज अविका का मन पंख-सा हल्का होकर जाने किस आसमान में उड़ रहा था. लीना का चेहरा आंखों में समाया हुआ था. अविका सोच रही थी क्या प्यार सच में इतना ख़ूबसूरत एहसास है? किसी का साथ क्या इतना रोमांचक होता है? राहुल के सामने आते ही लीना जैसे कोई और ही लीना हो जाती है. उसकी ख़ुशी उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती है. अविका को प्रेम की दीप्ति में दमकता उसका चेहरा बड़ा भला लगता. मन में अनजाने ही एक इच्छा करवट लेने लगती.
अभी वह और सुरभि एक लैब में बतौर माइक्रोबायोलॉजिस्ट काम करने ही लगे थे कि लीना की शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. वे तीनों रोज़ ही शॉपिंग पर जातीं. लीना अपनी शादी को ख़ूब एंजॉय कर रही थी. वह हर क्षण को जीना चाहती थी, कहती, “जीवन में शादी एक ही बार तो होती है, तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, अपने मन की हर इच्छा को पूरा करूंगी.”
अविका का मन स्वाभाविक रूप से वही सब सपने अपने ख़ुुद के लिए भी सजाने लगा था. ढेर सारी शॉपिंग, कपड़े, गहने, संगीत, मेहंदी, रिश्तेदार और विवाह की रस्में. कैसे एक-एक रस्म दो लोगों को जीवनभर के लिए एक सूत्र में बांधती जाती है. एक-एक कदम उम्रभर का सफ़र बन जाता है और फेरे के समय का गठबंधन... अविका की पलकों पर भी रिश्ते का ऐसा ही कोमल सा सपना आ बैठा था हौले से.
एक दिन अविका घर आई, तो देखा ड्रॉइंगरूम में मां के साथ एक अजनबी आंटी बैठी बहुत घुल-मिलकर बातें कर रही थी. अविका उन्हें नमस्ते कहकर अंदर जाने लगी, तो मां ने रोक लिया.
“बेटा इनसे मिलो. यह चित्रा मौसी हैं. मेरी बचपन की सहेली. तीन साल हुए इसी शहर में आ गई हैं, लेकिन मुझे पता ही नहीं था. आज अचानक मार्केट में मेडिकल स्टोर पर मुलाक़ात हो गई, तो मैं इन्हें घर ले आई.” मां ने बताया.
अविका ने चित्रा मौसी के पैर छूकर प्रणाम किया, तो उन्होंने बड़े स्नेह से उसे गले लगा लिया. थोड़ी देर उनसे औपचारिक बातें करके वह अपने कमरे में चली गई.
“बिटिया तो बहुत ही सुंदर व सौम्य है तुम्हारी, इसकी शादी के बारे में क्या सोचा है, कोई लड़का देखा है?” चित्रा ने अविका की मां अनुराधा से पूछा.
“अभी देखना शुरू करेंगे. कुछ ही समय पहले तो पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया हैे.” अनुराधा ने उत्तर दिया.
“अनु, तुम तो जानती हो मेरे पति को लास्ट स्टेज का कैंसर है. पता नहीं कितने दिन हैं उनके पास. निखिल हमारा इकलौता बेटा है. पति की एक ही इच्छा है बेटे की शादी देखना, लेकिन उनकी बीमारी के बारे में इतनी देर से पता चला कि अचानक से कोई अच्छा घर-परिवार मिल ही नहीं रहा. लेकिन तू हां कह दे, तो उनकी अंतिम इच्छा पूरी हो सकती है.” चित्रा ने कहा.
“लेकिन इतनी जल्दी अचानक से?” अनुराधा असमंजस में बोली.
“तू तो बचपन से मेरे घर-परिवार को जानती है. कल निखिल को देख लेना. नौकरी भी अच्छी है, कोई ज़िम्मेदारी नहीं है और घर में ईश्‍वर की दया से सब है. तेरी बेटी हर तरह से सुखी रहेगी. मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ले. उनकी इच्छा पूरी कर दे.” चित्रा ने प्रार्थना की.
अनुराधा से मना नहीं करते बना. एक तो चित्रा के संस्कार वह जानती थी, उस पर निखिल हर तरह से योग्य था. दिखने में सुदर्शन, अच्छी नौकरी, बड़े घर का इकलौता बेटा. बस एक ही कमी थी कि विवाह की कुछ भी तैयारियां नहीं कर पाएगी.
“हर कहीं कुछ न कुछ समझौता तो करना ही पड़ता है. जब लड़का और उसका परिवार इतना अच्छा है, परिचित है और सबसे बड़ी बात अविका इसी शहर में रहेगी, तो धूमधाम और तैयारियां जाने दो. बाद में किसी अवसर पर कर लेना धूमधाम.” अविका के पिता यही सोच कर ख़ुश थे कि बेटी पास ही रहेगी.
अविका माता-पिता के बहुत समझाने पर मान तो गई शादी के लिए, लेकिन उसका मन भीतर से एकदम बुझ गया. विवाह के लिए देखे गए सारे सपने चूर हो गए. न मेहंदी, संगीत, रिश्तेदार, शॉपिंग, ना कोई रस्म. कोर्ट में एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिए बस. बहुत ही क़रीबी आठ-दस लोगों का दोपहर का खाना निखिल के घर पर रखा था कोर्ट से आने के बाद, क्योंकि उसके पिता की हालत ऐसी नहीं थी कि वे लोग होटल में भी रिसेप्शन या कुछ ऐसी पार्टी दे सकें. बस निखिल के पिताजी के चेहरे पर अपार ख़ुशी और संतोष था. अविका और निखिल को देखकर उनकी आंखें भर आतीं. जाने कितनी बार उन्होंने अविका और उसके माता-पिता को धन्यवाद दिया. अविका के चेहरे पर से तो जैसे उनकी नज़रें ही नहीं हट रही थीं.
रात को अविका के माता-पिता अपने घर चले गए. एकदम अपरिचित जगह में अविका बहुत ही अजीब सा अकेलापन महसूस कर रही थी. चार दिनों में ही जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन आ गया कि वह कुछ समझ ही नहीं पाई.
रात में जब सासू मां ने उसे कमरे में जाकर सोने को कहा, तो उसके मन की स्थिति और बुरी हो गई. कितने रूमानी सपने देखे थे इस रात को लेकर और यह रात जीवन में किस तरह आई.  कितने ही गुदगुदाने वाले क़िस्से उसने अपनी सहेलियों से सुन रखे थे, लेकिन आज एक नितांत अपरिचित के साथ एक कमरे में सोचकर ही उसे बुरा लग रहा था. वह देर तक स्टडी टेबल की कुर्सी पर बैठी रही. जब निखिल कमरे में आया, तो उसने कुछ देर अविका के साथ औपचारिक बातें कीं और फिर उसे सो जाने को कह कर पिता का ध्यान रखने चला गया. अविका पलंग के कोने में सिमट कर सो गई.


आठ दिन बाद ही निखिल के पिता चल बसे. घर में सबको स्थिति तो ज्ञात ही थी, लेकिन तब भी दुख तो होता ही है. घर में सन्नाटा सा छा गया. निखिल और चित्रा अपना दुख भुलाकर अविका को सामान्य रखने और ख़ुश रखने का प्रयास करते रहते, लेकिन तब भी अविका इस विवाह को और निखिल को पति रूप में स्वीकार ही नहीं कर पा रही थी.
जितना बने घर के काम में हाथ बंटा देती और बाकी समय चुप बनी रहती. निखिल बहुत सुलझा हुआ युवक था. वह अविका के मन का द्वंद्व समझता था, इसलिए उसने कभी भी उस पर पति का अधिकार नहीं जताया. पति के जाने के डेढ़ महीने बाद चित्रा अक्सर उन दोनों को बाहर घूमने जाने को कहतीं. कभी वे दोनों चले भी जाते. अविका ने अब तक इस स्थिति को विवशता से ही सही स्वीकार कर लिया था. वह काफ़ी कुछ सहज हो गई थी. निखिल से भी वह एक अच्छे दोस्त की भांति हंस-बोल लेती, लेकिन टूटे सपनों का दंश अभी भी उसे चुभता रहता.
अविका ने लैब में जाना शुरू कर दिया. एक-डेढ़ महीने से वह एक नए वायरस पर काम कर रही थी. पिछले तीन-चार दिनों से उसे पीठ पर हल्की जलन हो रही थी. पहले उसने ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब जलन के साथ ही दर्द भी हो रहा था. आईने में देखने पर उसे पीठ पर लाल-लाल निशान दिखाई दिए. उससे पलंग पर लेटते भी नहीं बन रहा था दर्द के मारे. निखिल को पता चला, तो वह दूसरे दिन सुबह ही उसे डॉक्टर के यहां ले गया. डॉक्टर ने बताया कि उसे हर्पीज के साथ ही कोई और भी संक्रमण है. डॉक्टर ने ढेर सारी दवाइयां लिख दी थीं और बहुत सावधानी बरतने को कहा था, क्योंकि रोग संक्रामक था.
“आप मुझे मेरी मां के घर छोड़ आइए.” अविका ने क्लीनिक से बाहर आकर निखिल से कहा.
“लेकिन क्यों? अभी तुम्हें वहां नहीं जाना चाहिए. सुना ना तुमने कि डॉक्टर ने क्या कहा है कि यह संक्रामक है, तो तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए.” निखिल ने चौंक कर कहा.
“इसीलिए तो कह रही हूं कि वहां छोड़ दीजिए. जब ठीक हो जाऊंगी तब वापस आ जाऊंगी. कहीं आपको या मांजी को ना...” अविका आगे कुछ कहती, इसके पहले ही निखिल ने उसकी बात काटते हुए कहा, “कैसी बातें करती हो अविका. यदि तुम्हारी जगह मुझे इंफेक्शन हो जाता, तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? अब तुम मेरा हिस्सा हो. तुम्हारी देखभाल करना मेरी ज़िम्मेदारी है. जब तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगी, तब ले चलूंगा.” निखिल के स्नेहिल अपनत्व से भरे शब्दों को सुनकर पहली बार अविका के भीतर जैसे कुछ पिघल गया.
निखिल उसकी सारी दवाइयां ले आया. रात में अविका ने निखिल से फिर कहा कि वह दूसरे कमरे में सो जाएगी, तब निखिल ने फिर वही बात कही कि यदि उसे कुछ होता, तो क्या अविका उसे कमरे में अकेला छोड़कर दूसरे कमरे में रहती? तो वह कैसे उसे दर्द में अकेला छोड़ दे. अविका निरुत्तर रह गई.
चित्रा और निखिल उसका पूरा ध्यान रखते. समय पर दवाई देते. निखिल ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी. रात में कुर्ते की रगड़ से भी अविका को तकलीफ़ हो रही थी, तो निखिल ने उसे आलमारी से अपना शर्ट निकाल कर दिया.
“यह ढीला कॉटन का शर्ट पहन लो अविका, इसमें तुम्हें आराम मिलेगा.”
“नहीं ऐसे तो आपको भी यह संक्रमण लग जाएगा. मैं आपके कपड़े नहीं पहन सकती.” अविका ने कहा.
“अरे बाबा शर्ट तो एंटीसेप्टिक में धुल जाएगा, लेकिन अभी तो तुम्हें दर्द से आराम की ज़रूरत है. चुपचाप से पहन लो, कुछ मत सोचो.” निखिल ने प्रेम पूर्ण अधिकार से उसे शर्ट थमा दिया.
अविका को पीठ पर भी दवाई लगानी थी, लेकिन उसका हाथ वहां तक जा नहीं रहा था. मांजी से वह कहना नहीं चाहती थी, क्योंकि उसे डर था कि कहीं उन्हें भी संक्रमण न हो जाए.
“तुम शर्ट को उल्टा पहन लो, ताकि बटन वाला भाग पीछे रहे. मैं पीठ पर दवाई लगा दूंगा, फिर तुम शर्ट को सीधा पहन लेना.” निखिल ने समाधान दिया और कमरे से बाहर चला गया.
अविका ने वैसा ही किया. निखिल ने आकर दवाई लगाई और दोबारा कमरे से बाहर चला गया. उसका मर्यादित व्यवहार व चरित्र अविका को बड़ा भला लगा. वह रात भर भी अविका पर ध्यान रखता. जब वह दर्द के कारण सो नहीं पाती, तो उसके साथ ख़ुद भी जागता. कभी उसे मोबाइल पर कोई कॉमेडी फिल्म दिखाता, कभी अपने बचपन की बातें बताता, कभी उसकी सुनता.
शाम की चाय लेकर चित्रा उसके पास आ बैठती. उनके मन में भी संक्रमण को लेकर कोई डर या दूरी नहीं थी. वह उसका मां जैसा ही ख़्याल रखतीं, उल्टे अनुराधा और अविका के पिता को भी धैर्य और सांत्वना देतीं. अविका के मन में उनके लिए अपार सम्मान की भावना आ गई थी. एक शाम उन्होंने बताया कि इकलौते बेटे के विवाह के कितने सपने देखे थे उन्होंने. कितनी धूमधाम की कल्पना की थी कि बहू को कितने चाव से घर लाएंगे, लेकिन दुख की घड़ी में वह कुछ ना कर पाईं.
“परिस्थितियां ही ऐसी थी कि सारे अरमान धरे रह गए. मुझे माफ़ कर देना बेटा. निखिल के पिता की ख़ुशी के लिए मैंने तुम्हारे सपने भी तोड़ दिए.” चित्रा भावुक स्वर में बोली. उनकी आंखों में आंसू थे.
“नहीं मां, मेरा मतलब है मांजी, ऐसा सोचिए भी मत. जितना प्यार आपने मुझे दिया है, उतना कहीं नहीं मिलता.” आज अनायास ही वह चित्रा को मांजी की जगह मां बोल गई.
“तुम मुझे मां ही कहा करो. यही अच्छा लगता है.” चित्रा ने कहा.
रात में अविका सोच रही थी कि अब तक वह स़िर्फ अपने सपनों के टूटने का ही शोक मनाती रही, उसने कभी निखिल के बारे में तो सोचा ही नहीं कि उसके भी तो कुछ सपने रहे होंगे. वह भी तो उनके टूटने की पीड़ा से गुज़र रहा होगा.  रात में जब निखिल कमरे में आया, तो अविका ने उससे इस बारे पूछा तो उसने बहुत संजीदगी से उत्तर दिया.
“सपने सबके होते हैं अविका, लेकिन ज़िंदगी यथार्थ होती है. मन सपने देखता है, पर दिमाग यथार्थ में जीता है. और सहजता से जीने के लिए परिस्थितियों को स्वीकार कर लेना ही अच्छा है.”
“लेकिन फिर भी दुख तो हुआ ही होगा?” अविका ने उसका मन टटोला.
“दुख किस बात का? धूमधाम और रस्में तो दो दिनों की होती हैं, साथ तो जीवनभर का होता है ना? तो वही ज़्यादा महत्वपूर्ण है. और फिर मेरा यथार्थ और साथ तो मेरे सपने से भी कहीं अधिक सुंदर है.” कहते हुए निखिल ने प्यार से अविका की आंखों में देखा और सहज भाव से उसके कंधे पर हाथ रख दिया.
जाने क्यों अविका के तन में आज एक मीठी सी सिहरन दौड़ गई, दिल धड़क गया.


निखिल और चित्रा की देखभाल से अविका जल्दी ही पूरी तरह ठीक हो गई. इंफेक्शन भी नेगेटिव आया. तन के साथ उसके मन के घाव भी भर चुके थे. टूटे सपनों की किर्चियों के बीच एक कोमल भावना का फूल खिल रहा था. एक रिश्ते में बंध जाने को तन-मन व्याकुल हो रहा था. इसी व्याकुलता में अविका खिड़की के पास खड़ी चांदनी में भीग रही थी. निखिल सो रहा था. अविका कभी चांद को देखती. तो कभी निखिल को. आज जब निखिल से उसके मन का गठबंधन हो चुका था, तो यह दूरी उससे सही नहीं जा रही थी. अचानक निखिल की नींद खुल गई, उसे यूं खिड़की के पास खड़े देखकर वह उसके पास आ गया.
“क्या हुआ अविका, नींद नहीं आ रही क्या? कुछ चाहिए क्या?” निखिल ने पूछा.
“हां.” अविका ने कहा.
“क्या चाहिए बोलो.” निखिल बोला.
“आप.” अविका ने दोनों बांहें निखिल के गले में डालकर मुस्कुराते हुए कहा.
“ओह अविका, मेरी अवि.” निखिल ने उसे कसकर बांहों में भर लिया. और अविका तटबंधों को तोड़कर सागर से मिलने को व्याकुल बहती नदी सी निखिल के आगोश में समा गई.

Dr. Vinita Rahurikar
विनीता राहुरीकर


अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES




अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/