Close

कहानी- निर्णय (Short Story- Nirnay)

‘‘जब तुम दोंनो ही एक-दूसरे से प्यार करते हो, फिर मुझे पसंद हो या नहीं हो, क्या अंतर पड़ता है. तुम दोंनो को शादी करनी है, तो हो जाएगी. आजकल बच्चों के जीवन में माता-पिता का क्या कोई स्थान रह गया है, जो हम कुछ बोले."

सुमेधा अपने फूलों की क्यारियों में खड़ी पौधों की कटिंग करवा रही थी कि मनीष की आवाज़ ने उसे चौंका दिया, "मां, ये शिल्पा है, मेरी गर्लफ्रेंड."
वह आवाज़ की तरफ़ मुड़ी, तो सामने एक दुबली-पतली, सामान्य शक्ल-सूरतवाली लड़की खड़ी थी. जिसने ब्लू रंग के जींस और गुलाबी टाॅप पहन रखे थे. उसके छोटे-छोटे बिखरे बालों के लट ने क़रीब-क़रीब आधे चेहरे को ढक रखा था. अगर ढंग से कपड़े पहनती, तो अच्छी लगती. आंखें मिलते ही उसने नमस्ते के लिए हाथ जोड़ दिए. उसका मन मणिहारा सर्प की भांति बेचैन हो उठा, तो उसका बेटा अपने लिए लड़की पसन्द कर लिया? न कभी बताया, न यहां लाने से पहले पूछा ही, पर किसी तरह अपने को संभाल. दोंनो को गार्डन में लगे कुर्सियों पर बैठा, शंकर को बुलाकर चाय लाने के लिए बोल ही रही थी कि पतिदेव और उनकी बेटी रमा भी जाने कैसे सूंघते वहां पहुच गए थे.
थोड़ी ही देर में उसे छोड़ बाकी सब ठहाके लगा रहे थे, पर उसका चिंताग्रस्त मन यहां-वहां विचरण कर रहा था. कैसे-कैसे अच्छेे रिश्ते आ रहे थे, पर इसको यही शूर्पणखा पसंद आई. प्यार करते समय इन लड़कों के अक्ल पर तो जैसे पत्थर पड़ जाता है. वह भी चाहती थी कि मनीष को पढ़ी-लिखी आधुनिक सोचवाली सुंदर लड़की मिले, पर इतनी भी आधुनिक नहीं कि सास का पाव छुना भी ज़रूरी नहीं समझे. कम-से-कम ढंग के कपड़े पहन, ठीक से तैयार होकर कर तो आ ही सकती थी. उसने बहू की, जो तस्वीर बरसों से अपने मन में खींच रखी थी, अचानक उसमें जैसे किसी ने पलीता लगा दिया था. उसके खिन्न मन और आंखों में छिपे इंकार को बेटा भांप गया था, इसलिए लगातार शिल्पा के गुण गिनवा रहा था.
"मां, आप जानती हैं, शिल्पा एनआईटी में अपने बैच की टाॅपर रह चुकी है. अभी मेरी ही कंपनी में यह मेरे बराबर के पोस्ट पर काम कर रही है. गाना भी बहुत अच्छा गाती है. कुकिंग का भी बहुत शौक है."
अपनी बड़ाई सुन शिल्पा के अहंदिप्त चेहरे पर आत्मगौरव का तेज झलक उठा था.
उसका दिल चाहा कहे, "चाहे डिग्रियां जितनी ले ली हो, पर इसे तो सामान्य शिष्टाचार निभाने भी नहीं आता है. आजकल तो पद का गौरव ही लड़कियों के सब से बड़े हथयिार हो गए हैं. न बड़ों का मान-सम्मान न पति की कोई कद्र. पति साथ मिलकर हर काम में मदद करता रहता है, फिर भी छोटी-छोटी बातो में उसे जेल भेजने और पुलिस की धमकियां मिलती रहती है. शिल्पा जैसी करियर बेस्ड लड़कियों के लिए तो आजकल शादी का जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया है.

यह भी पढ़ें: छोटी-छोटी बातें चुभेंगी, तो भला बात कैसे बनेगी? (Overreaction Is Harmful In Relationship)

Short Story

वह महसूस कर रही थी कि मनीष उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिए बेताब था, पर वह अपने मन का थाह ही नहीं लगने दे रही थी. वह चुपचाप उठकर किचन में आ गई. पीछे से मनीष भी उठकर आ गया था.
‘‘मां, शिल्पा आपको कैसी लगी." सुमेधा के गले में मनीष अपनी बांहें डालते हुए बोला.
‘‘जब तुम दोंनो ही एक-दूसरे से प्यार करते हो, फिर मुझे पसंद हो या नहीं हो, क्या अंतर पड़ता है. तुम दोंनो को शादी करनी है, तो हो जाएगी. आजकल बच्चों के जीवन में माता-पिता का क्या कोई स्थान रह गया है, जो हम कुछ बोले."
तभी मनीष के पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी, ‘‘ऐसा मत कहिए मां. मुझसे ज़्यादा मां का मूल्य कौन समझ सकता है, जिसने अपनी मां को जन्म लेते ही खो दिया हो. घर में विमाता के आ जाने के बाद से मेरे जीवन का अधिकतर हिस्सा हाॅस्टल में मां के प्यार के लिए तरसता हुआ ही गुज़रा. मैं जानती हूं कि मैं आपके संस्कारी बहूवाले कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती. न मैं सुंदर हूं, पर मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि जैसा आप चाहेंगी, मैं वैसा ही अपने आपको बदल लूंगी, बस मुझे दिल से अपना लीजिए मां..!"
कभी-कभी विनम्रता से कही गई कुछ बातें, अचानक बहुत कुछ बदल देता है. उसके मुंह से 'मां' सुन, सुमेधा का मन भी भीगने लगा था. ऐसे ही निश्छल बहू की तो उसे तलाश थी. अचानक उसके अंदर ममता का एक ज्वार-भाटा सा उठा और वह उसे खींचकर अपने गले से लगा ली.
‘‘तू तो बहुत प्यारी लड़की है. तुम्हे नहीं बदलना है, मुझे. तू जैसी है वैसी ही अच्छी है. अब तू मेरा यह निर्णय भी सुन ले कि तू ही मेरी बहू बनेगी. दूसरी कोई नहीं.’’

यह भी पढ़ें: शादीशुदा ज़िंदगी में कैसा हो पैरेंट्स का रोल? (What Role Do Parents Play In Their Childrens Married Life?)

फिर अपने गले से चेन निकालकर उसके गले में डालते हुए बोली, ‘‘आज से ही तू मेरे बच्चों में शामिल है. तुम्हारा भी मेरे प्यार पर उतना ही अधिकार है, जितना मनीष और रमा का.’’
शिल्पा ने जब आश्चर्यचकित भीगी दृष्टि से सुमेधा को देखा, तो उसे ऐसा लगा जैसे कुछ देर पहले सुमेधा की जिस दृष्टि में इंकार था, अब वहां केवल प्रेम था. अबाध और निश्छल प्रेम, जिसकी उसे शिद्दत से तलाश थी.

Rita kumari
रीता कुमारी

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article