वो कुछ और सोचती कि वो दोनों ही उसी की ओर हंसते हुए कदम बढ़ाते हुए एकदम पास आ गए. टीना की सकपकाहट से बिल्कुल अनजान उसके पति ने मुस्कुराकर अपने दफ़्तर के नए सुपरवाइजर से उसको मिलवाया. पति हंस-हंसकर नितिन की तारीफ़ पर तारीफ़ किए जा रहे थे. नितिन कितना बड़ा कलाकार था, वो जानती थी.
मॉल में ज़रूरी ख़रीदारी करती हुई टीना ने एक जानी-पहचानी सी आवाज़ सुनकर एक बार देखा फिर दोबारा पीछे देखा और सन्न-सी टीना गौर से देखती ही रह गई.
हां वही था, वही तो था… नितिन… वो एकाएक जड़-सी हो गई. आज तो उसे जैसे सांप सूंघ गया. ना हिलते बनता, ना डुलते. टीना कुछ सकपका-सी गई. आज पूरे दस साल बाद नितिन इस शहर में मतलब टीना के शहर में आख़िर क्या करने आया होगा भला? कहीं कोई जासूसी वगैरह… जैसे चोर को अपने माथे पर चोर लिखा हुआ महसूस होता है, टीना भी इसी अपराधबोध में घिर गई.
अचानक वो घबरा ही गई कि कहीं पति ने उसको इस तरह पीछे मुड़कर नितिन की शक्ल से रू-ब-रू होकर बैचेन होते हुए देख तो नहीं लिया? टीना ने आसपास देखा उसके पति दूसरी स्टॉल में उससे ज़रा-सी दूरी पर थे. टीना की सांस में सांस आई.
"अरे, ओहो…" पति का खनकता हुआ स्वर उछल कर उसके कानों में टकराया और फिर वो आश्चर्यचकित रह गई, जब अपने पति को उसके साथ हंस-हंसकर बात करते देखा. ये क्या माजरा है? वो मन ही मन घबरा गई.
टीना का दिल तेजी से धड़कने लगा. किस घड़ी में आज वो घर से निकल कर इस शॉपिंग मॉल में आई. काश! आज घर पर ही रूक गई होती.
वो कुछ और सोचती कि वो दोनों ही उसी की ओर हंसते हुए कदम बढ़ाते हुए एकदम पास आ गए. टीना की सकपकाहट से बिल्कुल अनजान उसके पति ने मुस्कुराकर अपने दफ़्तर के नए सुपरवाइजर से उसको मिलवाया. पति हंस-हंसकर नितिन की तारीफ़ पर तारीफ़ किए जा रहे थे. नितिन कितना बड़ा कलाकार था, वो जानती थी. उसने कुछ पता ही नहीं चलने दिया और अनजान बनकर मिला. टीना क्या करती उसने भी अनजान बनने का नाटक किया. तक़रीबन चार-पांच मिनट के बाद ही असहज होती टीना ने बच्चों के अकेले होने का बहाना बनाया और ज़बरदस्ती अपने पति को वापस ले चली.
उसके बाद तो टीना का मन सोते-जागते बस कॉलेज के दिनों में नितिन के साथ पहली मुलाक़ात और फिर कभी पार्क, कभी झील के किनारे. नितिन को बात-बात पर लतीफे सुनाने का बड़ा शौक था. हंसना-खिलखिलाना उसकी आदत थी. टीना को कभी लगता था कि अगर नितिन नहीं होता, तो उसका क्या होता वो इस दुनिया में कितनी तनहा और उदास होती.
टीना और नितिन चार-पांच महीनों में काफ़ी क़रीब आ गए थे. बस, आपस में बतिया कर दोनों बहुत सुकून महसूस करते थे. दोनों में इतनी ही नजदीकी थी. एक-दो दिन में टीना अपने मन की बात नितिन से कहने ही वाली थी. मगर तभी नितिन को पढाई बीच में छोड़कर जाना पड़ा. नितिन ने सैकड़ों कि.मी. दूर गोवा जाकर तकनीकी कोर्स करने का मन बना लिया था. टीना पर तो जैसे वज्रपात-सा हुआ. टीना को यह भी पता लगा था कि नितिन की क़रीबी और धनवान मित्र मोना भी साथ जा रही थी. सच्चाई यह थी कि वही अपने साथ नितिन को ले जा रही थी. टीना को यह सब नितिन की किसी मित्र और से पता लगा था. सदमे में आकर टीना ने सिर्फ़ पढ़ाई पूरी करने में ख़ुद को झोंक दिया.
जब उसके परिवार ने उससे रवि से सगाई के लिए उसकी राय मांगी, तो टीना ने माता-पिता को तुरंत सहमति दे दी. वो धीरे-धीरे अपनी गृहस्थी में रमी हुई नितिन को बिल्कुल भूल गई थी किसी सपने की तरह. मगर… ये तो फिर हंसता-मुस्कुराता आ धमका उसके जीवन में. टीना को समझ नही आ रहा था कि समय ऐसा कौन-सा गुल खिलाने जा रहा था?
टीना ने किसी तरह अपने भावुक मन को संभाला ही था कि एक सप्ताह बाद नितिन अपनी पत्नी के साथ उसके घर पर आ गया. टीना के पति ने बहुत गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया. टीना को नितिन की पत्नी मीनू से भी बड़ी ही आत्मीयता से मिलवाया टीना के पति ने. रवि का इतना अपनापन देखकर टीना को भी उन दोनो का सत्कार करना पड़ा.
अफरा-तफरी में बौखलाई टीना की तो बस परीक्षा ही परीक्षा थी. अचानक उसे मोना की याद आ गई. नितिन ने उसकी जगह यह किससे विवाह कर लिया. टीना मन ही मन सोच रही थी कि मीनू ने रसोई में हाथ बंटाते हुए बातों ही बातों में ख़ुद ही खुलासा कर दिया कि वह नितिन की तीसरी पत्नी है.
ओह… तीसरी..? टीना यह सुनकर जैसे आसमान से गिरी थी. नितिन का इतना अस्थिर जीवन… उफ़! वो मन ही मन अपने पति के चरित्र और गुणों की सराहना करने लगी थी.
मीनू ने आगे बताया, "पहली पत्नी मोना थी. वो ताश, शराब व पार्टी की शौकीन थी. बहुत ही आज़ाद ख़्याल की थी मोना. मोना के पिता ने ही महंगा तकनीकी कोर्स भी करवाया था, इसलिए ख़ामोशी ये उसके सारे शौक, नखरे सब सहन करते रहे. मोना को संस्कारी रहन-सहन की आदत नहीं थी. इतना सादगी भरा पति उसको हजम नहीं हुआ, इसलिए अपने आप ही नितिन की ज़िंदगी से चली गई.
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माता-पिता के कहने पर दूसरा विवाह किया, तो खुलासा हुआ कि दूसरी पत्नी का तो पहले से ही पीहर मे एक अंतरंग दोस्त था और वो आए दिन अपने पीहर में ही पड़ी रहती थी. एक बार अचानक जाकर नितिन ने दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया, बस फिर क्या था कहानी ख़त्म हो गई."
मीनू तो मस्त मगन होकर कहानी सुना रही थी, लेकिन टीना भगवान का शुक्र कर रही थी कि उसके दोनों बच्चे खेलने गए हुए थे और यह सब उन दोनों ने नहीं सुना.
खैर, मीनू और नितिन को विदा किया, तब जाकर टीना को चैन आया. लंबी-लंबी सांस लेकर उसने अपने पुराने और आधे-अधूरे प्रेम और अपनी बेवकूफ़ी को जी भर के कोसा. उसका मन बहुत डरा हुआ था.
पति रवि तो नितिन से इतने ख़ुश थे कि हर रोज़ घर बुलाने को तैयार थे. अभी तो नितिन ख़ुद भी सब भुलाकर नई नवेली मीनू में मगन है, मगर कभी अगर ग़लती से कोई भेद खुल गया तो… यह सोचकर टीना को सिहरन-सी होने लगती थी.
टीना ने इसी भय में एक हफ़्ता और निकाल दिया. शाम को पति दफ़्तर से बहुत मुस्कुराते हुए आए. टीना का कलेजा धक-धक करने लगा.
पति ने ख़ुशख़बरी सुनाई कि प्रमोशन हो गया है. अब नए शहर में चलने की तैयारी करनी थी. टीना का मन मयूर नाच उठा. ऐसा लगा जैसे कोई बहुत बड़ा बोझ सिर से उतर गया.
- पूनम पांडे
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