"वाह मां, पत्नी अगर बाहर काम करते हुए घर चलाने में अपने पति का हाथ बंटाए, तो स्मार्ट वाइफ कहलाए और पति यदि पत्नी का घर के कामों में हाथ बटाएं, तो उसे भोंदू पति कहा जाए, यह कैसी विचारधारा है?"
यूं तो बिंदुजी बड़े खुले विचारोंवाली महिला थीं. पर आज न जाने क्यों? वे अपनी पड़ोसन विमलाजी की बातों में आ गईं. अब विमलाजी का तो काम ही था लगाई-बुझाई का, तभी तो उन्होंने बिंदुजी के कान भी यह कहते हुए भर दिए कि "आपका बेटा दीपक कैसे घर के कामों में जुटा रहता है. अरे, लड़के घर गृहस्थी का काम करते हुए कभी शोभा नहीं देते. अब मेरे बेटे धीरज को ही देखो! घर में कभी उधर की सुई इधर नहीं रखता. मेरी बहू ही दिनभर चकरी सी घूमती हुई घर का एक-एक काम करती है."
मंथरा की तरह मुंह घुमाती हुई वे आगे बोलीं, "बुरा न मानिएगा बिंदुजी! माना कि आपकी बहू ऑफिस जाकर चार पैसे कमाती है, पर नौकरी का क्या? वो तो आप भी करती थीं, तो क्या आप अपने पति से इस तरह घर के काम भी कराती थीं?"
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बिंदुजी, विमलाजी से तो कुछ न बोलीं, पर घर आते ही दीपक को डायनिंग रूम सैट करता देखकर बिफर पड़ीं. "ये क्या तू हमेशा घर पर औरतों की तरह काम में लगा रहता है. जा जाकर ऑफिस के लिए तैयार हो. यह काम प्रिया के हैं वह कर लेगी."
दीपक मां को आश्चर्य भरी निगाहों से देखता हुआ बोला, "मां, प्रिया, अभी-अभी किचन के सारे काम ख़त्म करके अपने ऑफिस के कुछ ज़रूरी मेल चेक करने बैठी है, तो इसलिए मैं उसकी मदद…"
दीपक के आधे कहे वाक्य पर ही बिंदुजी फिर बिफर पड़ीं, "मेल कर रही है, तो उसके बाद कर लेगी, पर तुम नहीं करोगे समझे! वो तो ऑफिस जाकर स्मार्ट वाइफ और स्मार्ट बहू का ख़िताब पहन लेती है और तुम! ऑफिस और घर के कामों के बीच भोंदू टाइप के पति बने रहते हो."
"वाह मां, पत्नी अगर बाहर काम करते हुए घर चलाने में अपने पति का हाथ बंटाए, तो स्मार्ट वाइफ कहलाए और पति यदि पत्नी का घर के कामों में हाथ बटाएं, तो उसे भोंदू पति कहा जाए, यह कैसी विचारधारा है?"
दीपक आगे आकर बिंदुजी के कंधों पर हाथ रखते हुए बोला, "मां, मैंने बचपन से देखा है कि कैसे आपने दोहरा जीवन जीते हुए, हम तीनों भाई-बहनों की परवरिश की है. उस पर बीमार दादी की सेवा, आपकी टीचरवाली नौकरी. नौकरी तो आप और पापा दोनों करते थे न, तो फिर घर के सारे कामों की सूची आपके हाथों में ही क्यों रहती थी. मां, क्या पापा को भी उस वक़्त घर के कामों में आपकी मदद नहीं करनी चाहिए थी?"
बेटे की बात सुनकर बिंदुजी के सामने अतीत का वो एक-एक पल चलचित्र की तरह घूमने लगा, जब बिंदुजी मशीन की तरह दिनभर काम करती थीं. घर और स्कूल के बीच दौड़ती-भागती थीं. उस वक़्त उनका बेटा दीपक ही उनके कामों में हमेशा उनकी मदद करता रहता था.
उस वक़्त उन्हें अपने बेटे पर नाज़ था कि वह कैसे कामकाजी स्त्रियों को इतने अच्छे से समझता है. लेकिन आज!
आज उन्हें क्या हो गया? आज जब उनका बेटा उनकी बहू प्रिया का घर-गृहस्थी के कामों में हाथ बंटा रहा है, तब उन्हें उस पर शर्म क्यों आ रही है? तभी बिंदुजी पछतावे से भर उठीं और उन्होंने दीपक का माथा चूमते हुए कहा, "बेटा! तुम बचपन में मेरे स्मार्ट बॉय थे और अब तुम एक स्मार्ट हसबैंड हो. शाबास बेटा! जिस तरह बहू तुम्हारे साथ बराबरी से काम कर रही है, वैसे ही तुम भी उसके साथ हमेशा बराबरी से काम करना बिल्कुल मेरे 'स्मार्ट बॉय' की तरह."
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