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कहानी- संतुलन (Short Story- Santulan)

“ये क्या दीदी कुछ मेरे बारे में भी तो पूछो मैं कैसी हूं?.. क्या कर रही हूं? किस पोस्ट पर हूं? जानती हो पिछले महीने ही मुझे प्रमोशन मिला है और बेस्ट मैनेजर का अवॉर्ड भी. ऑफिस में मेरे मैनेजमेंट स्किल की मिसाल दी जाती है." भव्या की आंखें चमक आयीं.
"हां, तेरा मैनेजमेंट स्किल तो मैं देख ही रही हूं." दीदी ने घर में चारों ओर दृष्टि घुमाते हुए आक्रोश भरे स्वर में कहा. हर जगह फैली अव्यवस्था जहां-तहां बिखरे कपड़े, चीज़ें, अख़बार… धूल… भव्या उनकी पैनी दृष्टि को भांप कर झेंप गई.

आज बड़े दिनों बाद भव्या अपने टैरेस पर आई. उसने लंबी गहरी सांस भर चारों ओर नज़रें घुमाई तो अवाक रह गई… अरे सामने तो बड़ा ही सुंदर ग्रीन व्यू था… लहराते पेड़ और हरियाली… ये बिल्डिंग कब बनी… दूसरी ओर भी कंस्ट्रक्शन चल रहा था… ओह गॉड… चार साल पहले इस ग्रीन सीनिक व्यू के लिए ही इतना महंगा टैरेस फ्लैट लिया था… और इसके लिए उन्हें कितना ज़्यादा पे करना पड़ा था… अभी तक होम लोन की किश्तें चल रही हैं… पर यहां भी चारों ओर कंस्ट्रक्शन शुरू हो गया… फिर उसकी निराश नज़रें टैरेस पर लगी गमलों की कतारों पर पड़ी… सभी पौधे सूख चुके थे… ओह… उसका मन अपराधबोध से भर गया… फ्लैट में शिफ्ट होने के बाद सबसे पहला काम उसने यही किया था नर्सरी से ढेर सारे पौधे लाई थी, कभी वो, तो कभी नीरज पौधों में पानी डाल दिया करते… पर ये सिलसिला कब बंद हुआ पता ही नहीं चला… भव्या को याद नहीं आ रहा था कि पिछली बार वो कब टैरेस पर आकर बैठी थी… शायद आज भी ना आती अगर उसने अपने दीदी-जीजाजी के आने पर दो दिन की छुट्टी ना ली होती.
वैसे छुट्टी लेना भव्या की फ़ितरत में नहीं था. एक मल्टीनेशनल कंपनी में पक्की वर्कहॉलिक सीनियर मैनेजर थी. घर, सेहत, रिश्ते-नाते… अपने काम के आगे उसे कुछ दिखाई ही नहीं देता था, मगर इस बार वो झुक गई.. बात ही ऐसी हुई. पिछले हफ़्ते मां से बातों-बातों में पता चला कि दीदी-जीजाजी तीन-चार दिनों के लिए किसी शादी में शामिल होने बैंगलुरू आ रहे हैं, सुनकर भव्या ख़ुश हो गई, बहुत दिनों से लो फील कर रही थी. चार साल की शादी में पहली बार उसे अकेलापन महसूस हो रहा था. नीरज तीन महीने के ऑफिशियल टूर पर जर्मनी गए हुए थे, ऐसे में दीदी के आने की ख़बर से उसे अच्छा महसूस हुआ. वो इंतज़ार करती रही कि दीदी का अपना प्रोग्राम बताने के लिए फोन आएगा… मगर नहीं आया. उसे घबराहट होने लगी… कहीं दीदी उसे अनदेखा तो नहीं कर रही हैं… नहीं… मेरी दीदी ऐसा नहीं कर सकती. क्यों नहीं कर सकती? भीतर से प्रतिध्वनि आई. पिछली बार जब दीदी-जीजाजी आए थे, तो हम दोनों उन्हें कितना समय दे पाए थे? नीरज तो हमेशा की तरह अपने ऑफिशियल शेड्यूल में ही बिजी रहें. कभी उनसे ढंग से बैठकर बात भी नहीं की, और वो भी एक अर्जेंट वर्क में फंस गई थी. दो दिन उन दोनों को अकेले ही घर में बिताना पड़ा था.

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आख़िरकार भव्या ने दीदी को ख़ुद ही फोन कर लिया. उसका शक़ सही निकला. वो बैंगलुरू आ रहे थे, मगर उसके पास आने का उनका कोई प्रोग्राम नहीं था.
“तो क्या आप मुझे बिल्कुल ही भुला बैठीं दीदी? ज़रा भी मन नहीं करता मुझसे मिलने का?” भव्या ने शिकायती लहज़े में कहा, तो दीदी भी बिफर पड़ी.
“कौन किसको भुला बैठा है भव्या ज़रा अपने आप से पूछ कर देखो? तुम अपने काम में अपनी दुनिया में इतनी मस्त हो गई हो कि कोई जिये या मरे, तुम्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. क्या तुम्हें याद है कि पिछली बार तुमने कब मुझे बर्थडे या एनवर्सरी डे विश किया था? मैं भी इंसान हूं, मुझे भी महसूस होता है, जब तेरे जीजाजी को ख़ास दिनों पर उनके मौसेरे, चचेरे भाई-बहन भी बधाइयां देते हैं और मुझे मेरी इकलौती सगी बहन तक का फोन नहीं आता.” दीदी की बातों से भव्या को गहरा धक्का लगा. वाक़ई पिछले दस सालों से वो अपनी जॉब को एकमात्र धर्म की ही तरह ऐसे निभा रही थी कि उसके बाकी सारे कर्तव्य बहुत पीछे छूट गए. ख़ैर बड़ी मुश्किल से लाख मान-मनुहार के बाद दीदी शांत हुई, मगर जीजाजी…
“देख भव्या मैं तो आ भी जाऊं, मगर तेरे जीजाजी ने तेरे यहां आने से साफ़ मना कर दिया है. कह रहे थे, जिन लोगों के पास हमारे लिए फ़ुर्सत के दो मिनट नहीं है, उनके यहां जाकर हम उनकी परेशानी का सबब ही बनेंगे.” भव्या ने जीजाजी से बात कर उन्हें घर आने के लिए मना ही लिया और उनके आने की तारीख़ पर छुट्टी ले ली. इसलिए आज फ़ुर्सत में उसे कुछ देर टैरेस पर घूमने का मौक़ा मिला.
डोरबेल बजी, भव्या चहक कर दरवाज़ा खोलने गई. दीदी-जीजाजी आए थे और आज का पूरा दिन उसके साथ बितानेवाले थे. भव्या ने दीदी से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए. दीदी-जीजाजी का मन साफ़ हो चुका था. भव्या ने उनके लिए नाश्ता परोसा. नाश्ता करते हुए गपशप चल रही थी. भव्या दीदी-जीजाजी के परस्पर व्यवहार को ऑब्ज़र्व कर रही थी. जीजाजी क्या खाएंगे, क्या नहीं खाएंगे दीदी बड़े अधिकार भाव से तय कर रही थीं. जीजाजी आंखों-आंखों में एक एक्स्ट्रा गुलाब जामुन की रिक्वेस्ट कर रहे थे और दीदी ने बड़ी-सी आंखें दिखाकर जता दिया कि इससे आगे एक और नहीं मिलेगा. शादी के बारह साल बाद भी उनके व्यवहार में कितनी गर्मजोशी, कितना अपनापन था एक-दूसरे के लिए. उनकी रोमांटिक केमेस्ट्री भव्या के सीने में टीस-सी उठ गई. उसे याद नहीं आ रहा था नीरज और उसने आख़िरी बार कब इस तरह से एक-दूसरे की कंपनी एंजॉय करते हुए साथ खाया था? जब नीरज नाश्ता करता, तो उसकी आंखें न्यूज़ पेपर, टीवी या लैपटॉप पर जमी रहती थी. मुंह में क्या जा रहा है, उसे शायद पता भी नहीं होता? और वो ख़ुद भी तो नाश्ते को भागते-दौड़ते किसी असाइनमेंट की तरह ही करती. उनके डायनिंग टेबल पर ज़ायका और लुत्फ़ नामक चिड़िया कभी बैठी ही नहीं थी.
भव्या को लगता था यदि पति-पत्नी दोनों वर्किंग हों, तो वहां ऐसा ही हाल होता है, मगर आज दीदी-जीजाजी उसे ग़लत साबित कर रहे थे. दीदी अपने शहर की जानी-मानी इंटीरियर डिज़ाइनर थी, तो जीजाजी प्रसिद्ध आर्किटेक्ट. दोनों ने अपने व्यस्त रुटीन के बीच भी आपसी संबंधों की गरमाहट को कायम रखा था.
नाश्ता निपटाकर दीदी भव्या के साथ सामान समेटने लगीं. किचन में जाकर दीदी ने उड़ती सी नज़र किचन के रख-रखाव पर डाली. हर जगह अव्यवस्था का आलम था. उन्होंने चटनी रखने के लिए फ्रिज खोला तो ख़ुद को कहने से रोक नहीं पायीं…
“भव्या, लास्ट टाइम ये फ्रिज कब साफ़ हुआ था?” भव्या सकपका गई. सच में ये तो उसे ख़ुद भी याद नहीं था.
“तुम तो आजकल की एज्युकेटेड समझदार लड़की हो, जानती ही होगी कि फ्रिज में गंदगी हो, तो हानिकारक बैक्टीरिया ज़िंदा रहकर कैसे हमारी सेहत को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.”
“क्या करूं दीदी, जॉब ही ऐसी है कि टाइम ही नहीं मिलता.” इस पर दीदी ने उसे घूरकर देखा, मगर कुछ नहीं कहा.
जीजाजी कल रात के विवाह आयोजन की थकान उतारने एक पावर नैप लेने चले गए और भव्या व दीदी हाथों में चाय का प्याला लिए हॉल में आकर बैठ गईं.

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“भव्या तेरे सास-ससुर कैसे हैं?” दीदी ने पूछा.
“सास-ससुर की तबीयत तो ऐसी ही रहती है दीदी, एज फैक्टर है, क्या करें. कितना कहा उनसे कभी-कभी यहां आ जाया करें, मगर इधर उनका मन ही नहीं लगता. कहते हैं तुम दोनों के पास तो ज़रा भी टाइम नहीं हम वहां आ कर क्या करेंगे. वो यहां दो साल से नहीं आए हैं.”
“और तुम?”
“अरे हमारे पास कौन-सी छुट्टियों का अंबार लगा है उनके पास जाने के लिए. सच तो ये है दीदी हम उनसे पिछले दो साल से नहीं मिले हैं.”
दीदी का चेहरा गंभीर हो उठा, मगर भव्या के चेहरे पर बेपरवाह से भाव थे.
“और तेरी छोटी ननंद निक्की, वो क्या कर रही है आजकल…”, दीदी ने प्रश्‍न किया तो भव्या गहरी सोच में डूब गयी. उसे याद ही नहीं आ रहा था कि निक्की क्या कर रही है.
“फ्रेंकली स्पीकिंग दीदी आइ डोंट नो एज़ेक्टली.. शायद कोई प्रोफेशनल कोर्स कर रही है.” दीदी की गंभीर भाव-भंगिमा बरक़रार रही.. भव्या को उनकी आंखों में गुस्सा नज़र आया, तो उसने टॉपिक चेंज करने की कोशिश की..
“ये क्या दीदी कुछ मेरे बारे में भी तो पूछो मैं कैसी हूं?.. क्या कर रही हूं? किस पोस्ट पर हूं? जानती हो पिछले महीने ही मुझे प्रमोशन मिला है और बेस्ट मैनेजर का अवॉर्ड भी. ऑफिस में मेरे मैनेजमेंट स्किल की मिसाल दी जाती है." भव्या की आंखें चमक आयीं.
"हां, तेरा मैनेजमेंट स्किल तो मैं देख ही रही हूं." दीदी ने घर में चारों ओर दृष्टि घुमाते हुए आक्रोश भरे स्वर में कहा. हर जगह फैली अव्यवस्था जहां-तहां बिखरे कपड़े, चीज़ें, अख़बार… धूल… भव्या उनकी पैनी दृष्टि को भांप कर झेंप गई.
“आई नो दीदी, मैं घर पर ध्यान नहीं दे पा रही हूं… बट यू नो माय जॉब…”
“ये सब बहाने हैं भव्या.. मैं मानती हूं कि आजकल के दौर में वर्किंग वुमन पिछली पीढ़ी की गृहिणियों की तरह घर को उतना समय नहीं दे सकती, मगर आज जिस तरह की सुविधाएं और मेड्स उपलब्ध हैं उनकी सहायता से घर को अच्छे से मैनेज किया जा सकता है और इसी को मैनेजमेंट स्किल कहा जाता है. एक सक्सेसफुल वुमन वही कहलाती है, जो अपनी जॉब के साथ-साथ अपने घर को, सामाजिक संबंधों को, रिश्तेदारी को भी मैनेज कर पाए.
मैं भी वर्किंग वुमन हूं, मगर मैंने कभी अपने घर और परिवार की अनदेखी नहीं की. देख भव्या तेरी जॉब तेरे जीवन का एक अहम अंग है, मगर पूरा जीवन नहीं. ठीक इसी तरह तेरा वैवाहिक संबंध, तेरा घर, रिश्ते-नाते सभी तेरे जीवन के अहम हिस्से हैं. किसी एक की अनदेखी कर दूसरे को अधिक महत्व देगी, तो जीवन का संतुलन बिगड़ जाएगा. जब तू जीवन के सभी ज़रूरी पहलुओं के बीच संतुलन कायम करना सीखेगी, तभी तेरे मैनेजमेंट स्किल को मानूंगी वरना नहीं.”
भव्या को चिंतामग्न देख दीदी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, “देख भव्या, अभी तुम दोनों अकेले हो. अपने हिसाब से जी रहे हो, मगर जब तुम्हारे बीच तीसरा आएगा जिसे तुम्हारी अटेंशन और समय की ज़्यादा ज़रूरत होगी उस वक़्त कैसे मैनेज करोगे… बेहतर है उसके आने से पहले ही जीवन में संतुलन कायम करना सीख लो वरना…”
“बस, बस दीदी ये वरना… के आगे की बात कर मेरी अभी से नींदें मत उड़ाओ… आई प्रॉमिस आपकी बताई सभी बातों का पूरा ध्यान रखूंगी…” कहकर भव्या ने दीदी की गोद में सिर रख दिया. दीदी प्यार से उसके बालों को सहला रही थी. इस प्यारभरे स्पर्श से भव्या जो कुछ सालों से मशीन-सी बन गई धीरे-धीरे एक इंसान में तब्दील हो रही थी.

- दीप्ति मित्तल

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Photo Courtesy: Freepik


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