वह सोच रही थी, ‘वरदान ने आज से पहले तो कभी इतनी लंबी चुप्पी नहीं साधी.’ उसके मन में उसकी सलामती को लेकर न जाने कैसे-कैसे ख़्याल उमड़-घुमड़ रहे थे.
रात के दस बजे सोहा और वरदान के विवाह का शुभ मुहूर्त था.
उसका कलेजा मुंह को आ रहा था और मन में खौफ़ की लहरें उठ रही थीं.
सोहा ने तड़के पांच बजे आंख खुलते ही अपना व्हाट्सएप चेक किया, लेकिन मंगेतर वरदान का कोई मैसेज न देख मायूस हो तुरंत उसे संदेश टाइप किया और भेज दिया.
"तुम्हें तो कल सुबह ही यहां पहुंचना था. याद भी है या भूल गए कि आज हमारी शादी है. हमारी ज़िंदगी का वह अरमानों भरा दिन, जिसके ख़्वाब हमने ताउम्र देखे. मुझे तुम्हारी बेहद फ़िक्र हो रही है. अगर किसी बहुत ज़रूरी काम में फंसे हो, तो बस ‘ठीक हूं’ भेज दो. मुझे तसल्ली हो जाएगी."
दोपहर के बारह बजने आए, लेकिन अभी तक वरदान की कोई खोज ख़बर नहीं थी.
वह सोच रही थी, ‘वरदान ने आज से पहले तो कभी इतनी लंबी चुप्पी नहीं साधी.’ उसके मन में उसकी सलामती को लेकर न जाने कैसे-कैसे ख़्याल उमड़-घुमड़ रहे थे.
रात के दस बजे सोहा और वरदान के विवाह का शुभ मुहूर्त था.
उसका कलेजा मुंह को आ रहा था और मन में खौफ़ की लहरें उठ रही थीं.
‘जरूर वरदान को कुछ हो गया, तभी वह और उसके सहकर्मी मौन हैं.' उसके पिता ने वरदान के दो-तीन सहकर्मियों को भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी फोन नहीं उठाया.
सभी के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहराने लगीं.
वक़्त के बढ़ते कदमों को कब कोई थाम पाया है?
रात के सात बजने आए थे. सोहा के घर में शहनाई की मधुर तान की जगह सन्नाटा पसरा हुआ था. मात्र उसकी धीमी-धीमी सुबकियां वातावरण की निस्तब्धता भंग कर रही थीं. अब तो वह रोते-रोते भी थक चुकी थी.
तभी उसने अपने फोन पर नए मैसेज की टिंग-टिंग सुन बड़ी अधीरता से फोन चेक किया.
"सोहा, यहां हमारे कैंप के आसपास लैंडस्लाइड हो गया है. मेरे दस सहकर्मी और बारह जवान मारे गए. सीनियर्स में बस मैं ही बचा हूं. सो मुझे बचाव कार्य की टीम का चीफ बनाया गया है. इसीलिए सुबह से तुम्हें मैसेज करने तक की फ़ुर्सत नहीं मिली. कुछ कह नहीं सकता, कब तक लौटूंगा. आशा है, तुम परिस्थिति की गंभीरता समझोगी, और दुखी नहीं होगी. आख़िर तुम एक फौजी की मंगेतर हो और तुम्हारी भावी ज़िंदगी का यह पहला सबक है. शादी का क्या है? किसी और मुहूर्त में हो जाएगी.”
मैसेज पढ़ते ही अनायास अदम्य क्रोधावेश की लहर उठी और उसके मुंह से एक मर्मभेदी आह निकली और वह ज़ोर-ज़ोर सिसकने लगी.
ज़ेहन में कशमकश शुरू हो गई. वरदान उसकी अपनी पसंद था. पति के रूप में एक फौजी अफ़सर का चुनाव करने पर सहेलियों के कहे हुए अल्फ़ाज़ कानों में गूंजने लगे, “एक फौजी के साथ ज़िंदगी बिताना आसान नहीं होगा. कदम-कदम पर अड़चनें आएंगी.”
एक पल को अपने निर्णय को लेकर संशय का नाग फ़न उठाने लगा.
‘क्या वह एक फौजी के साथ बंध कर ताज़िंदगी सुखी रह पाएगी? उसके साथ ज़िंदगी भरपूर एंजॉय कर पाएगी?’
तभी अगले ही क्षण स्वार्थी सोच पर देशभक्ति का जज़्बा भारी हो उठा और अनायास वह बुदबुदा उठी, “पहले फ़र्ज़, फिर कुछ और…”
फिर अपने आंसू पोंछते हुए, तनिक संयत होते हुए वह बुदबुदाई, “देश के नाम ऐसे सौ मुहूर्त क़ुर्बान.”
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