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कहानी- समझदार बेटी (Short Story- Samazdar Beti)

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 डॉ. चमन टी. माहेश्‍वरी
पापा का पर-स्त्री के प्रति आकर्षण का कारण कहीं हम लोग तो नहीं? पापा तो हमसे बहुत ही प्यार करते हैं. हमारी छोटी-छोटी बातों का कितना ध्यान रखते हैं. समाज में पापा का मान-सम्मान है. फिर पापा ऐसा क्यों कर रहे हैं?
कहानी, समझदार बेटी, Short Story Samazdar Beti अनन्या, क्या हुआ?” रोमा ने अनन्या का अचानक चिंतित चेहरा देखकर पूछा. “कुछ नहीं रोमा.” धीरे से अनन्या ने जवाब दिया. अनन्या व उसकी सहेलियां रोमा की जन्मदिन की पार्टी में होटल में आई थीं. वहीं अनन्या ने अपने पापा को एक ख़ूबसूरत महिला के साथ देखा. उन दोनों के आपसी व्यवहार को देखकर उसे महसूस हुआ कि वो महिला उसके पापा के बहुत ही ‘क़रीब’ है. होटल में हल्की रोशनी होने और उसकी बहुत सारी सहेलियों की भीड़ होने के कारण उसके पापा ने उसे नहीं देखा. पार्टी चल रही थी, पर हमेशा पार्टी में चहकने वाली अनन्या का मन पार्टी में नहीं लग रहा था. उसे अपने पापा पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था और मम्मी पर दया आ रही थी. पहले उसे लगा था कि शायद यह भ्रम है, पर इन दिनों वो पापा के व्यवहार और दिनचर्या में काफ़ी बदलाव देख रही थी. अब वे घर देरी से आते और पहले जैसे खीझते या झुंझलाते भी नहीं थे. कहीं इसका कारण यह महिला तो नहीं? अनन्या को अपने पापा पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था. उसने मन ही मन ठान लिया कि अब वो पापा से बात नहीं करेगी. लेकिन साथ ही उसे इस बात का भी डर लग रहा था कि मम्मी को पता चलेगा तो? मम्मी की हालत कैसी हो जाएगी? मम्मी-पापा में दूरियां बढ़ जाएंगी. कहीं पापा ने उस स्त्री के साथ शादी कर ली, तो उन्हें छोड़ ही देंगे? वे लोगों के सामने बेचारे बन जाएंगे. सोचते-सोचते उसे चक्कर-सा आने लगा. पार्टी के ख़त्म होते ही वह सीधे घर गई और कमरे में जाकर सो गई. मम्मी ने दो-तीन बार पूछा भी कि क्या हुआ, पर वह मम्मी को यह सब कैसे बताती? शाम को पापा के आने की आवाज़ आई, “रीमा, चाय बना दो. मैं थक गया हूं. आज ऑफिस में बहुत काम था.” पापा का स़फेद झूठ सुनकर उसे इतना ग़ुस्सा आया कि वह सीधे बैठक में जाकर मम्मी को असलियत बता दे. पर कहीं कुछ उल्टा हो गया तो? मम्मी-पापा के बीच ज़ोरदार झगड़ा हो गया और बात बिगड़ गई तो? पूरी रात वह सो नहीं पाई. दूसरे दिन पापा के ऑफिस जाने के बाद ही वह कमरे से बाहर आई. रोज़ की तरह मम्मी फोन पर मशगूल थी. सामने शायद मौसी थी. आधे घंटे के बाद फोन रखकर पूछा कि क्या बात है? उसने सिरदर्द का बहाना बना दिया. मन में चल रही विचारों की आंधी से राहत पाने के लिए उसने टीवी ऑन कर दिया. टीवी सीरियल में वही पति-पत्नी का झगड़ा आ रहा था. यूं उसे यह सब देखना पसंद नहीं था, पर आज उसने चैनल नहीं बदला. “मैंने तुम्हारे परिवार के लिए अपने आपको पूरी तरह से भुला दिया और तुम बाहर गुलछर्रे उड़ा रहे हो, आख़िर मुझमें क्या कमी है?” पत्नी रोते हुए बोली. “तुम स़िर्फ अपने बच्चों, फोन और गृहस्थी में सिमट गई हो, अब मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही कहां रह गया है?” पति आगे बिना कोई बहस किए घर से बाहर निकल गया. पीछे पत्नी बड़बड़ाती रही. उसकी सोच की दिशा बदल गई. पापा का पर स्त्री के प्रति आकर्षण का कारण कहीं हम लोग तो नहीं? पापा तो हमसे बहुत प्यार करते हैं. हमारी छोटी-छोटी बातों का कितना ख़्याल रखते हैं. समाज में पापा का मान-सम्मान है, फिर पापा ऐसा क्यों कर रहे हैं? उसने फिर से सभी बातों पर नए सिरे से सोचना शुरू किया. इतनी बड़ी हो जाने और कॉलेज जाने लगी है, इसके बावजूद वो आज भी मम्मी के साथ सोती है. इस उम्र में भी ख़ुद को छोटी बच्ची समझती है और छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी चाहे नहाने के कपड़े हों या फिर नूडल्स ही क्यों न खाना हो, मम्मी पर ही निर्भर रहती है. उसकी देखा-देखी छोटा भाई भी मम्मी पर ही पूरी तरह निर्भर रहता है. वह भूल गई कि मम्मी-पापा पति-पत्नी भी हैं. उन दोनों को भी साथ में समय बिताना चाहिए. उसे याद नहीं है कि कब मम्मी-पापा अंतिम बार अकेले फिल्म या होटल गए हों. यहां तक कि दोनों की शादी की सालगिरह पर भी वे बच्चों के साथ होटल जाते हैं. मम्मी तो पूरी तरह से हाउसवाइफ और केवल मम्मी बनकर रह गई है. ऊपर से मम्मी को कितने ही फोन भी आते रहते हैं. यहां तक कि रविवार और छुट्टी के दिन भी फोन के आने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है. उसे याद है कि एक दिन पापा ने मज़ाक में कहा था, “जब से फोन आने लगे हैं, तब से स्त्री को मायके जाने की ज़रूरत कम ही पड़ती है.” उस दिन पापा की बात पर सब कितना हंसे थे. लेकिन वो शायद पापा के अंतर्मन के अकेलेपन की व्यथा थी. अब उसे ऐसी कई छोटी-बड़ी बातें याद आ रही थीं, जिन्हें वो सामान्य समझती थी. अब उसे पापा का इस तरह बदल जाना समझ में आ रहा था. भले ही उसके पापा रास्ता भटक गए हों, पर अब वो समझदार बेटी की तरह पापा को एहसास कराएगी कि घर ही उनकी मंज़िल है, अनन्या ने दृढ़ता के साथ सोचा, तब कहीं जाकर उसका मन शांत हुआ. “मम्मी, आज ब्यूटीपार्लर चलते हैं.” उसने मम्मी के गले में बांहें डालते हुए कहा. “पर तेरी सहेली की पार्टी तो कल ही हो गई.” मम्मी ने उसे लाड़ से समझाते हुए कहा. “अरे, मेरे लिए नहीं, आपके लिए चलते हैं. आप कितने महीनों से ब्यूटीपार्लर नहीं गई. आपकी आईब्रो तो पापा के मूंछों जैसी चौड़ी हो गई है.” उसने आईब्रो पर हाथ रखकर नाटकीयता से कहा, तो मम्मी ज़ोर से हंसते हुए ‘हां’ बोली. “अरे हां, आज नाश्ते में क्या खाओगी?” मम्मी रसोई में जाते हुए बोली. “मम्मी, मैं बड़ी हो गई हूं. आज नाश्ता मैं बनाऊंगी. आप मुझे बस सिखा दीजिए.” गैस चालू करते हुए अनन्या बोली. यह सुनकर उसकी मां आश्‍चर्य से देखती रह गई कि उसने आज तक ख़ुद रसोई में जाकर पानी तक नहीं पीया और आज खाना बनाने की बात कर रही है. “तू पढ़ाई कर, मैं खाना बनाती हूं.” “नहीं मम्मी, आप ये सब अकेले करते-करते कितना थक जाती हो.” उसने मम्मी की तरफ़ प्यार भरी नज़र से देखते हुए कहा. छोटे-छोटे काम अब वो ख़ुद करने लगी, ताकि मम्मी को समय व आराम मिल सके. कितनी बार उसने मम्मी को रात को सोते समय कहते सुना था कि आज तो पूरे दिन काम करते-करते कमर टूट-सी गई है. रात को पापा आए. “पापा, आज आप मेरे हाथ की गर्मागर्म चाय पीजिए, पर हां, कोई कमी मत निकालना.” उसने नाटकीयता से कहा. “अरे, मेरी बेटी बड़ी हो गई.” पापा ने चाय हाथ में लेते हुए कहा. उसे लगा जैसे पापा मुंह से बड़ा शब्द कहते-कहते ग्लानि महसूस कर रहे थे. रात को सोते समय उसने मम्मी से कहा, “मम्मी, आज मुझे कॉलेज का प्रोजेक्ट करना है, काफ़ी देर हो जाएगी. मैं छोटू के रूम में पढ़ती हूं.” उसने सारी क़िताबें भाई के रूम में ले जाते हुए कहा. रात को वह वहीं सो गई. रविवार था सब बैठे थे. अचानक फोन की घंटी बजी. अनन्या ने लपककर फोन उठाया, “अरे, मौसी कैसी हैं? मम्मी, अभी रसोई में व्यस्त हैं. कोई ख़ास काम था क्या?” उसने बहाना बनाते हुए फोन रख दिया. मम्मी ने उसे ग़ुस्से से घूरा, पर पापा हल्के से मुस्कुरा दिए. एक दिन मम्मी का जन्मदिन था. पापा ने शाम को होटल में डिनर का कार्यक्रम रखा. तय हुआ शाम को घर पर केक काटकर रात को होटल चलेंगे. केक काटने के बाद शाम को जाने का समय हो रहा था, पापा सबको जल्दी तैयार होने के लिए कह रहे थे. “मम्मी, मेरे पेट में तेज़ दर्द हो रहा है. सुबह कैंटीन में खाने के कारण शायद ऐसा हुआ.” अनन्या ने कराहते हुए कहा. “चलो बेटा, डॉक़्टर को बताते हैं.” पापा ने चिंतित होकर कहा. “नहीं पापा, पेनकिलर ले लेती हूं. आप और मम्मी डिनर पर चले जाओ. छोटू है न मेरा ध्यान रखने के लिए.” उसने दर्द का नाटक करते हुए कहा. मम्मी-पापा उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं हो रहे थे, पर उसने अपनी क़सम देकर दोनों को भेजा. वे अनमने से गए. होटल पहुंचकर फोन किया, “बेटा, तबियत कैसी है?” जवाब में अनन्या-छोटू ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. वे समझ गए बच्चों ने उन्हें अकेले भेजने के लिए यह नाटक किया. धीरे-धीरे दोनों आपस में खुल गए. दोनों वर्षों बाद अकेले होटल गए थे. शादी के समय की पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं. कुछ दिन बाद सुबह बाथरूम में पापा फोन पर ‘हां-हूं’ कर रहे थे. सामने जैसे कोई महिला ग़ुस्से में बोल रही थी. पापा ने सॉरी कहते हुए जल्दी से फोन रख दिया. जब पापा बाथरूम से बाहर आए, तो अनन्या ने भावुक स्वर में कहा, “थैंक्यू पापा.” पापा ने अनन्या को प्यार से गले लगाते हुए कहा, “मेरी समझदार बेटी.”  

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