समीर के साथ जीवन कितने सुख से बीत रहा था. आज वो दिन याद करके सुमिता की आंखें भर आईं. फिर उसके घरवालों ने प्यार जताकर उसे अपनी ओर खींचकर घर बुलाना शुरू कर दिया. बेटी थी वो आख़िर उस घर की सहज ही अपने खून की तरफ़ खिंचती गई. धीरे-धीरे उन्होंने समीर के इतने ऐब दिखाए, इतना ज़हर भर दिया उसके ख़िलाफ़ की सुमिता भी न जाने कैसे उनके बहकावे में आकर समीर को तलाक़ देने पर राज़ी हो गई.
तीन साल हो गए समीर को छोड़कर यहां आए हुए सुमिता को, लेकिन ये तीन साल तीन युगों जितने लम्बे लगे थे उसे. माँ और भाई-भाभी के बहकावे में आकर अपना बसा-बसाया घर अपने ही हाथों उजाड़ दिया था उसने. कितना प्यार करता था समीर उससे. जान छिड़कता था उस पर. प्रेम विवाह किया था उन दोनों ने. सुमिता के घरवाले इस विवाह के सख्त ख़िलाफ़ थे, पर उसने उनकी एक न सुनी.
समीर के साथ जीवन कितने सुख से बीत रहा था. आज वो दिन याद करके सुमिता की आंखें भर आईं. फिर उसके घरवालों ने प्यार जताकर उसे अपनी ओर खींचकर घर बुलाना शुरू कर दिया. बेटी थी वो आख़िर उस घर की सहज ही अपने खून की तरफ़ खिंचती गई. धीरे-धीरे उन्होंने समीर के इतने ऐब दिखाए, इतना ज़हर भर दिया उसके ख़िलाफ़ की सुमिता भी न जाने कैसे उनके बहकावे में आकर समीर को तलाक़ देने पर राज़ी हो गई.
कितना गिड़गिड़ाया था समीर, सुमिता की हर शर्त मानने को तैयार था, पर तलाक़ नहीं चाहता था, लेकिन सुमिता के दिमाग़ पर तो जैसे ताले जड़ गए थे.
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तलाक़ के बाद जल्दी ही घरवालों की हक़ीक़त उसे पता चल गई. भाई कुछ कमाता नहीं था और घर सुमिता की मोटी तनख़्वाह से ही चलता था. भाई की गृहस्थी में वो बस पैसा कमाने की मशीन बन गई थी. ऊपर से समाज में तलाक़शुदा का ठप्पा और सबके ताने अलग.
सुमिता समीर के पास लौटना चाहती थी, लेकिन किस मुंह से लौटे. कैसे सामना करे उसका. हफ़्तों तक उहापोह की स्थिति में रहकर आख़िर उसने एक प्रयत्न करने का निर्णय ले लिया. क्या होगा, घरवालों के ताने सुनने से तो अच्छा है समीर की दो बातें सुन लूं.
एक दिन ऑफिस से ही वह सीधे समीर के पास चली गई. घर का दरवाज़ा खुला था. सुमिता का हृदय धड़क उठा. उसका घर, ठीक वैसे ही था जैसा वह तीन साल पहले छोड़ गई थी. वह कांपते पैरों से अंदर चली आई. डायनिंग टेबल पर दो प्लेटें रखी थी. समीर रसोईघर में था. वह असमंजस में बाहर ड्रॉइंगरूम में ही बैठ गई. तभी समीर दो कप चाय ले आया. वह सुमिता को देखकर चौंका नहीं, वरन मुस्कुरा दिया. सुमिता कुछ कहने जा रही थी कि समीर ने रोक दिया
"कुछ मत कहो सुमि, पहले चाय पी लो."
"कौन आनेवाला है, तुमने दो कप चाय बनाई है…" सुमिता ने पूछ लिया.
"मैं तो रोज़ ही दो कप चाय बनाता हूं, मुझे पूरा विश्वास था कि मेरी सुमि एक दिन ज़रूर लौटेगी." समीर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
"ओह समीर. मुझे मेरी नादानियों के लिए माफ़ कर दो." सुमिता उठकर समीर के गले लग गई. डायनिंग टेबल पर रखी दो प्लेटों का रहस्य भी उसे समझ आ गया.
उसने अपनी मां को फोन लगाया, "मां, मेरा इंतज़ार मत करना. मैं अपने घर आ गई हूं." और इससे पहले की मां कुछ उल्टा-सीधा बोलती फोन काट दिया.
रात में खाना बनाकर जब वह बाहर आई, तो देखा समीर आंगन में दीये जला रहा था.
"अरे, ये दीये क्यों लगा रहे हो दीपावली तो एक हफ़्ते बाद है." सुमिता ने आश्चर्य से पूछा.
"मेरी लक्ष्मी तो आज लौट आई है न तो मेरे लिए तो आज ही दीपावली है." समीर ने सुमिता को प्यार से देखते हुए कहा. दोनों की आंखों में दीपावली का उजास जगमगा रहा था.
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