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लघुकथा- सास बनीं जब मां… (Short Story- Saas Bani Jab Maa…)

मैं परेशान हो गई. तभी सासू मां किचन में आईं और यह सब देखकर मुझसे बिना कुछ बोले वह एक बरतन में बेसन फेंटने लगीं. उन्होंने बचे हुए आलू मसलकर गोले बनाने शुरू कर दिए और दूसरी कड़ाही रखकर आलू वड़े तलने लगीं.

यह बात तब की है, जब मुझ नई नवेली को सुसराल में आए सिर्फ़ एक ही माह हुआ था. घर पर कुछ मेहमान आए हुए थे और मुझे उनके लिए कुछ ख़ास बनाने को बोला गया था. 'मैं खाना बनाने में माहिर हूं…' मुझे अब तक तो ऐसा ही लगता था. यही सोचकर मैंने फ़टाफ़ट समोसे बनाने की तैयारियां शुरू कर दी.
समोसों को तलने के लिए मैंने जैसे ही कड़ाही में डाला वैसे ही पता नहीं क्यों? समोसों का आलू बाहर आने लगा और पूरा तेल काला पड़ गया.

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मैं परेशान हो गई. तभी सासू मां किचन में आईं और यह सब देखकर मुझसे बिना कुछ बोले वह एक बरतन में बेसन फेंटने लगीं. उन्होंने बचे हुए आलू मसलकर गोले बनाने शुरू कर दिए और दूसरी कड़ाही रखकर आलू वड़े तलने लगीं.
मुझे दूसरे कुकर में और आलू उबालने को कहा. फिर वे आलू वड़ों को एक प्लेट में सजाकर मेरे हाथों में देकर बोलीं, "जाओ बेटा! ले जाओ और कहना यही की तुमने ही बनाएं हैं."

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मैं सासू मां को देखकर मन ही मन सोचने लगी कि न जाने कौन कहता है कि सास कभी मां नहीं बन सकती.

- पूर्ति वैभव खरे

Photo Courtesy: Freepik

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