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लघुकथा- सुकरात और आईना (Short Story- Sukrat Aur Aaina)

“मैं आईना इसलिए देखता हूं, ताकि मुझे अपनी कुरूपता का भान होता रहे और मैं अच्छे काम करने का प्रयत्न करूं, जिससे मेरी कुरूपता गौण हो जाए…”

यूनानी दार्शनिक एवं विचारक सुकरात का नाम तो सब ने सुना है. क्या आप जानते हैं कि देखने में वह बहुत कुरूप थे. एक दिन वह हाथ में आईना लिए अपना चेहरा देख रहे थे जब उनका एक शिष्य भीतर आया और यह दृश्य देख मुस्कुराने लगा.
सुकरात बोले, “मैं तुम्हारे मुस्कुराने का अर्थ समझ गया. तुम शायद सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरूप व्यक्ति आईने में क्या देख रहा है?”
शिष्य का सिर शर्म से झुक गया.
“मैं आईना इसलिए देखता हूं, ताकि मुझे अपनी कुरूपता का भान होता रहे और मैं अच्छे काम करने का प्रयत्न करूं, जिससे मेरी कुरूपता गौण हो जाए…”
“इस तर्क अनुसार, तो सुन्दर व्यक्ति को आईना देखने की ज़रूरत ही नहीं?” शिष्य ने कहा.


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ऐसी बात नहीं. उन्हें आईना यह सोचकर देखना चाहिए कि वह जितने सुन्दर हैं, उतना ही सुन्दर वह काम करें, ताकि बुरे काम उनके चेहरे पर छा कर उसे कुरूप न बना दें."
तात्पर्य यह है कि सुन्दरता मन के भावों से आती है.
शारीरिक सुन्दरता तात्कालिक है, जब कि मन और विचारों की सुन्दरता बनी रहती है.

Usha Vadwa

उषा वधवा

Photo Courtesy: Freepik

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