यहां सब कैलाशजी को आलू-टमाटर का प्रेमी मानकर बैठे थे, पर असल में आलू-टमाटर उनका प्रेम नहीं, बल्कि वो तो उनकी मज़बूरी थी. ऐसी मज़बूरी जो वो किसी से भी साझा नहीं कर पाते थे, वरना आलू-टमाटर से वे किस तरह से परेशान थे यह बात सिर्फ़ वे ही जानते थे.
"बिना टमाटर वाला बैंगन का भुर्ता, गले नहीं उतरता." ऑफिस के लंच टाइम पर खाना खाते हुए सुदीप बोला, तो मिश्राजी चुटकी काटते हुए बोले, "तो मत उतारो, यहां दे दो हम खा लेंगे." उनकी इस बात पर सभी कर्मचारी हंस दिए, तो प्रीति बोली, "वैसे सुदीप ठीक कह रहा है, बिना टमाटर की दाल, बिना टमाटर के छोले या दूसरी कोई भी सब्ज़ी कहां अच्छी लगती है."
"तो क्या करें? मोहतरमा! आंदोलन करें. टमाटर के दाम कम कराने को सड़कों पर उतर जाएं?" मिश्राजी ने अपना बड़ा सा मुंह खोलकर छोटा सा निवाला डालते हुए कहा.
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तभी सुदीप बोला, "कल तो अपने कैलाशजी आएंगे ऑफिस, बस उनकी ही सब्ज़ी खाएंगे सब 'आलू-टमाटर' वाली."
"हां, उनके टिफिन में ज़रूर आलू-टमाटर आता है, वैसे इस बार लंबी छुट्टी ले ली उन्होंने. नहीं तो आज ही टमाटर वाली सब्ज़ी खाने मिल जाती." प्रीति ने अपना खाना ख़त्म करते हुए कहा.
"उनकी अम्मा की तबियत ठीक नहीं थी, उन्हें ही देखने गए हैं गांव, वरना कैलाशजी तो एक दिन की भी छुट्टी न लें. ख़ैर! कल तो आ ही रहे हैं, कैलाशजी! बस तो कल उनके ही आलू-टमाटर पर अटैक होगा."
यहां सब कैलाशजी को आलू-टमाटर का प्रेमी मानकर बैठे थे, पर असल में आलू-टमाटर उनका प्रेम नहीं, बल्कि वो तो उनकी मज़बूरी थी. ऐसी मज़बूरी जो वो किसी से भी साझा नहीं कर पाते थे, वरना आलू-टमाटर से वे किस तरह से परेशान थे यह बात सिर्फ़ वे ही जानते थे.
कैलाशजी बेहद शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, पर वे हमेशा से ही खाने-पीने के शौकीन रहे हैं. इत्तेफ़ाक से उन्हें पत्नी जी भी पाककला से प्रेम करने वाली मिल गई. कैलाशजी की जब शादी तय हुई थी, तब वे इस बात से सबसे ज़्यादा ख़ुश थे कि लड़की को खाने की नई-नई रेसिपी सीखना बहुत पसंद है.
शादी तय होने से लेकर शादी होने तक कैलाशजी पत्नी के हाथ के बने स्वादिष्ट और तरह-तरह के भोजन के बारे में सोच-सोचकर मारे ख़ुशी के मन ही मन उछलते रहते थे, पर शादी के बाद उनकी सारी ख़ुशी तब हवा हो गई, जब हर रोज़ उन्हें आलू-टमाटर की सब्जी ही खाने को मिलने लगी. दरअसल, बात ये थी कि उनकी पत्नी सौदामिनी जिन्हें नई-नई रेसिपी सीखने का, नई-नई रेसिपी के बारे में पढ़ने का बड़ा ही शौक था. उनकी टीवी पर दिनभर फूड चैनल चलते रहते. मैगज़ीन और अख़बारों में आई खाने की रेसिपीज की कटिंग वे संभाल कर रखा करतीं.
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हर नए-पुराने शेफ से, नए मसालों से, देशी-विदेशी सब्ज़ियों से वे बख़ूबी परिचित थीं. पर सौदामिनीजी के इस शौक का इत्ता सा भी फ़ायदा कैलाशजी को नहीं मिलता था, क्योंकि उनका यह शौक केवल आभासी ही था प्रैक्टिकली बिल्कुल भी नहीं. उनका यह शौक बिल्कुल वैसा ही था जैसे कि कोई लड़का बचपन से क्रिकेट मैच देखने का, प्लेयर्स के बारे में पढ़ने का, उनके बारे में जानने का और घर में उनके पोस्टर चिपकाने का तो बहुत शौक रखता हो, पर उसे ख़ुद बैट उठाकर फील्ड में उतरने का कोई ख़ासा शौक न हो.
पत्नी जी के इस आभासी शौक के चलते कैलाशजी के जीवन के बारह बजे हुए थे.
कैलाशजी शांत तो थे ही और साथ ही साथ वे अपनी पत्नी को हमेशा प्रेम और सम्मान भी देते थे. शायद इसीलिए वे हर रोज़ बिना कुछ कहे आलू-टमाटर की सब्ज़ी चुपचाप खा लेते थे. आज हफ़्तेभर की लंबी छुट्टी के बाद कैलाशजी ऑफिस पहुंचे, तो उन्हें देखकर सबकी बांछे खिल उठीं. "और भाई आलू टमाटर, कैसे हो? और गांव में अम्माजी की तबियत कैसी है?" मिश्राजी ने मुंह में भरी गुटखे की पीक संभालते हुए पूछा, तो कैलाशजी को उनकी अम्मा की तबियत पूछने पर ख़ुशी कम, मिश्राजी के आलू टमाटर वाले संबोधन पर ग़ुस्सा ज़्यादा आया.
जब लंच का टाइम हुआ, तो सबकी नज़रें कैलाशजी के डिब्बे पर अटक गईं. सबके टिफिन खुलने के बाद जब कैलाशजी का टिफिन खुला, तो सभी उनका टिफिन देखकर भौचक्के से रह गए. और कैलाशजी ने बड़ी शान में सब्ज़ी की सुगंध लेते हुए कहा, "अहा, हा हा आलू-बैंगन की मसाला सब्ज़ी, क्या बात है, आज तो मज़ा ही आ जाएगा."
"कैलाशजी! आलू-टमाटर तो आपकी परमानेंट सब्ज़ी थी, मतलब आप भी महंगे टमाटरों से डर गए? हम सब तो इसी आस में बैठे थे की कैलाशजी तो कम से कम टमाटर वाले आलू लाएंगे पर आप भी..."
प्रीति के इस सवाल पर कैलाशजी बोले, "अरे भाई! हमारी पत्नी बहुत समझदार हैं. कल सब्ज़ी लेकर आई, तो बोलीं, टमाटर के दाम तो आसमान छू रहे हैं, इसीलिए जब तक टमाटर सस्ता नहीं होता, तब तक वे आलू-टमाटर नहीं बनाएंगीं."
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यहां सब टमाटर के बढ़ते दामों को कोस रहे थे और वहां कैलाशजी आलू-बैंगन खाते हुए, महंगे टमाटरों का मन ही मन शुक्रिया अदा कर रहे थे.
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