"जानवरों में हिंसा के अलावा भी एक और कमी होती है." मैंने लकड़ियां इकट्ठा करनी शुरू की.
"जानवर किसी रिश्ते को नहीं मानते हैं, ना भाई-बहन, ना देवर-भाभी… उनके लिए बस नर-मादा होना मायने रखता है!"
आलोक की गुर्र-गुर्र मुझे सुनाई दे रही थी, पूरी हिम्मत बटोरकर मैंने लकड़ी पर मिट्टी का तेल डालकर तीली छुआ दी.
"इतने बड़े घर में अकेले रहते हुए डर नहीं लगता?" आलोक ने पता नहीं क्यों ये बात मुस्कुराते हुए पूछी.
"नहीं लगता, आदत है…" मैंने संयत रहने के लिए एक घूंट पानी पिया.
"विपिन तो अक्सर दौरे पर ही रहते थे. पहले महीने में पंद्रह दिन अकेले रहती थी… अब तलाक़ के बाद उसी तरह पूरा महीना बिता देती हूं!"
"वैसे एक बात है, मेरा दोस्त अपनी क़िस्मत संभाल नहीं पाया… नहीं तो इतनी ख़ूबसूरत पत्नी पर कोई हाथ उठाता है क्या?" आलोक ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा.
"विपिन एक हिंसक जानवर था और जानवर मुझे पसंद नहीं हैं… वैसे इन बातों को छेड़कर अब क्या फ़ायदा?" मैं असहज होने लगी थी. सब याद आ रहा था; कभी बेल्ट उठाकर मुझे धुन देना, कभी दीवार से मेरा सिर भिड़ा देना और कभी जलती सिगरेट…
आलोक मेरे बगलवाली कुर्सी पर आकर बैठ गया था. "साॅरी, मैंने वो बात कही… लेकिन सपना, ऐसे अकेले रहना, समझ रही हो ना?"
मैं चौंक गई, 'सपना भाभी' से मैं 'सपना' कब हो गई? मैंने उसकी ओर देखा और पहली बार महसूस किया कि उसका चेहरा बालों से भरा हुआ था और दांत नुकीले, मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई!
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"देखो सपना! ज़िंदगी अकेले नहीं कटती है. सौ तरह के काम, सौ तरह की ज़रूरतें होती हैं! अपने को अकेला मत समझना. हालांकि मेरा भी परिवार है, पत्नी है… लेकिन तुम भी ख़ास हो, जब भी अकेलापन महसूस हो, बस एक आवाज़ देना… हर आदमी हिंसक जानवर नहीं होता." चाशनी में शब्दों को पगाते हुए आलोक के हाथ मुझे छूने के लिए फड़फड़ा रहे थे. मैं सर्वांग कांप उठी. इतने बड़े पैने नाख़ून और बड़े-बड़े बालोंवाला हाथ!
"जानवरों में हिंसा के अलावा भी एक और कमी होती है." मैंने लकड़ियां इकट्ठा करनी शुरू की.
"जानवर किसी रिश्ते को नहीं मानते हैं, ना भाई-बहन, ना देवर-भाभी… उनके लिए बस नर-मादा होना मायने रखता है!"
आलोक की गुर्र-गुर्र मुझे सुनाई दे रही थी, पूरी हिम्मत बटोरकर मैंने लकड़ी पर मिट्टी का तेल डालकर तीली छुआ दी.
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"आलोक, अपना घर-परिवार संभालिए, मुझे नहीं… बताया था न मैंने, जानवर मुझे पसंद नहीं हैं!"
धूं-धूं करके लकड़ी जल रही थी, ऊंची-ऊंची लपटों के बीच मैं सुरक्षित बैठी थी… जानवर आग से डरकर भाग गया था…
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