"तुम्हें पता है ना, नहीं पसंद है मुझे… समझाओ उसको. कराटे-वराटे में नाम लिखवा दो!.. अदिति भी ना, वही तुम्हारी वाली सनक!" समीर की हंसी मुझे घायल कर रही थी. मैंने मुड़कर देखा, धीरे-धीरे उस लड़की का मुंह आलमारी से बाहर आ रहा था…
समीर के ऑफिस जाते ही मैं उस कमरे में आ गई. टूटी कुर्सियों, फ़ालतू गद्दों और एक बहुत पुरानी आलमारी का बोझ सहता ये कमरा. इस बड़े से घर का सबसे छोटा और भरोसेमंद कोना है… इसने कभी किसी को नहीं बताया कि इस जंग लगी आलमारी में एक लड़की दस साल पहले बंद कर दी गई थी!
"समीर! मैं कत्थक का कोर्स पूरा कर लूं?.. यहीं दो घर छोड़कर सिखाया जाता है…" दस साल पहले पति का हाथ अपने हाथों से सहलाते हुए पूछ लिया.
"दिमाग़ ख़राब है क्या शुभि?" समीर ने हाथ ऐसे झटका जैसे छिपकली चिपक गई हो.
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"आते-जाते सुनता हूं, घुंघरू बांधकर छुन-छुन की आवाज़ें करती रहती हैं लड़कियां, धंधे वालियों जैसी. पता नहीं कैसे तुम्हारे पिताजी सीखने देते थे. आइंदा नाम मत लेना इन सबका…"
जिस एक पल में मेरे पिताजी को लापरवाह और मुझे 'धंधे वाली' सिद्ध कर दिया गया था, ठीक उसी पल से सारे इनाम, घुंघरू, पदक और मेरे अंदर की पुरस्कार बटोरती नृत्यांगना, इसी आलमारी में बंद हो गई थी.
लेकिन आज सुबह जो हुआ, वो फिर से बेचैन कर गया.
"मम्मा प्लीज़! मेरा भी नाम लिखवा दीजिए कत्थक में, आप कितने दिनों से टाल रही हैं… मेरी सहेलियां रिदिमा और मायरा भी तो जाती हैं ना." स्कूल जाते समय अदिति डबडबाई आंखें लिए गिड़गिड़ा रही थी.
कैसे बात करूं समीर से? यही कहेंगे कि मैंने उकसाया है उसे.
"हेलो समीर! अदिति बहुत दिनों से कह रही है कत्थक क्लास के लिए… मतलब उसकी सहेलियां भी जाती हैं…" बड़ी मुश्किल से इतने शब्द निकल पाए, मैंने देखा आलमारी खुल रही थी.
"तुम्हें पता है ना, नहीं पसंद है मुझे… समझाओ उसको. कराटे-वराटे में नाम लिखवा दो!.. अदिति भी ना, वही तुम्हारी वाली सनक!" समीर की हंसी मुझे घायल कर रही थी. मैंने मुड़कर देखा, धीरे-धीरे उस लड़की का मुंह आलमारी से बाहर आ रहा था…
"सनक नहीं, झुकाव है नृत्य के प्रति…आज जाऊंगी उसका नाम लिखवाने. घर आते-आते हम लोगों को देर हो जाएगी."
फोन रखते ही घुंघरुओं की आवाज़ गूंजने लगी; लड़की आलमारी से बाहर आ गई थी.
- लकी राजीव
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