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कहानी- सफल जन्म (Short Story- Safal Janam)

हर्ष के जन्म के साथ ही एक मां के रूप में जन्म हुआ और उसी के साथ ढ़ेरों ज़िम्मेदारियां. उन ज़िम्मेदारियों में मैं अपना अस्तित्व ही भूल गई. जब मेरा जन्म हुआ, तो बस यह घर, पति और बच्चों को संभालने के लिए हुआ. इन सभी को सेट देखकर मैं ख़ुश थी. सोचने लगी कि अब सारी ज़िम्मेदारियां पूरी हो गई हैं, तो थोड़ा अपने लिए भी जी लूं. तभी तुम्हारे दादा भी मुझे अकेली छोड़ कर चले गए.

"दादी मां, हर किसी के जन्म के पीछे विधाता कोई न कोई ध्येय निश्चित किए रहता है? क्या यह बात सच है?" विधि दादी मीना की गोद में सिर रखे आकाश में तारों को देखते हुए बोली.
"हां, होता है, पर अपने जन्म का ध्येय कोई कोई ही पूरा करने में सफल होता है." विधि के सिर पर हाथ फेरते हुए मीना ने कहा.
"ऐसा क्यों दादी मां? हर किसी का ध्येय क्यों नहीं पूरा होता? मम्मी-पापा का तो पूरा हुआ है न? यूएसए में सेट हो गए हैं."
"जन्म हो गया यानी पूरा नहीं हो जाता बेटा. इस जन्म के साथ दूसरे तमाम जन्म होते हैं, जैसे- जिम्मेदारियां, चिंताएं, सपने के साथ रोज़ाना नित नए विचार और संबंध तक जन्म लेते हैं. सब के बीच संतुलन बनाने में आदमी का उसका जन्म क्यों हुआ है, इसका पता ही नहीं चलता."
"इतने अधिक जन्म, एक ही जन्म में. दादी, आपने भी तो कोई सपना देखा होगा न?" हैरानी से विधि बोली.
"मैं अपनी बात करूं तो बेटा… जन्म हुआ. बेटी जानकर सभी का मुंह लटक गया, बेटी की एक मर्यादाएं होती हैं. कुछ सालों बाद भाई का जन्म हुआ. उसी के साथ एक और जन्म हुआ. बड़ी बहन होने की वजह से मां की तरह उसे संभालना पड़ा, जहां सोचना-विचारना सीखा. विचार और सपनों ने जन्म लेना शुरू किया था कि एक पत्नी के रूप में जन्म हुआ.


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हर्ष के जन्म के साथ ही एक मां के रूप में जन्म हुआ और उसी के साथ ढ़ेरों ज़िम्मेदारियां. उन ज़िम्मेदारियों में मैं अपना अस्तित्व ही भूल गई. जब मेरा जन्म हुआ, तो बस यह घर, पति और बच्चों को संभालने के लिए हुआ. इन सभी को सेट देखकर मैं ख़ुश थी. सोचने लगी कि अब सारी ज़िम्मेदारियां पूरी हो गई हैं, तो थोड़ा अपने लिए भी जी लूं. तभी तुम्हारे दादा भी मुझे अकेली छोड़ कर चले गए.
मैं एकदम अकेली थी कि बेटे के घर बच्चे जन्मे, तो नया जन्म दादी के रूप में हुआ. बेटा और बहू तुम्हें मेरे भरोसे छोड़ कर विदेश चले गए, तो मैं फिर से तुम्हारे लिए मां बनी. मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मैं अपने जन्मे हर पात्र में सफल रही हूं. यही है ज़िंदगी का सत्य, जिसकी वजह से कोई भी जन्म को सार्थक और अमर बना सकता है. बाकी तो रोज़ असंख्य लोग जन्म लेते हैं और मरते हैं." अपना जन्म किस तरह बीता, दुखी भावनाओं के साथ व्यक्त करते हुए मीना ने कहा.
"कुछ नहीं दादी मां, अब कुछ नया सोच कर नई शुरुआत कीजिए."
"मतलब?" हैरानी से विधि को ताकते हुए मीना ने पूछा.
"मतलब यह मेरी भोली दादी मां कि मुझे पता है कि आपकी हमेशा से पढ़ने की इच्छा रही है, जो पूरी नहीं हुई. मैं काॅलेज में अपना एडमिशन कराने जा रही हूं. अपने साथ आपका भी एडमिशन करा दूं तो..?"
"बेटा, तुम भी कैसा मज़ाक कर रही हो. इस उम्र में कौन पढ़ने जाता है. अब तो भगवान के घर जाने का समय आ गया है, काॅलेज जाने का नहीं." फीकी हंसी हंसते हुए वृद्ध मीना ने कहा.
"अभी-अभी तो आपने कहा है कि जन्म विचारों से होता है, तो विचार पैदा कीजिए न. एक छोटी-सी ज्योति काफ़ी है अंधकार भगाने के लिए."
"फिर भी…"
"फिर विर कुछ नहीं. कल आप मेरे साथ काॅलेज चल रही हैं. यह मेरा आदेश है." विधि ने अधिकार जताते हुए कहा.
"ठीक है, चलो जैसी प्रभु की इच्छा." कहकर मीना ने सहमति दे दी.
विधि ने अपनी दादी मां के एडमिशन से लेकर क्लास में बैठने तक की सारी व्यवस्था कर दी. विधि विज्ञान की छात्रा थी, जबकि मीना हिंदी साहित्य पढ़ना चाहती थीं. उन्हें वैसे भी पढ़ने का शौक था. इस उम्र में काॅलेज में पढ़ने का साहस करना हर महिला के लिए एक प्रेरणा बन सकता है.
शुरू में क्लास में सब मीना को प्रोफेसर समझते रहें, पर वह भी पढ़ने आई हैं, यह जान कर सभी को हैरानी हुई. उनकी ग्रहणशक्ति और कुछ कर गुज़रने की लगन से वह अन्य छात्रों के लिए प्रेरणा की मूर्ति बन गईं. काॅलेज के तीन साल कब और कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. पोती के साथ काॅलेज जातीं, साथ ही पढ़ती-लिखतीं. आख़िर अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा हो गई.
अचानक मीना की तबीयत बहुत ज़्यादा ख़राब हो गई. काफ़ी इलाज कराने के बावजूद भी ज़रा भी सुधार होता नहीं दिखाई दिया. अंत में डाॅक्टर ने उन्हें घर ले जाने के लिए कहकर सलाह दी, "अब यह कुछ ही दिनों की मेहमान हैं जितना हो सके, उतना ख़ुश रखना, बाकी ईश्वर की मर्ज़ी."


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मीना अपने जीवन से ख़ुश थीं. उन्हें अपना जन्म काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने का सपना पूरा करके सफल लग रहा था. ज़िंदगी के अंतिम पल वह पोती के साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिता रही थीं. बेटा और बहू भी विदेश से आ गए थे. वह अंतिम सांस ले रही थीं, तभी घर आ कर विधि ने कहा, "यह देखो दादी, अख़बार में आपकी फोटो छपी है. आपने यूनिवर्सिटी में टाॅप किया है. लिखा है हर महिला के लिए प्रेरणास्रोत मीना का अभिनंदन. मीना ने साबित कर दिखाया है कि पढ़ने या नए विचारों को जन्म देकर साकार करने की कोई उम्र नहीं होती."
यह सुनकर मीना के चेहरे पर संतोष की मुसकान आ गई. दिल में जन्म सफल होने के आनंद के साथ आंखें बंद कर के चिरनिद्रा में समा गईं. उनके चेहरे का संतोष देखकर विधि की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रोए या ख़ुश हो. वह आंखें बंद करके उनके पास बैठी रही. तभी दादी के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे, "अपने जन्म को कोई भी सार्थक और अमर बना सकता है, बाकी तो रोज़ाना असंख्य लोग पैदा होते है और मरते हैं…"

स्नेहा सिंह

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