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कहानी- यादें रेशम सी (Short Story- Yaadein Resham Si)

"हां वानी, शिव, तुम्हारा शिव. ओह वानी मैंने तुम्हे कहां नहीं खोजा. जब से दिल्ली आया हूं हर जगह तुम्हे ही खोज रहा था. सुना था मैंने की शादी के बाद तुम दिल्ली में रहती हो. कैसी हो वानी? तुम ठीक तो हो ना?” शिव बोलता ही जा रहा था.
"मैं ठीक हूं शिव, तुम कैसे हो? इतने सालों बाद भी पहचान गए मुझे."
“पहचानता कैसे ना वानी, मेरी हर किताब में ज़िक्र है तुम्हारा.”
कितना ख़ुश हुई थी वानी ये सुनकर. अच्छा लगा था उसे की शिव आज भी उसके बारे में लिखता है.

सुबह के क़रीब सात बज रहे थे. वानी ने हॉल का एसी बंद करके खिड़कियां खोल दी थी. दिल्ली में ऐसा मौसम कभी-कभी देखने को मिलता है. रातभर बारिश होती रही और आज सुबह से ही सुकून देनेवाली हवाएं चल रही थी. रात ठीक से सो ना सकी थी वानी. महेश कल रात फिर घर नहीं लौटा था. वानी बिस्तर पर अकेले ही नींद तलाशती रही थी.
कॉफी का कप हाथ में थामे गार्डन में निकल पड़ी थी वो. बारिश की वजह से घास अब तक गीली थी. वानी ने चप्पल निकाल दी और नंगे पैर ही घास पर चलने लगी. उसने कॉफी ख़त्म की ही थी की पोर्च पर एक गाडी आकर रुकी. शायद महेश लौट आया था.
वानी तेजी से चलकर पोर्च तक आई, पर ये क्या, महेश तो था ही नहीं, उसका ड्राइवर राजेश था. अकेले.
"साहब कहां हैं?" वानी ने पूछा.
"मैडम, साहब को अर्जेंट बैंगलुरू जाना पड़ा और मुझे गाडी घर ले जाने को कहा. उन्होंने कहा हैं की वो दो-तीन दिन में लौट आएंगे." राजेश ने गाडी पार्क करके बताया और चाबी वानी की ओर बढ़ा दी.
महेश ये छोटी सी बात उसे फोन करके भी तो बता सकता था ना. रात भी उसने कई बार फोन किया, पर महेश ने एक बार भी उसका फोन नहीं उठाया था. कुछ ही दिन में वानी की मैरिज एनिवर्सरी थी और वो जानती थी की हमेशा की तरह इस बार भी महेश भूल जाएगा. 20 सालों के रिश्ते में महेश ने और दिया भी क्या था उसे सिवाए अकेलेपन के. वानी के मां-बाप ने चुना था महेश को. शादी के बाद महेश ने वानी को हर चीज़ दी सिवाए वक़्त के. वक़्त नहीं था उसके पास. अपने बिज़नेस में ही खोया रहता था. सुबह होते ही निकल जाता और देर रात वापस आता.
अकेलापन दुनिया का सबसे बड़ा रोग होता है. ये मजबूर कर देता है हमे हर वो काम करने के लिए जो हम नहीं करना चाहते. वानी माखीजा पिछले कई सालों से इस अकेलेपन को जी रही है. 16 साल पहले उसकी बेटी शिवानी के जन्म के साथ उसे लगा था की शायद अब उसका अकेलापन कम हो जाएगा, लेकिन वक़्त के साथ शिवानी बड़ी हो गई, अपनी दुनिया में व्यस्त हो गई और वानी एक बार फिर अकेली रह गई थी.
कुछ देर बाद वानी हॉल में बैठी शॉपिंग वेबसाइट्स देख रही थी. महेश को भले याद ना रहे पर हर साल की तरह इस साल भी वो ठीक रात बारह बजे महेश को तोहफ़ा देकर एनिवर्सरी विश करना चाहती थी. पर वो महेश को तोहफ़े में क्या दे? रिस्ट वॉच उसने पिछले साल ही दी थी और उसके पिछले साल परफ्यूम. तो फिर क्या दे वो महेश को? कोई अच्छी किताब दे दे क्या? किताबें पढ़ने का शौक है उसे. हां, किताब सही रहेगी सोचते ही वानी पहुंच गई थी किताबों के सेक्शन में और घंटों की मशक्कत के बाद एक किताब पसंद की थी. लेखक का नाम देखते ही कुछ बीट्स धड़कना भूल गया था वानी का दिल. शिव माथुर. हां, यही नाम तो लिखा था. पर क्या ये वही शिव था, वानी का शिव. उसका पहला प्यार. वानी बार-बार उस नाम को देखती रही, सोचती रही की कहीं उसकी नज़रें धोखा तो नहीं खा रही. पर ये उसकी नज़रों का धोखा नहीं था. पहचान ली थी वानी ने किताब के आख़िरी में छपी उसकी तस्वीर और लौट गई थी अतीत में जब वो और शिव साथ थे.

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वानी ने शिव को पहली बार कॉलेज फेस्ट में सुना था. कितनी ख़ूबसूरत कविताएं लिखता था वो. गेहुंआ रंग. 6 फीट लंबा कद और गहरी काली उसकी आंखें, जो सारे शो के दौरान वानी पर ही टिकी हुई थी. अगले दिन वानी पहुंच गई थी कैंटीन में शिव को ढूंढ़ते हुए. सामना होते ही हथेली आगे कर दी थी उसके और कहा था, "ऑटोग्राफ."
शर्म से झेंपते हुए शिव ने जवाब दिया था, "मेरा ऑटोग्राफ? मैं कोई सेलिब्रिटी थोड़ी हूं."
"पर बहुत जल्द बननेवाले हो, चलो अब जल्दी साइन करो." वानी ने हथेली लहराते हुए जवाब दिया था. उसकी हथेली थाम शिव ने लिख दिया था अपना नाम. ये पहली मुलाक़ात जल्द ही रोज़ाना होने लगी. कुछ ही दिनों में प्यार करने लगे थे दोनों.
वानी का ध्यान डोरबेल की आवाज़ से टूटा था. उसकी बेटी शिवानी स्कूल से वापस आ गई थी.


रात बारिश फिर दिल्ली को भिगोती रही. धोती रही पेड़, पत्तियों और दिलों में जमी धुंध को. महेश अब तक नहीं लौटा था. वानी ने एक कप कॉफी बनाई और बालकनी में निकल आई. आज सुबह से ही जबसे उसने शिव की किताब देखी थी उसका मन कुछ परेशान सा था. बालकनी में आते ही उसने कॉफी एक तरफ़ रखी और खोजने लगी थी शिव को फेसबुक पर. जल्द ही शिव का फेसबुक अकाउंट उसके सामने था. इतने सालों बाद शिव को देखना सुकून भरा था. शिव की तस्वीरों को निहारते हुए वानी एक बार फिर पहुंच गई थी उस दिन में जब वो शिव से आख़िरी बार मिली थी.
कॉलेज के आख़िरी दिन थे. प्लेसमेंट के लिए कम्पनीज कॉलेज आनेवाली थी. वानी के हाथ में दो फॉर्म थे, उसने एक फॉर्म शिव के सामने रख दिया था जिसे देखकर शिव ने पूछा था.
"क्या है ये?"
"अरे, बाबा परसों के इंटरव्यू का फॉर्म है." वानी ने बताया था. शिव ने उसकी बात पर ख़ास ध्यान नहीं दिया और फॉर्म साइड में करके कहा था.
"वानी मैं इस इंटरव्यू में नहीं आ पाऊंगा. तुम तो जानती हो ये जॉब -वॉब मेरे लिए है ही नहीं. मै अपनी कहानियों में ख़ुश हूं."
"कहानियों में ख़ुश हूं और ज़िंदगी, उसके लिए क्या करनेवाले हो?"
"पता नहीं पर जॉब तो बिल्कुल नहीं, मैं अपनी किताब लिखूंगा."
"ओह तो मैं क्या समझू मैं अगले पाउलो कोएल्हो से बात कर रही हूं?" वानी के लहजे में तंज था.
"तुम मेरा मज़ाक बना रही हो वानी?"
“नहीं शिव तुम्हारा मज़ाक मैं नहीं तुम ख़ुद बना रहे हो और चलो एक बार को मैं तुम्हारी बात मान भी लू, लेकिन पापा इस बात को कभी नहीं समझेंगे. प्लीज़ ऐसा मत करो." कितनी कोशिश की थी वानी ने शिव को मनाने की, मगर वो अड़ा रहा अपनी ज़िद पर. दो दिन बाद सब इंटरव्यू में शामिल हुए पर शिव नहीं.
वानी के अंदर ग़ुस्सा था. कितनी अच्छी जॉब मिल सकती थी शिव को. पर उसे, उसे तो लेखक बनना था. ठीक है जब उसे शौक ही है धक्के खाने का तो खाता रहे. उस दिन के बाद वानी ने शिव से कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया. कुछ दिनों बाद घर पर वानी की शादी की बात चलने लगी थी. शहर के बड़े बिज़नेसमैन से तय किया जा चुका था उसका रिश्ता. जल्द ही शादी करके दिल्ली आ गई थी वो. शिव के ख़्यालों में खोए हुए वानी कब बालकनी से उठकर बेड तक आ गई और फिर सो गई उसे पता ही नहीं चला था.
सुबह हमेशा एक नई उम्मीद लेकर आती हैं. कुछ नया पा सकने की उम्मीद. वानी आज सुबह से ख़ुश-सी थी. सोशल मीडिया में ही सही पर उसने फिर से पा लिया था शिव को. देख डाली थी उसने शिव की पूरी फेसबुक प्रोफाइल. एक मशहूर लेखक बन चुका है अब वो. पांच बेस्टसेलर किताबों का लेखक. उम्मीद का बीज एक बार फिर से पलने लगा था वानी के दिल में. शिव से दोबारा जुड़ सकने की उम्मीद. पर ये भी सच था की उसमे नहीं थी हिम्मत अपने नाम से शिव से कॉन्टेक्ट करने की. तो क्या हुआ? ऐसा कहीं लिखा तो नहीं हैं की वो अपने नाम से ही शिव से कॉन्टेक्ट करे. वो किसी दूसरे नाम से भी तो उससे बात कर सकती है. उसे बस शिव की खैरियत ही तो जाननी थी. वानी ने जल्द ही एक नई आईडी बना ली थी, एक नए नाम के साथ, ‘यादें रेशम सी’ नाम से और भेज दिया था शिव को "हाय" का मैसेज.
रात खाने के बाद रोज़ की तरह वानी एक कप कॉफी के साथ बालकनी में थी जब किसी का मैसेज आया था. वानी ने मैसेज देखा और देखते ही उछल पड़ी थी. शिव का मैसेज था. उसने सिर्फ़ इतना ही लिखा था. "हैलो."

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कॉफी छोड़ वानी ने तुरंत टाइप करना शुरू किया.
"हाय, वैसे आप शिव ही हो ना? क्या है आपको तो दिनभर में कई मैसेज आते होंगे, तो क्या आप सबको जवाब देते हो?"
इस बार जवाब जल्दी आया था, लिखा था.
"हां, शिव ही हूं, और कोशिश यही रहती है की सबको जवाब दे सकूं."
"ओके, वैसे क्या आप अभी चांद देख सकते हैं?" वानी ने पूछा.
"हां, खिड़की से दिख तो रहा है, वैसे चांद क्यों, कुछ ख़ास है आज?" शिव ने कहा.
"नहीं ख़ास नहीं है, बस मुझे आदत है रोज़ रात डिनर के बाद कॉफी पीते हुए चांद देखने की, तो सोचा आपसे भी पूछ लू. आप लेखकों की तो प्रेरणा होता है ना चांद?"
"हा हा, हां कई लोग ऐसा कहते है.”
कुछ और भी सवाल किए थे वानी ने उस रात, जिनके जवाब शिव ने दिए थे.


अब वानी का मन ख़ुश रहने लगा था. वो सुबह ही शिव को मैसेज कर देती और दिन जवाब के इंतज़ार में गुज़र जाता. देर से ही सही पर शिव के जवाब आते. इंतज़ार इतना ख़ूबसूरत हो सकता है वानी को आज पता चला था.
जून का महीना था. शिव को मैसेज करते वानी को महीनेभर से ज़्यादा बीत गए थे. ख़ुद को अकेला पाते ही वानी ने खोल ली थी शिव की फेसबुक प्रोफाइल. शिव ने अपने बुक लॉन्च का प्लान डाल रखा था. १३ जून भोपाल. १५ जून दिल्ली.
१५ जून तो आज है. यानी की शिव दिल्ली में है. उसने एक नज़र घडी पर डाली. दोपहर के १२ बजने को थे. बुक लॉन्च का समय दो बजे का था. वानी को जल्द ही कोई फ़ैसला करना था. आनन-फानन में उसने साड़ी बदली और दो बजने के पहले बुक स्टोर के बाहर थी. शिव को देखने का इससे बेहतर मौक़ा उसे शायद ही मिलनेवाला था, लेकिन ये क्या, लाख कोशिशों के बावजूद भी नहीं कर पा रही थी वो हिम्मत शिव का सामना करने की. क्या कहेगी उससे? जल्द ही हार मान ली थी उसने और बगल के कॉफी शॉप में आकर बैठ गई थी.
वो वहां घंटेभर से ज़्यादा बैठी रही. अब तक तो शिव का लॉन्च ख़त्म भी हो गया होगा. उसने एक नज़र घडी पर डाली और उठकर बाहर को चल पड़ी और तभी वो किसी से टकरा गई थी.
"आई एम सॉरी, रियली सॉरी."
वानी ने बिना उस शख़्स की तरफ़ देखे, फ़र्श पर अपना बिखर चुका सामान समेटते हुए कहा था.
"वानी, वानी मखीजा?" अजनबी नहीं था वो शख़्स. पहचान लिया था उसने वानी को और इस तरह अपना नाम पुकारे जाने पर वानी ने उस शख़्स की तरफ़ देखा था और फिर देखती ही रह गई थी. सामने शिव खड़ा था.
"व्हाट ए प्लैसेंट सरप्राइज़ वानी?"
शिव ने आगे कहा पर वानी बस उसे घूरे जा रही थी और सिर्फ़ इतना ही कह सकी थी. "शिव."
"हां वानी, शिव, तुम्हारा शिव. ओह वानी मैंने तुम्हे कहां नहीं खोजा. जब से दिल्ली आया हूं हर जगह तुम्हे ही खोज रहा था. सुना था मैंने की शादी के बाद तुम दिल्ली में रहती हो. कैसी हो वानी? तुम ठीक तो हो ना?” शिव बोलता ही जा रहा था.
"मैं ठीक हूं शिव, तुम कैसे हो? इतने सालों बाद भी पहचान गए मुझे."
“पहचानता कैसे ना वानी, मेरी हर किताब में ज़िक्र है तुम्हारा.”
कितना ख़ुश हुई थी वानी ये सुनकर. अच्छा लगा था उसे की शिव आज भी उसके बारे में लिखता है. शिव लगातार बोले जा रहा था, पर वानी सुकून से देखती रही थी उसे जैसे सालों की भरपाई कर रही हो. बीस सालों में ज़रा भी नहीं बदला था बस माथे के पास के कुछ बाल सफ़ेद हो गए थे.
वानी, शिव में खोई हुई थी जब उसका मोबाइल बजा. उसकी बेटी का फोन था.
"शिव अब मुझे जाना होगा." वानी ने फोन रखते ही कहा और फिर कुछ देर ठहर कर पूछा. “कल हम मिल सकते हैं क्या? कल दिल्ली में हो ना?”
"हां ज़रूर, कल बारह बजे मिलते हैं इसी जगह." शिव ने कहा और वानी चली गई थी.
जून के मौसम में दिल्ली ख़ूब तपती है, लेकिन आज सुबह से वानी के दिल में बारिशें हो रही थी. वो शिव से जो मिलनेवाली थी. घंटों की मशक्कत के बाद एक पीली साड़ी चुनी थी उसने और निकल गई थी शिव से मिलने. उसे देखते ही खड़ा हो गया था शिव और कहा था.
“पीली साड़ी में बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो.”
तो आख़िरकार उसने नोटिस कर ही लिया. जल्द दोनों बातों में खो गए थे. शिव अपने क़िस्से बता रहा था, जिन्हे सुनकर वानी खिलखिलाकर हंस रही थी.
दो घंटे से ज़्यादा बीत गए जब शिव ने वानी को बोलने से रोका था. शिव के टोकते ही उदासी की एक लकीर वानी के माथे से होते हुए उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल गई थी.
कहते हैं, स्त्री मन आनेवाले हर ख़तरे को सबसे पहले भांप लेता है. यहां भी वही हुआ था. वानी ने जान लिया था शिव का इस तरह से उसे टोंके जाने का कारण और फिर शिव ने कह ही दिया था.
"पांच बजे फ्लाइट है मेरी. अब मुझे जाना होगा."
वानी ने बिना कोई जवाब दिए सिर नीचे झुका लिया था. शिव अपनी जगह पर जाने को खड़ा हो गया. वानी का दिल तेज़ी से धड़क रहा था. शिव आगे कुछ कहता इसके पहले ही वानी ने कहा था.
"शिव, तुम्हारे जाने से पहले मैं एक आख़िरी बात तुमसे कहना चाहती हूं. जानते हो कल मैं अनजाने में इस कॉफी शॉप में नहीं आई थी, बल्कि मैं जानती थी की तुम दिल्ली में हो और यहां जान-बूझकर आई थी, ताकि तुम्हे देख सकूं पर फिर तुम्हारा सामना करने की हिम्मत ना जुटा सकी. मुझे लगा था शायद तुम मुझे भूल चुके होगे.”
"ऐसा नहीं है वानी, तुम भी तो मुझे नहीं भूली हो. आज भी मैसेज करती हो, हां, वो अलग बात है किसी और नाम से. मैं जानता हूं वानी की वो ‘यादें रेशम सी’ तुम ही हो. पहले दिन से जानता हूं. तुम्हारे सिवा और कौन डिनर के बाद चांद देखते हुए कॉफी पीता है. तुमने फोटो में चेहरा ज़रूर छुपा लिया था, लेकिन तुम्हारी गर्दन पर बने वो तीन स्टार मैं आज भी पहचान सकता हूं. ज़िंदगी हमें चाहे जिस मोड़ पर ले जाए, पर हम हमेशा दोस्त रहेंगे.” कहकर शिव ने अपनी उंगलियां वानी की उंगलियों से फंसा ली थी.


वानी कुछ देर ख़ामोश रही और फिर उठकर शिव के गले से लग गई. उसने देर तक शिव को बांहों से लगाए रखा था. वानी से अलग होते ही शिव निकल गया था एयरपोर्ट के लिए.
आहिस्ता-आहिस्ता ज़िंदगी बीतती रही. शिव और वानी दोबारा कभी मिल न सके. उनका प्यार कभी भी फेसबुक से निकल कर व्हाट्सप्प या मोबाइल नंबर तक नहीं पहुंचा. महेश अपने बिज़नेस में अब और भी ज़्यादा व्यस्त रहने लगा है. वानी की बेटी एक बड़ी क्रिमिनल लॉयर बन चुकी है. वानी आज भी शिव को फेसबुक पर मैसेज करती है और फिर सारा दिन जवाब के इंतज़ार में निकाल देती है. वो शिव की लिखी हर किताब सबसे पहले पढ़ती है. उसके सारे इंटरव्यूज़ रिवाइंड कर करके देखती है. डिनर के बाद चांद देखना वो आज भी नहीं भूलती.
कुछ गुनाहों की सुनवाई दुनिया की किसी अदालत में नहीं होती, उनकी सज़ा उम्र देकर भी चुकाई नहीं जा सकती. शिव और वानी दोनों ख़ामोशी से अपनी-अपनी सज़ा काट रहे हैं.

डॉ. गौरव यादव

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