"… देखो, मैं भइया जैसा नहीं हूं, जो भाभी की हां में हां मिलाते रहते हैं. भाभी उनसे बिना पूछे हर काम करती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता है… आज तुमने भी वही किया. एक बार भी तुमने पूछा नहीं मुझसे कि जाना है… और प्लीज़, अपना स्तर सुधारो… पसंद अच्छी करो. एक बात और है, मेरा नाम लेकर मत बुलाया करो. पति-पत्नी में पति का पद ऊंचा रहता है, ये तो सच बात है… तुम्हें ख़राब तो नहीं लग रहा है ना मेरा कहना!"
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि सपने इस तरह सच भी होते हैं क्या? अभी पांच महीने पहले ही तो विनय से मैं रितु दीदी (ताऊजी की बेटी) की शादी में मिली. दीदी के देवर होने के नाते चुहलबाज़ी हुई… कब दोस्ती, फिर दोस्ती से ज़्यादा कुछ… और अब दस दिनों बाद हमारी सगाई है! हवाई जहाज में अकेले बैठे हुए मैं मुस्कुराने लगी… लेकिन रितु दीदी बहुत ख़ुश नहीं हुई थीं ये सब सुनकर, क्यों? क्या वो मुझे अपनी देवरानी नहीं बनाना चाहती हैं?
मम्मी ने भी यही कहा, "रितु ख़ुद तो सोने के सिंहासन पर विराजमान है, नौकर-चाकर से भरा हुआ घर है… तुम्हें क्यों चाहेगी वहां देखना… अपनी मां की तरह ही है…" मम्मी की बात सुनकर मैं सहमत नहीं हो पाई थी. ताईजी और मम्मी में भले ही कितनी भी प्रतिस्पर्धा रही हो, पर रितु दीदी ने सदैव बड़ी बहन की तरह मुझे स्नेह और संरक्षण में संजोकर रखा था. दिल्ली एयरपोर्ट पर रितु दीदी प्रतीक्षा करते हुए मिल गईं, मैं लिपट गई.
"अब तो तुम मेरे पैर छूकर आशीर्वाद लिया करो, बहन से देवरानी बनने जा रही हो…" उनकी बात सुनकर मेरे मन का मैल धुल गया. ख़ुश तो हैं दीदी इस रिश्ते से.
दीदी और जीजाजी दिल्ली में रहते थे. विनय भी जीजाजी के साथ बिज़नेस देखते थे… मां-पिता के न होने के कारण जीजाजी ने ही विनय को पाला था और अब रितु दीदी विनय का पूरा ध्यान रखती थीं.
घर पहुंचते ही मैं दंग रह गई. दिल्ली जैसे शहर में इतना बड़ा घर! रंग-बिरंगे फूलों से सजी क्यारियां, सलीके से लगे पेड़ और हमारे स्वागत में हाथ बांधे खड़े आधा दर्जन नौकर. विनय की ज़िद पर जीजाजी ने मुझे यहां बुलाया था सगाई की शाॅपिंग करने के लिए… मैं ये सोचकर गुलाबी हुई जा रही थी कि शाम को विनय से आमना-सामना होगा.
"निम्मी, तुम फ़िलहाल तो ऊपर रहोगी गेस्ट रूम में, मेरे बगलवाले कमरे में… विनय के कमरे में शादी के बाद, ठीक है ना?" दीदी की छेड़छाड़ मेरे गाल और लाल कर रही थी.
शाम को विनय और जीजाजी के आते ही मैं और परेशान हो गई थी. विनय मुझे बहुत प्यार से देख रहे थे और जीजाजी चिढ़ा रहे थे.
"देखो साली साहिबा, कल से आपकी शाॅपिंग शुरू… बिज़नेस के काम से इनको हफ़्तेभर की छुट्टी. ख़ूब घूमिए आप लोग… लेकिन रितु भी आपके साथ रहेगी, आप लोगों की निगरानी के लिए… ठीक है निम्मी?" मैं शरमा रही थी. विनय एकदम से बोले, "भइया, निमिषा कहा करिए ना… निम्मी अच्छा नहीं लगता है!"
अगले दिन से ख़रीदारी शुरू हुई, इस शोरूम से उस शोरूम… इस डिज़ाइनर से उस डिज़ाइनर तक… शाम होने तक मैं बहुत थक गई थी. विनय को कुछ भी पसंद नहीं आया था. हालांकि एक लहंगे पर मेरा दिल आ गया था. कॉफी शॉप में मैंने कहा, "अरे, सगाई ही तो है! वही क्रीम कलरवाला लहंगा ले लेते हैं… इतना क्या सोचना?"
विनय ने अजीब ढंग से जवाब दिया, "इसीलिए तो तुमको यहां बुलाया है! मुझे लग रहा था कि तुम कुछ भी ना पहन लो. मैडम, विनय की सगाई है… कोई मामूली बात नहीं है!" दीदी ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप कॉफी पीती रहीं.
दो-तीन दिनों में लहंगा, शेरवानी सब लिया गया… ज़ेवर कैसे होंगे, डेकोरेशन, फूलों का रंग… इतनी बारीक़ी से विनय पसंद कर रहे थे कि उबाऊ लगने लगा था. अगले दिन विनय को जीजाजी ने बुला लिया. मैं और दीदी दिल्ली घूमने निकल लिए. कितना सुहाना लग रहा था सब कुछ. अचानक दीदी के पास विनय का फोन आया, उन्होंने मेरी ओर बढ़ा दिया.
"निमिषा! तुम्हारा फोन कहां है? और आज तुम बिना मुझे बताए कहां चली गई? मैं घर आया था तुम्हें लेने… मेकअप आर्टिस्ट के यहां जाना है, मेकअप ट्रायल के लिए… तुरंत वहां पहुंचो, भाभी को एड्रेस पता है."
मैं खिन्न हो उठी थी. मेकअप कैसा होगा… ये तो मैं भी देख सकती हूं ना. हर बात में विनय का हस्तक्षेप… ये सब क्या है?
घर आते समय दीदी को घर छोड़कर हम दोनों बाहर खाना खाने चले गए. माहौल अच्छा था… लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था. विनय ने बात शुरू की, "निमिषा, तुम जानती हो ना मैंने पहली बार तुम्हें देखते ही सोच लिया था कि शादी मैं तुमसे ही करूंगा… मैं कुछ बातें साफ़-साफ़ करना चाहता हूं. देखो, मैं भइया जैसा नहीं हूं, जो भाभी की हां में हां मिलाते रहते हैं. भाभी उनसे बिना पूछे हर काम करती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता है… आज तुमने भी वही किया. एक बार भी तुमने पूछा नहीं मुझसे कि जाना है… और प्लीज़, अपना स्तर सुधारो… पसंद अच्छी करो. एक बात और है, मेरा नाम लेकर मत बुलाया करो. पति-पत्नी में पति का पद ऊंचा रहता है, ये तो सच बात है… तुम्हें ख़राब तो नहीं लग रहा है ना मेरा कहना!"
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मैं मुस्कुरा दी… घर आने के बाद मेरा मुंह उतरा रहा. पूरी रात नींद नहीं आई. सुबह सबके जाते ही दीदी को लेकर कमरे में आ गई. "दीदी, दो दिनों बाद मेरी सगाई है. कल पापा-मम्मी भी आ जाएंगे… लेकिन मुझे कुछ सही नहीं लग रहा है." मैंने रितु दीदी को एक-एक बात बताई.
दीदी का चेहरा संजीदा होता जा रहा था, "निम्मी, मैं क्या बोलूं, शुरू में मैंने विरोध किया था किसी ने मेरी बात नहीं मानी… मैं नहीं चाहती थी कि तुम विनय से शादी करो… वो क्या है, उसको मैं जानती हूं. ग़ुस्से में जिस तरह वो नौकरों पर चिल्लाता है, सामान फेंकता है, हर बात में अपना ही हुक्म चलाना… मुझसे भी कहता है कि भइया ने आपको बहुत छूट दे रखी है… ऐसे इंसान के साथ तुम मुरझा जाओगी निम्मी."
दीदी की बातें सुनकर मेरा रहा-सहा शक भी जाता रहा… आंखें भर आई थीं, लेकिन दिल मज़बूत करके एक फ़ैसला लिया. पापा को फोन किया, टिकट बुक कराई… विनय और जीजाजी को बुलाकर मैंने बात छेड़ दी.
विनय ने कांच की ग्लास ज़मीन पर पटक दी, "क्या बकवास है! परसों सगाई है, आज तुम पीछे नहीं हट सकती हो… किसी ने तुम्हें भड़काया है." उसका इशारा दीदी की ओर था.
मैंने कहा, "मैं देख रही हूं ना आपका रवैया, आपको एक पत्नी नहीं एक गुड़िया चाहिए, हां में हां मिलानेवाली… निर्णय लेने में सक्षम, समझदार पत्नी नहीं… मैं बंदिशों में नहीं रह सकती हूं, समझिए इस बात को. हर बात आपके हिसाब से नहीं हो सकती है. पति-पत्नी के रिश्ते में सम्मान, समझ दोनों ओर से होनी चाहिए, एकतरफ़ा नहीं…"
मैंने जीजाजी के पास आकर माफ़ी मांगी, "जीजाजी, मुझे माफ़ करिएगा." वो कुछ बोले नहीं, नाराज़ लग रहे थे.
विनय ने मेरे पास आकर कहा, "निमिषा, मैं तुम्हें कितना पसंद करता हूं, तुम्हें पता है ना…"
मेरी आंखों में आंसू आ गए थे, "विनय, आपको मैं पसंद आ गई थी, आपने मुझे चुना… लेकिन मेरे मन में तो… ख़ैर…" इससे ज़्यादा मैं कुछ बोल नहीं पाई.
कमरे में आकर फूट-फूटकर रोती रही, सामान पैक करती रही… थोड़ी देर में निकल लूंगी, इस घर से, विनय की ज़िंदगी से… और अपने सपनों की दुनिया से… टूटे सपनों की किरचें चुभ रही थीं, दर्द हो रहा था… लेकिन एक सुकून भी था; जो प्यार आपको दम घोंटकर मारने पर आमादा हो जाए, उसका अधूरा रहना ही बेहतर है.
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