पांच दिनों के उपरांत जब हम घर लौटे, तो जो दृश्य मेरी नज़रों ने देखा उसे देखने की कल्पना शायद मेरी आंखों ने कभी भी नहीं की थी. मैंने देखा कि अम्माजी आराम कुर्सी पर लगभग लेटी हुई हैं और कमली उनके पैरों की मालिश कर रही है. यह देख मैं तेज कदमों से उनकी ओर बढ़ी और उनके क़रीब पहुंच कर बोली, "क्या हुआ? सब ठीक तो है..! अम्माजी आपकी तबीयत तो ठीक है?"
सुबह सुबह क़रीब सात बजे, मेरी गृह सहायिका कमली ठंड में ठिठुरती हुई एक पतली सी पुरानी शॉल लपेटे घर के भीतर दाख़िल हुई. चाहे बारिश का महीना हो या चिलचिलाती धूप, तपती हुई गर्मी हो या फिर कड़कड़ाती ठंड, मौसम चाहे जो हो, कमली वक़्त की बड़ी पाबंद है. वह हर दिन अपने समय पर आ ही जाती है. ऐसा नहीं है कि इन सात सालों में उसने कभी छुट्टी ना ली हो, लेकिन जब भी नहीं आना होता है वह पहले ही बता देती है या फिर जब कभी भी अचानक किसी कारणवश नहीं आ पाती है, तो किसी ना किसी के जरिए ख़बर अवश्य भिजवा देती है. उसकी यही बात उसे औरों से ख़ास बनाती है.
मेरे लिए कमली केवल मेरी गृह सहायिका ही नहीं है, बल्कि वह मेरे घर का एक हिस्सा भी बन गई है. वह मेरे लिए मेरे परिवार की एक सदस्य है. कमली के प्रति मेरे यह भाव व विचार पूर्णत: मेरे अपने है. अम्माजी यानी मेरी सासू मां या घर के किसी भी अन्य सदस्य का इससे कोई वास्ता नहीं. अम्माजी के लिए तो कमली केवल एक ऐसी गृह सहायिका है, जो हमसे रुपए लेती है और बदले में हमें अपनी सेवाएं देती है, इससे अधिक कुछ भी नहीं है.
कमली के भीतर आते ही मैं बोली, "कमली पहले गर्मागर्म चाय पी ले फिर काम शुरू करना."
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मेरा इतना कहना था कि कमली गठरी बन कर उकडू बैठ गई और अपने दोनों हथेलियों को रगड़तीं हुई बोली, "हां दीदी पहले गर्मागर्म चाय ही दे दीजिए. जाड़ा तो बहुत ही बढ़ गया है, हाथ-पैर जमने लगा है. दो घूंट गर्म चाय अंदर जाएगी, तभी शरीर में जान आएगी."
मैंने मुस्कुराते हुए गर्म चाय के साथ गर्मा-गर्म भजिए की प्लेट भी उसकी ओर बढ़ा दिए. प्लेट हाथ में लेती हुई वह बोली, "एक आप ही हो दीदी जो हमार ख़्याल रखती हो. बाकी के घरों में तो एक कप चाय देने में ही उनकी नानी मरती है भजिए कहां से खिलाएंगे."
कमली की बातें सुन हॉल में बैठी माला फेरती अम्माजी अपने चश्मे के अन्दर से घूर कर कमली की ओर देखने लगी. यह देख कमली फटाफट एक के बाद एक भजिए मुंह में डालने लगी, इस वजह से उसके तालू भी जल गए. यह स्पष्ट पता चल रहा था. उसके बाद झट से चाय पी कर वहां से खिसक गई और मैं नज़रें झुकाए किचन के कामों में व्यस्त हो गई.
दो दिनों बाद मुझे अपने पति और बेटे के संग मायके एक परिवारिक आयोजन में शरीक होना था. लेकिन ठंड अपनी तेवर दिखाते हुए नज़रें तरेरने लगा था और मैं इस दुविधा में थी कि इस कड़ाके की ठंड में अम्माजी को चार-पांच दिनों के लिए घर पर अकेले छोड़ कैसे जा पाऊंगी. क्योंकि पिछले दो सालों से ठंड की वजह से उनके हाथ-पैर में सूजन आने की शिकायत होने लगी थी, लेकिन जब अम्माजी को यह बात पता चली तो वे बोलीं, "चली जाओ वैसे भी तुम्हारा कहीं जाना बहुत कम ही होता है और फिर यही मौक़ा होता है जब सभी लोगों से मेल-मिलाप हो जाता है. रही बात हमारी तो हम अपना ध्यान रख लेंगे."
अम्माजी से हरी झंडी मिलते ही मैंने जाने की तैयारी शुरू कर दी. जाने से पूर्व मैंने कमली को हिदायत दी कि वह मेरे पीछे घर और अम्माजी का पूरा ख़्याल रखे. यदि कोई परेशानी हो या अम्माजी की सेहत में थोड़ी बहुत भी ऊंच-नीच हो, तो वह फ़ौरन हमें फोन पर इत्तिला करें. हम अगली ही ट्रेन से लौट आएंगे.
अम्माजी से आज्ञा ले हम सपरिवार मेरे पीहर पहुंच गए. पांच दिनों के उपरांत जब हम घर लौटे, तो जो दृश्य मेरी नज़रों ने देखा उसे देखने की कल्पना शायद मेरी आंखों ने कभी भी नहीं की थी. मैंने देखा कि अम्माजी आराम कुर्सी पर लगभग लेटी हुई हैं और कमली उनके पैरों की मालिश कर रही है. यह देख मैं तेज कदमों से उनकी ओर बढ़ी और उनके क़रीब पहुंच कर बोली, "क्या हुआ? सब ठीक तो है..! अम्माजी आपकी तबीयत तो ठीक है?"
मुझे इस तरह घबराया हुआ देख अम्माजी बोलीं, "अरे सब ठीक है, मुझे कुछ नहीं हुआ है. अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं. जाड़े की वजह से हाथ-पैरों में सूजन आ गई थी और पूरे शरीर में दर्द भी भर गया था. मेरी हालत तो बड़ी ख़राब हो गई थी. बिस्तर से हिलना भी मुहाल था, लेकिन कमली ने सब संभाल लिया, उसके हाथों से गर्म तेल की मालिश और सिकाई से अब आराम हैं."
यह सुनते ही मैंने कहा, "तो आपने हमें फोन क्यों नहीं किया?"
"कई बार फोन लगाने की कोशिश की, पर तुम में से किसी का भी फोन लग ही नहीं रहा था लेकिन अब चिन्ता की कोई बात नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूं." अम्माजी ने बड़े शांत भाव से कहा.
तभी कमली बोली, "हां दीदी, मांजी बिल्कुल ठीक है. आप चिन्ता ना करें. आप जा कर हाथ-मुंह धो लीजिए. मैं आप सभी के लिए चाय बना देती हूं. आप लोग सफ़र से थक गए होंगे."
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इतना कहकर कमली हम सभी के लिए चाय बनाने चली गई. तभी अम्माजी ने बताया कि किस तरह कमली पिछले तीन दिनों से अपने घर नहीं जा कर उनकी सेवा में लगी हुई हैं और उसने एक पल के लिए भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ा है.आज अम्माजी की आंखों में कमली के प्रति वह प्यार और सम्मान दिखाई दे रहा था, जो मैं हमेशा से देखना चाहती थी. अम्माजी और कमली के रिश्ते में वह गर्माहट भी दिखाई दे रही थी, जो कड़कड़ाती ठंड अपने संग ले कर आई थी. अब अम्माजी यह भी समझ चुकी थी कि कुछ सेवाएं ऐसी भी होती है, जिन्हें हम रुपए दे कर नहीं प्राप्त कर सकते. इस तरह की निःशुल्क सेवा का मोल केवल कृतज्ञता व प्यार से ही चुकाया जा सकता है.
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