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कहानी- मॉम (Short Story- Mom)

पहले वह निहायत स्वच्छन्द ज़िंदगी जी रही थी. मर्ज़ी से उठना, कुछ भी खा-पी लेना, पहन लेना, घूमना, ऑफिस जाना, तुम्हारा एकछत्र प्यार पाना. पर मातृत्व धारण करने के बाद अब उसका सब कुछ बच्ची पर निर्भर हो गया है. उसे उसी की नींद सोना होता है, उसी की नींद जागना होता है. उसके हाजमे के ख़्याल से खाना-पीना होता है. उसे फीड करा सके, इस हिसाब से पहनना होता है. बच्ची का पूरा तामझाम लादकर कहीं निकलना, इससे तो घर में ही रहना उसे बेहतर लगने लगा है. फिर तुम्हारा प्यार… वह भी उसे उसके साथ बांटना पड़ रहा है…"

"मैडमजी, सामनेवाले फ्लैट में आए नए किराएदार से मिलना हुआ आपका? मियां-बीवी दो ही प्राणी हैं और एक ढाई माह की बच्ची." कामवाली बाई ने ऑफिस के लिए तैयार होती कुसुम से पूछा.
"नहीं, मैं नहीं मिली. मुझे देर हो रही है." अपना पर्स संभालती कुसुम कॉरीडोर में आई, तो सामने के फ्लैट से एक युवक को बाहर आते देख उसने अनुमान लगा लिया कि यही वह नया किराएदार है जिसके बारे में बाई बता रही थी. कुसुम कैब में बैठने लगी, तो वह भी हड़बड़ाते हुए उसके पीछे-पीछे आ पहुंचा. कैब शेयरिंग के लिए जब उसने कुसुम के ही ऑफिस का पता बताया तो कुसुम कुछ हैरानी से उसे टटोलने लगी. ऑफिस के गेट पर अपनी सहयात्री को भी अपने साथ उतरता देख वह युवक एकबारगी तो चौंका, पर फिर अपना बैग उठाकर चलता बना.
कुसुम को वह थोड़ा हैरान-परेशान लगा. ऑफिस पहुंचकर कुसुम काम में डूबी, तो फिर सीधे शाम को ही सिर उठाने की फ़ुर्सत मिली. वह कैब में बैठने ही वाली थी कि वही सवेरेवाला युवक फिर हड़बड़ाहट में उसके पीछे-पीछे पहुंच गयाओैर कैब में सवार भी हो गया. कैब रवाना हुई, तो इस बार उसी ने वार्तालाप छेड़ा, "मैं अनीश हूं. एक ही ऑफिस में होने के साथ-साथ हम लोग शायद रहते भी एक ही बिल्डिंग में हैं?" "हां, आमने-सामने. तुम शायद कुछ दिन पूर्व ही शिफ्ट हुए हो?"
"हां, 4-5 रोज़ हो गए. मैंने इस कंपनी में अभी ही जॉइन किया है. पत्नी रिया का बैंक भी यहां से समीप है. अभी तो वह मैटरनिटी लीव पर है. हमारी ढाई माह की बिटिया है अनाया." "अरे वाह, बहुत प्यारी फैमिली है. किसी मदद की आवश्यकता हो तो बताना."
"अवश्य! आपसे थोड़ा ऑफिस का सिस्टम भी समझना था."
कैब में हुई दो-चार मुलाक़ातों के बाद अनीश कुसुम से खुलने लगा था. उसने बताया कि मां बनने के बाद से ही रिया बहुत उदास और परेशान रहने लगी है. बच्ची उससे संभल नहीं पा रही है. कुसुम द्वारा यह पूछे जाने पर कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या? उसने बताया कि मां और सास क्रमशः एक-एक माह उनके पास रहकर लौट चुके हैं. आख़िर उनके भी अपने घर हैं, पति हैं.
घर के कामों के लिए बाई के अलावा एक कुक भी लगा ली है, पर अनाया का खिलाना-पिलाना, नहलाना-धुलाना, सुलाना ही इतना बड़ा काम है कि रिया पस्त हो जाती है…"
"हर नई मां को इन समस्याओं से रू-ब-रू होना ही होता है." कुसुम ने बात को बहुत हल्के में लिया था.
लेकिन अनीश बहुत गंभीर हो उठा था.
"लेकिन रिया का मामला अलग है. मैं आपको कैसे समझाऊं?कुछ दिनों पूर्व हम अनाया को एक शिशु चिकित्सक के पास दिखाने ले गए थे. उसे बहुत मोशन्स हो रहे थे. डॉक्टर ने चेकअप किया और कहा कि बच्चों में इतने मोशन्स बहुत सामान्य बात है. इसके लिए दवा देने की आवश्यकता नहीं है. रिया फिर भी दवा देने के लिए डॉक्टर पर दबाव डालती रही. "मैंने बताया न कोई समस्या ही नहीं है, तो फिर व्यर्थ दवा क्यों लिखूं?" डॉक्टर ने कहा था.
"समस्या है. मुझे समस्या है. मैं इतनी बार डाइपर नहीं बदल सकती, सफ़ाई नहीं कर सकती…" झल्लाई रिया चिल्ला उठी थी. वो तो शुक्र है कि तभी अनाया ने रोना शुरू कर दिया और रिया उसे लेकर बाहर चली गई. मेरी घबराहट भांप डॉक्टर ने मुझे सहानुभूति से देखा. फिर बोला, "मुझे लगता है समस्या शारीरिक से ज़्यादा मानसिक है. तब से मैं बहुत तनाव में हूं. मैंने रिया को यह सब नहीं बताया है, पर क्या मुझे उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाना होगा? मेरी रिया बिल्कुल बच्ची की तरह है. बहुत प्यार करता हूं मैं उसे. उसे कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा. अब तो लगता है हमें अभी बच्चा प्लान करना ही नहीं चाहिए था." बात समाप्त करते-करते अनीश इतना अवसाद में आ गया था कि कुसुम अवाक् उसे देखती रह गई थी.
अनीश को बमुश्किल एक धैर्यवान श्रोता मिला था. उसके अंदर कब का जमा लावा उमड़-उमड़कर बाहर निकलने को आतुर हो उठा था.
"… मैं जॉइन कर लेने के बाद इसीलिए दो दिन ऑफिस नहीं आ पाया. अनाया तो रिया के भरोसे है, पर रिया को किसके भरोसे छोडूं? कहीं परेशानी में वह कुछ उल्टा-सीधा कदम न उठा ले. अनाया रोते-रोते नहीं थकती ओैर रिया थककर ख़ुद रोना शुरू कर देती है. आधे समय तक तो वह यही नहीं समझ पाती कि वह किस वजह से रो रही हे? भूख लगी है, गीला किया है, पेट दुख रहा है, गर्मी लग रही है या हाथ दब गया है? सारे ऑप्शनस ट्राई करते-करते वह ख़ुद अधमरी हो जाती है. मुझे समझ नहीं आता किसे संभालूं? किसे चुप कराऊं?"
कुसुम ने अपना सांत्वना भरा हाथ अनीश के कंधे पर रख दिया था.

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"समस्या मुझे समझ आ रही है. दरअसल, रिया अभी सिर्फ़ शरीर से मां बनी है, दिल से नहीं. उसने बच्ची को जन्म तो दे दिया है, पर उससे भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाई है. मातृत्व लादा नहीं जा सकता, इसे स्वेच्छा से ओढ़ा जाता है. इसमें उसका क़सूर भी नहीं है. पहले वह निहायत स्वच्छन्द ज़िंदगी जी रही थी. मर्ज़ी से उठना, कुछ भी खा-पी लेना, पहन लेना, घूमना, ऑफिस जाना, तुम्हारा एकछत्र प्यार पाना. पर मातृत्व धारण करने के बाद अब उसका सब कुछ बच्ची पर निर्भर हो गया है. उसे उसी की नींद सोना होता है, उसी की नींद जागना होता है. उसके हाजमे के ख़्याल से खाना-पीना होता है. उसे फीड करा सके, इस हिसाब से पहनना होता है. बच्ची का पूरा तामझाम लादकर कहीं निकलना, इससे तो घर में ही रहना उसे बेहतर लगने लगा है. फिर तुम्हारा प्यार… वह भी उसे उसके साथ बांटना पड़ रहा है…"
"पर मैं तो…"
"यह सब रिया का दृष्टिकोण है. जिसे प्यार से, नरमाई से और भरपूर सहयोग से तुम्हें ही बदलना होगा."
"पर?"
"घबराओ मत! मैं तुम्हें पूरा-पूरा सहयोग दूंगी. तुमने बड़ी बहन मानकर मुझसे अपनी समस्या शेयर की है.. मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगी.. तो कब मिलवा रहे हो मुझे उनसे?"
"आज शाम को ही. ऑफिस से आप मेरे साथ ही चलना." वादे के मुताबिक़ कुसुम शाम को अनीश के संग उसके घर पहुंच गई. बच्चों को उसने पहले ही फोन पर देरी से घर पहुंचने की सूचना दे दी थी. अनीश के घर के हालात बता रहे थे कि अनीश ने उसके आगमन की घर पर कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी. शायद वह उसके सम्मुख समस्या का पूरा कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देना चाहता था. चारों ओर बच्ची के गंदे कपड़े, डायपर, सेरेलक और दूध के बर्तन बिखरे हुए थे. अनाया बिस्तर पर गहरी नींद सोई हुई थी और पास ही ज़मीन पर बैठी रिया बिस्तर पर सिर टिकाए बेसुध सी पड़ी थी. स्पष्ट था कि काफ़ी संघर्ष के बाद उसे ये पल नसीब हुए थे. ढीला ढाला पजामा, उस पर छोटी-सी टी-शर्ट, क्लचर में से निकलकर गालों पर झूलती अनसुलझे बालों की लटें, क्लांत चेहरे पर इतनी मासूमियत कि कुसुम के मुंह से बेसाख्ता निकल गया, "यह तो ख़ुद नितांत बच्ची है."
आहट से रिया की नींद टूट गई और बच्ची भी कुनमुनाने लगी. कुसुम लपककर उसके सिरहाने पहुंच गई ओैर उसे थपथपाने लगी. तुरंत वह फिर से गहरी नींद सो गई. रिया सकपकाई-सी अपने कपड़े, बाल आदि ठीक करने लगी, तो कुसुम ने प्यार से उसके गाल थपथपा दिए, "रिलैक्स! मैं तुम्हारी पड़ोसन हूं. तुम्हारे पति की बड़ी बहन के समान! हम एक ही ऑफिस में हैं."
"कुसुम दीदी? अनीश ने बताया था आपके बारे में." रिया सहज हो गई थी. कुसुम नहीं चाहती थी कि रिया अपने औघड़पन या अपरिपक्व मातृत्व को लेकर किसी शर्मिंदगी से घिरे, इसलिए उसने तुरंत बात बनाई. "अनीश कब से मुझसे ऑफिस का सिस्टम समझना चाह रहा था. ऑफिस में वक़्त ही नहीं मिल रहा था. तो फिर आज हमने घर पर ही बैठकर बात करने का निर्णय ले लिया. तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं?"
"अरे नहीं."
"अरे रिया, तुम्हें अपनी कुछ पर्सनल शॉपिंग करनी थी न! तो मैं घर पर ही हूं.अनाया भी सो रही है. तुम हो आओ." अनीश बोल उठा. रिया ने अविश्वासभरी नज़रों से पति को घूरा.
"पीछे से जग गई तो?"
"म… मैं संभाल लूंगा…" अनीश की ज़ुबान लड़खड़ा रही थी. उसे ख़ुद भरोसा नहीं था कि वह कर पाएगा. रिया को वैसे अकेले शॉपिंग करना पसंद था, क्योंकि अनीश जल्द ही उकता जाता था. किंतु अनाया के होने के बाद वह कभी अकेले शॉपिंग के लिए नहीं निकली थी. अनीश उसके बगैर भी अनाया को संभाल सकता है, उसे यक़ीन नहीं था.
"मैं हूं न! मैं मदद कर दूंगी."
क्लांत रिया में अचानक बिजली की सी फुर्ती आ गई. पांच मिनट में ही वह तैयार होकर पर्स झुलाती आ खड़ी हुई. चुस्त जींस, खुले बाल, लिपस्टिक लगे होंठों में वह बला की ख़ूबसूरत लग रही थी. चंद मिनटों में ही उसका कायाकल्प हो गया था.अनीश तो उसे अपलक निहारे ही जा रहा था.
"तुम्हारी ही बीवी है…" कुसुम ने चुहल की, तो दोनों ही शरमा गए.
अगले दिन ऑफिस में अनीश कुसुम से आकर मिला, तो ख़ुशी उसके रोम-रोम से फूट पड़ रही थी.
"डिलीवरी के बाद मुझे कल पहली बार अपनी रिया में पहले वाली रिया का अक्स देखने को मिला. शॉपिंग बैग से लदी-फदी वह बेहद ख़ुशनुमा मूड में कल घर लौटी. बाज़ार में उसकी सहेली मिल जाने से उसका शॉपिंग का मज़ा दुगुना हो गया था. प्रसूति के बाद उसने पहली बार अपना मनपंसद स्ट्रीट फूड पपड़ी चाट खाई. पर उस वक़्त भी उसे अनाया के हाजमे का ख़्याल आ गया, इसलिए बेचारी एक प्लेट ही खा पाई."
"उसे कहना कभी-कभी थोड़ा ऐसा-वैसा खा लेने में कोई हर्ज नहीं है. बच्चे का हाजमा भी तो मज़बूत करना होगा."
"अच्छा ऐसा है? मैं बोल दूंगा. मेरे तो कल यह सोचकर हाथ-पैर फूल रहे थे कि अकेले अनाया मुझसे संभलेगी या नहीं? आपके जाने के बाद काफ़ी देर तक तो वह सोती ही रही. तब तक बाई आ गई, तो मैंने उससे सारा घर व्यवस्थित करवा दिया. दरअसल, मन में यह संबल था कि कुछ कदमों की दूरी पर ही आप मदद के लिए मौजूद हैं… एक मदद और चाहिए थी. दो दिन बाद मदर्स डे है. मैंने अनाया की ओर से रिया के लिए यह कार्ड तैयार किया है. आप बताइए यह उसे पसंद तो आ जाएगा न?"

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मुख्य पृष्ठ पर रिया की गोद में अनाया की बेहद प्यारी तस्वीर थी. अंदर का विवरण इस प्रकार था- ‘मॉम ,आपकी ज़िंदगी की पहली प्राथमिकता बनकर मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं. जानती हूं, मुझे बड़ा करने में आपको बहुत कष्ट उठाने पड़ रहे हैं. बहुत समझौते करने पड़ रहे हैं, पर क्या करूं? मैं पूर्णतः आप पर निर्भर हूं. आप सबकी जगह ले सकती हैं, पर कोई आपकी जगह नहीं ले सकता.' आपकी अनाया
"बहुत मार्मिक भाव अभिव्यक्ति! यदि अनाया बोल सकती होती, तो सचमुच यही सब कहती…" कुसुम ने अनीश को प्रोत्साहित किया था. उत्साहित अनीश को अब बेसब्री से रिया की प्रतिक्रिया का इंतज़ार था. मदर्स डे के दिन ‘हैप्पी मदर्स डे’ लिखा केक काटते रिया सचमुच भावविभोर हो गई थी. फिर जब अनीश ने अनाया के हाथ से उसे कार्ड पकड़वाया, तो वह आश्चर्यचकित तुरंत उसे खोलकर पढ़ने लगी..पूरा पढ़ते-पढ़ते रिया की आंखें नम हो गई थीं. लपककर उसने अनीश की गोद से अनाया को लगभग छीन ही लिया और सीने से चिपकाकर ताबड़तोड़ चूमने लगी.रिया आज सही मायने में अनाया की मॉम बन गई थी.

Shaily Mathur
शैली माथुर

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