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लघुकथा- मक्खी स्वभाव (Short Story- Makkhi Svabhav)

“अब तो वह पूरी तरह से बदल गई है. भोजन भी अच्छा बनाती है, मीठी बातें भी करती है. हम एक संग सिनेमा देखने गए और चार दिन के लिए शिमला भी गए. बहुत आनंद आया. ऐसी पत्नी ही तो मैं चाहता हूं.
मैं उसे किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता. मेहरबानी करके कोई ऐसी दवा दो, जिससे कि उसके अंदर गए हुए ज़हर का असर ख़त्म हो जाए."

एक व्यक्ति हर समय दूसरों में कमियां खोजता रहता. सब की निंदा करना, नुक्ताचीनी करते रहना, यही उसका स्वभाव था.
समय पर माता-पिता ने उसका विवाह कर दिया, तो अब वह पत्नी के हर काम में नुक़्स तो निकालता ही, पति होने के नाते उसे हर बात पर डांटने का हक़ भी मिल गया था उसे.
उसे पत्नी का बनाया भोजन बेस्वाद लगता, घर के हर काम में कमी ढूंढ़ लेता. वह देखने में अच्छी थी, तो वह पत्नी की आवाज़ का ही मज़ाक़ उड़ाता. सब परिचित उसकी पत्नी की प्रशंसा करते थे सिवाय उसके. उसे अपने मित्रों की पत्नियां सर्व गुण सम्पन्न लगतीं, पर अपनी पत्नी बात करती, तो वह उसे मूर्ख कह खिल्ली उड़ाता और चुप रहती, तो उसे असामाजिक कहता.
पति के व्यवहार से वह उदास रहने लगी, तो ‘क्या हर समय रोनी सूरत बनाए रखती हो?’ कह कर उसे डपटता.
सारांश यह कि उसे अपनी पत्नी में दोष ही दोष नज़र आते थे.
और वह पत्नी से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा, ताकि वह किसी स्मार्ट और समझदार स्त्री से विवाह कर सके.
परन्तु वह यह भी जानता था कि तलाक़ लेने में अनेक झंझट हैं और बदनामी होने का डर अलग से. उसमें खर्च और समय दोनों लग जाते है. इसके साथ ही तलाक़ देने से उसे दूसरा विवाह करने में भी समस्या आएगी.’

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अतः वह चाहता था कि कुछ ऐसा किया जाए कि काम भी हो जाए और उस पर कोई लांछन भी न लगे.
उसकी क़रीबी मित्र मंडली में एक डाॅक्टर भी था. सो एक दिन वह इसी मतलब से अपने डाॅक्टर मित्र से मिलने गया. उसे अपना राज़दार बनाते हुए कहा कि ‘कोई ऐसा ज़हर हो, जो धीमा असर करता हो, ताकि किसी को संदेह न हो और पत्नी से छुटकारा भी मिल जाए.
डाॅक्टर ने पहले तो समझाने की कोशिश की, परन्तु वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि उसकी पत्नी सुधर ही नहीं सकती.
अंत में डाॅक्टर मित्र ने दवा तो दी परन्तु साथ में यह हिदायत भी दी कि इस बीच वह अपनी पत्नी से बहुत अच्छा व्यवहार करे. उसके साथ प्रेमपूर्वक पेश आए. उसके काम की तारीफ़ करे, मीठे स्वर में बात करें. कभी उसे घुमाने ले जाए और कभी उसके लिए उपहार ले आए, ताकि किसी को भी उस पर शक न हो.
यूं बीस-पच्चीस दिन बीते होंगे कि पति परेशान सा उसी डाॅक्टर मित्र के पास गया और बोला, “अब तो वह पूरी तरह से बदल गई है. भोजन भी अच्छा बनाती है, मीठी बातें भी करती है. हम एक संग सिनेमा देखने गए और चार दिन के लिए शिमला भी गए. बहुत आनंद आया. ऐसी पत्नी ही तो मैं चाहता हूं.
मैं उसे किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता. मेहरबानी करके कोई ऐसी दवा दो, जिससे कि उसके अंदर गए हुए ज़हर का असर ख़त्म हो जाए."
वह अपने डाॅक्टर मित्र से मिन्नत करने लगा.
इस पर डाॅक्टर ने राज़ खोलते हुए बताया कि जो दवा उसने दी थी वह वास्तव में ज़हर था ही नहीं, बल्कि ताक़त का पाउडर था.
“अतः तुम बेफ़िक्र रहो, तुम्हारी पत्नी को कुछ नहीं होगा. तुम्हें उसमें जो इतने नुक़्स नज़र आते थे, दरअसल वह सब तुम्हारे अपने नज़रिए के कारण ही था.
हम सब मित्र तो पहले से ही उनके गुणों से प्रभावित थे.
तुम उससे हमेशा दुर्व्यवहार करते थे, तभी वह अप्रसन्न रहती थी. हमेशा की डांट-फटकार के कारण चिड़चिड़ापन आ गया था उसमें. तुम्हारे बुरे व्यवहार के कारण वह दुखी रहती थी. बिना कारण उस पर चिल्लाते थे, तो वह भी कभी तो उत्तर देगी ही. अतः बदलने की ज़रूरत उससे अधिक तुम्हें है. स्वयं देख लो, जब से तुम उसके साथ प्यार का व्यवहार करने लगे हो, तो तुम्हें उस की अच्छाइयां नज़र आने लगी हैं और वह भी अब प्रसन्न रहने लगी है.
वास्तव में बदली वह नहीं, तुम बदल बदल गए हो. तुम्हारी सोच बदल गई है और वही पत्नी अब तुम्हें अच्छी लगने लगी है.”
यहां मेरा आशय यह नहीं कि सिर्फ़ पति ही नुक़्स निकालने की कला में माहिर होते हैं पत्नियां नहीं. पर हां पुरुष प्रधान समाज होने के नाते हमारे समाज में पुरुष का पक्ष ऊपर रहता है. चाहें तो आप यहां पति-पत्नी की जगह को अदल-बदल कर भी रख सकते हैं.


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कुछ लोगों की आदत ही होती है दूसरों में हरदम नुक़्स निकालते रहने की. दूसरों में ग़लतियां खोजने की.
कभी आपने मक्खी को ध्यान से देखा-परखा है? वह किसी उपवन में जाएगी तो फूलों को नहीं निहारेगी, सुगंध की तरफ़ आकर्षित नहीं होगी, बल्कि इधर-उधर किसी कचरे के ढेर को तलाशेगी और दुर्गंध का पीछा करती सीधे वहीं पहुंच जाएगी.
हम मनुष्य हैं, दूसरों की ग़लतियां ही ढूंढ़ते रहने से आप अगले की ज़िंदगी तो ख़राब करते ही हैं साथ में अपना भी नुक़सान करते हैं.

Usha Wadhwa
उषा वधवा


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