"बंद करो अपना ये नाटक. मुझे कुछ नहीं सुनना इस बारे में. मुझे मम्मी ने बोला कि तुम पापा-मम्मी से माफ़ी मांगो." रमन बोले.
"तब तो माफ़ी आपको भी मांगनी चाहिए, क्योंकि आप उनके बेटे हैं.
आप ही पापा से झाडू मांग कर लगा लेते." मिनी ने जवाब दिया.
"बहस मत करो. मम्मी ने जैसा कहा है वैसा करो. मुझे और कुछ नही सुनना है इस बारे में." रमन चिल्ला कर बोले.
मिनी समझ गयी थी कि इनसे बहस करना बेकार ही है और बात का बतगंड़ बनेगा.
मिनी की शादी को एक साल हुआ था.
उसके ससुराल मे सास-ससुर, जेठ-जेठानी उनके दो बच्चे मिनी और उसके पति रमन थे.
मिनी आज अपने पति रमन के साथ अस्पताल गयी थी. उसकी
एचएसजी जांच होनी थी. वही कराने के लिए वे दोनों अस्पताल
गए थे. वहां काफ़ी भीड़ थी. क़रीब एक घंटे बाद उसका नम्बर आया. उसकी जांच हुई. डॉक्टर ने कुछ जांच और दवाइया लिखी, तो वो दोनों दवाइया वगैरह लेते हुए घर पहुंचे.
तो देखा कि ससुरजी कमरे में झाडू लगा रहे थे. सास कुर्सी पर और जेठजी सोफे पर लेटे हुए टीवी देख रहे थे. जेठानी ऊपर अपने कमरे में थी. उसने सास-ससुर के पैर छुए (उसके ससुराल में नियम था कि बहू घर से कही बाहर जाए और वापस घर आए, तो सब बडों के पैर छुए) और अपने कमरे में आ गयी. कपडे़ बदलकर थोड़ा आराम करने के लिए लेट गयी. चूंकि एचएसजी एक (अन्दरूनी) जांच है, तो उसे दर्द भी हो रहा था, थकान भी बहुत थी, तो उसने सोचा कि थोड़ा आराम कर लूं.
अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि रमन कमरे में आए और बोले, "तुम नीचे से ऐसे ही चली आयी. पापा-मम्मी बहुत नाराज़ हो रहे हैं."
"क्यों? क्या हो गया? मैंने तो कुछ किया भी नहीं!" मिनी बोली.
रमन बोले, "जब तुम आई, तो तुमने देखा कि पापा झाडू लगा रहे है,
तो तुम्हें उनसे कहना चाहिए था कि लाइए पापाजी झाडू मैं लगा दूं. तुम देखकर भी चुपचाप कमरे में चली आई. इस वजह से मम्मी-पापा बहुत नाराज़ है."
"इसमे नाराज़ होनेवाली क्या बात है. हम दोनों तो अस्पताल गए थे और जब लौटकर आए, तो पापाजी तो पहले से ही झाडू लगा रहे थे." मिनी बोली.
"चलो कोई बात नहीं, चलकर मम्मी-पापा से माफ़ी मांग लो."
रमन ने कहा.
माफ़ी मांगने का सुनकर मिनी का पारा चढ़ गया. एक तो वो वैसे ही थकान और दर्द से परेशान थी और उस पर ये माफ़ी मांगने की बात, वो झल्ला उठी.
"लेकिन मैं माफ़ी किसलिए मांगू." मिनी बोली.
"क्योंकि तुम बहू हो और तुम्हारे होते हुए पापाजी झाडू लगाए तुम्हें शोभा नहीं देता है. जब तुम आ गयी थी, तो तुम्हें पापा से बोलना चाहिए था कि दीजिए पापाजी झाडू मैं लगा देती हूं." रमन बोले.
मिनी बोली, "लेकिन पापा झाडू लगा ही क्यों रहे थे. वहां पर मम्मी भी बैठी थीं, उनके बड़े बेटे भी (जेठ) लेटे हुए थे, तो क्या पापाजी
उनसे नहीं कह सकते थे और फिर दीदी (जेठानी) भी तो अपने
कमरे में ही थी, उनको बोल देते और आप तो जानते ही है मैं कितनी तकलीफ़ में हूं ऐसे में मैं अस्पताल से आकर तुरन्त काम पर लग जाऊं…"
"बंद करो अपना ये नाटक. मुझे कुछ नहीं सुनना इस बारे में. मुझे मम्मी ने बोला कि तुम पापा-मम्मी से माफ़ी मांगो." रमन बोले.
"तब तो माफ़ी आपको भी मांगनी चाहिए, क्योंकि आप उनके बेटे हैं.
आप ही पापा से झाडू मांग कर लगा लेते." मिनी ने जवाब दिया.
"बहस मत करो. मम्मी ने जैसा कहा है वैसा करो. मुझे और कुछ नही सुनना है इस बारे में." रमन चिल्ला कर बोले.
मिनी समझ गयी थी कि इनसे बहस करना बेकार ही है और बात का बतगंड़ बनेगा.
वो बोली, "ठीक है मैं माफ़ी मांग लूंगी." और उठकर ससुरजी के पास गयी. सास व जेठ भी वही बैठे थे और ये भी वही पहुंच गए थे.
मिनी बोली, "पापाजी, मैं सब की तरफ़ से आपसे माफ़ी मांगती हूं.
मम्मी, दादाजी (जेठ), दीदी (जेठानी), मेरे और इनके होते हुए भी आपको झाडू लगानी पड़ी. और हममे से किसी ने भी आप से ये नहीं कहा कि आप रहने दीजिए हम कर लेंगे. आप हमें माफ़ कर दीजिए."
मिनी के इस तरह माफ़ी मांगने की किसी को उम्मीद नहीं थी.
सब एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे.
- रिंकी श्रीवास्तव
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik